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Wednesday, 9 October 2019

231. रफ्तार- अनिल मोहन

साढे चार अरब के हीरों की डकैती।
रफ्तार- अनिल मोहन

आप‌ने कभी दौलत की रफ्तार देखी है? नहीं न! तो आइए, इस उपन्यास में देखते हैं दौलत की रफ्तार। दौलत जब रफ्तार पकड़ती है तो सब कुछ बर्बाद करती चली जाती है।

अनिल मोहन जी द्वारा लिखित और सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'रफ्तार' पढने को मिला।
आज से 18 वर्ष पहले का लिखा गया यह उपन्यास आज भी वैसा ही तरोताजा महसूस होता है। कहीं से भी यह अहसास नहीं होता की यह उपन्यास इतना पुराना भी है।

      उपन्यास देवराज चौहान सीरिज का है तो स्वाभाविक ही है की यह डकैती पर आधारित होगा। यह उपन्यास भी एक डकैती पर ही आधारित है। यह कोई छोटी डकैती नहीं है, यहाँ तो मामला साढे चार अरब रूपयों का है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ से एक झलक देखें।
बुरे वक्त की मार साढे चार अरब के हीरों को ले जाता जगमोहन, यू ही इत्तफाक से, खामखाह ही पुलिस वालों के फेर में जा फंसा और खड़ा हो गया झंझट, क्योंकि ...क्योंकि साढे चार अरब के हीरे गायब हो गये। कौन ले गया? हर कोई इस बात से परेशान था उपर से एक और नई मुसीबत खड़ी हो ग ई कि जो भी डकैती में शामिल था, कोई बारी बारी से उनके कत्ल करने लगा और उसकी वजह जिसी के समझ में नहीं आ रही थी।



     मुंबई की एक ज्वैलरी शाॅप 'केटली एण्ड केटली' के पास अरबों के हीरे आते हैं‌। और यह खबर किसी तरह देवराज चौहान तक पहुंच जाती है।- हमें खबर मिली थी वो ठीक निकली। केटली एण्ड केटली ज्वैलर्स लिमिटेड के शोरूम में, फ्रांस में, नीलामी के खरीदे गये डायमंड्स (हीरे) दो घण्टे पहले पहुंच चुके हैं। जिनकी कीमत साढे चार अरब रूपये है।"(पृष्ठ-11)

इस लूट के लिए देवराज चौहान एक टीम एकत्र करता है। जिसमें स्वयं देवराज के साथ जगमोहन, सोहन लाल (ताला तोड़) और भटनागर शामिल होते हैं।
भटनागर- पैंतालीस वर्षीय, उन खतरनाक, तेज-तर्रार लोगों में से था, जो सारा जीवन अपराध करते हैं।
लेकिन हीरों की सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत होती है की देवराज के अलावा सभी हार मान लेते हैं।पर देवराज का हौसला उन्हें आगे बढने की प्रेरणा देता है।
- हर काम इसी आशा के साथ किया जाता है कि वो पूरा होगा। काम का नतीजा तो बाद में सामने आता है कि सफलता हाथ लगी या असफलता। देवराज चौहान ने कहा। (पृष्ठ-12)

डकैती के अलावा भी कुछ ऐसे ट्विस्ट उपन्यास में शामिल हैं जो देवराज के साथ साथ बीमा कम्पनी के जासूस तिवारी को भी उलझन में डाल देते हैं।

उपन्यास में दो चंबल के डकैत भी उपस्थित हैं। जो कथानक को रोचक बनाने में सहायक होते हैं‌। दोनों की जुगलबंदी हास्य से भरपूर है।
"केसरिया...!"
"हां सरदार।"
"क्या कहता है ये?"
"सरदार, हिस्सेदारी की बात तो हिसाब लगाकर ही कह रहा है।"-केसरिया ने कहा।
" बाद में हेराफेरी में उतर आया तो?"
"निपट लेंगे सरदार...।" (पृष्ठ-42)

"केसरिया....!"
"हां सरदार...!"
"कां पे गड़बड़ हो सकती है?"
"मेरी तो समझ में नहीं आ रहा। तुम सरदार हो। मेरे से ज्यादा अच्छा सोच सकते हो।"
(पृष्ठ-47)


लेकिन एक दो जगह इनका अनावश्यक वार्तालाप भी कहानी को धीमा करता है। वहीं टेम्पो चालक अमृत पाल और उसके साथी बुझे सिंह का हद से ज्यादा विस्तार अखरता है।

यह उपन्यास प्रथम बार सन् 2000 में प्रकाशित हुआ था। तब इसका नाम 'रफ्तार 2000' था। दूसरा कारण उपन्यास में प्रयुक्त एक टेम्पों का नंबर भी 2000 है।
क्योंकि सन् 2000 चल रहा था और टेम्पो का नंबर भी 2000 था। (पृष्ठ-36)
लेकिन द्वितीय संस्करण में इसका नाम 'रफ्तार' कर दिया गया।

'रफ्तार' उपन्यास एक डकैती आधारित कथानक है। उपन्यास नाम चाहे 'रफ्तार' है लेकिन उपन्यास वास्तव में मध्यम गति से चलता है। द्वितीय संस्करण में अनावश्यक घटनाओं का हटाकर कुछ संशोधन किया जा सकता था।
सामान्य घटनाक्रम का यह उपन्यास एक बार मनोरंजन करने में पूर्णतः सक्षम है।

उपन्यास- रफ्तार           
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
प्रथम संस्करण- 2000
द्वितीय संस्करण- 2018
पृष्ठ- 251₹

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