द्वितीय विश्वयुद्ध पर आधारित उपन्यास।
सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा
परशु राम जी का एक उपन्यास 'सुंदरी को मरने दो' काफी समय से मेरे पास था। बस इस उपन्यास को पढने का समय ही नहीं मिल पाया। अब समय मिला तो इसे पढने बैठा दो दिन में पढकर समाप्त किया।
मुझे इस उपन्यास के शीर्षक ने बहुत आकृष्ट किया। 'सुंदरी को मरने दो' कितना रोचक शीर्षक है। बस यही शीर्षक इस उपन्यास का सबसे बड़ा आकर्षण है। यही आकर्षक मुझे उपन्यास पढने के लिए मजबूर कर गया।
"तुम्हारा नाम?"
"मैनुअल।"
"यह तुम्हारा ही नाम है?"
"नहीं... दुनियां में इस नाम के हजारों लाखों लोग होंगे...मैं इस नाम पर अपना दावा क्यों जाहिर करूं...।"(पृष्ठ-5)
प्रस्तुत उपन्यास की कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध पर आधारित है। जब एक तरफ हिटलर और मुसोलिनी थे और दूसरी तरफ मित्र राष्ट्र। इन सब के बीच में आम जनता हर रोज मर रही थी। मुसोलिनी के चलते इटली विनाश के कगार पर पहुंच गया। इटली के कुछ क्रांतिकारियों ने इटली की रक्षार्थ एक संगठन बनाया 'कारबोनरी' जिसका प्रमुख बना मैनुअल। यही एक दिन संगठन एक दिन मुसोलिनी से जा टकराया।
जब मुसौलिनी को होश आया तो मैं उसके सामने था।
"अब क्या हाल है?"- मैंने पूछा।
वह अचरज भरी निगाहों से मुझे देखने लगा।
" मैं कारबोनरी का अध्यक्ष हूँ- मैनुअल।" मैंने अपना परिचय दिया।
आजादी के लिए क्रांतिकारी तीन बातों पर अपना विशेष ध्यान केन्द्रित करते हैं। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। उपन्यास का यह अंश उपन्यास को कुछ हद तक रोचक भी बनाता है।
"क्यों न हम कोई ऐसा काम करें जो बहुत ही महत्वपूर्ण हो और सदियों तक रहने वाला हो।"
"ऐसा कौन सा काम हो सकता है?"- मारिया ने पूछा।
" तीन बातें...तीन घटनाएं और तीन मौतें...समझो हमने सबसे बड़ा इतिहास लिख दिता।"
"ये तीन बातें...तीन घटनाएं...तीन मौतें कौन सी होंगी?"
"नंबर एक मुसौलनी...नंबर दो कलेरा...नंबर तीन साल्वाडोर....इन तीन आदमियों की अलग-अलग तीन बातें हैं। ...तीनों की मौतें...तीन घटनाएं और उसके बाद सारा इटली हमें याद करता रहेगा।" (पृष्ठ-95)
जैसा की मैंने शुरू में कहा की उपन्यास का शीर्षक मुझे बहुत रोचक लगा। लेकिन जैसे -जैसे उपन्यास आगे बढा ठीक वैसे-वैसे शीर्षक औचित्य हीन होता गया। हालांकि कुछ जगह शीर्षक को सही ठहराने की चेष्टा की गयी है पर वह कहीं से सही नहीं लगती। मुख्य घटनाक्रम से शीर्षक का कोई संबंध नहीं है।
उपन्यास में इटली के शासक मुसोलिन का होना और इसकी प्रेमिका का चित्रण एक बेहतरीन प्रयोग है जो उपन्यास को रोचक बनाता है।
अगर आप उपन्यास को थ्रिलर के रूप में पढना चाहेंगे तो यह आपको बिलकुल भी अच्छा न लगेगा। यह तो एक काल्पनिक योद्धा की कहानी है जो अपने राष्ट्र को आजाद करवाना चाहता था। कैसे उसने स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की बाज लगा दी।
उपन्यास युद्ध के कारण बहुत उलझा हुआ है। युद्ध की नीरसता पाठक को नीरस कर देती है। कहानी इतिहास के ज्यादा नजदीक है। इतिहास और कल्पना का अदभुत मिश्रण है।
उपन्यास- सुंदरी को मरने दो
सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा
परशु राम जी का एक उपन्यास 'सुंदरी को मरने दो' काफी समय से मेरे पास था। बस इस उपन्यास को पढने का समय ही नहीं मिल पाया। अब समय मिला तो इसे पढने बैठा दो दिन में पढकर समाप्त किया।
मुझे इस उपन्यास के शीर्षक ने बहुत आकृष्ट किया। 'सुंदरी को मरने दो' कितना रोचक शीर्षक है। बस यही शीर्षक इस उपन्यास का सबसे बड़ा आकर्षण है। यही आकर्षक मुझे उपन्यास पढने के लिए मजबूर कर गया।
"तुम्हारा नाम?"
"मैनुअल।"
"यह तुम्हारा ही नाम है?"
"नहीं... दुनियां में इस नाम के हजारों लाखों लोग होंगे...मैं इस नाम पर अपना दावा क्यों जाहिर करूं...।"(पृष्ठ-5)
सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा |
यह उपन्यास मैनुअल नामक एक व्यक्ति पर आधारित है। जिसके बहुत से रूप उस उपन्यास में उभरते हैं। वास्तव में यह उपन्यास न होकर मैनुअल के जीवन की कहानी मात्र है। उसके जीवन के विभिन्न रूप इस उपन्यास में पढने को मिलते हैं। और यह मैंनुअल कौन है?
"कभी मैं क्रांतिकारी था...कभी मैं आप्रेशन वेलिस पर था, तो कभी मैं सिसली के माफिया गुण्ड़ों का सफाया करने निकला और कभी मैंने पोम्पई के खण्डहरों में अपना छापा मार दल बनाया।"प्रस्तुत उपन्यास की कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध पर आधारित है। जब एक तरफ हिटलर और मुसोलिनी थे और दूसरी तरफ मित्र राष्ट्र। इन सब के बीच में आम जनता हर रोज मर रही थी। मुसोलिनी के चलते इटली विनाश के कगार पर पहुंच गया। इटली के कुछ क्रांतिकारियों ने इटली की रक्षार्थ एक संगठन बनाया 'कारबोनरी' जिसका प्रमुख बना मैनुअल। यही एक दिन संगठन एक दिन मुसोलिनी से जा टकराया।
जब मुसौलिनी को होश आया तो मैं उसके सामने था।
"अब क्या हाल है?"- मैंने पूछा।
वह अचरज भरी निगाहों से मुझे देखने लगा।
" मैं कारबोनरी का अध्यक्ष हूँ- मैनुअल।" मैंने अपना परिचय दिया।
आजादी के लिए क्रांतिकारी तीन बातों पर अपना विशेष ध्यान केन्द्रित करते हैं। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। उपन्यास का यह अंश उपन्यास को कुछ हद तक रोचक भी बनाता है।
"क्यों न हम कोई ऐसा काम करें जो बहुत ही महत्वपूर्ण हो और सदियों तक रहने वाला हो।"
"ऐसा कौन सा काम हो सकता है?"- मारिया ने पूछा।
" तीन बातें...तीन घटनाएं और तीन मौतें...समझो हमने सबसे बड़ा इतिहास लिख दिता।"
"ये तीन बातें...तीन घटनाएं...तीन मौतें कौन सी होंगी?"
"नंबर एक मुसौलनी...नंबर दो कलेरा...नंबर तीन साल्वाडोर....इन तीन आदमियों की अलग-अलग तीन बातें हैं। ...तीनों की मौतें...तीन घटनाएं और उसके बाद सारा इटली हमें याद करता रहेगा।" (पृष्ठ-95)
जैसा की मैंने शुरू में कहा की उपन्यास का शीर्षक मुझे बहुत रोचक लगा। लेकिन जैसे -जैसे उपन्यास आगे बढा ठीक वैसे-वैसे शीर्षक औचित्य हीन होता गया। हालांकि कुछ जगह शीर्षक को सही ठहराने की चेष्टा की गयी है पर वह कहीं से सही नहीं लगती। मुख्य घटनाक्रम से शीर्षक का कोई संबंध नहीं है।
उपन्यास में इटली के शासक मुसोलिन का होना और इसकी प्रेमिका का चित्रण एक बेहतरीन प्रयोग है जो उपन्यास को रोचक बनाता है।
अगर आप उपन्यास को थ्रिलर के रूप में पढना चाहेंगे तो यह आपको बिलकुल भी अच्छा न लगेगा। यह तो एक काल्पनिक योद्धा की कहानी है जो अपने राष्ट्र को आजाद करवाना चाहता था। कैसे उसने स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की बाज लगा दी।
उपन्यास युद्ध के कारण बहुत उलझा हुआ है। युद्ध की नीरसता पाठक को नीरस कर देती है। कहानी इतिहास के ज्यादा नजदीक है। इतिहास और कल्पना का अदभुत मिश्रण है।
उपन्यास- सुंदरी को मरने दो
इटली शासक मुसोलिनी |
लेखक- परशु राम शर्मा
प्रकाशक पंकज पॉकेट बुक्स
संस्करण-
पृष्ठ- 192
प्रकाशक पंकज पॉकेट बुक्स
संस्करण-
पृष्ठ- 192
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