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Saturday, 26 October 2019

237. शहजादी गुलबदन- ओमप्रकाश शर्मा

प्रेम और राजनीति पर आधारित एक रोमांचक कहानी
शहजादी गुलबदन- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

"शेखू बादशाहत चाहता है बीरबल...!"- सम्राट का स्वर बुझा सा था।
" जिद्दी बच्चा कुछ भी चाह सकता है....।"
"पर देना क्या चाहिए?"
"सबक ! सीख!!"
"लेकिन बेटा!" राजमाता के मातृत्व ने रोक लगायी-"खून-खराबा न हो बीरबल। मेरे शेखू को कुछ न हो जाये...।"

विद्यालय से दीपावली का अवकाश (20.10.2019- 03.11.2019) था। मेरे पास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के कुछ उपन्यास उपलब्ध थे। सोचा क्यों न शर्मा जी के उपलब्ध सभी उपन्यास पढ लिए जायें। तो एक के बाद उपन्यास पढता चला गया। हालांकि अधिकांश उपन्यास समय की बर्बादी साबित हुए। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास ने बर्बाद समय के रोष को भूला दिया। हालांकि ओमप्रकाश शर्मा जी को पढने का यह क्रम जारी रहेगा, तब तक, जब तक मेरे पास उनके उपन्यास हैं।
        प्रस्तुत 'शहजादी गुलबदन' ऐतिहासिकता का आभास देते हुए भी एक काल्पनिक प्रेम कथा पर आधारित रोचक कथानक है।

      आगरा के सम्राट अकबर के सामने एक गंभीर समस्या आ गयी। उन्होंने दरबार में जाना भी बंद कर दिया। एक दिन हकीम हुमाम ने अकबर से मुलाकात की। समस्या पर चर्चा की। और समाधान के लिए बीरबल को याद किया- "...हुजूर, मेरी इल्तजा है कि फौरन राजा बीरबल को बुलावा भेज दिया जाये। ......"
"आप चाहें तो बुलवा लीजिए हकीम साहब, हमारी तो अक्ल मारी गई है। हमें कुछ सूझता नहीं।"
(पृष्ठ-13,14)
इलाहाबाद का क्षेत्र सलीम देखता था। कुछ विशेष कारणों से सलीम‌ ने बगावत कर दी और स्वयं को इलाहाबाद का सम्राट घोषित कर दिया।
जब बीरबल सम्राट अकबर के समक्ष पधारे तो-
"शेखू बादशाहत चाहता है बीरबल...!"- सम्राट का स्वर बुझा सा था।
" जिद्दी बच्चा कुछ भी चाह सकता है....।"
"पर देना क्या चाहिए?"
"सबक ! सीख!!"
"लेकिन बेटा!" राजमाता के मातृत्व ने रोक लगायी-"खून-खराबा न हो बीरबल। मेरे शेखू को कुछ न हो जाये...।"

दूसरी तरफ सलीम पर नशा सवार था। राज का नशा।
नशे में इंसान के पांव तो जमीन ही पर होते हैं, लेकिन दिमाग रहता है आसमान पर। अभी शहजादे पर बगावत का गहरा नशा सवार है।" (पृष्ठ-30)
अकबर नहीं चाहते था की बीरबल का सामना सलीम से हो और कहीं खून-खराबा हो जाये।

"हम तुम्हें इलाहाबाद जाने की इजाजत नहीं देंगे। सलीम के मिजाज से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं। वह तुम्हारा कत्ल तक करा सकता है।" (पृष्ठ-115)

लेकिन बीरबल तो बुद्धिमान व्यक्ति था। उसने तलवार से नहीं साम, दाम,दण्ड और भेद की नीति से काम लिया।
बीरबल ने खेली दिमाग की चाल।
"अपने आपको को कभी अकेला मत समझना। यह याद रखना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, और चूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ इसलिए बादशाह तुम्हारे साथ है।......जिसके साथ बादशाह होता है उसके साथ खुदा होता है और जिनके साथ खुदा होता है उसे कोई हरा नहीं सकता....।(पृष्ठ-36)
अभी एक पात्र बाकी है। वह है शहजादी गुलबदन। एक ऐसा पात्र जिस पर पूरा उपन्यास केन्द्रित है।
अब कुछ बाते उपन्यास पर और हो जायें। प्रेम और राजनीति पर आधारित यह उपन्यास जहां अकबर की विवशता का चित्रण करता है, सलीम की सम्राट बनने की महत्वाकांक्षा है और इन दोनों के बीच बीरबल की बुद्धिमानी है।
जहां अकबर पुत्र सलीम (जहांगीर) से युद्ध नहीं चाहता वहीं सलीम स्वयं की सल्तनत खड़ी करना चाहता है। वह तो आगरा पर हमला करने की तैयारी में है। बाप-बेटे के युद्ध के बीच में है बीरबल। बीरबल जिसने वायदा किया की वह दो माह में सलीम‌ को आगरा ले आयेगा।
- क्या सलीम ने अकबर पर हमला किया?
- क्या अकबर ने बेटे के विरुद्ध युद्ध का आदेश दिया?
- क्या बीरबल अपने काम में सफल रहा?
- शहजादी गुलबदन का क्या हुआ?
-अंत में परिणाम निकला?

        बीरबल अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए विशेष परिस्थितियों में अकबर को बीरबल की ही याद आती है। अब देखना यह है की बीरबल कैसे अपने दिमाग का इस्तेमाल करता है और कैसे इन परिस्थितियों को नियंत्रण में करता है।

षड्यंत्र, प्रेम,उच्छृंखलता, भावुकता और गूढनीति पर आधारित सशक्त-सजीव गाथा शहजादी गुलबदन एक रोचक और पठनीय रचना है।

उपन्यास- शहजादी गुलबदन
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- पुष्पी पॉकेट बुक्स, इलाहाबाद
पृष्ठ- 174

3 comments:

  1. रोचक। उपन्यास रोचक लग रहा है। मौक़ा मिलेगा तो जरूर पढ़ा जायेगा।

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  2. ब्लॉग पर अपने विचार व्यक्त करने वाले समस्त मित्रों का धन्यवाद।

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