आवाज का भेद- इब्ने सफी
जासूसी उपन्यास साहित्य में इब्ने सफी युग रोचक उपन्यासों के लिए जाना जाता है। इब्ने सफी मूलतः उर्दू उपन्यासकार थे, इनके उपन्यासों का जितना विस्तृत बाजार उर्दू में था उस से कहीं ज्यादा हिंदी में था।
इब्ने सफी के उपन्यास नकहत प्रकाशन के अन्तर्गत जासूसी दुनिया पत्रिका में प्रकाशित होते थे, जिनका अनुवाद प्रेम प्रकाश जी द्वारा किया जाता था।
प्रस्तुत उपन्यास के आरम्भ में संपादकीय (संपादक- अब्बास हुसैनी) में लिखा प्रस्तुत उपन्यास में कासिम का हास्यपूर्ण अंदाज खूब मिलेगा।
कहानी का आरम्भ हमीद और कासिम से होता है। दोनों कुछ दिनों के लिए यात्रा पर निकले हैं। रास्ते में इनकी मुलाकात शाहिदा और उसके भाई नासिर तथा इनकी माँ से होती है। शाहिदा एक हँसमुख लड़की है।
वह अपनी माँ से कहती है-
"यह भी मेरे बाप के बेटे हैं- आदम की औलाद। मैं तो इनको हजारों सालों से जानती हूँ।" (पृष्ठ-19)
लेकिन वहाँ की कुछ घटनाएं हमीद को आश्चर्यजनक लगती हैं। जैसे हमीदा का बिल्ली की आवाद से हद से ज्यादा डरना।
लेकिन बहुत कोशिश के बाद भी हमीद इस आवाज के रहस्य को नहीं समझ पाता। आगे सफर के दौरान हमीद और कासिम गायब हो जाते हैं। तब कैप्टन विनोद इनकी खोज के लिए आता है और उन्हीं जगहों पर जाता है जहाँ हमीद और कासिम ठहरे थे।
विनोद भी शाहिदा के बिल्ली की आवाज से डरने के रहस्य को नहीं समझ पाता। विनोद को पता चलता है की हमीद और कासिम अंतिम बार खान आजम के इलाके में देखे गये थे। खान आजम का सम्बन्ध शाहिदा के परिवार से है।
खान आजम के छोटे भाई का नाम खान अजमत था। शाहिरा और नासिर- खान अजमत की संतान थे। खान अजमत प्रगतिशील प्रवृत्ति रखता था, इसलिए उसने अपने बच्चों को नई दुनिया और नवीन ज्ञान से अलग नहीं रखा था। इसके विरुद्ध खान आजम कट्टर किस्म ना रूढिवादी था। वह अपने ग्रामीण महल में ही रहता था और कभी शहर नहीं जाता था। (पृष्ठ -27)
खान आजम एक अलग तरह का व्यक्तित्व रखता है। उसका अलग क्षेत्र है, जहाँ सिर्फ उसी का ही शासन चलता है। वह शिकार खेलने का शौकीन है।
"मगर खान आजम के इलाके में कोई कदम भी न रख सकेगा। यहाँ की पुलिस को अगर को अगर किसी तरह की छानबीन करनी होती है तो उसे पहले खान आजम से इजाजत लेनी पड़ती है। बिना खान आजम की इजाजत के वह इलाके में कदम भी नहीं रख सकता।(पृष्ठ-)
और खान आजम का मैनेजर कामिल खान खतरनाक आदमी था। लोग उस से हमेशा डरते रहते थे। पुष्ठ शरीर वाला लम्बा-चौड़ा आदमी था। आँखें खूंखार थी। जन साधारण को उसके सामने नजरें उठाने का साहस भी नहीं होता था। (पृष्ठ-)
लेकिन विनोद को तो कासिम और हमीद को खोजना था। और साथ में यह भी पता लगाना था कि इनके गायब होने का कारण क्या था। वहीं विनोद ने शाहिदा की माँ से वायदा किया था कि वह शाहिदा के रहस्य को भी हल करेगा।
एक तरफ विनोद को हमीद और कासिम का पता लगाना है और दूसरी तरफ शाहिदा के आवाज के भेद का कारण जानना है। लेकिन विनोद को खान आजम कहीं नहीं मिल रहा। मैनेजर का कहना है की खान आजम की कोई जानकारी नहीं वह कहां है और कब वापस आयेगा। और बिना खान आजम के मिले वह किसी भी रहस्य को सुलझा नहीं पा रहा था। क्योंकि बहुत से रहस्य खान आजम से जाकर मिलते थे।
लेकिन अंततः विनोद अपने विवेक बल से समस्त रहस्यों का हल ढूंढ निकलता है और असली अपराधी को पकड़ता है।
'आवाद का भेद' एक मध्यम स्तर का उपन्यास है। उपन्यास का अधिकांश भाग हमीद और कासिम पे केन्द्रित है। जैसा की संपादकीय में लिखा है कि उपन्यास में कासिम का हास्य प्रमुख रहेगा वैसा ही उपन्यास में शामिल है। अधिकांश पृष्ठों पर कासिम की वार्तालाप है जो कहानी का अंग नहीं है बस कासिम के कुछ हास्य पूर्ण कथन है।
कासिम को अक्सर उपन्यासों में कम बुद्धि के पात्र के रूप में दर्शाया जाता है जो अपनी शादी के लिए कोशिश करता नजर आता है। वहीं कासिम पेटू किस्म का भी है। उसे भूख खूब लगती है और वह खाता भी खूब है।
उपन्यास का एक और पात्र है जुलेखा नामक औरत। यह हमीद और कासिम की मददगार बनकर सामने आती है। हालांकि कासिम इस से भी अपने प्रेमप्रसंग स्थापित करना चाहता है।
उपन्यास के मध्यम भाग पश्चात विनोद का प्रवेश होता है। और वह हमीद-कासिम को ढूंढने आता है। स्थानीय पुलिस की मदद से वह अपने कार्य को आगे बढाता है। और विनोद कहता है-"अब वक्त आ गया है जालिमों का सर हमेशा के लिए कुचल दिया जाये।"(पृष्ठ-107)
'आवाज का भेद' एक मध्यम स्तरीय कथा है। उपन्यास में 'आवाज के भेद' को छोड़ कर कोई विशेष रहस्य नहीं है। खलपात्र का तो पता खैर चल ही जाता है बस कहानी यहीं है की वह ऐसा क्यों करता है।
उपन्यास के अंत में एक हल्का सा ट्विस्ट अवश्य है, पर वह भी एक-दो पृष्ठ तक ही है।
उपन्यास- आवाज का भेद
लेखक- इब्ने सफी
अनुवादक- प्रेम प्रकाश
प्रकाशन- जासूसी दुनिया(नकहत प्रकाशन)
वर्ष-
अंक-
इब्ने सफी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
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