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Friday, 15 October 2021

463. अनोखी रात- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

अपनी पत्नी की तलाश में भटकते पति की कहानी
अनोखी रात- सुरेन्द्र मोहन पाठक

Hindi Pulp Fiction में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का एक विशिष्ट स्थान है। मर्डर मिस्ट्री उनका लेखन अद्वितीय है। लेकिन मर्डर मिस्ट्री के अतिरिक्त थ्रिलर उपन्यासों में जो उन्होंने कमाल किया है, जो लेखन है वह मुझे विशेष रूप से प्रभावित करता है।
     निरंजन चौधरी जी द्वारा लिखा गया एक उपन्यास मैंने पढा जिसकी कहानी पाठक जी के एक उपन्यास से मिलती थी। वहीं कुछ पाठक मित्रों ने बताया की तीन उपन्यासों की एक ही कहानी है। तो मैंने वह तीसरा उपन्यास भी पढ लिया। दो उपन्यासों की कहानी पूर्णत एक जैसी है और एक में कुछ परिवर्तन है। 

  पहले चर्चा करते हैं पाठक जी के उपन्यास 'अनोखी रात' की।
      देवेन्द्र पराशर ने अपनी बीवी के अतीत को कभी महत्व नहीं दिया। उसकी दृष्टि में यही महत्वपूर्ण था की वह उसे अथाह प्रेम करती थी। लेकिन एक रात, उस अनोखी रात में उसकी बीवी घर से गायब हो गयी। जब देवेन्द्र पराशर उसकी तलाश में निकला तो उसके सामने अपनी बीवी माया के अतीत की ऐसी काली परतें सामने आयी की वह सहम उठा। 

देवेन्द्र पराशर प्रोफेसर हैं। एक केस के सिलसिले में वह कचहरी से बाहर निकल रहे थे, तब दो बदमाश उससे टकरा गये।

"तुम्हारा नाम देवेन्द्र पराशर हो?"- उस आदमी ने पूछा।
" हाँ।" - वह बोला।
   ठण्ड इतनी थी कि उस एक शब्द के साथ भी उसके मुँह से ढेर सारी भाप निकली और उसके चश्में के शीशे धुंधला गये।
"तुम प्रोफेसर हो?"
"हाँ।"
"तुम गवर्नमेंट काॅलेज में इतिहास पढाते हो?"
"हाँ भई, लेकिन क्या बात है?"
...........
"हम लोग।"- लम्बा-चौड़ा आदमी बोला, "यह समझ लो कि माया के दोस्त हैं?"
"तुम लोग मेरी बीवी को जानते हो?"

      यहीं से देवेन्द्र के प्यार भरे जीवन में परिवर्तन आ जाता है। उसकी हसीन-प्यार भरी दुनिया में ग्रहण लग जाता है।
देवेन्द्र पराशर घर जाकर अपनी बीवी माया से उन बदमाशों के विषय में पूछता है तो वह उनके बारे में स्पष्ट मना कर देती है। माया के अनुसार उन लोगों को कोई गलतफहमी हुयी होगी।
   अगली सुबह देवेन्द्र पराशर सोकर उठा तो माया घर से गायब थी। और वह भी मात्र एक गाउन में।  अपनी पत्नी से अथाह प्रेम करने वाला प्रोफेसर देवेन्द्र पराशर समझ नहीं पाता की आखिर माया घर से गायब क्यों हो गयी। और गायब हुयी तो वह इस सर्दी की रात में नाइट गाउन में ही क्यों चली गयी।
      देवेन्द्र पराशर को लगता है उसके साथ कोई भयानक साजिश हुयी है,अन्यथा वह यूं‌ न भागती।
     देवेन्द्र पराशर ने तय किया की वह अपनी बीवी को हर हाल में तलाश करके रहेगा। पुलिस के सामने देवेन्द्र पराशर को पहली बार अहसास हुआ की वह अपनी बीवी के विषय में कुछ नहीं जानता, कुछ भी नहीं जानता। उसका अतीत, उसका परिवार, उसके रिश्तेदार इत्यादि के विषय में उसका ज्ञान शून्य था। लेकिन उसके हृदय में यह बात थी की उसकी बीवी उस से प्रेम करती थी, वह किसी साजिश का शिकार हो गयी और उसे ढूंढना उसका धर्म है।
    यहीं से उसकी तलाश आरम्भ होती है। उस औरत के विषय में जिसके बारे में वह कुछ भी नहीं जानता। वह जैसे आगे-आगे बढता तो उसे माया के उस भयावह अतीत के विषय में पता चलता है जिसकी वह कल्पना तक भी नहीं कर सकता था।
        उपन्यास शिमला की पृष्ठभूमि पर आधारित है। देवेन्द्र पराशर यहाँ के एक काॅलेज में प्रोफेसर हैं। देवेन्द्र पराशर का किरदार प्रभावित करने वाला है।‌ एक सामान्य प्रोफेसर जब अपनी बीवी की तलाश में निकलता है तो वह बहुत कठिन परिस्थितियों में उलझ जाता है। लेकिन वह किन्हीं परिस्थितियों में घबराता नहीं है। समय आने पर दुश्मनों को पीट भी देता है और कभी उनसे पिट भी जाता है।‌ जब पुलिस उसे अपनी पत्नी माया का हत्यारा मानती है तब भी वह अपना धैर्य नहीं खोता। यही विशेषता उसे अपने उद्देश्य में‌ सफल बनाती है।
     उपन्यास में‌ माया की बहन छाया का चरित्र अजीब सा प्रतीत होता है। और अंत समय में छाया का पुलिस स्टेशन पर उपस्थित होना कोई अर्थ नहीं रखता।
   वहीं सतीश,वीरू और बांके अपने चरित्र के पूर्णतः अनुरूप है।
  पराशर के किरायेदार गोंसाल्वेज का चरित्र रोचक है। वह एक ऐसा पात्र है जिसकी जितनी बात मानी जाये वह उतना ही सिर चढता है। गोंसाल्वेज का अंतिम दृश्य हास्यजनक है।
     उपन्यास में पराशर द्वारा अपनी‌ पत्नी की खोज का यत्न और उसके रास्ते में आने वाले अवरोधक और फिर उनसे संघर्ष करता एक पति, यह सब उपन्यास को दिलचस्प और पठनीय बनाते हैं।
    अब बात करते हैं ऊपर वर्णित उन उपन्यासों की जिनकी कहानी इन उपन्यासों से मिलती है।
   निरंजन चौधरी का उपन्यास 'और वह भाग गयी' जो सन् 1980 से पूर्व का है, की कहानी सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक जी द्वारा लिखे गये उपन्यास 'अनोखी रात'(1980) से पूर्णतः मेल खाती है। बस पात्रों के नाम परिवर्तित हैं।
  वहीं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'साजिश' की कहानी भी उक्त दोनों उपन्यास जैसी ही है, बस उसमें कुछ हल्का सा परिवर्तन है।।
    अगर आपने ऐसे कोई उपन्यास पढे हैं जिनकी कहानी एक जैसी हो तो कमेंट कर के अवश्य बतायें।

      सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित  'अनोखी रात' एक थ्रिलर उपन्यास है। एक पत्नी का रात को घर से गायब हो जाना और फिर उसके पति द्वारा उसे तलाश करने की पृष्ठभूमि पर रचित यह उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास- अनोखी रात
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन-  1980

अन्य समीक्षाएं
और वह भाग गयी- निरंजन चौधरी
साजिश-     सुरेन्द्र मोहन पाठक

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1 comment:

  1. रोचक.. मैंने साजिश और अनोखी रात तो पढ़ा है लेकिन और वो भाग गयी पढ़ना है... अगर एक जैसे कथानक की बात की जाए तो गौरव निगम निगम के द स्कैन्डल इन लखनऊ और सुरेन्द्र मोहन पाठक के जीने की सजा के बीच में भी काफी समानताएँ हैं। ऐसे ही कँवल शर्मा के एक उपन्यास सेकंड चांस और शायद चार अपराधी और जान की बाजी में भी काफी समानताएँ हैं।

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