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Friday, 20 August 2021

454. लाश की हत्या- प्रकाश भारती

लाश की हत्या- प्रकाश भारती-1989
मर्डर मिस्ट्री
   इस माह (अगस्त 2021) में मैंने क्रमशः प्रकाश भारती जी के चार उपन्यास पढे हैं। 'प्ले बाॅय', 'खून का बदला' , 'काली डायरी' और 'लाश की हत्या'।
  अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास लाश की हत्या की। यह एक मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है।  
देवराज मेहता की हत्या के वक्त सुधीर और राजेश मौका- ए -वारदात पर मौजूद थे। 
सुरेश दुग्गल ने चीख-चीख कर कबूल किया की हत्या उसी ने की थी।
क्राइम ब्रांच के डी.आई. जी. के मुताबिक वो 'ओपन एण्ड शट' केस था।
इंस्पेक्टर विजय कुमार की राय भी यही थी।
सुरेश दुग्गल के हत्यारा होने में शक की कतई कोई गुंजाइश नजर नहीं आती थी।
लेकिन  सुधीर की ठोस दलीलों ने, डी. आई. जी. और होम‌ मिनिस्टर के पी. ए. तक की मर्जी के खिलाफ, विजय  कुमार को जो एक्शन लेने पर मजबूर किया उसका नतीजा सामने आते ही....? 

Sunday, 8 August 2021

453. काली डायरी- प्रकाश भारती

रहस्य एक डायरी का
काली डायरी- प्रकाश भारती, 2003
अजय सीरीज 
      पेशे से प्रेस रिपोर्टर शौक से जासूस और फितरत से खुराफाती। उसके पास न तो सूझबूझ की कमी थी और न  ही हौसले की। इरना सख्तजान भी वह न था कि उससे टकरने वाले को हमेशा मुँह की खानी पड़ी थी।  हालात चाहें कितने भी खतरनाक रहे वह न तो कभी घबराया था  और न ही निराश हुआ था। इसलिए आखिर में हमेशा बाजी उसी के हाथ में रही थी। (उपन्यास अंश) 
       'काली डायरी' प्रकाश भारती जी का एक चर्चित मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर उपन्यास है। हालांकि यह मर्डर मिस्ट्री आधारित अजय सीरीज का उपन्यास है। लेकिन उपन्यास का कथानक मर्डर मिस्ट्री होते हुये भी थ्रिलर का आभास ज्यादा देता है। क्योंकि कहानी का ताना बाना इस ढंग से बुना गया है कि उपन्यास में मर्डर मिस्ट्री से ज्यादा ध्यान अन्य घटनाओं पर केन्द्रित है।
  माह अगस्त 2021 में प्रकाश भारती जी का यह तृतीय उपन्यास पढ रहा हूँ, इस से पूर्व मैंने उनके 'प्ले बाॅय' (थ्रिलर) और 'खून का बदला' (अजय सीरीज) उपन्यास पढे थे, दोनों ही रोचक लगे। इसी क्रम में, इसी माह 'काली डायरी' (अजय सीरीज) उनका उपन्यास पढ रहा हूँ। 

Friday, 6 August 2021

452. खून का बदला- प्रकाश भारती

आखिर किसने लिया खून का बदला
खून का बदला- प्रकाश भारती
अजय सीरीज
  'थंडर' का रिपोर्ट अजय एक बार विशालगढ के स्थानीय रिपोर्टर कुलभूषण से मिलने आया था।
बातों में कुलभूषण ने गजल गायक अनिल मोहन की इतनी तारीफ कर दी थी कि गजलें सुनने का शौकीन अजय इस गायक को सुनने का लोभ संवरण नहीं कर सका और उस रात को विशालगढ में ही रुकने का फैसला कर लिया। (पृष्ठ-10) 
     अनिल मोहन एक गजल गायक था।  जो विशालगढ के फूलमून और पैराडाइज क्लब में अपने प्रोग्राम देता था। अनिल मोहन गायन के अतिरिक्त लड़कियों का रसिया और हेरोइन का सेवन करता था। उसकी सारी जमापूँजी इसी में खत्म हो जाती थी। 

451. प्ले बाॅय- प्रकाश भारती

एक पुरुष वेश्या के भयानक अंजाम की दास्तान
प्ले बाॅय- प्रकाश भारती
प्रकाश भारती का अब तक का अंतिम उपन्यास

वह हर रात उसे किसी न किसी दौलतमंद औरत का बिस्तर गर्म करना पड़ता था, यही उसका पेशा था लेकिन एक दिन उसका यह मजेदार पेशा खुद उसी के लिए बबाले-जान बन गया।
     लोकप्रिय जासूसी साहित्य में ऐसे लेखक बहुत कम हुये हैं जिन्होंने कहानी को वास्तविक धरातल पर लिखा है। अधिकांश लेखकों ने एक काल्पनिक संसार बना कर जासूसों के एक्शन कारनामें लिखे हैं, लेकिन प्रकाश भारती जी ने कभी भी अविश्वसनीय कथानक नहीं लिखा। उनके उपन्यास वास्तविक के करीब होते है, और पात्र भी जीवंत। 
  प्रकाश भारती जी द्वारा लिखा गया 'प्ले बाॅय' भी एक ऐसा ही उपन्यास है जो वास्तविक के बहुत नजदीक है।
  यह कहानी है एक प्ले बाॅय की, जिसका नाम है....हालांकि नाम तो उसके समय अनुसार बदलते रहते हैं फिर भी एक नाम है सुदेश चौधरी।
  उपन्यास की कहानी प्रथम पुरुष में चलती है और कहानी सुनाता है कथानायक सुदेश चौधरी।
मैं औरतों का रसिया था लेकिन औरतें मेरी कमजोरी कभी नहीं थी। औरतों के  साथ हमबिस्तर होना और बिस्तर में अपनी सेवाओं के बदले में उस से पैसा वसूल करना मेरा धंधा था। (पृष्ठ-99) 

Tuesday, 3 August 2021

450. आस्तीन के सांप- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने...
आस्तीन का सांप- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 1966
सुनील सीरीज- 10
सेठ सुन्दरदास ने अत्यन्त दयाभाव दिखाकर अपने दूर के रिश्तेदारों को अपने घर में आश्रय दिया था । लेकिन फिर हालात ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि सुन्दरदास ने खुद को पागलखाने में बंद पाया । काश कि वो जानता होता कि वो रिश्तेदार नहीं सांप पाल रहा था जिसको चाहे कितना ही दूध पिलाया जाये, उसकी जात नहीं बदलती, वो डंसे बिना नहीं मानता।
        उपर्युक्त कथानक है सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक जी के उपन्यास 'आस्तीन के सांप' का। यह सुनील सीरीज का दसवां उपन्यास है। जो एक ऐसे व्यक्ति की व्यथा-कथा है जिसे अपने ही लोगों ने धोखा दिया, उसकी जान के दुश्मन बन बैठे।
      कथा का आरम्भ होता है 'चटर्जी और मुखर्जी' नामक वकीलों की एक संस्था के सीनियर वकील चटर्जी से।
चटर्जी एण्ड मुखर्जी नाम की वकीलों की फर्म के सीनियर पार्टनर चटर्जी एक लगभग पचपन वर्ष के प्रौढ व्यक्ति थे और सुनील के अच्छे मित्रों में से थे ।
चटर्जी के पास शारदा नामक युवती आती है। उसी युवती के दुख निवारण के लिए चटर्जी सुनील को बुलाते हैं। 
    “सुनील ।” - दूसरी ओर चटर्जी का स्वभावगत गम्भीर स्वर सुनाई दिया - “थोड़ी देर के लिए मेरे आफिस में आ सकते हो ?”
“अभी ?” - सुनील ने पूछा।
“हां।”
“क्या बात है ?”
“यहां आओगे तो बताऊंगा।”
“अभी ?” - सुनील ने पूछा।
“हां।”
“क्या बात है ?”
“यहां आओगे तो बताऊंगा।” 

449. रिपोर्टर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

रिपोर्टर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
सुनील सीरीज-09, जून-1966

ब्लास्ट के होनहार पत्रकार राजेश को जब विशालगढ़ के एक प्रमुख उद्योगपति - जो कि नैशनल बैंक के डायरेक्टर और सिटी क्लब के प्रेसीडेंट होने के साथ साथ आगामी आम चुनावों में लोकसभा के उम्मीदवार भी थे - के एक लड़की के साथ शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध में पकड़े जाने की एक्सक्लूसिव खबर मिली तो उसकी खुशी का कोई पारावार न रहा । काश कि वो जानता होता कि इस खबर को छपवाने की उसे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

       राजनगर का एक बदनाम होटल है 'ज्यूल बाॅक्स' और ज्यूल बाक्स में एक डकैती के दौरान डकैत अलमारी में रखे कुछ महत्वपूर्ण कागज भी ले गये।

     ज्यूल बॉक्स का स्वामी राजपाल सुनील से मदद मांगने आता है- “तुम उन कागजों को मुझे वापिस दिलाने में मेरी सहायता कर सकते हो। सारा नगर जानता है कि तुम विलक्षण प्रतिभा के आदमी हो। केवल अपने मास्टर माइन्ड के दम से तुमने कई ऐसे केस सुलझाए हैं, जिन्हें पुलिस के जासूस सिर पटककर मर गये लेकिन सुलझा नहीं पाये। अगर तुम केवल इतना पता लगा दो कि डाकू कौन थे तो वे कागज मैं उनसे किसी भी कीमत पर वापिस खरीद लूंगा।”

Sunday, 1 August 2021

448. शैतान‌ की मौत - सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

शैतान की मौत- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक, 1966
सुनील-08 
आरती भंडारी की मां उसके लिये अपनी सारी सम्पत्ति एक ऐसे ट्रस्ट के रूप में छोड़ कर मरी थी जिसका कि उसके इक्कीस साल के होने पर उसके कंट्रोल में आने का प्रावधान था। फिर ज्यों ही ट्रस्ट का संचालन आरती के काबू में आया, उसमें से कुछ निश्चित रकम गायब होने लगी जिसके बारे में उसके पिता का खयाल था कि उसे कोई शैतान ब्लैकमेल कर रहा था। 
      लोकप्रिय साहित्य में मर्डर मिस्ट्री लेखन में सुरेन्द्र मोहन पाठक अद्वितीय प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने सुनील चक्रवर्ती नामक अपने एक पात्र के माध्यम से उपन्यास जगत में पदार्पण किया। सुनील के उपन्यास मर्डर मिस्ट्री पर आधारित होते हैं। सुनील 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र में खोजी पत्रकार है। 
    यूथ क्लब का मालिक रमाकांत सुनील का घनिष्ठ मित्र है। सुनील अपने अन्वेषण के दौरान रमाकांत की मदद लेता रहता है।
    एक दिन रमाकांत अपने मित्र भंडारी के साथ सुनील से मिलता है।
“सुनील।” - परिचय कराता हुआ बोला - “इनसे मिलो, यह मिस्टर भंडारी हैं। मेरे अच्छे मित्रों में से हैं। यह यूथ क्लब की स्थापना में इनका भारी सहयोग रहा है और मिस्टर भंडारी यह सुनील है जिसका मैंने आपसे जिक्र किया था ।” 
“बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।” - भंडारी सुनील के हाथ को थाम कर बोला। 

447. मूर्ति की चोरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

मूर्ति की चोरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-07

दीवान नाहर सिंह को पुरानी ऐतिहासिक महत्त्व की चीजें एकत्र करने का शौक था । अपने इस अभूतपूर्व कलेक्शन की नुमायश के वास्ते वो अनेक सुरक्षा इंतजामों के बीच अक्सर बड़ी-बड़ी पार्टियां देता था।  लेकिन उसके तमाम इंतजाम धरे-के-धरे रह गए जब एक रोज ऐसी ही पार्टी के बाद एक बुद्ध की मूर्ति गायब पाई गयी।

मूर्ति की चोरी- पाठक svnlibrary.blogspot.com
  हम एक बार फिर उपस्थित हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के सुनील सीरीज के सातवें उपन्यास 'मूर्ति की चोरी' के साथ। यह पाठक जी द्वारा लिखा गया सातवाँ उपन्यास है, जो चोरी और मर्डर पर आधारित है। उपन्यास का नायक 'ब्लास्ट' समाचार पत्र का खोजी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती है, और साथ में सुनील का परम मित्र रमाकांत।
     राजनगर शहर का नाहर सिंह मूर्तियों का अच्छा संग्राहक तो था ही साथ ही साथ उसे मूर्तियों को मित्रों को दिखाने का शौक भी था। इसलिए वह अक्सर पार्टियाँ करता रहता था। और इसी तरह एक पार्टी में एक दुर्लभ बुद्ध की मूर्ति चोरी हो गयी।
- दीवान नाहरसिंह के विषय में उसने बहुत कुछ सुना था । वह लगभग पचपन वर्ष का लखपति आदमी था । प्रीमियर बिल्डिंग के नाम से जानी जाने वाली विशाल इमारत उसकी सम्पत्ति थी......
       नाहरसिंह को पुराने जमाने की ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं जमा करने का शौक था । अपने उसे शौक की खतिर उसने सारे विश्व का भ्रमण किया था और लाखों रुपए खर्च करके अपने घर में दुर्लभ वस्तुओं का एक म्यूजियम सा बना डाला था।