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Wednesday, 22 July 2020

352. हिमालयवासी गुरु के साये में- श्री एम

साधारण मनुष्य से असाधारण होने तक की आध्यात्मिक यात्रा
हिमालयवासी गुरु के साये में- श्री एम
    एक नवयुवक की भारत के दक्षिणी तट से हिमालय की रहस्यमयी ऊँचाईयों तक की रोमांचक यात्रा जहाँ से उसे अपने महान गुरु मिलते हैं- ज्ञानी, शक्तिवान् और स्नेहमय।

       आध्यात्मिक जीवन चरित पढने का यह मेरा प्रथम अवसर है। किसी के व्यक्तिगत जीवन‌ को पढना हमें तभी रूचिकर प्रतीत होता है, जब हम उस व्यक्ति के विषय में कुछ जानकारी रखते हैं या उस व्यक्ति से हमारा संबंध हो। इस दृष्टि से देखे तो उक्त जीवन चरित किसी भी दृष्टि से मेरे साथ संबंध नहीं रखता। मैंने तो 'श्री एम' का प्रथम बार नाम इस किताब से ही जाना है। 
       यह पुस्तक केरल के एक युवक की आध्यात्मिक 'रंक से राजा' होने की कहानी है कि कैसे वह अपने पूर्ण समर्पण, सच्ची लगन और एकनिष्ठा के आधार पर एक ओजस्वी योगी 'श्री एम' के रूप में विकसित हुआ। सरल भाषा में श्री एम अपनी मनमोहक हिमालयी यात्राओं और उनसे वापसी के वृतांत, औपनिषदिक दर्शन के गहरे ज्ञान और व्यक्तिगत अनुभवजन्य गहन आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि को मधुरता से पाठकों के साथ बांटते हैं- उन्हें एक अनूठी और विचारोत्तेजक यात्रा का अवसर प्रदान करते हैं। (फ्लैप कवर से) 
       यह श्री एम.(मधु) का संक्षिप्त और भौतिक परिचय मात्र है। वास्तविक परिचय तो उनका आध्यात्मिक के क्षेत्र में मिलता है। हालांकि प्रस्तुत रचना उनके हिमालय प्रवास, गुरु के सानिध्य में प्राप्त ज्ञान और कुछ अलौकिक घटनाओं का परिचय प्रदान करती है। अगर बात करे उन अलौकिक घटनाओं की तो वे घटनाएं हमें काल्पनिक प्रतीत ही होगी।
एक बार हम श्री एक के विषय में कुछ अंश पढते हैं और फिर चर्चा करते हैं उन अलौकिक घटनाओं की।
         श्री एम का जन्म त्रिवेन्द्रम, केरल में हुआ था। हिमालय जाने के एक अनोखे और अत्यंत सम्मोहक आवेग के वशीभूत साढे उन्नीस साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया।
       हिमालय में बद्रीनाथ से आगे व्यास गुफा में वे अपने गुरू से मिले और उनके साथ हिमाच्छादित हिमालय प्रान्त में दूर-दूर तक स्वच्छंद घूमते हुए साढे तीन साल बिताये। उन्होंने अपने गुरू महेश्वरनाथ बाबाजी से जो सीखा, उसने उनकी चेतना को पूर्णतः बदल दिया।
       मैदानी क्षेत्र में वापस आकर गुरु की आज्ञानुसार उन्होंने एक साधारण व्यक्ति का जीवन व्यतीत किया। जीविकोपार्जन के लिए काम करते हुए और साथ ही उन्होंने जो सीखा था और अनुभव किया था, उसे दूसरों को सीखाने की तैयारी करते हुए, गुरु से हरी झण्डी मिलने पर उन्होंने उन्होंने अपने जीवन के शिक्षण चरण में प्रवेश किया। आज वे अपने अनुभवों और ज्ञान को बांटने के लिए दुनिया भर की यात्रा करते हैं।
सभी प्रमुख धर्मों की शिक्षाओं में समान रूप से गति रखने वाले श्री एम अक्सर कहते हैं-"मर्म को समझना है, सिद्धांतों से काम नहीं चलता।
       श्री एम विवाहित हैं और उनके दो बच्चे हैं। अपना ज्ञान बाँटते हुए वे एक सादा जीवन व्यतीत करते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कर्ष को बढावा देने वाले 'सत्संग फाउण्डेशन' नामक न्यास के अध्यक्ष हैं। आजकल वे मदनपल्ली, आँध्र प्रदेश में रहते हैं जो बेंगलूरू से तीन घण्टे की दूरी पर है।
(फ्लैप कवर से)

कुछ अलौकिक घटनाओं का यहाँ चर्चा करते हैं।
- देह परिवर्तन करने वाला साधु
- मानसिक संपर्क करने वाले हिमालयी साधु
- पल भर में किलोमीटरों की दूरी तय करना
- नाग लोक वासियों का पृथ्वी पर आगमन और साक्षात्कार
-साँईं बाबा से साक्षात्कार
- श्री एम. के गुरु के गुरु का ज्योति पुंज में प्रकट होना
- बंद दरवाजे में से प्रवेश

      श्री एम के जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिस पर स्वयं श्री एम को आश्चर्य होता है लेकिन उनके गुरु बाबाजी उन्हें समझाते हैं‌, हालांकि सामान्य पाठक के लिए यह सब काल्पनिक है इसलिए पुस्तक में‌ लिखा है- पाठकों से मेरा निवेदन है कि आवश्यकता होने पर वे उन हिस्सों को नजरअंदाज कर दें जो उन्हें सत्य से अधिक काल्पनिक लगते हों।

एक विस्मयकारी पुस्तक; चमत्कारों,‌ महान गुरुओं से भेंटों, चेतना के उच्चतर आयामों और आध्यात्मिक उपलब्धियों के विवरणों से परिपूर्ण। - डाॅ. कर्ण सिंह

हमारे विद्यालय के अध्यापिका रेखा चौधरी जी आध्यात्मिक विचारों और आध्यात्मिक साहित्य में रूचि रखने वाले हैं, यह किताब इन्होंने ही पढने के लिए दी थी, उनका हार्दिक धन्यवाद।

       अगर आप मनुष्य जीवन को समझना चाहते हैं, वह जानता चाहते हैं जो हमें प्रथम दृष्टता काल्पनिक प्रतीत होता है लेकिन वह एक सत्य हो, तो यह किताब अवश्य पढें। यह श्री एम के हिमालय प्रवास, गुरु के सानिध्य और सामान्य जीवन की एक रोचक और आध्यात्मिक यात्रा है।

पुस्तक- हिमालयवासी गुरु के साये में- एक योगी का आत्मचरित
लेखक- श्री एम
अनुवादक- डाॅ. अजय कुमार सिंह
प्रकाशक- मैजिन्टा प्रैस एण्ड पब्लिकेशन, कर्नाटक
‌‌‌‌ www.magentapress.in
मूल्य- 299₹
ISBN- 978-81-910096-4-4


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