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Thursday, 16 July 2020

351. शाही शिकार- अभिषेक सिंघल

राजा की मौत प्रेम, रंजिश या हवस
शाही शिकार- अभिषेक सिंघल

समय बदला और समय के साथ बहुत कुछ बदल गया। परतंत्र भारत अब एक स्वतंत्र देश बन गया। राजतंत्र तो खैर कब का ही खत्म हो गया था लेकि स्वतंत्रता के पश्चात तो राजतंत्र के अवशेष भी खत्म होने पर थे।
        शाही शिकार एक ऐसे ही राजा की कहानी है जो राजतंत्र से लोकतंत्र का सफर देखता है। वह बदले वक्त के साथ बदलने की कोशिश करता है लेकिन अपनी आदतों से विमुक्त होना इतना आसान न था। 

      शाही शिकार कहानी है राजा विक्रम सिंह की। जो लोकतंत्र में स्वयं को उसी अनुरूप बना लेते हैं और जनता का प्रिय विधायक बन जाते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ अपनी प्रेयसी को नहीं छोड़ पाते, सत्ता में स्वयं का बेटा चुनौती बनकर खड़ा है, दिखाने के चक्कर में आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है, महल होटल हो गया।
और एक दिन राजा विक्रमजीत सिंह अपने फार्म हाउस पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाये जाते हैं।
तब कथा में प्रवेश होता है थानेदार ऋषिपाल का। - थानेदार ऋषिपाल की यह पहली पोस्टिंग थी, सत्ताईस साल का नया जवान थानेदार जोश से भरा रहता था. जैसे ही उसने मुहर्रिर से विक्रमजीत को गोली लगने की खबर सुनी वैसे ही तुरंत वह जीप से सीधे विक्रमजीत के फार्म हाउस पहुंचता है।
- क्या विक्रमजीत सिंह ने आत्महत्या की थी?-
- क्या यह एक हत्या थी?
- विक्रमजीत सिंह को अपने पुत्र से राजनीति में चुनौती क्यों मिली?
      इस हत्या का कारण राजनीति था, हवस का परिणाम था या फिर कोई पुरानी रंजिश। यह तो खैर उपन्यास पढने पर ही पता चलता है।     शाही शिकार एक लघु कलेवर का रोचक उपन्यास है। यह एक मर्डर मिस्ट्री रचना है। लेकिन इसके साथ-साथ यह बदलते परिवेश को भी अच्छा चित्रण करती है।
     कहानी में सस्पेंश यथावत रहता है हालांकि लघु उपन्यास है तो इसलिए उसी के अनुरूप सस्पेंश है।
     कहानी में संवाद कहीं नहीं प्रयुक्त हुये। कहानी अन्य पुरूष में चलती है। अगर लेखक महोदय कोशिश करते तो संवाद शैली में उपन्यास और भी रोचक हो सकता था।
‌      मैंने Juggernaut नामक एप पर प्रथम बार कोई रचना पढी है। यह भी किंडल की तरह एक एप है।
      उपन्यास के कुछ रोचक अंश। राजा विक्रमजीत सिंह से संबंधित।खैर हुकुम की बग्घी चौक के रास्ते पर मुड़ी और जैसे ही आगे बढ़ी दोनों ओर लोगों की ज़बरदस्त कतार लग गई. अचानक कोई ज़ोर से बोला, झुंझारगढ़ रियासत की जय, महाराज विक्रमजीत की जय. और फिर तमाम लोगों ने जयकारे में साथ दिया. फिर तो जब तक हुकुम की बग्घी शाही स्टेडियम के मंच तक नहीं पहुंच गई दोनों ओर के जयकारों ने आसमान गूंजा दिया. हर कोई कौतुहल से बस हुकुम को निहारे जा रहा था. रिसायती काल में हुकुम की सवारी निकलने जैसा नज़ारा बन गया था. हुकुम स्टेडियम पहुंच कर भीड़ के बीच में पहुंच गए और उन्हें देखते ही भीड़ जैसे दो हिस्सों में बंट गई. हुकुम के लिए रास्ता बनता गया और हुकुम शाही अंदाज़ में चलते हुए मंच पर पहुंचे।
उपन्यास की कुछ पठनीय पंक्तियाँ

 चंद पंक्तियाँ ही लेखक की प्रतिभा का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं और पात्रों के चरित्र का भी आंकलन होता है और कहानी की पृष्ठभूमि भी समझी जा सकती है।
-राजनीति तो राजनीति है, राजनीति में रिश्ते कहां एक जैसे रहते हैं।
- दुनिया में एक ही चीज़ तो है जो कभी थमता नहीं. और वह है वक्त. अच्छा वक्त भी और बुरा वक्त भी. दोनों ही गुज़रते ही हैं।
- रजवाड़ों की महिलाओं के भाग में पूरा पुरुष नहीं होता. थोड़ा-थोड़ा जितना मिल जाए उसी में संतोष करना होता है।


उपन्यास के मुख्य पात्र एक नजर में

विक्रम सिंह- पूर्व राजा, वर्तमान विधायक, मुख्य पात्र
चन्द्रवती- महारानी
सूर्यवीर सिंह, सन्नी- विक्रमसिंह का पुत्र
रीना - सन्नी की पत्नी
रुक्मी- विक्रम सिंह की प्रेयसी
हरवीर उर्फ हैप्पी- रुक्मी का पुत्र
गीता और स्वीटी- रुक्मी की मेहमान।
अमर सिंह- होटल मैनेजर
ऋषिपाल सिंह- थानेदार
नौकर- राधा, मनोहर (गार्ड)

एक लघु मर्डर मिस्ट्री युक्त यह रचना रोचक और पठनीय है।
उपन्यास- शाही शिकार
लेखक-   अभिषेक सिंघवी
प्रकाशन- juggernaut
फॉर्मेट-   ebook

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