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Tuesday, 18 February 2025

622. मुरझाये फूल फिर खिले- ओमप्रकाश शर्मा

अंधविश्वास से टकराते एक युवक की कहानी
मुरझाये फूल फिर खिले- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025 और यहाँ से खरीदी गयी किताबों में से दो किताबें जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की हैं। एक 'पी कहां' और दूसरी 'मुरझाये फूल फिर खिले' । दोनों ही सामाजिक उपन्यास हैं, भावना प्रधान ।
'पी कहां' पढने के बाद 'मुरझाये फूल फिर खिले' पढना आरम्भ किया । यह उपन्यास अपने नाम को सार्थक करता हुआ एक भाव प्रधान उपन्यास है, जिसे पढते-पढते आँखें नम हो ही जाती हैं । समाज फैले अंधविश्वास को बहुत अच्छे से रेखांकित किया गया और उसका सामना भी जिस ढंग से किया गया है वह प्रशंसनीय है।

Monday, 17 February 2025

621. पी कहां- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय

एक प्रेम कथा
पी कहां- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा 

पुस्तक प्रेमियों के महाकुंभ 'नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025' में दो दिवस का भ्रमण हम चार साथियों ने किया और काफी संख्या में पुस्तकें भी लेकर आये । जहाँ मेरा यह तृतीय पुस्तक मेला था वहीं अन्य तीन साथी पहली बार ही आये थे, हालांकि इनमे से एक पुस्तक प्रेमी भी न था ।
गुरप्रीत सिंह, अंकित , सुनील भादू, राजेन्द्र कुमार, ओम सिहाग

पुस्तक समीक्षा से पहले थोड़ी सी बात पुस्तक मेले की । मैं गुरप्रीत सिंह अपने साथी ओम सिहाग (अध्यापक) अंकित (बैंककर्मी) और राजेन्द्र सहारण के साथ दो दिवस तक मेले में रहा । ओम सिहाग को साहित्य पढने में काफी रूचि है, वहीं अंकित को अंग्रेजी प्रेरणादायी पुस्तकें अच्छी लगती हैं और राजेन्द्र को बस साथ घूमना था, और घूमा भी । जहाँ राजेन्द्र और ओम मेरे ही गांव से हैं वहीं अंकित हरियाणा (ऐलनाबाद ) से है। हम चार साथियों के अतिरिक्त मेले में सुनील भादू (हरियाणा) और संदीप जुयाल (दिल्ली) का भी अच्छा साथ रहा ।

  राजस्थान से एक बुर्जग पाठक हैं, उनकी इच्छा पर जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी के दो उपन्यास 'पी कहां' और ' मुरझाये फूल फिर खिले' तथा एक उपन्यास कमलेश्वर का 'काली आंधी' लिया था। हालांकि बुजुर्ग महोदय दत्त भारती के अच्छे प्रशंसक हैं लेकिन दत्त भारती जी के इच्छित उपन्यास मेले में नहीं मिले ।

अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'पी कहां' की ।
कौन जाने पावस ऋतु में 'पी कहां' पुकारने वाले पपीहे की व्यथा क्या होती है।
कौन जाने... और कैसे जाने !
सागर वह जो अपनी गहराई सदा छुपाये रखे। दीपक वह जो जले... तिल तिल जलने पर भी जिसके उर अन्तर में अंधेरा रहे।
अपना अपना भाग्य ही तो है।
पपीहा वह जो पावस में, तब जबकि सूर्य के प्रकाश को दल बादल उमड़-घुमड़ कर अंधकार में बदल दे... पुकारे... 'पी कहां'।