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Friday, 16 June 2023

566. वतन‌ के आंसू- धीरज

1984 के आतंकवाद पर आधारित उपन्यास
वतन‌ के आंसू- धीरज

लोकप्रिय साहित्य के सुनहरे समय में लगभग प्रकाशकों ने अपने -अपने छद्म लेखक बाजार में उतारे थे। इन छद्म लेखकों के पीछे किन लोगों की मेहनत होती थी, कैसी कहानियाँ होती आदि चर्चा तो फिर कभी लेकिन प्रस्तुत उपन्यास के मूल लेखक और कहानी की पृष्ठभूमि (जिस पर बहुत कम लिखा गया है) पर चर्चा हम इसी आर्टिकल में करेंगे।
वतन‌ के आंसू- धीरज

    राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित छद्म लेखक 'धीरज' का एक 'वतन के आंसू' पढने को मिला। उपन्यास की कथावस्तु स्वयं में अद्वितीय है क्योंकि इस विषय में लोकप्रिय साहित्य में, मेरी जानकारी अनुसार तो नहीं लिखा गया‌। हाँ, यह एक सज्जन ने बताया था कि इसी विषय पर प्रेम बाजपेयी जी ने एक उपन्यास लिखा था। यह भी अच्छी बात है।
         अब बात करते हैं धीरज द्वारा लिखित 'वतन के आंसू' की। यह एक सत्य घटना पर आधारित एक थ्रिलर उपन्यास है।
        नब्बे का दशक भारत और विशेष कर पंजाब के लिए एक काला दौर था। पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। सन् 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या इन चरमपंथियों द्वारा की गयी और उसके बाद दिल्ली में जो सिक्खों के साथ नरसंहार हुआ वह अमानवीय कृत्य था। आतंकवादियों का शीर्ष नेतृत्व खत्म हो चुका था लेकिन बाद में छोटे-छोटे समूहों में विभक्त आतंकवादियों ने आतंकी घटनाओं का कृत्य जारी रखा था।
  'वतन के आंसू' की पृष्ठभूमि में आतंकवाद है और कहानी है दिल्ली की। जहाँ एक आतंकी संगठन बम विस्फोट द्वारा निर्दोष लोगों की जान ले लेते हैं।
आतंकी सिखों के विरोध में एक अज्ञात 'कनपटी मार' पैदा होता है जो सिख लोगों को निशान बनाता है और कनपटी पर प्रहार कर जान ले लेता है।
     कथानायक सूरज एक विद्रोही युवक है जो सिक्ख धर्म के लोगों से इसलिए नफरत करता है कि एक आतंकवादी घटना में उसके  पिताजी जी की जान चली गयी थी। सूरज मात्र आतंकवादियों से ही नहीं बल्कि समग्र सिक्ख समाज से ही नफरते करने लग जाता है।
   वहीं पुलिस अधीक्षक जसवंत सिंह बेसहारा सूरज की माता को अपनी बहन बनाकर उस परिवार को आश्रय देते हैैं। जहाँ पुलिस अधीक्षक की पत्नी विमल और पुत्री गुरमीत कौर भी है और सूरज के परिवार में उसकी माँ शीला और बहन सुमिता भी है। दोनों परिवार अब संयुक्त परिवार हैं लेकिन फिर भी सूरज के मन से सिखों के प्रति पैदा हुयी नफरत कम नहीं होती।
   सूरज का परम मित्र हरलाल भी बहुत कोशिश करता है की सूरज सिखों से नफ़रत न करें लेनिन सिख आतंकवादियों की कुछ और घटनाएं सूरज की घृणा में वृद्धि ही करती है। सूरज और हरलाल परम मित्र होते हुये भी सूरज के व्यवहार के कारण अलग-अलग हो जाते हैं। जहाँ सूरज स्वयं एक आतंकी संगठन में शामिल हो जाता है वहीं हरलाल गुरुद्वारा 'सुंदर मंदिर' में कार्य करने लग जाता है।
    सूरज, शेरु, असलम, चंदन और बाॅस रेखा का आतंकी  संगठन सिक्खों के विरोध में आतंकी कार्यवाही आरम्भ कर देता है। यह बड़ी विडम्बना की बात है की जो धर्म मानवतावादी होना चाहिए वहीं अमानवीय व्यवहार कर रहा है।
   
और ऐसा नहीं है की यहाँ सब  धर्म के नाम‌ पर अमानव ही एकत्र हुये हैं। सिक्खों के आतंकवाद को रोकने के लिए बाबा रिछपाल जैसे लोग भी हैं जो अपने धर्म में फैली इस हिंस्सा का विरोध करते हैं।
   धर्म के नाम पर राजनीति और दंगा करने वाले हर समाज और धर्म में होते हैं उनका चित्रण भी उपन्यास में मिलता है। सूरज का संगठन भी ऐसा ही संगठन है जो हिंसा का विरोध हिंसा से ही करता है लेकिन बाबा रिछपाल जैसे लोग आज भी समाज में उपस्थित हैं जो धर्म का वास्तविक मर्म जानते हैं।
             उपन्यास का एक और विशेष प्रसंग है वह है एक डकैती। उपन्यास में आतंकवाद, प्रेम के अतिरिक्त तीसरा प्रसंग डकैती का भी है। जहाँ धन होता है वहाँ धर्म पीछे छूट जाता है। जब इस डकैती के वास्तविक सूत्रधार सामने आता है तो सभी को आश्चर्य भी होता है। क्योंकि आतंकी संगठन कहने को धर्म के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन धन नजर आते ही वह धर्म को किनारे कर देते हैं।
        इस डकैती का एक पक्ष और भी है और वह है उन लोगों का पक्ष जो समाज से अलगाव दूर करना चाहते हैं।
उपन्यास में कुछ प्रसंग ऐसे हैं जो कथानक को कमजोर बनातर हैं। वैसे देखा जाये तो संपूर्ण उपन्यास को एक अच्छे संपादक की आवश्यकता थी ताकि यह उपन्यास एक यादगार रचना बनता। लेकिन संपूर्ण उपन्यास लोकप्रिय साहित्य की तात्कालिक धारा के अनुसार एक्शन पर आधारित ही प्रतीत होता है। एक अच्छे कथानक के बाद भी लेखक उपन्यास के साथ न्याय नहीं कर पाये।
- सिख समाज के कट्टर लोगों को सिगरेट पीत दिखाया गया है और वह भी गुरुद्वारा के अंदर।
- उपन्यास नें दो संगठन है और उसके प्रमुख फेसमास्क का इस्तेमाल करते हैं।
- दो परम मित्र- तीन परम मित्र फेसमास्क के कारण, एक ही संगठन में (मात्र पांच लोगों का संगठन) रहते हुये परस्पर पहचान नहीं पाते यह कुछ अजीब सा लगता है।
उपन्यास के महत्वपूर्ण संवाद-
- मानवता धर्म, जो सभी धर्मों का एक अभिन्न अंग है- सिख धर्म का भी।(पृष्ठ-184)
- आतंकवादियों की कोई जात नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता, कोई देश नहीं होता। (पृष्ठ-82)
उपन्यास के प्रमुख पात्रों का संक्षिप्त परिचय-
उपन्यास में कथा अनुसार पात्रों की भूमिका है। विस्तृत फलक का उपन्यास होते हुये भी पात्रों का भूमिका कथा के अनुसार प्रशंसनीय है कहीं भी कोई पात्र अनावश्यक प्रतीत नहीं होता।
सूरज- कथा नायक
शीला- सूरज की माँ
सुमीता- सूरज की बहन
हरलाल- सूरज का मित्र
सुरजीत सिंह - हरलाल का पिता
असलम, शेरु, चंदन, राजू, रेखा- एक ग्रुप के सदस्य
रिछपाल सिंह- गुरुद्वारा साहिब का ग्रंथी
गुरमुख - रिछपाल का पुत्र
जसवंत सिंह- पुलिस अधिक्षक
विमल- जसवंत सिंह की पत्नी
गुरमीत कौर- जसवंत सिंह की पुत्री
उपन्यास का एक छोटा सा अंश-
"ह... हरलाल बेटे !" सुरजीतसिंह बड़ी मुश्किल से बोल पाया।
"मत कह मुझे अपनी गन्दी जुबान से बेटा वरना बदनाम हो जाएगा दुनिया में बाप-बेटे का रिश्ता-अरे, तुम कैसे बाप हो, तुमने तो अपनी होने वाली बेटे की बहू को भी नहीं बख्शा, अस्मत लूट ली तुमने उसकी— अ... और इस खड़े हुए युवक को देख रहे हो न― यह उस अभागिन बहन का बदनसीब भाई -उसके दिल में सिक्ख मजहब के प्रति घृणा है नफरत करता है यह सिक्ख कौम से और इस घृणा का कारण तुम्हारे जैसे लोग हैं सिर्फ तुम्हारे जैसे लोग—हां। आतंकवादी —तुमने मर्डर कर दिया था इसके पापा का तुम्हारे जैसे लोगों को इस धरती मां पर जीने का कोई अधिकार नहीं—तुम्हारे जैसे लोगों के कारण ही वतन खून के आंसू रोता है।" कहते-कहते झाग निकलने लगे थे हरलाल के मुंह से—कठोर होता चला गया था उसका चेहरा-घृणा की अधिकता की वजह से बल पड़ गये थे उसकी पेशानी पर फिर उसने सुरजीत सिंह के चेहरे पर थूक दिया था— उसकी अंगुली ट्रेगर पर कसती चली गई थी—रिवॉल्वर ने एक शोला उगला था—धांय । सुरजीत सिंह का जिस्म लहू-लुहान होकर फर्श पर गिर पड़ा।
            'वतन के आंसू' पंजाब के आतंकवाद पर लिखी गयी इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण रचना है। हालांकि उपन्यास थ्रिलर है, सत्य घटना पर आधारित होते हुये भी लेखक इसे नाटकीय घटनाओं से बचा नहीं पाया है। 
        उपन्यास को एक अच्छा संपादक मिला होता तो वास्तव में यह एक अविस्मरणीय रचना हो सकती थी। फिर भी पंजाब ने आतंकवाद पर लिखी यह एक महत्वपूर्ण रचना है। उपन्यास चाहे कोई समस्या-समाधान नहीं देती, पर तात्कालिक समय को रेखांकित करने में अच्छी भूमिका तो अवश्य प्रदान करती है।
  उपन्यास में आतंकवाद मुख्य विषय वस्तु है पर इसके अतिरिक्त प्रेम, आपसी भाईचारा आदि का सशक्त रूप भी उपन्यास में मिलता है।‌ ऐसे पात्र भी उपन्यास में उपस्थित हैं जिनके धर्म से पहले प्रेम है।
   इस उपन्यास के वास्तव लेखक अशोक कुमार शर्मा हैं। अशोक जी का यह प्रथम उपन्यास था, जो प्रकाशकों की मनमानी  के चलते 'धीरज' नाम से Ghost writing के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ।
    बाद में अशोक कुमार शर्मा जी के कुछ उपन्यास स्वयं के नाम से भी प्रकाशित हुये थे।
राजस्थान के सीकर जिले के निवासी अशोक जी वर्तमान में शिक्षा विभाग में अध्यापन के पद पर कार्यरत हैं।
उपन्यास-  वतन के आंसू
लेखक-     धीरज
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली

अन्य महत्वपूर्ण लिंक
- परिचय- अशोक कुमार शर्मा
उपन्यास समीक्षा- फांसी मांगे बेटा कानून का
अशोक जी की आत्मकथा-  मैं आवारा, इक बंजारा

1 comment:

  1. रोचक लग रहा है उपन्यास। हां, कई बार संपादन का आभाव अच्छी खास रचना को बिगाड़ देता है। इस पर प्रकाशकों को ध्यान देना चाहिए।

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