चन्द्रहार के चोर- वेदप्रकाश कांबोज
आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज जी लोकप्रिय जासूसी साहित्य के एक दैदीप्यमान सितारे हैं। विजय-रघुनाथ जैसी चर्चित शृंखला लिखने वाले कांबोज जी ने थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास भी लिखे हैं।
अगस्त माह में 'कदम-कदम पर धोखा' के पश्चात इसी माह मेरे द्वारा पढा गया उनका द्वितीय उपन्यास है 'चन्द्रहार के चोर'।
एक चोर के जीवन पर लिखा गया एक रोचक उपन्यास है। चोरी के उद्देश्य से एक रात घर से निकला एक नौजवान, चोरी में तो असफल रहा लेकिन उसके सामने कुछ और ही हैरतजनक घटना घटित हो गयी। आगामी दिवस जब वह अपने कौतुहल का निवारण करने के लिए उस जगह गया तो......
उसे एक अपराधी के रूप में गिरफ्तार किया गया।
उस चोर का उस घटना से कोई संबंध न था।
वह उस शहर/ गांव का निवासी भी न था।
वह अपने उद्देश्य चोरी में भी असफल रहा था।
फिर पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार कर लिया ।
और वह भी उस जुर्म में जो उसने किया ही न था।
है ना एक दिलचस्पी कथानक।
इस दिलचस्पी कथानक के रचनाकार हैं वेदप्रकाश कांबोज और उपन्यास है चन्द्रहार के चोर। आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज का नाम 'विजय-रघुनाथ' सीरीज जे कारण चर्चित रहा है। पर उन्होंने थ्रिलर उपन्यास भी लिखे हैं और थ्रिलर उपन्यास मुझे विशेष पसंद हैं। क्योंकि वहाँ लेखक और नायक पर कोई बंधन नहीं होता तथा कहानी में कुछ नयापन भी होता है। अब मैं कांबोज सर के जो उपन्यास वह मर्डर-मिस्ट्री थ्रिलर ही हैं।
'चन्द्रहार के चोर' जैसा की शीर्षक से प्रतीत होता है यह एक एक हार की चोरी की कहानी होगी....नहीं.... कहानी इससे बहुत अलग है और बहुत रोचक भी है। कहानी का मूल चाहे चन्द्रहार है लेकिन कहानी मर्डर मिस्ट्री युक्त है।
गणेशी टांग में फ्रेक्चर होने की वजह से त्रेहन हाउस से चन्द्रहार चुराने में असक्षम था। इस काम के लिए उसने अपने दोस्त रवि उर्फ प्रिंस को बुलाया। रवि भी गणेशी की तरह एक पक्का चोर था।
एक योजना के तहत रवि जब एक रात को त्रेहन हाउस पहुंचा तो वहाँ उसे कुछ गड़बड़ लगा। "सब गड़बड़ हो गया, लगता है वह चन्द्रहार अपने नसीब में नहीं।"
लेकिन नसीब में तो कुछ और ही था। सुबह जब रवि उस गड़बड़ जो देखने की जिज्ञासा का शमन न कर पाया तो वह त्रेहन हाउस जा पहुंचा, जहाँ मुसीबत उसका इंतजार कर रही थी।
"यही है इंस्पेक्टर।" मुझे देखते ही बुढा एकदम जोर से बोला "बिलकुल यही है।"
अब बुढ ने अपनी बात पूरी की तो इंस्पेक्टर ने रवि को थाम लिया।
"हां," इंस्पेक्टर ने मुझे उपर से नीचे देखते हुए कहा ''क्या नाम है तुम्हारा?"
"रवि।"
"कहां रहते हो?"
मैंने गणेशी के घर का पता बता दिया।
"क्या करते हो?"
"ट्रेवलिंग सैल्समेन हूँ।"
- क्या हुआ चन्द्रहार का?
- रवि उर्फ प्रिंस किस मुसीबत में फंस गया था?
- वह बुढा रवि को किस रूप में पहचान रहा था?
- पुलिस ने आखिर क्या किया?
- आखिर यह चक्कर क्या था?
इन सब प्रश्नों के उत्तर वेदप्रकाश कांबोज जी के उपन्यास 'चन्द्रहार के चोर' में मिलेंगे।
उपन्यास के कुछ और बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं।
त्रेहन हाउस में एक लाश पायी जाती है और मजे की बात है की आगामी दिवस पर उसी जगह एक और लाश भी पायी जाती है, जिसके सीने में एक चाकू पैवस्त है। पुलिस हैरान की यह लाश त्रेहन हाउस कैसे पहुंची।
एक है मलखान सिंह जिसका इंट्री उपन्यास को और भी रोचक बना देती है। पाठक एक नये व्यूह में उलझ जाता है।
एक तरह चन्द्रहार के चोर, दूसरी तरफ त्रेहन हाउस की संदिग्ध परिस्थितियाँ और तीसरी तरफ मलखान सिंह का नया फंडा उपन्यास को पठनीय और दिलचस्पी बनाता है।
उपन्यास में कुछ घटनाक्रम अप्रासंगिक नजर आते हैं। जैसे भानु सिंह का बीस वर्ष पुरानी घटना का समाचार पत्र में प्रकाशन करना। उस घटना को मौखिक दिखा देना चाहिए था।
एक प्रसंग है क्रमशः स्त्री-पुरूष के दीवार फांदने का। एक दो जगह यह क्रम असंगत है।
संवाद और भाषा शैली-
वेदप्रकाश कांबोज की भाषा बहुत सरल होती है। लेकिन सरल होने के साथ-साथ यह परिष्कृत भी होती है इनकी भाषा शैली में स्थानीय शब्दों का अभाव होता है।
वहीं बात करें इस उपन्यास के संवादों की तो उपन्यास के संवाद पात्रों की मनोवृत्ति का परिचय तो करवाते ही हैं साथ-साथ में ये संवाद एक सूक्ति की तरह नजर आते हैं।
कुछ उदहारण देखें-
- जहाँ जुर्म होता है, वहाँ कानून किसी न किसी तरह पहुँच ही जाता है।
- गलत परिस्थितियों में निर्दोष आदमी को भी अपराधी समझ कर सजा दे दी जाती है।
- जिंदगी अक्सर ऐसे मजाक करती है, ....जो हम सोचते हैं वह होता नहीं और जो हम सोच नहीं सकते वह हो जाता है।
उपन्यास के कुछ पात्र प्रभावित करने में सक्षम है। एक अच्छे उपन्यासकार की यह विशेषता होनी चाहिए की वे यादगार पात्रों का सृजन करें। उपन्यास के कुछ पात्र जैसे पत्रकार भानु और खल पात्र मलखान आपको प्रभावित करते हैं, हालांकि यह यादगार पात्र तो नहीं बन पाते लेकिन इनका चरित्रांकन अच्छा किया है और साथ में यह कमी भी महसूस होती है की इनका विस्तार होना चाहिये था।
वहीं चोर प्रिंस भी जो की उपन्यास का मुख्य पात्र है उसका किरदार बहुत अच्छा रहा है।
पत्रकार भानु का अनुभव देखिएगा-
भानु ने स्कूटर रोकने के बाद उस पर बैठे बैठ ही कहा-"तीस साल के अपने क्राइम रिपोर्टिंग के तजरबे से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि किसी भी मामले की जितनी बढिया जानकारी पड़ोसियों से मिल सकती है, उतनी बढिया जानकारी उन लोगों से भी नहीं मिल सकती, जिनके बारे में आप जानकारी हासिल करना चाहते हैं।"
वहीं मलखान का परिचय भी लेखक महोदय ने बहुत अच्छा दिया है।-
यह आदमी किसी भी समय दुनिया के किसी भी कोने में मौजूद हो सकता है। हालांकि वह पचास से उपर की उम्र का एक अधेड़ आदमी था, किंतु शरीर में ताकत भैंसे जैसी थी। मलखान हीरों का शातिर चोर भी था, स्मगलर और व्यापारी भी।
चन्द्रहार के चोर एक सस्पेंश, मर्डर मिस्ट्री और थ्रिलर से भरपूर रोचक उपन्यास है। हर घटनाक्रम और हर एक पात्र नये रहस्य के साथ ही उपस्थित होता है।
उपन्यास का कथानक तीव्र प्रवाह वाला है जो कहीं भी नीरसता नहीं आने देता। क्लाईमैक्स अचानक हुआ सा प्रतीत होता है। समापन में कुछ घटनाओं और विस्तार की कमी महसूस होती है।
उपन्यास रोचक, दिलचस्पी और पठनीय है।
उपन्यास- चन्द्रहार के चोर
लेखक- वेदप्रकाश कांबोज
गजब ।
ReplyDeleteलगे रहिये।
Wah bhai wah maza aa gya
ReplyDeleteBht badhiya
Taskeen ahmad