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Friday, 31 January 2020

263. मोहब्बत का जाल- बसंत कश्यप

प्यार, दोस्ती और दौलत
मोहब्बत का जाल- बसंत कश्यप, उपन्यास

बसंत कश्यप मेरे पसंदीदा उपन्यासकार है। इनका 'हिमालय सीरीज' मेरा पसंदीदा उपन्यास है। मुझे बसंत कश्यप जी के उपन्यासों की खोज रहती है। इसी खोज के दौरान इनका एक उपन्यास 'मोहब्बत का जाल' उपलब्ध हुआ।
यह बसंत कश्यप का आरम्भिक उपन्यास है। जो इनके बाद के उपन्यास की तुलना में निम्नतर है।
अब चर्चा करते है बसंत कश्यप जी के उपन्यास 'मोहब्बत का जाल' की।
 दिल, दौलत और दोस्ती, 


यूं तो हजार दर्दों से लिथड़ी होती है,
इंसा की जिंदगी।
मगर, दौलत वो नासूर है,
जिसका मुदावा कोई नहीं होता।

बसंत कश्यप जी द्वारा रचित उक्त पंक्तियों से और उपन्यास शीर्षक से ही स्पष्ट हो जाता है की उपन्यास की कथावस्तु दोस्ती, प्यार और दौलत पर आधारित है। अब यह कहां की दौलत है, कौन लूटता है, कहां धोखा होता है, कौन धोखा करता है, किसको दौलत मिलती है।
ये सब तो उपन्यास पढने पर ही पता चलेगा। अब कुछ बात उपन्यास की कथावस्तु पर कर ली जाये।
           यह कहानी है पश्चिम बंगाल की। विजय और पाटिल दोनों मुंबई से पश्चिम बंगाल अपने मित्र जयपाल के बुलावे पर आते हैं। काम था बैंक डकैती। एक सफल डकैती के पश्चात वे एक ऐसी जगह फंस जाते है जहाँ मौत के अलावा और कुछ भी नहीं।- जहाँ मौत के अन्धेरे के अलावा जिन्दगी की एक भी किरण दिखाई नहीं दे रही थी। (पृष्ठ-51) एक ऐसी जगह जहाँ आना तो आसान है लेकिन वहाँ से‌ निकलना असंभव सा है।-वे चारों जैसे समझ चुके थे कि इन घाटियों से अब उनकी रूह भी नहीं निकल सकती। (पृष्ठ-51)



       भारत के अतिरिक्त यह कहानी नेपाल तक फैली हुयी है। जहाँ कहानी को एक नया मोड़ मिलता है और पाठक भी कुछ नया अनुभव करता है। भारत और नेपाल के मध्य विस्तृत इस कहानी में एक बात समान है और वह है लूट की दौलत। वह दौलत जिसने ने तो भारत में कुछ लोगों को जीने दिया और न चैन से मरने। वही दौलत नेपाल में भी मौत का कहर बरसती है। 

     उपन्यास में घटनाक्रम तीन तथ्यों पर आधारित है। जिसमें शामिल है दौलत, दोस्ती और प्यार। अब कहां दोस्ती और प्यार साथ देते है और कहां धोखा देते और किसे दौलत मिलती  है यह पढना भी रोचक है।
   
- आखिर दौलत किस को प्राप्त हुयी?
यही प्रश्न अंत पाठक के मस्तिष्क में मंथन करता है और पाठक इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उपन्यास पढता है। उपन्यास का आरम्भ जितना धीमा है इसका अंत उतना ही रोचक है। आरम्भ में लेखक ने जिस हिसाब से कहानी और घटनाओं को तीव्रता से दर्शाया है उस हिसाब से लेखक का ध्यान उपन्यास के मध्यम पश्चात भाग पर केन्द्रित रहा है।

उपन्यास के मुख्य पात्र

विजय- जो मेरठ का निवासी है पर परिस्थितियाँ उसे सिलीगुड़ी ले जाती हैं।
सुरेन्द्र पाटिल - कोल्हापुर के एक गांव का है और परिस्थितियाँ उसे पुलिस हवलदार से नौकरी से बर्खास्त होकर सिलीगुड़ी जा पहुंचता है।
जयपाल- विजय का दोस्त।
जाॅन- एक अपराधी
सुनीता बोस- एक अपराधी

उपन्यास चाहे कथानक के स्तर पर हो या व्याकरण के स्तर पर हर जगह निम्नतर ही है। शाब्दिक गलतियाँ इतनी ज्यादा है जैसे जिसी नये सीखने वाले ने उपन्यास मुद्रण (typing) किया हो।

निष्कर्ष-
उपन्यास की कहानी एक बैंक लूट और उसके पश्चात उस दौलत के लिए हुए संघर्ष की है। दौलत वही है पर और उसके दीवाने बदलते रहे।
कहानी के स्तर पर उपन्यास बहुत ज्यादा कमजोर है। पाठक नीरसता महसूस करता है। अगर न पढे तो भी चल सकता है।

उपन्यास- मोहब्बत का जाल
लेखक- बसंत कश्यप
प्रकाशक- नीलम पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 150

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