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Sunday, 1 September 2019

221. डंके की चोट- बसंत कश्यप

हिमालय सीरिज का द्वितीय भाग
डंके की चोट- बसंत कश्यप

लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में ऐसे उपन्यास कम ही लिखे गये हैं जो प्रचलित कथा धारा से विलग हो। ऐसे उपन्यास जिन्होंने एक अलग पहचान स्थापित की हो, मात्र पहचान ही नहीं उपन्यास साहित्य को अनमोल सौगात प्रदान की हो। ऐसे उपन्यास दशकों पश्चात ही लिखे जाते हैं अगर ऐसा कहूं तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
       मैं चर्चा कर रहा हूँ बसंत कश्यप जी के 'हिमालय सीरिज' के द्वितीय उपन्यास 'डंके की चोट' की। यह उपन्यास स्वयं में इतना जबरदस्त है की मैंने लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में इस श्रेणी का कोई इससे उत्तम उपन्यास नहीं पढा। हालांकि इस प्रकार की कहानियाँ आपको अन्य क्षेत्र (फिल्म, काॅमिक्स) में मिल सकती है। लेकिन उपन्यास क्षेत्र में मेरे लिए यह एकदम नया और सराहनीय प्रयोग है। क्योंकि यह काॅमिक्स और फिल्म आदि से कुछ अलग भी है और विस्तृत भी।
डंके की चोट- बसंत कश्यप
    उपन्यास में तिलस्म है, जासूसी है, भूत-प्रेत है, हास्य है, एक्शन है, धर्म- आध्यात्मिकता है लेकिन सबसे बड़ी और अच्छी बात है सब संतुलित है और कहीं अतिशयोक्ति भी नहीं है। इस चीजों को संतुलित रखना एक बड़ी समस्या हो सकती है लेकिन यह लेखक की प्रतिभा है की उन्होंने उपन्यास को इस तरीके से लिखा है की कहीं कुछ अतिरिक्त महसूस नहीं होता।
'हिमालय सीरिज' का प्रथम भाग 'हिमालय की चीख' है और द्वितीय भाग 'डंके की चोट' और तृतीय भाग पर चर्चा उपन्यास पढने के बाद। एक बार इसी उपन्यास की चर्चा करते हैं।

        हिमालय की गोद में एक ऐसा दुर्लभ खजाना है जिसकी खोज में बहुत से लोग 'मौत की घाटी' में पहुंचे और अपनी जान गवा बैठे। क्योंकि वहाँ निवास करती है लुईंग की शैतान आत्मा। - यह सच है कि लुईंग की आत्मा को जब तक काबू में नहीं किया जा सकता तब तक कोई भी इंसान खजाने के तिलस्मी रास्ते तक नहीं पहुंच सकता। (पृष्ठ-87)
इस बार कुछ विदेशी लोग (जाॅन टेलर,मास्टर, विल्सन आदि) इस दुर्लभ खजाने की तलाश में हिमालय की गोद में आ पहुंचते हैं 'मौत की घाटी' में, जहां लुईंग की शैतान आत्मा है। जो हर किसी को देती है एक भयानक मौत।
     हिमालय के पवित्र प्रांगण में गुरू...का शिष्य दुष्यंत अपनी सहधर्मिणी गंगेश के साथ निवास करता है। इनके एक बलिष्ठ पुत्र है भारता।
"द लेजेंड आॅफ भारता।"
"ऐसा ही समझें सकते हैं सर........यह टार्जन की तरह पला है। शेर जिसका दोस्त हो, उसे आदमी नहीं समझा जा सकता.....खास बात यह है कि इस लड़के के माँ-बाप ने इसका नाम भारता रखा है।"
(पृष्ठ-49)
भारता का एक घनिष्ठ मित्र है घोरा। शावक घोरा।
परिस्थितियाँ समयानुसार परिवर्तित होती हैं और हिमालय के पवित्र प्रांगण में कुछ दुष्ट लोग प्राचीन भारतीय खजाने को लूटने के लिए आ जाते हैं। जाने-अनजाने में दुष्यंत उसी परम्परा का शिष्य है जो उस खजाने के रक्षक हैं।
दुष्यंत अपनी पत्नी गंगेश को यही समझाते हैं।
गंगेश आज का युग प्रदूषित है। आज के युग में तो भारत के रूप को भारतवासी ही बिगाड़ रहे हैं-गंगेश। पूरे भारत में अशांति है। हम यहाँ हिमालय की गोद में बैठे दुनिया से दूर शांति प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन हमारा हिमालय खुद अशांत होता जा रहा है। हमें हमारे हिमालय की चीख सुनाई पड़ रही है- गंगेश। (पृष्ठ-13)

"...अहिंसा की ताकत दम तोड़ चुकी है स्वामी। आज-आज हमारे देश को स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी की जरूरत से पहले देश को जरूरत है, सुभाष चन्द्र बोस और चन्द्रशेखर जैसे महान सपूतों की जो देश के किसी भी दुश्मन को डंके की चोट पर ईंट का जवाब पत्थर से देने की ताकत रखते थे।" (पृष्ठ-43)
         सच कहा दुष्यंत ने कुछ भारतवासी ही भारत की अशांति के जिम्मेदार हैं। ऐसे ही कुछ भारतीय विदेशी लोग जाॅन टेलर, विल्सन और मास्टर जैसे लोगों का साथ देते हैं। और इनके साथ आ मिलता है जग्गी चार्ल्स। एक अंतरराष्ट्रीय मुजरिम।

"जग्गी चार्ल्स राजनगर में आ पहुँचा है।" आई. जी. आर. के. भारद्वाज विचलित स्वर में बोले-"उस शातिर अपराधी की आदत रही है कि वह जहां भी पहुंचता है, वहां अपने आने की जानकारी सभी के लिए दे देता है। उसने राजनगर पहुंचकर सेठ रामजीलाल को सात लाख रूपयों की चोट पहुंचाई है। (पृष्ठ-54)
      खुद जग्गी चार्ल्स अपने बारे में क्या कहता है वह भी देख लीजिएगा।- "जग्गी चार्ल्स को तो पूरी दुनियां की पुलिस तलाश रही है, तो तलाशने दो। हवा का वो झौंका हूँ मैं, जिसे किसी भी देश के कानून के पिजंरे मैं कैद नहीं कर सकते पंकज चौहान। जिस दिन पुलिस हमें गिरफ्तार कर लेगी वह दिन हमारी जिंदगी का सबसे अंतिम दिन होगा।" (पृष्ठ-61)
"सारी दुनिया जानती है कि जग्गी चार्ल्स मछलियों का शिकार नहीं करता प्यारे विल्सन। जग्गी चार्ल्स के शिकार मगरमच्छ होते हैं विल्सन।" (पृष्ठ-106)
उपन्यास का एक-एक पृष्ठ रोचक है लेकिन विशेष चर्चा करना चाहूंगा तिलस्मी दरवाजों की। जिनकों को पार कर के खजाने तक पहुंचा जा सकता है।
एक उदाहरण देखें
तिलस्मी खजाने का रहस्य
'उल्लू को रात में भी दिखाई देता है।
'(पृष्ठ-130)
यह पंकज के दिमाग का कमाल है की वह हर तिलस्मी के पीछे छुपे रहस्य का पता लगाता है और ये सब लाॅजिकल है। कुछ खतरनाक स्थितियों से भी वह निपटता है।
"ओह माई गाॅड।"- पंकज झुर-झुरी सी लेकर बोला,-" इस मकड़े के हाथ-पांव हाथी के बच्चे की सूंड के बराबर हैं। इस मकड़े में कम से कम दो जंगली सूअरों जितना वजन है। मैंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी...कि मकड़ी की जात का इतना विशाल मकड़ा भी हो सकता है।"(पृष्ठ-220)

ठहरिये जरा, उपन्यास में सिर्फ यही नहीं है जो यहाँ वर्णित है। उपन्यास में इससे भी ज्यादा है जो यहाँ वर्णित नहीं है। अगर सभी तथ्यों/ घटनाओं का वर्णन यहाँ हो गया तो उपन्यास का आनंद खत्म हो जायेगा। अगर आप वास्तव में इस शानदार उपन्यास का आनंद लेना चाहते हैं, कुछ अलग पढना चाहते हैं तो मूल उपन्यास पढें। उम्मीद है आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी।
       उपन्यास में कुछ कमियां हैं जैसे सांप द्वारा दूध पीना या फिर एक दो जगह शाब्दिक गलतियाँ है। बाकी कथा स्तर पर उपन्यास उत्तम है।
विशाल नाग अपनी जीभ से लप-लप करके दूध पी रहा था। (पृष्ठ-234)

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में यह सीरिज मेरी पसंदीदा है। इसे एक अनुपम उपन्यास कहा जा सकता है। यह एक ऐसा कथानक है जो वर्षों तक याद रहेगा।
मैं पाठक मित्रों को इस उपन्यास को पढने की सलाह दूंगा। आप पढे और महसूस करेंगे की यह उपन्यास साहित्य का अनमोल मोती है।
उपन्यास- डंके की चोट 
डंके की चोट- बसंत कश्यप www.svnlibrary.blogspot.in
लेखक-    बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ-         256

 हिमालय की चीख की समीक्षा
हिमालय की चीख- बसंत कश्यप

2 comments:

  1. Himalya ki cheekh or danke ki chod pdf send krna ji

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    1. Muje chahiye sarji Teligarm pe 9824521021

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