मुख्य पृष्ठ पर जायें

Thursday, 30 May 2019

194. मेलूहा के मृत्युंजय- अमीश

शिव रचना त्रय का प्रथम भाग।
मेलूहा के मृत्जुंजय - अमीश त्रिपाठी

अमिश त्रिपाठी की 'शिव रचना त्रय' काफी चर्चित रही है। इस रचना त्रय के तीन भाग हैं। प्रथम 'मेलूहा के मृत्युंजय', द्वितीय 'वायुपुत्रों की शपथ' और तृतीय भाग है 'नागाओं का रहस्य'।
मेलूहा शब्द 'मोहन जोदड़ो' के निवासियों के लिए प्रयुक्त होता रहा है, हां यह भी संभव है यह शब्द सिंधु घाटी सभ्यता के लिए प्रयुक्त होता रहा हो।

               'मेलूहा के मृत्युंजय' पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं का एक अजीब सा काल्पनिक मिश्रण है। यह अजीब सा इस दृष्टि से है की लेखन ने जो कल्पनाएँ की वह भारतीय पौराणिक दृष्टिकोण से और समय के अनुसार बहुत तर्कसंगत नहीं हैं।

           यह कहानी आरम्भ होती है मानसरोवर निवासी 'गुण कबीले' के युवक शिव से। शिव जो गुण कबील का प्रमुख है। परिस्थितियाँ गुण कबीले को मेलूहा ले आती हैं। और परिस्थिति ही एक साधारण मानव शिव को पूज्य शिव बनाती है।
             शिव जो अपने क्षेत्र (मानसरोवर) का एक योद्धा है लेकिन मेलूहा में उसे नीलकण्ठ के नाम से विशेष प्रसिद्धि मिलती है। मेलूहावासियों का विश्वास है की प्रभु नीलकण्ठ का वर्णन पौराणिक गाथाओं में है और एक दिन प्रभु नीलकण्ठ उनकी मुसीबतों के निवारण के लिए अवश्य आयेंगे।

'मेलूहा के मुत्युंजय' उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ पर उपन्यास संबंधी कुछ विवरण एक बार पढ लिया जाये।
 
              1900 ईस्वी पूर्व, जिसे आधुनिक भारतीय सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से कह जाने की गलती कर बैठते हैं। उस समय के निवासी उस भूमि को मेलूहा के नाम से पुकारते थे। इस साम्राज्य की स्थापना भारत के सबसे महान् सम्राट प्रभु श्री राम ने कई शताब्दियों पूर्व की थी।

एक समय गर्वशील रहे इस साम्राज्य एवं इसके सूर्यवंशी शासकों ने कई संकटों का सामना किया था क्योंकि उनकी प्राथमिक नदी पवित्र सरस्वती शनै:-शनैः सूखती हुयी मृतप्राय होती जा रही है। पूर्व दिशा से अर्थात् चन्द्रवंशियों के साम्राज्य की ओर से वे अत्यंत ही विध्वंसक आतंकवादी आक्रमणों का सामना कर रहे हैं। चकित कर देने वाली एवं दुःखदायी बात यह प्रतीत होती है कि चन्द्रवंशियों ने उन नागाओं से समझौता कर लिया है जो मानव जाति में जाति बहिष्कृत एवं अशुभ जाति थी, किंतु उनके पास अदभुत युद्ध कौशल है।
सूर्यवंशियों की आश मात्र एक पौराणिक गाथा पर टिकी है- 'जब बुराई एक महाकाय रूप धारण कर लेती है, जब ऐसा प्रतीत होता है कि सबकुछ लुप्त हो चुका है, जब ऐसा प्रतीत होता है कि आपके शत्रु विजय प्राप्त कर लेंगे, तब एक महानायक अवतरित होगा।'
- क्या वह रूखा एवं खुरदुरा तिब्बती प्रवासी शिव सचमुच ही वह महानायक है?
- क्या वह महानायक बनना भी चाहता है अथवा नहीं?


            उपन्यास में मानसरोवर निवासी शिव हैं। जो मेलूहा के निवासियों के रक्षक बन कर आते हैं। मेलूहावासी सूर्यवंशी हैं और उनका चन्द्रवंशी और नागाओं से संग्राम चलता रहता है। जहाँ सूर्यवंशी स्वयं को अच्छाई का प्रतीक मानते हैं और नागाओं और चन्द्र बुराई का।
बुराई क्या है? स्वयं महादेव भी इस प्रश्न पर असमंजस में हैं।- "मैं कैसे बुराई का नाश करूंगा, यदि मुझे यही नहीं पता कि बुराई क्या है?"

             एक अच्छे कथानक पर रोचक यह काल्पनिक उपन्यास और भी रोचक हो सकता था अगर उसमें अनावश्यक विस्तार न होता। हालांकि स्वयं लेखक महोदय भी कहते हैं की वे उन जगहों का वर्णन करना चाहते हैं जहाँ प्रभु श्री राम का संबंध रहा है।

संवाद- कुछ रोचक उदाहरण
- एक स्त्री के जीवन में सबसे अधिक शक्तिशाली संबल होता है सराहना, प्रेम और सम्मान। (पृष्ठ-171)
- कोई व्यक्ति महादेव तभी बनता है जब वह अच्छाई के लिए युद्ध करता है। (पृष्ठ-379)

निष्कर्ष-
प्रस्तुत उपन्यास पौराणिक पात्रों पर एक काल्पनिक उपन्यास है। जिसमें इतिहास और पौराणिक पात्रों का वर्णन मिलता है लेकिन कथा पूर्णतः काल्पनिक है।
उपन्यास में अनावश्यक विस्तार कथा को बहुत धीमा करता है और कहीं-कहीं तो ऐसी बातें वर्णित है जो उस समय संभव नहीं थी।
मुझे एक मित्र का कथन याद है -"यह अमीश का वर्ल्ड है, यहाँ कुछ भी संभव है।"

उपन्यास-    मेलूहा के मृत्युंजय
लेखक-     अमिश
प्रकाशक-  वेस्टलैण्ड
पृष्ठ-         441
मूल्य-       225₹
शिव रचना त्रय का प्रथम भाग।

No comments:

Post a Comment