मुख्य पृष्ठ पर जायें

Saturday, 29 September 2018

140. मौत का खेल- सुरेन्द्र मोहन पाठक

विमल के विस्फोटक संसार का प्रथम उपन्यास
मौत का खेल- सुरेन्द्र मोहन पाठक, थ्रिलर उपन्यास, रोचक, पठनीय।
विमल सीरीज-01
-------------------
"कौन हो तुम?"- उसने नम्र स्वर में पूछा।
" भूखा हूं, जनाब"
"मैंने तुमसे यह नहीं पूछा है।"
"मैं इस वक्त आपको अपना इससे बेहतर परिचय देने की स्थिति में नहीं हूँ।"
        यह एक छोटा सा परिचय है उपन्यास के नायक विमल का। विमल जो की वक्त का मारा एक ऐसा पात्र है जिसकी जिंदगी 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा' की तर्ज पर चलती है।
समय की मार और अपनों की बेवफाई से परेशान विमल नये शहर में नये नाम के साथ जीवन जीना चाहता है। लेकिन वक्त विमल के पक्ष में‌ न था।
           विमल को एक और महिला लेडी शांता गोकुलदास से परिचय हुआ। विमल जो की 'दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीने वाला' शख्स था। लेकिन दूध का जला यहाँ छाछ से भी जल गया।
         लेडी शांता गोकुलदास से उसे एक सड़क से उठा कर अच्छी जिंदगी दी और बदले चाहा..."मिस्टर, जरा सोचो, कल तुम भूखे-नंगे, बेघर, बेदर, गंदे गटर में कुलबुलाते कीड़े से भी गयी- गुजरी जिंदगी जीने वाले इंसान थे और आने वाले कल में तुम एक लखपति बन सकते हो।  और तुम्हे बताने की जरूरत नहीं कि आज की दुनिया में प्रतिष्ठा और सम्मान का हकदार केवल पैसे वाला ही बम सकता है।.....और यह सब कुछ बड़ी आसानी से हो सकता है, तुम्हें केवल अपने नारकीय जीवन से दुखी एक वृद्ध को अगले कुछ दिनों में अपने हाथ से फिसल जाने देगा होगा।" (पृष्ठ-45) 
          अब विमल के आगे कुआं था पीछे खाई थी। उसे इन दोनों से ही बचना था। उसकी नजर में तो यह दुनियां ही भ्रष्ट लोगों के लिए है। "यह दुनियां उन लोगों ने काबिल है जो हर वक्त उन्हीं लोगों का गला काटने की फिराक में रहते हैं जो उन पर भरोसा करते हैं।" (पृष्ठ-71)
          विमल ने जहाँ भी भरोसा किया उसे वहीं धोखा मिला। अगर वह लेडी शांता गोकुलदास का कहना मानता है तो उसका जमीर उसे अनुमति नहीं देता अगर कहना नहीं मानता तो ...."अब,मिस्टर, तुमने अभी, फौरन यह फैसला करना है कि तुम वापस जेल जाना चाहते हो या लखपति बनकर ठाठ की जिंदगी गुजारना चाहते हो।"(पृष्ठ-66)
तो यह थी विमल की जिंदगी जहाँ एक तरफ कुआं है तो एक तरफ खाई।
         इस दलदल की जिंदगी से निकले की जब उसने कोशिश की तो वह और भी गहरे तक इस दलदल में‌ धंस गया।
         यह कहानी इलाहाबाद में एक 'एरिक जानसन एण्ड कम्पनी में असिस्टेंट एकाउंटेट' सुरेन्द्र सिंह सोहल की है जो परिस्थितियों की मार से जेल की सजा काट रहा है लेकिन एक बार फिर परिस्थितियाँ बदलती है और सुरेन्द्र सोहल जेल से फरार होकर मुंबई शहर में विमल खन्ना नाम से जिंदगी की नयी शुरुआत करता है लेकिन पुराने कर्म उसका यहाँ भी साथ नहीं छोङते।
लेड़ी शांता गोकुलदास जो अपने बीमार पति से छुटकारा चाहती है और इसके लिए वह माध्यम बनाती है सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल खन्ना को।
उपन्यास शुरु से अंत तक एक लय में चलता है। कहानी की गति तीव्र है जो रोचकता को बरकरार रखती है। विमल की जिंदगी को देखना भी बहुत भावुकता से भरा है की कैसे एक सीधा-सादा शख्स परिस्थितियों के चलते एक दम से बदल जाता है। 'न अब वह जमाना बाकी था और न उस जमाने का मैं बाकी था।'(पृष्ठ-08)
    
        यह एक ऐसा 'मौत का खेल' था जिसमें विमल को जबरदस्त धकेला गया। जहाँ यह खेल खेलने के लिए उसे मजबूर किया गया। जब विमल ने उस 'मौत के खेल' से बाहर निकलने का प्रयास किया तो वह और ज्यादा व बुरी तरह से परिस्थितियों में‌ फंस कर रह गया।
उपन्यास का अंत बहुत ही रोचक है जो पाठक को अंत में चौंका देता है।
यह उपन्यास जेम्स हेडली चेईस के एक उपन्यास की काॅपी माना जाता है।
कंवल शर्मा के उपन्यास 'सैकण्ड चांस' में एक दृश्य है जो शब्दशः 'मौत का खेल' में भी उपस्थित है।
'युवती के हाथ में प्लास्टिक का वह ला‌ल रंग का हैंड बैग नहीं था जो वह होटल में घुसी थी तो मैंने उसके हाथ में देखा था।'(पृष्ठ-14)
कारण- दोनों उपन्यास जेम्स हेडली चेईज के उपन्यास की नकल है।

निष्कर्ष-
प्रस्तुत उपन्यास की कहानी एक ऐसे युवक की है जो बुरी परिस्थितियों से बचने के लिए कुछ लोगों के संपर्क में आता है और वहाँ उसकी स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
उपन्यास का कथानक ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन उपन्यास का प्रस्तुतिकरण बहुत रोचक है। जो पाठक को स्वयं में बहा ले जाता है।
उपन्यास आदि से अंत तक रोचक है। पठनीय है।
-----
उपन्यास- मौत का खेल
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-114
मूल्य-
#विमल_सीरिज

No comments:

Post a Comment