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Friday, 1 August 2025

खून के छींटे- कर्नल रंजीत

खत्म होते रिश्तों की हत्या
खून के छींटे- कर्नल रंजीत

नमस्ते पाठक मित्रो,
उपन्यास समीक्षा लेखन के इस सफर में आप इन दिनों पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित मेजर बलवंत सीरीज के अदभुत उपन्यास ।
 यह उपन्यास अदभुत कैसे हैं, यह आप समीक्षाएं पढकर जान चुके होंगे, अगर नहीं जान पाये तो आप इंतजार करें हमारे कर्नल रंजीत के उपन्यासों पर आधारित आलेख 'कर्नल रंजीत के उपन्यासों की रहस्यमयी दुनिया' का । इस आलेख में आपको कर्नल रंजीत के उपन्यासों के विषय मे अदभुत और रोचक जानकारी मिलेगी।
कर्नल रंजीत के अब तक पढे गये उपन्यास 'हत्या का रहस्य, सफेद खून, चांद की मछली, वह कौन था, सांप की बेटी, काला चश्मा, बोलते सिक्के, लहू और मिट्टी, खामोश ! मौत आती है , मृत्यु भक्तअधूरी औरत, हांगकांग के हत्यारे, 11 बजकर 12 मिनट, और अब प्रस्तुत है आपके लिए कर्नल रंजीत के उपन्यास 'खून के छींटे' की समीक्षा ।
मेजर बलवन्त के सामने उसका असिस्टेण्ट दुःख और शोक की मूर्ति बना बैठा था। उसकी आंखों से गहरी उदासी छलक रही थी। आज उसने अपने मन की बात कहने के लिए मेजर से थोड़ा-सा समय मांगा था। अभी वह ठीक तरह से अपनी बात आरम्भ भी न कर पाया था कि सोनिया और विनोद मल्होत्रा ने मेजर के कमरे में प्रवेश किया। उन्होंने अशोक के मूड से तुरन्त अनुमान लगा लिया कि उन दोनों में किसी गम्भीर समस्या पर बातचीत चल रही है। सोनिया और विनोद मल्होत्रा चुपके से नमस्ते करने के बाद कुपियों प.बैठे। अशोक की जबान को जैसे ताला लग गया। अब उदासी के साथ-साथ उसके चेहरे पर लज्जा की लाली भी फैल गई।
"ये सब अपने ही लोग हैं। इनसे कोई पर्दा नहीं। मैं तो समझता हूं कि इनकी मौजूदगी से तुम्हें फायदा ही पहुंचेगा । अपनी बात जारी रखो।" मेजर ने कहा ।
अशोक खामोश रहा। ऐसा लगता था कि उसकी रही-सही हिम्मत भी जाती रही थी ।
"देखो अशोक !" अव सोनिया बोली- "प्रेम की मांग होती है कि कोई उसके भेद को जानने वाला हो। कोई दुःख पूछने वाला हमदर्द हो। तुम सौभाग्यशाली हो कि तुम्हारे आसपास इतने भेद जानने वाले और दुःख पूछने वाले इकट्ठ
   सोनिया की इस बात ने अशोक का दिल बनाया। उसने कृतज्ञ निगाहों से सोनिया की ओर देखा और अपनी सारी शर्म को तिलांजलि दे दी। उसने बड़ी धीमी आवाज में तसल्ली से कहा- "हां, मैं सचमुच सौभाग्यशाली हूं कि आप मेरै सच्चे हमदर्द और मेरे दुःख के सच्चे साथी हैं। लेकिन मैं बहुत ही अभागा भी हूं। कल रात मेरी कहानी प्रेम और इस्पा की कहानी बन गई।"
"प्रेम और हत्या ?" विनोद मल्होत्रा ने कहा- "तुम्हारी इस कहानी में प्रेम हत्यारा है या प्रेम की हत्या की गई है ?"
"मेरी इस कहानी मै तो प्रेम की हत्या हुई है और न प्रेम ने हत्या ही की है। प्रेम की हत्या तो की जा सकती है, लेकिन प्रेम हत्या कभी नहीं कर सकता।" अशोक ने अपनी बात पर दार्शनिकता का रंग चढ़ाते हुए कहा- मैं रात-भर अंगारों पर लोटता रहा हूं। प्रकृति कभी-कभी एक ऐसा दुखद दृश्य सामने ले आती है जिस पर नाचीज इन्सान की अबल दंग रह जाती है। मैंने प्रेम किया, वासना से दूर, पवित्र प्रेम, जिसमें सेवा और पूजा की भावना थी- ऐसा प्रेम जिसे कोई इच्छा, आकांक्षा और साध नहीं होती; लेकिन मेरे इस प्रेम का इतना भयानक परिणाम होगा, इसकी मैंने स्वप्न में भी कल्पना न की थी। आज मैं पुलिस और दूसरे लोगों की नजरों मे हत्यारा हूं।"
'हत्यारे हो ?" सोनिया के मुंह से निकला और उसने अपना गुलाबी हाथ अपने सुघड़ होंठों पर रख लिया जैसे अपनी चोख दबाने की कोशिश कर रही हो।
"हां, मैं आज दुनिया की नजरों में हत्यारा हूं। अगर मैं मेजर साहब का असिस्टेण्ट न होता और संयोग से मेरी जेब में मेरा आइडेण्टिटी कार्ड न होता, तो इस समय मैं लोहे की सलाखों के पीछे होता ।"

यह कहानी है अशोक की और अशोक है प्रसिद्ध जासूस मेजर बलवंत असिस्टेंट । अशोक एक शादीशुदा औरत शोभा से प्यार करता है। शोभा वरसोवा (मुम्बई ) शहर कॆ रईश चौधरी हरिवंश राय की पत्नी है।
चौधरी हरिवंशराय अपना जन्मदिन मना रहे थे । जन्मदिन की पार्टी में घर के सदस्यों के अतिरिक्त आठ और मेहमान शामिल थे।
पार्टी के खत्म होते- होते चौधरी साहब के बेडरूम में किसी ने उनकी गरदन की नस काट कर हत्या कर दी। और मेजर बलवंत के असिस्टेंट अशोक को फंसाने का जाल भी साथ में तैयार कर दिया गया।
  और अशोक जा पहुंचा मेजर बलवंत के पास, जैसा की आपने उक्त घटनाक्रम में पढा। और मेजर बलवंत ने चौधरी हरिवंशराय के हत्यारे को ढूंढने का मानस बना लिया ।
चौधरी हरिवंश राय की पार्टी में चुनिंदा व्यक्ति ही शामिल थे लेकिन जो भी थे वह सभी अपने महत्वपूर्ण ही थे।
जैसे- चौधरी हरिवंश राय की पत्नी शोभा, बेटी अंजना, मां, विधवा बहन उर्मिल के अतिरिक्त अशोक, सिंधि सेठ सूरजनारायण साहानी और उसकी विधवा पुत्री रक्षा साहानी, मारवाड़ी सेठ चांदीराम कटारिया, मद्रासी फोटोग्राफर कृष्णमूर्ति, उर्मिल का दोस्त चन्द्रप्रकाश, पारसी डाक्टर एन.  अर्देशर इत्यादि।
यहां उपस्थिति कुछ लोगों के कथनानुसार संदिग्ध अशोक है और कुछ लोगों का कहना है चौधरी साहब के कमरे में कोई उनसे बहस कर रहा था और किसी का कहना है चौधरी साहब के घर के बाग में एक लम्बा सा आदमी घूम रहा था ।
अब क्या सत्य था और क्या असत्य और कौन वास्तविक हत्यारा था यह सब जानना था मेजर बलवंत को ।
   जैसे-जैसे मेजर बलवंत की खोज आगे बढती है कोई उसके शक के दायरे में आता है वह मारा जाता है और मारने वाला एक विशेष तरीके से हत्या कर रहा था।
एक पात्र फ्रेंकलिन की हत्या देखें-
  लाश पर से इन्स्पेक्टर मैथ्यूज ने चादर हटा दी। मेजर ने पास जाकर देखा । फ्रेंकलिन के गले पर एक गहरा घाव था। किसी ने बड़ी सफाई से सांस की नली काट दी थी और वहां से गोश्त का एक पूरा टुकड़ा उड़ा लिया था। सफाई से कटा हुआ गोश्त का चौरस टुकड़ा तकिये के पास पड़ा हुआ था। मेजर उस चौरस टुकड़े की ओर देखकर भी मुस्कराया। इन्स्पेक्टर मैथ्यूज ने मेजर की मुस्कराहट पर कोई ध्यान नहीं दिया और कहा- "आपको इस हत्या में और चौधरी साहब की हत्या में कोई समानता दिखाई दी ? मैं तो निश्चयपूर्वक कह सकता हूं कि जिस आदमी ने चौधरी साहब की हत्या की है, वही फ्रेंकलिन का भी हत्यारा है।"  और मेजर बलवंत ने अपनी सहयोगी सोनिया, कुत्ते क्रोकोडायल तथा पुलिस की सहायता से वास्तविक अपराधी को खोज ही निकाला।
   अपराधी तो पकड़ा गया लेकिन अपराध के कारण और अपराधी के कृत्य देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे समाज में से रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं। कोई दौलत के लिए किस हद तक गिर सकता है यह इस उपन्यास में अच्छे से दर्शाया गया है।
लेखक के शब्दों में- इंसान सीमा से अधिक ऊंचा भी है और सीमा से अधिक गिरा हुआ भी है। जब वह ऊंचाइयों को छूने लगता है तो भगवान का एक छोटा सा रूप धारण कर लेता है; लेकिन जब वह नीचाइयों में उतरने लगता है तो शैतान भी उससे पनाह मांगता है। और यह कहानी इंसान के पतन, नीचता और कमीनेपन की कहानी है।
     उपन्यास में एक जगह बहुत अच्छा लिखा है की शिक्षित आदमी अपने स्वार्थ के लिए किस तरह से परिभाषाएं बदल लेता है। ऐसे एक आदमी‌ को मेजर बलवंत क्या कहता है देखें-
"देखिए जो भी काम इन्सान को प्रसन्नता और आनन्द देता है, मैं उसे नीच और घिनौना बिल्कुल नहीं समझता ।"
"हां, आज के पढ़े-लिखे लोगों ने अपने लिए बहुत-से नियम बना लिए हैं और अपने अनैतिक कामों को नैतिक सिद्व करने के लिए बहुत-सी दलीलें खोज निकाली हैं। तुम्हारे इस सहयोग के लिए धन्यवाद । अब मैं चलता हूं। आशा है तुमसे फिर भेंट होगी ।"

अधिकांश उपन्यासों में मेजर बलवंत को एक जासूस दिखाया गया है। हालांकि एक उपन्यास में मेजर बलवंत को सेना का जासूस दर्शाया गया है लेकिन अन्य किसी भी उपन्यास में मेजर बलवंत का परिचय नहीं दिया गया। उसे मात्र एक जासूस कहा गया गया है। वह सरकारी जासूस है या प्राइवेट, वह सेना से संबंधित है या पुलिस से कहीं स्पष्ट नहीं है।
प्रस्तुत उपन्यास में मेजर बलवंत को पुलिस अधिकारी दिखाया गया है और उसकी सहयोगी सोनिया को सार्जेंट ।
"पुलिस अफसर हमेशा सोच समझकर ही इल्जाम लगाया करने हैं ।"- मेजर ने मुस्कराते हुये कहा ।
एक और उदाहरण देखें-
-"फिर तो आपको निश्चय ही कोई गलतफहमी हुई है।" ऐंग्लो-इंडियन लड़की ने कहा ।
"पुलिस अफसर अगर यों गलतफहमी का शिकार होने लगे तो फिर वह कोई भो काम नहीं कर सकता।" मेजर ने कहा और अपना आइडेण्टिटी कार्ड जेब से निकालकर उसकी ओर बढ़ा दिया ।

मेजर ने यहाँ सोनिया को सार्जेंट कहा है ।
अब मेजर ने सारी शिष्टता एक ओर उतारकर रख दी और बोला- "तुम इस लड़की को यहां क्यों लाए ? क्या तुम्हें मालूम न था कि ड्यूटी पर सरकारी आदमी पर हाथ उठाना अपराध है ?"
"सरकारी आदमी ?"
"जी हां । यह लड़की मेरी असिस्टेण्ट है- सार्जेंट सोनिया ।
"

कर्नल रंजीत के उपन्यासों में यादगार और सुक्तिनुमा संवाद बहुत कम होते हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में कुछ जगह इन्होंने बहुत अच्छे संवाद लिखे हैं।
जैसे-
- सीमा से अधिक सुंदर स्त्री से विवाह एक अभिशाप से कम नहीं होता ।
- "दुनिया में अनगिनत ऐसे लोग हैं जिनके दिमाग में कोई उलझन और दिल में कोई गांठ नहीं होती। उन्हें अपने पैरों तले का रास्ता मालूम होता है। वे इस पर डगमगाए और भटके बिना मंजिल की ओर बढ़ते रहते हैं।"

   मेजर बलवंत के उपन्यासों में विचित्रता बहुत होती है। यहाँ भी हत्यारे बहुत विचित्र है, क्योंकि उनका हत्या का ढंग अजीब है। वह गरदन की एक नस काट देते हैं।
    उदाहरण देखें- फ्रेंकलिन के गले पर एक गहरा घाव था। किसी ने बड़ी सफाई से सांस की नली काट दी थी और वहां से गोश्त का एक पूरा टुकड़ा उड़ा लिया था। सफाई से कटा हुआ गोश्त का चौरस टुकड़ा तकिये के पास पड़ा हुआ था।
मेजर की एक विशेषता है वह किसी से बातचीत कर या चेहरा देखकर उसके सही -गलत होने का निर्णय ले लेता है।
- मेजर को रक्षा साहानी की कहानी में सच्चाई दिखाई दी
  प्रस्तुत उपन्यास में मेजर के साथ सोनिया और कुत्ता क्रोकोडायल ही हैं। अशोक को मेजर का असिस्टेंट बताया गया है लेकिन वह स्वयं असहाय सा नजर आता है।
मेजर के अन्य साथी सुधीर, सुनील, डोरा और मालती किस उपन्यास किस उपन्यास में उनके साथ मिलते हैं और अशोक कब उनसे अलग होता है, यह किसी साथी को पता हो तो कमेंट कर अवश्य बताये।
 इस उपन्यास में विनोद मल्होत्रा का वर्णन है। जो कुछ उपन्यासों में मात्र दर्शक रूप में उपस्थित रहा है ।विनो मल्होत्रा कर्नल रंजीत और सोनिया का मित्र है।
    अत्यन्त दिलचस्प और कदम-कदम पर रौंगटे खड़े कर देने वाले इस नये जासूसी उपन्यास में कर्नल रंजीत ने मनुष्य की गिरावट और उससे उत्पन्न होने वाले भयंकर अपराधों की ऐसी कहानी प्रस्तुत की है जिसे पढ़ने के बाद आप चकित रह जाएंगे और आपके दिल में दुनिया को संवारने और गंद-गियों से स्वच्छ करने की भावनाएं उमड़ आएंगी । 'खून के छींटे' निःसन्देह जासूसी साहित्य में मील का पत्थर सिद्ध होगा ।
कर्नल रंजीत द्वारा लिखित उपन्यास 'खून के छींटे' एक रोचक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। यह मनुष्य के लालच और खत्म होते रिश्तों को भी परिभाषित करता है। पठनीय रचना है।
उपन्यास- खून के छींटे
लेखक-    कर्नल रंजीत
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-        155

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। कभी मिला तो पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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  2. कर्नल रंजीत लिखित शुरुआती नॉवल है 'खून के छींटे'।

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