उत्तर प्रदेश के युवा उपन्यासकार अनुराग कुमार जीनियस का 'एक लाश का चक्कर' प्रथम उपन्यास है, जो की स्वर्गीय वेदप्रकाश शर्मा की प्रकाशन संस्था तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित हुआ है।
जैसा उपन्यास का नाम है ठीक उसी के अनुरूप यह उपन्यास है। एक लाश और फिर शुरु होता है लाश का चक्कर जो नये -नये रहस्यों के पश्चात अपने मुकाम पर पहुंचता है, जब पाठक को लगने लगता है की उपन्यास की कहानी यहाँ पर खत्म होने वाली है, ठीक उसी जगह से उपन्यास एक नये मोङ की ओर मुङ जाता है।
-उपन्यास की कहानी की बात करें तो कहानी काफी घुमावदार है।
एक पर्यटक स्थल पर एक लाश मिलती है और फिर प्रारंभ होती है पुलिस की कार्यवाही मृतक औ कातिल को ढूंढने की पृष्ठ दर पृष्ठ कहानी आगे बढती है और पुलिस कातिल को ढूंढ निकालती है लेकिन वह शख्स एक नयी कहानी सुनाता है स्वयं को बेगुनाह बताता है। यहाँ से कहानी में दो युवा जासूस चेतन व धर्मा का आगमन होता है।
दोनों जासूस उस शख्स की कहानी को सत्य मानकर तहकीकात आरम्भ करते हैं और षङयंत्रों के जाल को काट कर अपराधी तक पहुंचते हैं, लेकिन यहाँ से भी कहानी एक और मोङ लेती है और लाश का चक्कर उलझता चला जाता है।
-उपन्यास की सबसे बङी कमी है उपन्यास की रफ्तार का धीमा होना। अच्छी कहानी होने के पश्चात भी उपन्यास पाठक पर पकङ नहीं बना सकता। कहानी में कई मोङ हैं जहां पर पाठक की सोच के विपरीत कहानी चली जाती है पर पाठक उसे उसी बहाव में बिना आश्चर्यचकित हुये बहता चला जाता है।
मेरे विचार से अगर लेखक उपन्यास को विस्तार देने की जगह थोङा संक्षिप्त रखता तो उपन्यास और भी अच्छा बन सकता था।
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पृष्ठ संख्या 222- 232 पर प्रभु की मेड के साथ साधारण सी बातचीत को अनावश्यक रूप से विस्तार देने के साथ-साथ मेड की दुख भरी कहानी भी व्यर्थ ही चिपका डाली।
पृष्ठ संख्या 232 पर मेड किसी को फोन करती है।
'महिला उठी। अंदर कमरे में गयी। अलमारी में रखा अपना फोन उठाया और कोई नंबर पंच करने लगी।
अब पाठक सोचता होगा की इस पंक्ति का आगे कोई अर्थ निकलेगा पर कोई अर्थ नहीं निकलता।
- इस प्रकार एक दो और भी दृश्य हैं जहाँ पाठक को लगता है कुछ होगा लेकिन वहाँ भी पाठक को निराशा हाथ लगती है।
- सार रूप से कहा जा सकता है की उपन्यास की कहानी बहुत अच्छी, रोचक, घुमावदार और मर्डर मिस्ट्री युक्त है लेकिन उपन्यास की धीमी गति और उपन्यास का अनावश्यक विस्तार उपन्यास की कहानी पर हावी हो जाता है।
लेखन के प्रथम प्रयास को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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उपन्यास- एक लाश का चक्कर
लेखक- अनुराग कुमार जीनियस
Mob.- 8874223794
प्रकाशक- तुलसी पेपर बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 272
मूल्य- 100₹
पुस्तक मंगवाने के लिए संपर्क करें-
9760184359, 9897127070
आपने अच्छे से अपने अनुभव को साझा किया है. अनावश्यक विवरण कई बार अच्छे खासे उपन्यास को बोझिल बना देते है. थ्रिलर और मिस्ट्री में तो ऐसा होना तो उपन्यास को उम्दा उपन्यास से औसत तक पहुंचा सकता है. ऐसे मामलों में एडिटर काफी काम के होते हैं. वो ऐसे अनावश्यक विवरण हटवा देते हैं. मुझे नहीं पता लेखक ऐसे विवरण क्यों डालता है. अगर पृष्ठ बढ़ाना ही इसका मकसद है तो इसे किसी छोटी कहानी या लघु उपन्यास को इसके साथ जोड़कर पृष्ठों की कमी को पूरा कर सकते हैं. उम्मीद है लेखक प्रकाशक को ये सलाह देंगे.
ReplyDeleteविकास भाई की बात सच है कि इस तरह पेज बढ़ाने के छककर में पूरा कथानक बर्बाद हो जाता है।
ReplyDeleteएक दौर ऐसा भी था जब राजा और रवि पॉकेट बुक्स से 400 पेज का एक नावेल होता था 40₹ कि कीमत में उस टाइम ने हर उस नावेल को बोझिल बना दिया था
जबकि सब नावेल खूब अच्छे थे
उस दौर के कुछ नावेल
s m pathak के
बिचोलिया
ग्रांडमास्टर
ज़मीर का कैदी
पलटवार
कर्मयोधा
अनिल मोहन के
नसीब के पत्ते
किस्मत का सुल्तान
मुखिया
अच्छी समीक्षा भाई जी । मैंने अभी यह किताब जब SPB से प्रकाशित हुई तब पढ़ी । कहानी में संवाद कमजोर हैं, बेजरूरत का फैलाव है जिससे कि कहानी कई जगह बिखरती सी जान पड़ती है । चूंकि लेखक का प्रथम उपन्यास है सो आगे के लिए शुभकामनाएं ।
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