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Tuesday, 11 July 2017

50. कानून का शिकंजा- अनिल मोहन

मैंने अनिल मोहन के उपन्यास ज्यादा नहीं पढे और उपन्यास पर लिखने के मामले में यह अनिल मोहन का पहला उपन्यास है।
माउंट आबू(सिरोही, राजस्थान) में अध्यापक की नौकरी में आये मुझे अभी एक सप्ताह ही हुआ है और इस दौरान मात्र दो उपन्यास पढे हैं। एक अनुराग कुमार जीनियस का 'एक लाश का चक्कर' और दूसरा अनिल मोहन का ' कानून का शिकंजा' दोनों उपन्यास ही अपनी क्षमता पर खरे नहीं उतरे।
  प्रस्तुत उपन्यास कानून का शिकंजा पाठक को अक्षय कुमार की फिल्म ' राऊडी राडौर' की कुछ-कुछ झलक दिखलायेगा।(मेरे विचार से यह उपन्यास फिल्म से पहले का है)
  कहानी- उपन्यास की कहानी सुनीता नामक युवती के दुष्कर्म से आरम्भ होती है। इस युवती से दुष्कर्म बलाकी राम नामक एक खलनायक करता है और उसी दौरान वहाँ पर अमित नामक युवक पहुंचता है, लेकिन वह भी उस युवती को बचा नहीं पाता और स्वयं बलाकी राम के हाथ से पिट जाता है।
जब वह युवती पुलिस स्टेशन अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाने जाती है तो वहाँ उसका सामना बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर रंजीत चौपङा से होता है।
वह सुनीता नामक युवती से इंसाफ का वादा कर बलाकी राम को गिरफ्तार कर लेता है लेकिन कुछ भ्रष्ट अफसरशाही और नौकरशाही के चलते बलाकी राम रिहा हो जाता है।
बलाकी राम सुनीता नामक युवती का अपहरण कर उसे नयन साहनी नामक नेता की हवस पूर्ति के लिए भेज देता है।
  दूसरी तरफ इंस्पेक्टर रंजीत इस बात से खफा है की बलाकी राम उसके हाथ से निकल गया। तब उसे पता चलता है की बलाकी राम के सिर पर रेड स्पाइडर का हाथ है।
रेड स्पाइडर शहर का सबसे बङा खतरनाक अपराधी है। वह कौन है? कोई नहीं जानता। उसके बारे में जिसने भी जानने की कोशिश की वह मारा गया।
अब इंस्पेक्टर रंजीत रेड स्पाइडर को खोजने निकलता है और वह एक हद तक सफल भी हो जाता है लेकिन उसे रेड स्पाइडर मौत के घाट उतार देता है।
  उपन्यास का एक और महत्वपूर्ण पात्र है- सूरज। इंस्पेक्टर रंजीत का हमशक्ल। (उपन्यास का प्रथन पृष्ठ इसी पात्र से आरम्भ होता है)
एक आवारा किस्म का युवक। रंजीत की हत्या की खबर दबा कर पुलिस कमिश्नर सूरज को इंस्पेक्टर रंजीत चौपङा बना कर मैदान में उतारते हैं और अंत में रेड स्पाइडर को ढूंढकर मौत के घाट उतारते हैं।
कहानी बहुत कुछ हिंदी फिल्म राउडी राठौर से मिलती-जुलती नजर आती है।
उपन्यास के अंत में एक ऐसे व्यक्ति को रेड स्पाइडर दिखा दिया जाता है जिसका पूर्व में उपन्यास में कोई महत्वपूर्ण भाग नहीं है। मात्र पाठक को चौकांने के लिए एक पात्र को रेड स्पाइडर नामक खलनायक बनाकर पेश कर दिया गया।
उपन्यास में बहुत से घटनाक्रम अनावश्यक है-
- अमित और उसके बाप का इस पूरे उपन्यास में कोई विशेष योगदान नहीं है।
- सुनीता नामक युवती जिससे यह कहानी आरम्भ हुयी चंद पृष्ठों के पश्चात उसका कहीं कोई नाम नहीं ।
- कमल साहनी यहाँ प्रारंभ में एक घटिया किस्म का नेता है, वही अंत में रेड स्पाइडर का दुश्मन बन कर अच्छा दिखा दिया गया।
- सूरज का पहली बार पुलिस कमिश्नर से सामना होता है तो वह बेमतलब ही अपना नाम पता कमिश्नर को बता देता है।
अगर सार रूप में देखा जाये तो अनिल मोहन का प्रस्तुत उपन्यास ' कानून का शिकंजा' पाठक का समय खराब करने वाला उपन्यास है। जिसमें बेमतलब की घटनाएं भरी पङी हैं।
उपन्यास के उपर महाविशेषांक लिखा है लेकिन उपन्यास में कुछ विशेष नहीं है।
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उपन्यास- कानून का शिकंजा (थ्रिलर)
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 238
मूल्य- 40%

3 comments:

  1. उपन्यास अगर निराश करें तो बुरा लगता है. मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ है. आपके साथ इसलिए सहानुभूति है.

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  2. ब्लाॅग पर पधारने व अपने विचार व्यक्त करने पर आपका हार्दिक धन्यवाद।

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  3. सामान्य स्तर की कहानी थी।
    जैसे आम फिल्मो में होता था 90 वाले दौर में।
    मुझे ये पसंद तो आया भी था पर ज्यादा नही

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