Pages

Monday, 30 June 2025

सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत

विचित्र हत्याएं और विश्वासघात
सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत

अपराधों की बाढ़
इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ने अपने सामने खुली पडी फाइल पर सूखे पेंसिल से जगह-जगह निशान लगाए और फिर जहां-जहां उसने सुखं निशान लगाए थे उन्हें अपनी डायरी में नोट करने लगा।
रात के ग्यारह बज चुके थे लेकिन वह अभी तक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में जुटा हुआ था। लक्ष्मी इस बीच उसे तीन बार फोन कर चुकी थी और हर बार उसने यही कह दिया था कि वह दस-पन्द्रह मिनट में काम खत्म करके आ रहा है। लेकिन नौ बजे से बैठे-के ग्यारह बज चुके थे उसका काम खत्म नहीं हुआ था।

इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ज्यों-ज्यों उस फाइल को पढ़ता चला जा रहा था उसकी चिन्ता और परेशानी में बद्धि होती चली जा रही थी। उसे इस पुलिस स्टेशन का चार्ज लिए बभी एक सप्ताह ही हुआ था। पुलिस कमिश्नर मिस्टर देश-पांडे ने उसकी नियुक्ति इस पुलिस स्टेशन पर करते समय उससे कहा था- "इंस्पेक्टर प्रधान, मैं बहुत कुछ सोच-समझ कर ही आपका ट्रांसफर इस पुलिस स्टेशन पर कर रहा हूं। पिछले कुछ महीनों से ऐसा महसूस होने लगा है कि बांदरा एरिया में रहने वाले सभी शरीफ आदमी इलाके को छोड़कर किसी दूसरे इलाके में चले गए हैं और उनके स्थान पर बड़े-बड़े स्मगलर, और घंटे हुए जरायम पेशा लोग आ बसे है या फिर इस इलाके में रहने वाले शरीफ आदमियों ने गैर-कानूनी कामों को अपना लिया है। पिछले छः महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो जब इस इलाके में कोई लाश न मिली हो, फौजदारी की वारदात न हुई हो। चोरी, डकैती, मार-पीट ता बहुत ही मामूली बात है। मैं आपकी सूझ-बूझ, साहस और कर्तव्यपरायणता से भली-भांति परि-चित हूं। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि आप इस इलाके में बढ़ते हुए अपराधों की बाढ़ को रोकेंगे ही नहीं बल्कि उस स्रोत को ही समाप्त कर देंगे जहां से इन अपराधों की धारा निकलती है।"
 (सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत, प्रथम दृश्य)
    यह दृश्य है मनोज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित उपन्यास सिरकटी लाशें' का,जिसे लिखा है कर्नल रंजीत ने और इस उपन्यास का मुख्य पात्र है कर्नल रंजीत और उसके साथ है उसके सहयोगी सुधीर, डोरा, सोनिया और प्रिय कुत्ता क्रोकोडायल ।(उपन्यास में सुनील नहीं है)
 
रहस्यपूर्ण हत्या
शायद वह रात महानगर बम्बई की सबसे अधिक भयानक और दुर्घटनाओं से भरी रात थी ।
     जिस समय इंस्पेक्टर शेखर प्रधान अपने स्टाफ के साथ ग्रीन होटल के रूम नम्बर 515 में पलंग के पास खड़ा अहमदाबाद के कपड़ा व्यवसायी सेठ हीराचन्द मूलजी की सिरकटी लाश को बड़े ध्यान से देख रहा था ठीक उसी समय पाली हिल के एक शानदार बंगले के एक सुसज्जित बेडरूम में एक साया पलंग पर सोए उस युवा जोड़े को बड़े ध्यान से देख रहा था जिसका विवाह आज से ठीक एक सप्ताह पहले ही हुआ था ।
           साये ने पति की बांह पर सिर रखे सोई हुई लड़की के चेहरे को देखा । चेहरा जितना सुन्दर और आकर्षक था उतना ही मासूम भी दिखाई दे रहा था। उस चेहरे पर किसी अबोध शिशु जैसी मासूमियत थी ।

सोई हुयी लड़की का नाम रागिनी है और उसके पति का नाम राकेश है। अज्ञात हत्यारे द्वारा राकेश की हत्या कर दी जाती है और यह हत्या ठीक उसी तरीके से की गयी थी जिस तरीके से अहमदाबाद के व्यापारी की हत्या की गयी।
     रागिनी मेजर बलवंत को अपना अंकल मानती है और हिम्मतवाली रागिनी इस दुख के समय में मेजर बलवंत को याद करती है।
   और मेजर बलवंत अपने सहयोगियों के साथ जा पहुंचता है राकेश के घर, जहां उसकी मुलाकात एक अक्खड़ इंस्पेक्टर राजाराम अठावले से होती है।
  "इंस्पेक्टर साहब, आप नहीं जानते कि आप किससे बात कर रहे हैं।" सहसा लाश का मुआयना करते-करते अपुलिस डॉक्टर ने खड़े होकर कहा- "ये हमारे देश के विख्यात जासूस मेजर बलवंत हैं । और ये इनके असिस्टेंट हैं।"
"कोई भी हों। जब तक मेरा काम पूरा नहीं हो जाता इस कमरे में कोई भी नहीं आ सकता ।" इंस्पेक्टर राजाराम अठावले ने बड़े रोब से कहा ।
मेजर बलवन्त ने अपने साथियों और रागिनी को इशारा किया और राकेश के बेडरूम से निकल आया।

   पुलिस कमिश्नर मिस्टर देशपाण्डे के सहयोग से मेजर बलवंत आखिर उस जगह पहुँच ही जाते हैं जहाँ राकेश की लाश थी।
मेजर बलवन्त ने कहा - "रागिनी के पति राकेश का हत्यारा पाताल में ही क्यों न जा छिपे मैं उसे वहां से भी खोज लाऊंगा।"
    मिस्टर देशपांडे आगे कुछ कहने भी नहीं पाए थे कि मेजर बलवन्त जल्दी से बोल पड़ा "ओह, रागिनी के पति राकेश की हत्या भी ठीक इसी तरह की गई है। मैंने अभी दूर से ही देखा है उसका कटा हुआ सिर धड़ से लगभग एक फुट दूर पड़ा था।"
"एक ही रात में दो हत्याएं और दोनों हत्याओं का तरीका बिलकुल एक जैसा ।" मिस्टर देशपांडे ने सोच में डूबे स्वर में जैसे अपने-आपसे कहा। और फिर अपने-आपको संयत करते हुए बोले- "मेजर साहब, मैं पन्द्रह मिनट के अंदर-अन्दर आपके पास पहुंच रहा हूं।"
मेजर बलवंत राकेश की लाश के पास जा खड़ा हुआ ।
        घड़ से एक फुट दूर पड़ा राकेश का सिर हत्यारे ने गर्दन से बहुत ही सफाई से एक ही वार में अलग कर दिया था। इससे स्पष्ट हो जाता था कि हत्यारा बहुत ही अनुभवी हत्यारा था और उसे सर्जरी का भी पर्याप्त ज्ञान था ।

यह तो एक शुरुआत थी शहर म ऐसी और भी हत्याएं हो रही थी जहाँ हत्यारा बड़ी कुशलता से हत्या करता है और हत्या के पश्चात सिर काटकर उसे धड़ से दूर रख देता है।
मेजर बलवंत के लिए यह एक चुनौती थी। रागिनी, पुलिस कमिश्नर देशपाण्डे के अतिरिक्त स्वयं मेजर जहां राकेश के हत्यारे को खोजना चाहते थे वहीं वह हत्यारा उसी शैली में अन्य हत्याएं कर रहा था।
क्या हत्यारे को पकड़ना आसान काम था। इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ने एक बात कही थी।
-"क्या आपको इस कमरे में कोई ऐसा सूत्र मिला है जो हत्यारे पर प्रकाश डालता हो ?" सेठ रतनकुमार ने पूछा ।
"जी नहीं, अभी तक तो कोई ऐसा सूत्र हाथ नहीं लगा है।" इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ने कहा- "लेकिन शायद आपने यह कहावत नहीं सुनी-हत्यारा कितना भी कुशल और अनुभवी क्यों न हो, कोई-न-कोई ऐसी निशानी घटना स्थल पर जरूर छोड़ जाता है जो पुलिस के लिए मार्ग-दर्शक बन जाती है।"

   शहर के दो प्रसिद्ध ज्योतिष भाई राम मोहन और कृष्ण मोहन की हत्या भी उसी ढंग से की जाती है जिस ढंग से अन्य हत्याएं हुयी थी।
राममोहन और कृष्णमोहन की हत्याएं ही वह टर्निंग पॉइंट है जो मेजर बलवंत को वास्तविक अपराधी की तरफ लेकर जाता है। मेजर बलवंत जैसे जैसे इन दोनों भाईयों के विषय में जानकारी प्राप्त करते है, वैसे-वैसे उनके समक्ष वह रहस्य भी स्पष्ट होने लगते है जो अब तक छुपे हुये थे। और जब छुपे हये रहस्य सामने आते हैं तो वास्तविक अपराधी तक पहुंचना कठिन न था ।
  अंततः मेजर बलवंत वास्तविक अपराधी  को सामने लाकर रागिनी से किया गया अपना वादा पूरा करते हैं।
  अब उपन्यास के अन्य तथ्यों पर चर्चा हो जाये।
"लाश के कटे हुए सिर और घड़ का रंग इस तरह पीला पड़ गया है जैसे इस पर हल्दी पोत दी गई हो।" मेजर बलवंत ने कहा- "इस पीलेपन के बारे में आपकी क्या राय है डॉक्टर ?"
"शरीर का सारा खून बह जाने के कारण ही लाश इतनी पीली पड़ गई है।" पुलिस डॉक्टर ने जल्दी से कहा।

   क्या खून की कमी होने से शरीर पीला पड़ जाता है?
उपन्यास के दो अध्याय हैं 'रहस्यपूर्ण कोठी' और 'विचित्र नौकर' वैसे विचित्र नौकर इनके उपन्यास 'सफेद खून' में पढने योग्य और रहस्यमयी हैं।
  'खून के छींटे' के पश्चात यह द्वितीय उपन्यास है जिसमें मेजर बलवंत को पुलिस अधिकारी के रूप में दर्शाया गया है। ज्यादातर उपन्यासों में मेजर बलवंत को जासूस ही लिखा जाता है, वहीं आरम्भिक उपन्यासों में आर्मी का जासूस बताया गया है।
प्रस्तुत उपन्यास में देखें-
-वह जिस आदमी को सादा वर्दी में पुलिस ऑफिसर समझ रहे थे वह तो एक जासूस था। भारत का विख्यात जासूस ।
    कर्नल रंजीत के उपन्यासों में फेसमास्क का उपयोग न के बराबर ही होता है। इनके पात्र आवश्यकता अनुसार वेशभूषा परिवर्तन कर ही काम चलाते हैं। इस उपन्यास में पहली बार फेसमास्क का उपयोग देखने को मिला है।
सहसा उसने कान के पिछले भाग को रगड़ा और फिर झटके से उसके चेहरे पर चढ़ा मास्क उतार लिया। वह आदमी वास्तव में चीनी, या जापानी जैसा था ।
   इस उपन्यास में पुलिस थाने में मेजर बलवंत पर बम से हमला होता है।
इसी उपन्यास में मेजर के घर पर दो पात्र 'वाणी-कल्याणी' मिलते हैं। शायद दोनो घर की नौकरानियां हैं।
  उपन्यास 'सिरकटी लाशे' कर्नल रंजीत शैली का उपन्यास है। जो मनुष्य लालच और विश्वासघात को रेखांकित करता है।

उपन्यास- सिरकटी लाशें
लेखक-    कर्नल रंजीत
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-        166

कर्नल रंजीत के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

No comments:

Post a Comment