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Thursday, 30 November 2023

अदृश्य मानव- चंदर

स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा और पण्डित गोपालशंकर
अदृश्य मानव- चंदर (प्रथम भाग)

प्रिय भारत वासियों
गुलाम भारत के लिये समय का कुछ मूल्य नहीं होना चाहिये। उन दिनों की प्रतीक्षा कीजिए जिस दिन हम पूर्ण आजाद होकर समय को पहचाना सीखेंगे। अंगरेजों की प्रभुता की वह पुरानी यादगार हमारी गुलामी की घड़ियों को डंके की चोट बजाकर घोषित कर रही थी। इसको मिटाने के साथ-साथ अंग्रेजों के विरुद्ध 'अदृश्य मानव' की ओर से अनवरत युद्ध की पूर्ण घोषणा है। सावधान उपयुक्त समय के लिये तुम्हारी आवश्यकता पड़ेगी । (अदृश्य मानव- उपन्यास अंश)
      अदृश्य मानव उपन्यासकार चंदर द्वारा लिखित उपन्यास का घटनाक्रम सन् 1947 से पूर्व का है। जब भारत पर ब्रिटेन का शासन था। ब्रिटेन के अत्याचारों से तंग आकर भारतीय जनमानस ने उनके विरुद्ध संघर्ष का ऐलान किया था।

यह कहानी ऐसे ही कुछ शूरवीरों की है जिन्होंने अपने प्राणों का मोह त्याग कर भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व त्याग दिया था।
हालांकि उपन्यास का कथानक एक अधुरापन लिये हुये है। यह उपन्यास मात्र शूरवीरों के संघर्ष की कहानी है। उनके संघर्ष को चित्रण करना लेखक का उद्देश्य प्रतीत होता है।
  उपन्यास का कथानक एक अदृश्य व्यक्ति से आरम्भ होता है जिसके आवाज जनता तक पहुंचती है और जो स्वयं जो अंग्रेजों का दुश्मन बताता है भारत देश को स्वतंत्रता करने की बात करता है।
   अंग्रेज सरकार ने इससे निपटने के लिए विशेषकर दो व्यक्तियों को याद किया-
जान निकल्सन ने हाथ मिला कर उनका सम्मान किया, 'आइये पण्डित जी कैसे हैं आप ?'
'बिल्कुल ठीक ठाक जनाब,'- पण्डित गोपाल शंकर ने उत्तर दिया, 'सब लोग आ चुके क्या ?'
'जी हां !'- पुलिस कमिश्नर उनको आदर के साथ पार्टी के कमरे की ओर ले चला।
     कमरे में इस समय लगभग पचास की संख्या में सज्जन उपस्थित है। इन सबके बीच में केवल दो ही विभूतियां भव्य और विशाल नजर आ रही है। एक पण्डित गोपाल शंकर और दूसरे रियासत कोटद्वार के अधिपत्ति राणा भूपेन्द्रराव सिंह हैं । यदि सामने की रोशनियां बुझा दी जांय तो इन सब आकारों में यह दो आकार ऐसे जचेंगे जैसे गीदड़ों के बीच शेरों को ला बिठाया गया हो ।
     छः बज कर पांच मिनट पर गवर्नर ने उठकर कहा, 'लेडीज एण्ड जैण्टिलमैन, रात के एक बजे जो काण्ड घटित हुआ है उससे कोई साहब बेखबर नहीं होंगे। कुछ अदूरदर्शी जल्दबाज छोकरों ने लाल परचे गिरा कर इस काण्ड को देशप्रेम  का रूप देने की कोशिश की है। कल डाकू और लुटेरे भी देश प्रेम का नाम लेकर डाका और लूटपाट किया करेंगे । अधिक न कहकर मैं गवर्नमेंट के प्रत्येक वफादार दोस्त और सेवक को सचेत कर देना चाहता हूं कि ऐसे गुमराह युवकों को जल्द से जल्द कुचल कर धूल में मिलाने में हमारा सहयोग दे। गौड सेव दी किग।"
तालियां बजी। पुलिस कमिश्नर ने अपनी जगह खड़े होकर कहा, 'सज्जनों, समय बहुत थोड़ा है। राज्य के वफादार सेवकों के अतिरिक्त हम दो सज्जनों से बहुत बड़ी आशाए हैं । इन दोनों महात्माओं का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक पं० गोपाल शंकर हैं और दूसरे गुप्तचरों और वफादार सेवकों के स्वामी, विस्तृत रियासत कोटद्वार की दुर्गम पहाड़ियों अधिपति, महामान्य श्री भूपेन्द्र राव सिंह है"

  अब 'अदृश्य मानव' को पकड़ने की जिम्मेदारी इन दो व्यक्तियों के पास आ गयी थी। वहीं अदृश्य मानव की अंग्रेज सरकार के विरुद्ध अपनी कार्यवाही जारी रखे हुये था।
  वहीं अंग्रेज सरकार ने 'अदृश्य मानव' के शक के अंतर्गत पचास हजार व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।
   वहीं अंग्रेज सरकार की निगाह कोटद्वार रियासत के ऊपर भी थी। वह किसी ने किसी बहाने से कोटद्वार रियासत को हड़पना चाहती थी, जैसे झांसी की रियासत को रानी लक्ष्मीबाई से हड़पना चाहा था।
कुछ विशेष कारणों के चलते कोटद्वार के स्वामी राजा राव सिंह अंग्रेज से अलग हो जाते हैं और अब 'अदृश्य मानव' को पकड़ने का कार्य सिर्फ पण्डित गोपालशंकर पर था। वहीं अंग्रेज सरकार और गोपालशंकर का मानना था कि 'अदृश मानव' का संबंध कहीं न कहीं कोटद्वार रियासत से है।
अब एक तरफ अदृश्य मानव है दूसरी तरफ अंग्रेज सरकार और पण्डित गोपालशंकर है। दोनों के मध्य संघर्ष चलता है और इसी मध्य राजा राव सिंह कथा से लगभग गौण हो जाते हैं।
        उपन्यास साहित्य में देशभक्ति उपन्यासों की संख्या बहुत कम है। और उनमें भी उत्कृष्ट उपन्यास तो नगण्य हैं। प्रस्तुत उपन्यास में भी गोपालशंकर जैसे जासूस अंग्रेज सरकार का खुलकर विरोध करने में सक्षम नजर नहीं आते, हालांकि गोपालशंकर अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों को भारत छोड़न के लिए कहते हैं।
   प्रस्तुत उपन्यास मेरी उम्मीदों पर तो खरा नहीं उतरता। इसका एक कारण तो है उपन्यास के पृष्ठों का अत्यंत धुंधला होना और द्वितीय कथा में कसावट का न होना। तृतीय कथा किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाती।
यह जासूस और अदृश्य मानव के मध्य का संघर्ष है, जहां जासूस गोपालशंकर भावनात्मक रूप से अदृश्य मानव के साथ होते हैं।
पण्डित गोपालशंकर जो की एक वैज्ञानिक और जासूस भी हैं। प्रस्तुत उपन्यास में गोपालशंकर को अविवाहित दिखाया गया है।
चंदर द्वारा लिखित उपन्यास में जासूस भोलाशंकर का वर्णन ज्यादा आता है। कुछ विशेष उपन्यासों में गोपालशंकर जासूसी क्षेत्र में सक्रिय होते हैं। गोपालशंकर की एक और विशेष यह है की वह वैज्ञानिक है और उपन्यासों में अक्सर उनके वैज्ञानिक तरीकों, आविष्कारों का चित्रण होता है।
         प्रस्तुत उपन्यास में गोपालशंकर एक यंत्र का निर्माण करते हैं जो रेडियो की तरह ध्वनि को ग्रहण करता है लेकिन उसमें टेलिप्रिटर जोड़कर गोपालशंकर ध्वनि तरंगों के द्वारा कुछ शब्दों को ग्रहण करने का प्रयोग करते हैं और यह प्रयोग सफल भी होता है।
उपन्यास के आरम्भ में प्रमोद का वर्णन है जो अदृश्य मानव के लिए कार्य करता है लेकिन उपन्यास के मध्य में ही उसकी भूमिका गायब कर दी गयी है।
  चंदर द्वारा लिखित 'अदृश्य मानव' स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले वीरों की कहानी है।

चंदर द्वारा लिखित 'अदृश्य मानव' उपन्यास एक शृंखला में है, जिसका प्रथम भाग 'अदृश्य मानव' है, द्वितीय भाग 'बोलने वाली खोपड़ी', तृतीय भाग 'भयानक त्रिकोण' और चौथा भाग 'शैतानी शिकंजा' है। अगर इस शृंखला का कोई और भी भाग है तो मुझे पता नहीं।

उपन्यास-  अदृश्य मानव
लेखक -    चंदर
प्रकाशक - कंचन पॉकेट बुक्स
पृष्ठ -          196

द्वितीय भाग लिंक - बोलने वाली खोपड़ी

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