क्राइम ब्राच का इंस्पेक्टर उलझा एक जाल में
जाल- विकास सी एस झा
ट्रिपल मर्डर की एक ऐसी गुत्थी, जिसके तारों में क्राइम ब्रांच का एक ऑफिसर चंद्रशेखर त्यागी, खुद उलझ बैठा, और ऐसा उलझा की पनाह मांग गया। लोभ, महत्वाकांक्षा और हवस की एक ऐसी कहानी जिसमें क़ातिल तक पहुंचना तमाम पुलिस और क्राइम ब्रांच के लिए निहायत दुश्वारियों भरा था। ये कहानी क्राइम ब्रांच के उस ऑफिसर, चंद्रशेखर त्यागी के खुद को पाक-साफ साबित करने और उस जद्दोजहद की कहानी है, जिसमें वो गले तक फंसा पड़ा था। ये कहानी एक ऐसी बेइंतहा हुस्न की मल्लिका उर्वशी कालरा की भी कहानी है जिसने पति के होते हुए भी पराये मर्दों से संबंध रखे, बाद में जिसका अंजाम खुद उसके कत्ल के तौर पर सामने आया, और फिर शुरू हुआ कत्ल का एक सिलसिला। क्या क़ातिल पकड़ा गया ? कौन था क़ातिल ? जानने के लिए पढ़ें ये रहस्यमयी कथानक-जाल।
विकास सी एस झा जी का नाम 'लाॅकडाउन' के समय उनकी रचना 'लाॅकडाउन एक उडान' के माध्यम से चर्चा में आया था। प्रथम रचना की सफलता के साथ ही विकास झा साहब लेखन को समर्पित हो गये।मेरे द्वारा विकास सी एस झा जी का पढा गया प्रथम उपन्यास 'जाल' है। जो कथानक के तौर पर जाल है जिसमें क्राइम ब्रांच का एक ऑफिसर उलझकर अपनी नौकरी तक गवा देता है।
जाल उपन्यास का आरम्भ मुंबई के एक स्थान कर्जत से होता है जहाँ मुंबई क्राइम ब्रांच का ऑफिसर चन्द्रशेखर त्यागी अपने दोस्तों के साथ एंजोय कर रहा था।
चंद्रशेखर त्यागी- मुंबई क्राइम ब्रांच का एक दिलेर और जांबाज ऑफिसर, जिसने महज 27 साल की उम्र में ही अपनी सूझबूझ और कार्यकुशलता के बल पर अपने ढाई साल के छोटे से कार्यकाल में ही डिपार्टमेंट के अंदर अपने नाम का सिक्का जमा लिया है । आज की तारीख में चंद्रशेखर त्यागी, मुंबई क्राइम ब्रांच का एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर अपराधी पनाह माँग जाते हैं ।
तभी उसके मोबाइल पर एक मैसेज आता है।
- आई एम इन बिग ट्रबल । प्लीज सेव मी ! कम फास्ट ! फ्लैट नंबर 203 ग्रीन पार्क अपार्टमेंट, बेलापुर ।
और चन्द्रशेखर त्यागी (CST) अपने यार- मित्रों को छोड़ कर एक हाई प्रोफाइल केस के अहम गवाह जतिन खन्ना को बचाने निकल पड़ता है।
लेकिन जब चन्द्रशेखर त्यागी गवाह जतिन खन्ना के फ्लैट पर पहुंचा-
जतिन खन्ना मर चुका था और मैं चाहकर भी उसे नहीं बचा पाया था । कुछ लम्हों के लिए मैं स्तब्ध-सा हो गया था । तभी बाहर के कमरे में बूटों की तेज-तेज आवाज आनी शुरू हो गई । मैंने पलटकर देखा । पीछे खाकी वर्दी में पुलिस वाले गन थामे खड़े थे और उनको लीड कर रहा था रुस्तम बाग थाने का इंचार्ज, इंस्पेक्टर इमरान कासकर...।
यहीं शक के आधार पर इंस्पेक्टर इमरान कासकर चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लेता है।
“त्यागी ! यू आर अंडर अरेस्ट।” -इमरान ने बेरुखी से कहा।
“फ़ॉर व्हाट ?” मैंने आश्चर्य से उसे देखा।
“जतिन खन्ना के कत्ल के जुर्म में ।” उसने बताया।
“व्हाट ! कौन बोलता है ?” आश्चर्यचकित-सा मैं उसकी ओर देखकर पूछा।
“मैं बोलता हूँ ।” उसने कहा।
और यह कहानी यही खत्म नहीं होती बल्कि चन्द्रशेखर त्यागी का डिपार्टमेंट भी उसे सस्पेंड कर देता है।
“त्यागी, इस केस में जब तक तुम्हारी बेगुनाही साबित नहीं हो जाती तब तक तुम सस्पेंडेड रहोगे !” - मिस्टर मेहरा ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
अब क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर चन्द्रशेखर त्यागी को स्वयं पर लगे इस दाग को मिटाना था और अपनी नौकर भी बचानी थी। डिपार्टमेंट ने उसे इतना सहयोग अवश्य दिया की वह स्वयं के स्तर पर इस केस की जांच कर सकता है।
अब बात करते है जतिन खन्ना की। जतिन खन्ना एक जिम ट्रेनर था, जिसका संबंध धनाढ्य कालरा परिवार की बहु उर्वशी कालरा से था। एक दिन उर्वशी कालरा एक फ्लैट पर मृत पायी गयी। गवाह जतिन खन्ना और तत्काल पहुंची पुलिस ने उर्वशी कालरा के पति आकाश कालरा को वहाँ उपस्थित पाया और वहीं पास में आकाश कालरा की गन भी पड़ी थी।
हाई प्रोफाइल केस होने के कारण यह केस क्राइम ब्राच के माध्यम से चन्द्रशेखर त्यागी को मिलता है। इस के गवाह जतिन खन्ना को बचाने के चक्कर में स्वयं चन्द्रशेखर त्यागी भी जाल में उलझ जाता है।
तो यह कहानी है जाल उपन्यास की। जो की एक मजबूत कथानक है।
अपने विभाग से सस्पेंड चन्द्रशेखर त्यागी (CST) अपने साथी नीलेश काले, इमरान कासकर के सहयोग से इस केस पर कार्य करता है। नीलेश काले क्राइम ब्रांच से वह ऑफिसर है जो CST की जगह उर्वशी कालरा केस को देखता है और इमरान कासकर जतिन खन्ना केस का इंवेस्टीगेटर है।
उपन्यास के अधिकांश पात्र स्वयं को शातिर समझने वाले हैं और जिनको यह लगता है पुलिस उन तक पहुँच नहीं पायेगी।
वहीं एक पात्र है सूरज शुक्ला, पूरा हरामी। जिसके विषय में चन्द्रशेखर कहता है- “शुक्ला, यही उम्मीद थी मुझे तुझसे...।"
प्रस्तुत उपन्यास जाल मुझे काफी अच्छा लगा। एक उलझी हुयी मर्डर मिस्ट्री है। उपन्यास का दोहरा क्लाइमैक्स है। जहां प्रथम क्लाइमैक्स प्रभावित करता है वहीं द्वितीय क्लाइमैक्स कथा को उलझाव देता है।
वही कहानी के अंत में एक और पात्र जो रहस्यमयी बनाकर लेखक महोदय ने इस उपन्यास के अन्य खण्ड की संभावना पैदा कर दी है। वैसे आजकल यह अत्यंत प्रचलन में आ गया है की उपन्यास का अंत इस तरह से किया जाये की आगे अन्य उपन्यास की पृष्ठभूमि तैयार हो सके। वहीं यह प्रयोग पाठक के साथ अन्याय सा प्रतीत होता है क्योंकि जब पाठक को पता चलता इस उपन्यास का एक और भाग है तो उदास हो ही जाता है।
उपन्यास में एक दृश्य है जब इंस्पेक्टर चन्द्रशेखर त्यागी को सस्पेंड कर दिया जाता है। अपने विभाग से बाहर निकलता है तो वह दृश्य बहुत मार्मिक है।
क्यूबिकल के बीच से गुजरते हुए हर किसी की निगाहें मुझसे कुछ पूछती-सी मालूम होती थी और शायद मेरे हालात पर हँसती हुई भी । मेरे इस अपमान, तिरस्कार और दुश्वारियाँ के पीछे जो भी है, उससे हर हाल में अब मैं अपना बदला लेकर रहूँगा । जतिन खन्ना के कातिल को सलाखों के पीछे भेजना ही अब मेरा लक्ष्य था ।
उपन्यास बहुत सहज और सरल है लेकिन बीच-बीच में उर्दू शब्दावली भी बहुत है। एक समय था जब राजकार्य में फारसी का प्रचलन था। धीरे-धीरे फारसी की जगह हिंदी ने ले ली लेकिन 'पुलिस, कचहरी' आदि में फारसी के कुछ शब्द आज भी प्रचलन में हैं।
इस उपन्यास में भी ऐसे कुछ शब्द हैं। यह शब्द कथा प्रवाह को धीमा करते हैं।
जैसे- इमदाद, मुतवातार, मकतूल, आला-ए- कत्ल,
लेखक महोदय ने उपन्यास में अच्छा संतुलन बनाकर रखा है। कहीं अनावश्यक पात्र या कथानक नहीं दर्शाय, कहीं कोई अतिरिक्त संवाद नहीं है। इसी वजह से उपन्यास कसावट लिये हुए है, पठन में निरंतरता बनी रहती है।
'जाल- ए मर्डर मिस्ट्री' अपने नाम के अनुसार एक जाल है। और उस जाल में उलझा है एक इंस्पेक्टर वह इस जाल को कैसे तोड़ता है कैसे असली अपराधी तक पहुँचता है यह पठनीय है।
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