गहरी साजिश - प्रकाश भारती
#अजय_सीरीजकैंसर से पीड़ित दौलतमंद ठेकेदार हरगोविंद मदान की मृत्यु को आत्महत्या कहा जा रहा था। आम राय थी कि उसने अपने मुँह में रिवाॅल्वर की नाल घुसेड़ कर ट्रिगर खींच दिया था। उसका फेमिली डाॅक्टर और पोस्टमार्टम करने वाला डाॅक्टर इससे पूरी तरह संतुष्ट थे। पुलिस इसे क्लीयरकट सुसाइड करार देकर केस क्लोज्ड कर चुकी थी, लेकिन 'थंडर' का रिपोर्टर अजय कुमार इसे सुसाइड केस मानने के लिए कत ई तैयार नहीं था। वह चीख-चीख कर कह रहा था कि हरगोविंद मदान की हत्या की गयी थी।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के सितारे प्रकाश भारती द्वारा रचित 'अजय सीरीज' का प्रस्तुत उपन्यास 'गहरी साजिश' एक श्रेष्ठ मनोरंजक उपन्यास है।
उपन्यास का आरम्भ है। 'थंडर' के ऑफिस में प्रवेश और एक फोन काॅल से होता है।
"मुझे आपकी मदद चाहिए।"
"किस सिलसिले में?"
"मर्डर।"
अजय तनिक चौंका।
"आपने किसी का मर्डर किया है?"
"नहीं।"
"फिर।"
'मेरे पिता का मर्डर किया गया था।"
"कब?"
"पिछले हफ्ते। मेरे पिता का नाम हरगोविंद मदान था।"
यह फोन था हरगोविंद मदान की पुत्री दिव्या मदान का। जिसका कहना था कि उसके पिता का खून किया गया है, जबकि पुलिस उसे मात्र आत्महत्या का केस मान रही है। दिव्या मदान अजय से कहती है-"मैं चाहती हूँ आप असलियत को सामने आये और उन लोगों को कानून के हवाले करें।"
फिर कुछ ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होती है की अजय भी यह स्वीकार करने को विवश हो जाता है की हरगोविंद मदान की किसी ने हत्या की है।
जब अजय इस केस पर काम करता है तो 'थंडर' के मालिक नंदा साहब भी उसे हौंसला देते हैं- "तुम खोजबीन करो और पता लगाओ।''- नंदा साहब के स्वर में दृढता थी -" हरगोविंद मदान मेरे परिचतों में से था। वह बहुत ही अच्छा आदमी थाम अगर वाकई उसकी हत्या की गयी थी तो हत्यारे को अपने किये की सजा मिलनी चाहिए।"(पृष्ठ-31)
और जब अजय हरगोविंद के मृत्यु केस पर कार्य करता है तो उसके सामने एक के बाद एक चुनौतियां आती हैं। यहाँ तक की दो बार तो उसकी जान लेने की कोशिश भी की जाती है। यह कोशिश अजय के विश्वास को और पुष्ठ करती है की हरगोविंद मदान की हत्या की गयी थी और हत्यारा नहीं चाहता की इस केस पर आगे कार्यवाही हो।
वहीं इस केस में अजय की एकमात्र मददगार दिव्या मदान भी गायब हो जाती है। अजय के सारे रास्ते बंद हैं। लेकिन कहते हैं एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। और उसी रास्ते से अजय वास्तविकता का पता लगाता है और असली अपराधी को बेनकाब करता है।
यह मर्डर मिस्ट्री उपन्यास बहुत रोचक है और पठन में तीव्रता बनाये रखता है। एक के बाद एक घटित घटनाएं उपन्यास की कहानी में रोचकता बनाये रखती हैं।
उपन्यास का समापन एक नये रहस्य के साथ उपस्थित है। वह रहस्य पाठक के साथ-साथ उपन्यास के पात्रों के लिए भी हैरानीजनक है।
प्रत्येक उपन्यास में कुछ ऐसे भी पात्र होते हैं जो यादगार बन जाते हैं, स्मृति पर छा जाये है। इस उपन्यास में भी दो ऐसे पात्र हैं। एक चेला और द्वितीय डाॅक्टर खान।
जहाँ चेला राम अजय के लिए जानकारियाँ एकत्र करने का काम करता है वहीं डाॅक्टर अजय की अपने क्षेत्र में मदद तो करता है लेकिन उसका हास्य स्वभाव ज्यादा प्रभावित करता है।
एक-दो दृश्य देखें।
डाॅक्टर इरशाद आलम खान अधेड़ उम्र का हंसमुख स्वभाव वाला मिलनसार आदमी था। उम्र में खास फर्क होने के बावजूद उसके अजय के साथ दोस्ताना ताल्लुकात थे।
जब अजय और नीलम एक काम के संबंध में डाॅक्टर से मिलते हैं तो अजय कहता है- "डाॅक्टर, तुम्हें एक तकलीफ देनी है।"
"नहीं लूंगा।"
डाॅक्टर साहब की तुरंत प्रतिक्रिया हास्यप्रद है।
एक और दृश्य देखें-
एक विस्की के एक दौर के दौरान अजय डाॅक्टर खान से कहता है- "बहक गये लगते हो डाॅक्टर।"
और पर डाॅक्टर भी बहुत रोचक उत्तर देता है।
"मैं कभी जिंदगी में नहीं बहका।"
इस उपन्यास में अजय को रिलाॅल्वर और उसका लायसेंस मिलता है। और बंदा दो कत्ल भी कर देता है हालांकि दोनों बार किये गये कत्ल आत्मरक्षा की श्रेणी में आते हैं।
अजय का एक और पक्ष भी पठनीय है। जब एक व्यक्ति उसे हरगोविंद मदान की हत्या के विषय में छानबीन के विषय में प्रश्न उठाता है तो अजय उत्तर देता है- "कानूनन ऐसा कोई अधिकार मुझे नहीं है। लेकिन संदिग्ध मामलों की छानबीन करके असलियत को जनता के सामने लाना मेरी नौकरी का अहम हिस्सा है।" (पृष्ठ-38)
प्रकाश भारती जी द्वारा लिखित उपन्यास 'गहरी साजिश' अपने शीर्षक के अनुरूप उपन्यास है। वास्तव में साजिश इतनी गहरी थी की जिसकी थाह लेना कठिन काम था।
उपन्यास- गहरी साजिश
लेखक - प्रकाश भारती
संस्करण- 1985
प्रकाशक- साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 208
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