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Tuesday, 12 October 2021

461. बकरे की करामात- एस. सी. बेदी

राजन-इकबाल का कारनामा
बकरे की करामात- एस. सी. बेदी

नमस्कार पाठक मित्रो।
       लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में बहुत अजीब शीर्षक से उपन्यास भी प्रकाशित हुये हैं। और उम्मीद है आपने पढे भी होंगे। माननीय सुरेंद्र मोहन पाठक जी का उपन्यास 'बंदर की करामात' तो काफी चर्चित उपन्यास है। ऐसा ही एक उपन्यास एस. सी. बेदी जी ने लिखा था जिसका शीर्षक है- बकरे की करामात। 
    अब 'बंदर की करामात' और 'बकरे की  करामात' एक जैसे उपन्यास है या दोनों का कथानक अलग है। यह आप इस पोस्ट को पढकर जान जायेंगे।
   उपन्यास प्रसिद्ध जासूस 'राजन-इकबाल' पर आधारित है। राजन एक बार इकबाल को कलवाड़ की पहाड़ियों में‌ जाने को कहता है। इकबाल अपने साथ नफीस को ले जाता है।
      एस.सी. बेदी जी का एक खास पात्र है नफीस। नफीस को ज्यादातर उपन्यासों में हास्य और कम बुद्धि के पात्र के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है।
"आप भी कमाल करते हैं भाईजान।"-इकबाल मुस्कुराता हुआ बोला,-" अगर इसी तरह डरते रहे तो खाक जासूसी करेंगे। मैं तो आपको पक्का जासूस बनाना चाहता हूँ।"
"जासूसी गयी भाड़ में और तेल लेने भी। अपुन को अपनी जान प्यारी है। तुमको मरना है तो जाओ मरो।"

   इकबाल को यहाँ एक स्त्री मिलती है लेकिन‌ इस दौरान नफीस गायब  हो जाता है।
    इकबाल के हाथ यहाँ नेन्सी‌ लगती है और नफीस खो जाता है। राजन-इकबाल के हाथ नेन्सी एक प्रमुख गवाह है, लेकिन एक दिन वह भी रहस्यम तरीके से मृत पायी जाती है।
"समझ नहीं आया।"- इकबाल बोला," चादर पर खून के धब्बे थे और लाश पर एक भी घाव नहीं है।"    
      वहीं राजन- इकबाल को पता चलता है की शहर प्रसिद्ध डाॅक्टर गुप्ता एक रिसर्च के दौरान पागल हो गया और वह पागलखाने में बंद है।
    फिर यहीं से राजन-इकबाल पुनः एक-एक कड़ी जोड़ते हुये मुख्य अपराधी तक पहुंचते हैं। और इस पुरे घटनाक्रम में इंस्पेक्टर बलबीर उनका साथ देता है।
     उपन्यास का कथानक जैसे-जैसे आगे बढता है उसी के साथ नये पात्र जुड़ते चले जाते हैं, लेकिन उपन्यास में यह पता नहीं चलता की आखिर कहानी क्या है। उपन्यास के उतरार्ध में कहानी समझ में आती है।
    उपन्यास में बहुत से ऐसे घटनाक्रम है जिनके विषय में‌ कुछ भी पता नहीं चलता की यह कैसे  घटित हुये 'राजन-इकबाल' को इनकी सूचना कैसे मिली?
उपन्यास शीर्षक-
उपन्यास का शीर्षक है 'बकरे की करामात' लेकिन उपन्यास में इस शीर्षक का कोई विशेष महत्व दृष्टिगत नहीं होता। बकरे का सिर्फ वर्णन ही है स्वयं बकरा कहीं उपस्थित नहीं है। शीर्षक आकर्षित करना वाला अवश्य है पर सार्थक नहीं है।
   वहीं बात करें सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'बंदर की करामात' की तो वहाँ तो बंदर नाम का एक पात्र (जुगल किशोर) उपस्थित है।  
विशेष-
- प्रस्तुत उपन्यास में कहीं भी राजन- इकबाल की सहयोगिनी 'शोभा-सलमा' का वर्णन नहीं है।
      प्रस्तुत उपन्यास एक लघु बाल उपन्यास है। इसकी कहानी बच्चों के अनुरूप तो ठीक है, व्यस्क वर्ग के लिए कहानी तार्किक नहीं है। उपन्यास में छोटी-छोटी गलतियों‌ की संख्या काफी है जो कथा को प्रभावित करती है।
   मनोरंजन की दृष्टि से उपन्यास एक बार पढा जा सकता है, उपन्यास में‌ कोई स्मरणीय बात नहीं है।।
उपन्यास-   बकरे की‌ करामात
लेखक    - एस. सी. बेदी
प्रकाशक-  राजा पॉकेट बुक्स

एस. सी. बेदी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
हेरोइन- एस. सी बेदी (अंतिम उपन्यास)

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1 comment:

  1. राजन इकबाल के काफी बाल उपन्यासों में मैंने ये बात देखी है कि काफी चीजें बस नायकों विशेषकर राजन को पता होती है। कैसे का कोई उत्तर नहीं मिल पाता है। सटीक आलेख।

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