जहाँ हर लाश बस राख थी
राख- जितेन्द्र नाथ
राख- जितेन्द्र नाथ
लोकप्रिय जासूसी साहित्य में नये लेखकों का पदार्पण से यह तो तय हो जाता है कि इस क्षेत्र का भविष्य अभी उज्ज्वल है।
जितेन्द्र नाथ का प्रथम मौलिक उपन्यास 'राख' किंडल पर पढा, आज उसी उपन्यास की यहाँ चर्चा करते हैं।
एक काव्य संग्रह और एक जेम्स हेडली चेईज के उपन्यास के अनुवाद के पश्चात जितेन्द्र नाथ जी अपने मौलिक लेखक के साथ उपन्यास साहित्य में पदार्पण किया है। वह भी मर्डर मिस्ट्री के साथ। उपन्यास का कथानक आरम्भ होता है प्रेम नगर की एक सुनसान जगह पर लाश मिलने से। अभी यह मर्डर मिस्ट्री हल नहीं होती की एक और लाश सामने आती है। हर लाश जली हुई अवस्था में होती है और सबूत के तौर पर सिर्फ राख मिलती है।
पुलिस इंस्पेक्टर रणवीर के लिए यह चुनौती है-
वह लोग इसे आत्महत्या मानने के लिए तैयार नहीं हैं।-
रणवीर ने धीर-गंभीर आवाज में बोलना शुरू किया । “हमारे पुलिस स्टेशन की हद में पिछले तीन-चार दिनों में दो लाशों का मिलना और बेहद हौलनाक वारदातों का घटित हो जाना हमारे पुलिस स्टेशन की रेपुटेशन के लिए अच्छा नहीं हैं । इस मामले को लेकर एसपी ऑफिस में आज ही मेरी पेशी लग जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।”
अभी इंस्पेक्टर रणवीर एक केस को हल नहीं कर पाता तभी एक और लाश मिलती वह भी राख बन कर।
एक- दो और फिर तीसरी लाश ने पुलिस विभाग के सामने मानो एक चुनौती पैदा कर दी। “मुझे कोई शौक थोड़े ही है, यार ! अब की बार लगता है एक अजीब अहमक से पाला पड़ा है । साला, कहीं कोई मोटिव नहीं, कोई अदावत नहीं । अजब कहानी है । बस लाशें हैं और सुराग के नाम पर सिर्फ राख ।”
“यहाँ तो राख नहीं है, जैसे पहले वाले दो केसों में मिली है ।”
- क्या पुलिस विभाग यह केस हल कर पाया?
- क्या रहस्य था 'राख' का?
- कौन था कातिल?
- वह कत्ल क्यों कर रहा था?
यह सब तो उपन्यास पढ कर ही जाने जा सकते हैं?
यहाँ मुझे यह अच्छा लगा की उपन्यास में पुलिस की परिस्थितियों का अच्छा चित्रण है। पुलिस विभाग पर अतिरिक्त दवाब आता है, जब वह किसी केस को नहीं नहीं कर पाते। यहाँ भी ऐसी परेशानी को व्यक्त किया गया है-
“यही तो मुसीबत है । पुलिस की हालत एक ऐसे पहलवान की तरह है जिसके दोनों हाथ बाँधकर कह दिया जाता है कि अब वह दांव लगाकर दिखाए । वह एक ऐसे धावक की तरह है, जिसके पाँव बंधे हुए हैं और उसे दौड़ में फर्स्ट आने का फरमान सुनाया जाता है । उसके हाथ में डंडा है, पर उससे उम्मीद की जाती है कि मुकाबला पिस्तौल और एके सैंतालीस से जीतकर दिखाये ।” रणवीर बड़बड़ाया ।
उपन्यास में मुख्यतः पुलिस विभाग का ही चित्रण है। और उस में भी इंस्पेक्टर रणवीर का। वह एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है। जिसके लिये यह केस एक चुनौती की तरह है।
‘इन हरामजादों को पता नहीं कि मैं आदमी ज़रा दूसरे किस्म का हूँ ।’ रणवीर ने मन-ही-मन भभकते हुए फ़ोन ऑफ कर जेब में रख लिया ।
उपन्यास में सब से अच्छी बात यह लगी की इसमें नायक पुलिस है। कहीं कोई डिटेक्टिव नहीं है। पुलिस की कार्यशैली और डाॅक्टर रिपोर्ट ही कहानी को आगे बढाने में सहायक हैं।
उपन्यास ने कुछ रोचक संवाद-
-जब वजीर सामने वाले राजा के हाथ बिक जाए तो प्यादों को हलाल होना ही पड़ता है।
-राजनीति जब धर्म की पटरी से उतरकर अधर्म के साथ हिंडोले में झूलने लगे तो जो कुछ भी न हो जाये वही अच्छा।
यह 'शोरे-गोगा' क्या है?
रणवीर ने दिनेश को बुलाकर इस बारे में उसको निर्देश दे दिये कि अखबारों में उस लाश के बारे में ‘शोरे गोगा’ का इश्तिहार जल्द-से-जल्द हर हाल में निकल जाए।
उपन्यास मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। उपन्यास की विशेषता यह है की लेखक ने तकनीक और मेडिकल रिपोर्ट को आधार बना कर अच्छा प्रयोग किया है।
हालांकि अतिशय प्रयोग के कारण उपन्यास थोड़ा नीरस हो गया है। अगर कुछ हल्के-फुल्के संवाद आदि होते तो कुछ रोचकता बनी रहती।
अगर आप आधुनिक दृष्टिकोण और तकनीक इत्यादि पसंद करते हैं, वैसे यह मर्डर मिस्ट्री के हिसाब से पूर्णतः उचित भी है, उपन्यास आपको पसंद आयेगा।। उपन्यास- राख
लेखक - जितेन्द्र नाथ
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
प्रकाशन तिथि-
राख पढ़ने की इच्छा है...जल्द ही इसे पढ़ता हूँ.... आपका लेखक किताब के प्रति रोचकता जगाता है....आभार...
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