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Friday, 3 July 2020

343. काली - नरेन्द्र नागपाल

जब विक्षिप्त खून बदला लेने निकला
काली- अर्जुन नागपाल
अर्जुन नागपाल सीरीज


- क्या कोई खून (रक्त, Blood) भी कोई दहशत मचा सकता है?
- क्या कोई खून भी बदला ले सकता है ?
- क्या कोई खून भी कातिल हो सकता है?
- मनुष्य के शरीर में दौड़ते रक्त की रक्तरंजित कहानी है -काली
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में बहुत कम उपन्यास हैं जो कुछ अलग हटकर लिखे गये हैं। अधिकांश उपन्यास एक निश्चित पैटर्न पर ही आधारित होते हैं, बस प्रस्तुतीकरण अलग हो जाता है। हालांकि ऐसी बात नहीं की कुछ नया और अलग हटकर लिखा नहीं गया, लिखा गया है लेकिन बस मेरी दृष्टि से चूक गया। (हां, अगर आपको कुछ अलग हटकर उपन्यास मिले तो कमेंट कर जरूर बतायें)
     नरेन्द्र नागपाल जी ने अपने उपन्यास 'काली' में कुछ अलग लिखने का प्रयास किया है और यह प्रयास सराहनीय है। यह कितना सफल रहा है यह पाठक के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, मुझे उपन्यास बहुत पसंद आया।  क्या आपने टाइगर का उपन्यास 'लाश की जिंदा आंखें' और 'करिश्मा आँखों का' का उपन्यास पढे हैं ?  इन दोनों उपन्यासों की थीम अलग थी ठीक उसी तरह 'काली' उपन्यास की थीम अलग है, अलग हटकर है।

'काली' उपन्यास की कहानी एक विक्षिप्त हत्यारे की है जो चुनौती देकर, तय समय देकर कत्ल करता है लेकिन मजे की बात यह है यह सब 'खून' करवाता है। जी हां, खून, वह खून जो किसी के अंदर है। यह मृत आदमी के जिंदा खून की कहानी है।
पर खून अभी भी जिंदा था और किसी के दिमाग में अभी भी गोलियों की आवाज बन कर दौड़ रहा था।
पर किसके दिमाग में? 
     मृत आदमी का जिंदा खून और विक्षिप्त हत्यारे की खोज में निकलता है जासूस अर्जुन नागपाल। लेकिन वह भी किस्मत का मारा। अर्जुन स्वयं एक ऐसे जाल में जा फंसता है जहाँ सब उसके दुश्मन होते हैं और वह स्वयं  अपराधी। क्योंकि उसने अपराध ही ऐसाा कर दिया था।
    अब इसे अर्जुन की बद किस्मती ही कहा जायेगा कि वो गलती से उस घर की घण्टी बजा गया जिसकी आवाज सीधे एक मंत्री के घर और एक कमिश्नर के घर सुनी गयी।
कुल मिलाकर अर्जुन नागपाल ने सारा जहाँ अपना दुश्मन बना लिया था।
इस जाल से अर्जुन कैसे निकला और कैसे असली अपराधी तक पहुंचा यह तो उपन्यास पढने पर ही पता चलता है। 

      मेरे विचार से Split Personality पर लोकप्रिय साहित्य में बहुत कम उपन्यास लिखे गये हैं। 'काली' Split Personality पर आधारित एक विक्षिप्त हत्यारे और प्रतिशोध पर आतुर 'रक्त' की रोचक कहानी है।
जासूस अर्जुन तक स्वयं इस जाल में ऐसा उलझता है की अंत तक वह भी एक मुजरिम नजर आता है, सिर्फ वही नहीं अन्य पात्र भी इतने रहस्यमयी हैं‌ की समझ में नहीं आता कब कौन क्या कर जाये।
उपन्यास का कथानक भी इतना उलझन वाला है की अंत तक कुछ समझ नहीं आता है। कहानी रफ्तार से चलती है और सस्पेंश से भरी हुयी चलती है।

सस्पेंश वाला उपन्यास-
         उपन्यास सस्पेंश से भरपूर है, हर पृष्ठ और हर पात्र एक नया सस्पेंश लेकर उपस्थित होता है। जहाँ पाठक को लगता है की यह असली मुजरिम है वहीं एक नया ट्विस्ट, एक नया मोड़ आ जाता है।
देव सिंह की खोपड़ी सायं-सायं हो रही थी।
पहला सस्पेंश खत्म नहीं हो रहा था कि पण्डित हरिनारायण नया सस्पेंश लेकर खड़ा हुआ था।


एक विक्षिप्त हत्यारा-
         कहानी एक विक्षिप्त हत्यारे की है जो गुड़गांवा में लगातार हत्याएं कर रहा है और वह भी चुनौती के साथ लेकिन उसे पकड़ने में पुलिस असफल रहती है।
"अभी 10:10 हुये हैं। उसने 12:40 का टाइम दिया है। अगर आप 12:40 तक मेरे पास नहीं पहुंचे न...तो फिर मैं नहीं बचूंगी...न..नहीं बचूंगी मैं, वो 12:40 पर मेरी हत्या कर देगा।"
आप किसकी बात कर रही हैं, जो 12:40 पर आपकी हत्या कर देगा?"
"म..मैं उसे नहीं जानती। कोई उसे नहीं जानता। पूरे गुड़गांवां में उसका आतंक फैला है। उसका जब दिल करता है किसी को भी फोन कर देता है। उसका मर्डर कर देने का चैलेंज देता है और फिर.. और फिर"- राखी का स्वर जैसे शून्य से आ रहा था।- " वो मर्डर कर देता है। वो मेरा भी मर्डर कर देगा। वो सबका मर्डर कर देता है...वो बड़ा ही अजीब हत्यारा है वो...अजीबो गरीब विक्षिप्त हत्यारा है वो।"

    आखिरी वह हत्याएं क्यों कर रहा था?
    कौन था वह विक्षिप्त हत्यारा?
    क्या जासूस अर्जुन उसे पकड़ पाया?

हास्य रस-

         उपन्यास संस्पेंस और रोमांच से भरपूर है लेकिन कहीं कहीं हास्य का अवसर भी मिल ही जाता है हालांकि यह अवसर कम हैं फिर भी एक उदाहरण देख लीजिएगा-
"बेटी मैं पण्डित हरिनारायण। नैना का मुह बोला बाप।"
"बाप। वो भी मुँह बोला। मुँह बोला भाई सुना है, बेटा सुना है... बाप भी होता है।"
"होता है बेटी, होता है। अब तो लड़कियां मुँह बोला पति भी बनाने लगी हैं। जब तक दिल किया मुँह से बोला। फिर धक्का देकर बाहर निकाल दिया।"

संवाद-
      उपन्यास के कुछ रोचक संवाद भी यहाँ प्रस्तुत हैं।
- औरत और गिरगिट में यही फर्क होता है। गिरगिट जरूरत के हिसाब से रंग बदल लेता है और औरत रंग के हिसाब से जरूरत बदल लेती है।
- शाबास, चित्त भी तेरी, पट भी तेरी और दुल्ला भी तेरे बाप का।
- शक के सुराग पर कानून आगे बढता है।


हर पात्र एक पहेली-

        उपन्यास का हर एक पात्र स्वयं में एक पहली की तरह नजर आता है। जो पात्र कुछ समय पहले आपके समक्ष एक सहृदय नजर आता है वही आपको कुछ समय पश्चात क्रूर नजर आयेगा। आप जिस से कभी नफरत करेंगे उस पर बाद में दया करेंगे और फिर उसी पर नफरत भी आयेगी।
जासूस अर्जुन भी एक रहस्यमय पहेली बन कर नजर आता है।
"अरे! तह तो अर्जुन है, अर्जुन नागपाल।"- मुखी के होंठों से निकला।
"वो जासूस। मुकद्दर का मारा, मुकद्दर से हारा वो जासूस जब कुछ नहीं करता तो कानून उसका दुश्मन बन जाता है। जब कुछ करता है तो कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।"- एक वार्ड बाॅय बोला।


शकुंतला देवी का रहस्य किसी की समझ में नहीं आता। उपन्यास का आरम्भ इसी पात्र से होता है और यह इतने रंग बदलती है की पाठक हैरत रह जाता है। समझ में ही नहीं आता की इस महिला का वास्तविक रूप क्या है।
"साली अजीब औरत है।"- मनीराम बड़बड़ाता जा रहा था-"पहले कहती रही .....शर्मा जिंदा है, वही हत्यारा है..मुँह बंद रखने के वास्ते नोट देती रही..फिर कहती वो हत्या करता पकड़ा जाये तो उसे गोली मार देना...अब कह रही है कि .... शर्मा जिंदा ही नहीं...वह खुद ही उसकी हत्या कर चुकी है...पता नहीं क्या घुण्डी़ है..क्या हकीकत है?"- अगले ही पल इंस्पेक्टर मनीराम शंकर हवेली से बाहर निकलता अपने बाल नोचता जीप की तरफ बढ रहा था।

बच्चू यादव भी एक अलग ही किरदार है-
       बच्चू तिवारी साठ के लपेटे में पहुंचा हुआ उम्र दराज शख्स था। जिसके शरीर पर खद्दर का कुर्ता, ऊपर भूरे रंग की बास्केट तथा पाजामा था। ..........बच्चू तिवारी के चेहरे पर चन्द्रशेखर आजाद जैसी मूंछे थी जिसका बाया पहलू हर वक्त वो उपर की तरफ उमेठता नजर आता। वह उसकी खास आदत थी।
      इंस्पेक्टर देव सिंह राजपूत का किरदार बहुत सशक्त होकर सामने आया है। वह सत्य तक पहचने के लिए अपना सर्वस्व दाव पर लगा देता है।

उपन्यास के पात्र-
नाम पढकर लग सकता है की उपन्यास में पात्र ज्यादा हैं लेकिन जब महत्वपूर्ण पात्रों की संख्या ज्यादा नहीं है।

अर्जुन नागपाल- एक जासूस
नैना- अर्जुन की पूर्व प्रेमिका
देव सिंह राजपूत- पुलिस इंस्पेक्टर
राधा- देव सिंह की पत्नी
जिंकी- देव सिंह की बेटी
सुमत चड्ढा- A.C. P.
अर्चना- सुमंत चड्ढा की पत्नी
काली - एक विशेष पात्र
शकुंतला देवी- नालापुर की विधायिका
लूका- शकुंतला देवी का बाॅडीगार्ड, राजदार
रमैया- नौकरानी
हरिनारायण शर्मा-
देवी सिंह- हरिनारायण शर्मा का पौत्र
बलवीर सिंह- हरिनारायण शर्मा का पुत्र
पुलिस विभाग से- जगदीश मुखी (S.I.), मनीराम,
नारंग - पुलिस कमिश्नर) शरण शर्मा, दयाल(सब इंस्पेक्टर)
पोपली निगम- इंस्पेक्टर
श्यामा आंटी- नैना की पड़ोसन
राखी शाह- न्यूज रिपोर्टर
न्यूज रिपोर्टर- संजय चुंग, अजय मलकानी, मीरा नागिया
बच्चू तिवारी- राजनेता
अनवर, सिकंदर, गोगा- बच्चू तिवारी के गुर्गे

उपन्यास का प्रकाशन वर्ष क्या है यह तय करना कुछ मुश्किल है क्योंकि लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में उपन्यासों पर प्रकाशन वर्णन नहीं लिखा जाता था, कारण यह था कि पाठक को यह पता नहीं लगने दिया जाता था कि उपन्यास नया है या पुराना।
'काली' उपन्यास के कुछ बिंदु इसके प्रकाशन वर्ष की तरफ इशारा करते हैं।
"...हवेली तो मैंने 1995 में ही छोड़ दी थी, जबकि तब 2000 चल रहा था।"
तो यह उपन्यास सन् 2000 के बाद का ही है। बाकी इसमें मोबाइल आदि का वर्णन और अच्छा प्रयोग है जो समय निर्धारण में सहायक है।

उपन्यास कुछ गलतियाँ है, ऐसा होना कोई बड़ी बात भी नहीं है, कहीं न कहीं कुछ गलतियाँ रह ही जाती हैं। लेकिन कहानी के स्तर पर अगर आप इस उपन्यास को पढते हैं तो आप रोमांच के एक नये पारावार में डूब जायेंगे।

इंस्पेक्टर देव सिंह को बहुत जगह 'देवी सिंह' लिखा है और कहीं 'जय सिंह' लिखा है।
'काली' एक अलग तरह के कथानक पर आधारित रोमांच और सस्पेंश से भरपूर मनोरंजन उपन्यास है। पाठक आदि से अंत तक रहस्य के जाल में उलझा नजर आता है। उपन्यास इतना मनोरंजक है की एक ही बैठक में पढा जा सकता है।
अगर आप कुछ अलग हटकर, कुछ विशेष और मनोरंजक पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें।

उपन्यास- काली
लेखक-   नरेन्द्र नागपाल
प्रकाशक- N2 Publication

पृष्ठ-         272

6 comments:

  1. आपकी समीक्षा पढ़ने के लिए मजबूर कर रही है, उपलब्ध होते ही पढ़ूंगा क्योंकि बिना वजह तो आप प्रशंसा नहीं करते।

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  2. बहुत ही शानदार लिखा है गुरप्रीत भाई आपने।
    मैं इस विषय पर ज्यादा तो नहीं बोलूंगा फिर भी हो सकता है कि नरेंद्र नागपाल कोई अलग लेखक हो।
    मेरी जानकारी में यह भी है कि नागपाल एक ट्रेड नाम था जो कि राधा पॉकेट बुक्स का था।
    और एक समय तक नागपाल के नाम से आज के दौर के लोकप्रिय उपन्यासकार अनिल मोहन ने इस ट्रेड नाम के लिये बहुत लिखा था।
    एक शानदार घटना ये भी रही कि 1990 के आसपास अनिल मोहन जी ने देवराज चौहान नाम का एक एन्टी हीरो बनाया था, और उसने जो मकबूलियत प्राप्त की वो अपने आप में एक मील का पत्थर साबित हुई, कि प्रकाशक ने अवसर का लाभ उठाकर अनिल मोहन द्वारा लिखी उपन्यास, जो नागपाल के नाम से थे, को दोबारा से एडिट करवाकर देवराज शृंखला में प्रकाशित करवाये थे।
    जैसे जेल से फरार, बदमाशों की टोली, पाप का घड़ा व टक्कर का आदमी उसी तरह के उपन्यास थे।
    अर्जुन भरद्वाज के नाम से इसी तरह के उपन्यासों वाली एक श्रृंखला अनिल जी ने भी लिखी थी।
    बाकी और कभी लिखेगे।

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    1. यह ट्रेड नाम नहीं है, वास्तविक लेखक हैं।

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  3. उपन्यास काली जिस तरह की कहानी है । ऐसे उपन्यास मुझे बहुत पसंद आते हैं । क्योंकि ऐसे टॉपिक पर लिख पाना बहुत मुश्किल है । क्योंकि कहानी काफी घुमावदार होती हैं । उपन्यास का हर किरदार संगीन नजर आता है । पर आप अंत से पहले कातिल को नहीं पकड़ सकते । नरेंद्र नागपाल लेखक सर ने काफी अच्छा उपन्यास लिखा है । क्योंकि गुरप्रीत सर जिस उपन्यास की तारीफ करते हैं । वह काफी कम उपन्यास होते हैं । काली उपन्यास ने मुझे बेसब्र कर दिया है । क्योंकि ऐसे उपन्यास मुझे बहुत पसंद है । ऐसा अभी तक एक ही उपन्यास पढ़ा है ।जिसमे कातिल पहले ही बता देता है । की वह किसका कत्ल करेगा । वेद प्रकाश शर्मा सर उपन्यास जादू भरा जाल । में भी एक ऐसी कहानी लिख रहा हूं । पर अभी समय लगेगा । कहानी का नाम साईको है ।

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  5. बहुत शानदार समीक्षा गुरप्रीत भाई. इसे पढ़कर उपन्यास पढ़ने की दिलचस्पी जाग गई पर टाइगर के 'लाश की जिन्दा आँखें' और 'करिश्मा आँखों का' पढ़ी हैं. सचमुच बहुत हटकर और शानदार उपन्यास हैं.

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