Pages

Wednesday, 10 June 2020

330. हमारी गलियां- कुशवाहा कांत

एक जमींदार की कहानी
हमारी गलियां- कुशवाहा कांत
परतंत्र भारत में गांवों में दो वर्ग विशेष थे, हालांकि यह वर्ग गांव ही नहीं, शहर और देश और देश से आगे विश्व में भी है। एक वर्ग है शोषणकर्ता का और दूसरा वर्ग है शोषित जनता का। शोषकवर्ग किसी न किसी तरीके से अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है उसके लिए चाहे उसे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

     चौबीस मार्च सन् 1945 और फिर उसके बाद के कुछ दिनों पश्चात कवि महोदय को कहीं कवि सम्मेलन में जाना होता है। कवि महोदय को रास्ते में वृद्ध भिखारी महिला और पुरुष मिलते हैं और वे अपनी कहानी कवि महोदय को सुनाते हैं। प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः उन दो भिखारियों के जीवन की करूण कथा है।
अब बात करते हैं उपन्यास के मूल कथानक की जो की एक सामंतशाही ठाकुर पर केन्द्रित है। 

निरंकुश राज्य था ठाकुर यशपाल सिंह का उसके इलाके में। कोई उनके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता कर सकता था। उसके कार्यों में हस्तक्षेप करना अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना होता था। भला, फिर कौन दुस्साहस करता। (पृष्ठ-40).      ठाकुर अत्याचारी था, जबरन लगान वसूल करना, अपनी हवस पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिरना यही ठाकुर की आदतें थी। लेकिन उस परिवार में भी उसकी पत्नी और उसका पुत्र सहृदय स्वभाव के थे। 
       शीला- ठाकुर की तीसरी पत्नी, उसके विचार राष्ट्रीय थे। धनिक वर्ग में होने पर भी उसे धनिकों से हार्दिक घृणा थी और सहानुभूति गरीबों के प्रति। (पृष्ठ-47)
       जहाँ उपन्यास में एक तरफ सामंतशाही अत्याचार है तो वहीं कुछ लोग इस शोषण के विरुद्ध भी खड़े हो गये थे चाहे उसका परिणाम कुछ भी रहा हो- "जो कुछ हो, जाकर ठाकुर से कह देना कि गरीबों की भी इज्जत होती है और इज्जत इतनी सस्ती नहीं होती जितना वह समझते हैं।" (पृष्ठ-42). 
       यह चिंगारी भारत के नौजवानवर्ग में भी और वह भी देश की स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध था। ऐसा ही स्वभाव था ठाकुर के पुत्र राजेन के मित्र नरेन का- जिस तरह देश के हजारों पागल युवक देशप्रेम में उन्मत्त होकर जेलखाने में खड़े थे, उसी तरह नरेन भी जेल आबाद कर रहा था। (पृष्ठ-75)
         अगर हम किसी के घर को जलाने की कोशिश करते हैं तो तय है वह आग एक न एक दिन हमारे घर को भी जला देगी। ठाकुर की लगाई आग में न जाने कितने घर जल गये लेकिन एक दिन उसका घर भी उसी की लगाई आग की चपटे में आ गया।
        उपन्यास में राजेन और नरेन का किरदार दो‌ मित्रों से बढकर भाईयों की तरह है जो हर सुख दुख में शामिल है। वहीं राजेन की माँ शीला का भी राजेन के प्रति व्यवहार और सहयोग प्रशंसनीय है।
       मल्लम चौधरी का किरदार आरम्भ में चाहे सामान्य कृषक का है लेकिन समयानुसार वह भी बगावत पर उतर आता है।
       अंत में नरेन की माँ का किरदार कुछ अजीब सा कर दिया वह कुछ अजीब सा लगता है। वह अपना सबकुछ खत्म हो जाने पर भी ठाकुर के प्रति सहानुभूति रखती है और उससे भी बढकर उसकी सहयोगी हो जाती है।
उपन्यास एक सामंतवादी ठाकुर के चरित्र पर लिखा है पर साथ-साथ में उपन्यास में प्रेम कथा है और देशप्रेम का भी वर्णन मिलता है।
उपन्यास के मुख्य पात्र
शीला- ठाकुर की तृतीय पत्नी
यशपाल सिंह- राजापुर गांव के ठाकुर
राजेन- ठाकुर का पुत्र
अयोध्या सिंह- ठाकुर का विशेष कारिंदा
मल्लम- एक किसान
लता - ‌मल्लम की पुत्री
नरेन- राजेन का मित्र
वीणा - नरेन और राजेन की मित्र

शीर्षक-
         शीर्षक किसी भी कथानक को कम शब्दों में व्यक्त करने का माध्यम है। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास के मूल कथानक से शीर्षक का तारतम्य नहीं बैठता हालांकि उपन्यास के अंत में शीर्षक शब्द 'हमारी गलियाँ' कप

       उपन्यास के समापन की बात करें तो शायस लेखक इसे दुखांत ही रखना चाहता था, क्योंकि दुखांत कथानक एक टीस छोड़ जाता है और वह टीस पाठक को लंबे समय तक सालती है। इसी दृष्टिकोण के आधार पर इस उपन्यास का समापन दुखांत है या लेखक की दृष्टि में और भी कोई कारण हो सकता है, लेकिन यह समापन की घटना मूल कथा से मेल नहीं खाती।
        अगर किसी पाठक ने कुशवाहा कांत का उपन्यास 'अपना-पराया' पढा है तो उसे पता चल गया होगा की दोनों उपन्यासों की मूल कहानी और घटनाएं वही है। यहाँ तक की एक दो गौण पात्रों के नाम भी समान है।
कुशवाहा कांत के अब तक पढे उपन्यासों में तीन बाते सामान्यतः मिलती हैं। एक तो प्रेम का चित्रण और वह भी उनकी विशेष शैली में।
        दूसरा इनके उपन्यासों में देशप्रेम का चित्रण भी मिलता है। कहीं कहीं तो चाहे कोई घटनाक्रम देश से संबंधित न भी हो तो भी कोई न कोई पात्र देश के तात्कालिक स्थिति (परतंत्रता) पर चिंतन करता नजर आता है।
        तीसरा इनका उपन्यास मिर्जापुर से संबंधित होता है। या कहीं न कहीं इनके उपन्यासों में मिर्जापुर अवश्य आता है।
         'हमारी गलिया' कुशवाहा कांत द्वारा रचित एक सामाजिक उपन्यास है। यह जमींदार वर्ग द्वारा कृषक वर्ग पर किये जा रहे अत्याचारों को उजागर करता एक मार्मिक उपन्यास है। इन अत्याचारों के अतिरिक्त भारत के युवाओं में देशप्रेम का चित्रण भी मिलता है।
सामाजिक उपन्यास पाठकों के लिए यह एक रोचक उपन्यास है।  उपन्यास- हमारी गलियां
लेखक-    कुशवाहा कांत
प्रकाशक- सुमन पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-        199

No comments:

Post a Comment