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Saturday, 9 May 2020

312. मेरी प्रिय कहानियाँ- अमृतलाल नागर

ग्यारह कहानियों का संकलन
मेरी प्रिय कहानियाँ- अमृतलाल नागर

          हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार अमृतलाल नागर जी का एक कहानी संग्रह किंडल पर पढा। इन दिनों lockdown के चलते रूम पर ही हैं, तो किताबें एक अच्छे दोस्त की तरह साथ निभा रही हैं।
विभिन्न प्रकार की किताबें पढते-पढते कहानी संग्रह पढने का मन किया तो अमृतलाल नागर जी का कहानी संग्रह 'मेरी प्रिय कहानी' नाम से दिखाई दिया तो यही पढना आरम्भ किया।
         इस संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ हैं और उसमें से अधिकांश कहानियाँ मुस्लिम परिवेश से संबंधित है।
          दो शब्द अमृतलाल नागर जी के लिए कहानी संग्रह से- अमृतलाल नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा है वह साहित्य की निधि बन गया है। सभी प्रचलित वादों में निर्लिप्त उनका कृतित्व और व्यक्तित्व कुछ अपनी ही प्रभा से ज्योतित है। उन्होंने जीवन में गहरे पैठकर कुछ मोती निकाले हैं और उन्हें अपनी रचनाओं में बिखेर दिया है। उपन्यासों की तरह उन्होंने कहानियाँ भी कम ही लिखी हैं परन्तु सभी कहानियाँ उनकी अपनी विशिष्ट जीवन-दृष्टि और सहज मानवीयता से ओतप्रोत होने के कारण साहित्य की मूल्यवान संपत्ति हैं।


         इस संग्रह की जो कहानी मुझे सबसे अच्छी लगी वह है 'एटम बम'। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर बम गिराये जाने की घटना को आधार बना कर लिखी गयी यह कहानी मानवीय संवेदना को झकझोर जाती है।

     मनुष्य की सत्तावादी भूख कभी कम नहीं होगी, वह अपनी सत्ता के लिए मनुष्य को खत्म करने से भी नहीं हिचकता लेकिन नर्स और डाक्टर सुजूकी जैसे लोग भी इस दुनिया में है जिन्हें विश्वास है एक दिन मनुष्य का हृदय बदलेगा और वह मानवता की राह चलेगा।
        

           हिन्दू-मुस्लिम समाज में परस्पर व्याप्त भेदभाव को लेकर लिखी गयी कहानी है 'मोती की सात चलनियां'। हिन्दू लड़के और मुस्लिम लड़की के प्रेम को आधार बना कर लिखी गयी यह कहानी समाज में धार्मिक भेदभाव खत्म करने का संदेआ देती नजर आती है।
          एक गरीब व्यक्ति के जीवन को आधार बना कर लिखी गयी एक और बेहतरीन रचना है 'गोरखधंधा'। एक छोटा सा परिवार है सतीश का लेकिन बेरोजगारी के कारण उस छोटे से परिवार को चलाना भी कितना मुश्किल काम है यह तो सतीश ही जानता है।
       वह कहता है- आध घण्टे बाद उसने धीरे-से उठकर कहा, “सुनती हो भई, अब ये तकलीफें तो मुझसे नहीं सही जातीं। चलो, कांग्रेस में नाम लिखा लें। मिनिस्ट्री अब खत्म हो गई है। आन्दोलन छिड़ेगा ही। अरे कम से कम जेल में रोटियां तो मिल ही जाएंगी।”

       इस संग्रह की पहली कहानी है 'शकीला की माँ'। एक वेश्या के जीवन को केन्द्र में रख कर लिखी गयी यह कहानी आरम्भ में चाहे सामान्य सी नजर आती है लेकिन इसका अंत बहुत मार्मिक है।
        समय के साथ जब जवानी अपने पैर बुढापे की तरफ बढाती है तो शरीर का आकर्षण खत्म हो जाता है। जिनका घर ही शारीरिक सौन्दर्य से चलता है, सौन्दर्य खत्म होने पर उनका जो हाल होता है वह तो 'शकीला की माँ' ही जानती है।
        'कादिर मियाँ की भौजी' भी एक स्त्री के दर्द की कथा है। एक औरत के लिए अपनी सौतन को सहना कितना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी औरत इस दर्द को सहन करती है।
      एक कहानी है 'सूखी नदियाँ'। एक मृत्यु व्यक्ति की विधवा को सात्वना देने आये, उसके दर्द में सहयोगी बनने आये लोगों पर आधारित है। क्या वास्तव में लोग किसी के दर्द को समझ पाते हैं या मात्र शब्दों की संवेदना ही प्रकट करते हैं, हालांकि कहानी का मुख्य पात्र भी खैर इसी तरह का है।
            एक दिलचस्प कहानी है 'धर्म संकट'। एक वृद्ध व्यक्ति द्वारा अपने पुत्र की शादी के लिए लड़की देखने जाना और उअ लड़की को स्वयं के लिए पसंद कर लेना। हालांकि कहानी का विस्तार और कथानक कुछ अलग है लेकिन कहानी का मूल यही है।
कैसे एक लड़की धर्म संकट से स्वयं निकलती है लेकिन बाकी लोग अभी भी उसी धर्म संकट में हैं।

                     इस संग्रह की जो अंतिम कहानी है वह है 'माँ-बाप और बच्चे'। यह कहानी वर्तमान समय की कटु सच्चाई बयान करती है। माँ-बाप अपने बच्चों की गलतियों को अक्सर नजर अंदाज करते हैं और उसके परिणाम भी गंभीर होते हैं।
          ऐसे ही एक संकट से गुजरती है प्रेमा। वह गलत न होते हुए भी बच्चों द्वारा लगाये गये झूठ आरोपों के कारण गलत ठहरा दी जाती है। माँ- बाप के लिए बच्चे सही होते हैं और उनके घर पर काम करने वाली प्रेमा गलत।
          चारों ओर से हताश प्रेमा यह सोचने लगी कि अपनी न्याययुक्त किन्तु करुण स्थिति के लिए वह किसे दोष दे, माँ-बाप को या बच्चे को?


      अमृत लाल नागर जी की एक चर्चित कहानी 'एक दिल हजार अफसाने' भी इस संग्रह में शामिल है। अनावश्यक विस्तार और घटनाओं के चलते यह कहानी पढते-पढते नीरसता सी छा जाती है। 'कहीं की ईंट, कहीं का रोडा़....' की तरह है यह कहानी। 

"एक ते पचास तलक गनै फिर भूलै फिर लगावै।…हमारे भी दिल है! हि:…हे बैजू, हटाऔ ईका। करौ करक्शन! हमते, यू न होई!…न लाज न सरम! छि:।”- उक्त भाषा शैली होने के कारण कहानी 'छापे के हुरूफ' मुझे समझ में नहीं आयी।
इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ मुझे रूचिकर न लगी, इसका कारण है हर कहानी में अति विस्तार। कहानी का कहीं कोई लय नहीं है, कोई अर्थ नहीं है, बस पृष्ठ दर पृष्ठ भरने का काम नजर आता है।

कहानी संग्रह- मेरी प्रिय कहानियाँ
लेखक- अमृत लाल नागर
प्रकाशक- राजपाल एण्ड संस
ISBN: 978-93-5064-065-4
संस्करण- 2013
पृष्ठ
लिंक- मेरी प्रिय कहानियाँ

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