भारत- पाक के मध्य युद्ध की कहानी।
हीरों का बादशाह- वेदप्रकाश शर्मा,
वेद जी का 21वांं उपन्यास
विजय- अलफांसे का कारनामा
इस माह वेदप्रकाश शर्मा जी का यह तीसरा उपन्यास पढ रहा हूँ। इससे पूर्व टुम्बकटू सीरीज के दो उपन्यास 'खूनी छलावा' और 'छलावा और शैतान' पढे थे। दोनों उपन्यास आकार में छोटे थे और प्रस्तुत उपन्यास भी कहानी और कलेवर में उसी प्रकार का है।
वेद जी के आरम्भिक उपन्यास एक्शन प्रधान होते थे जिनमें कहानी गौण और पात्रों के करतब मुख्यतः दिखाये जाते थे। इस उपन्यास में भी विजय और अलफांसे के करतब देखने को मिलते हैं।
कहानी कोई बड़ी नहीं है। कुछ परिस्थितियों के चलते भारतीय सेना का मेजर बलवंत और कुछ सैन्य दस्तावेज और एक विशेष हीरा पाकिस्तान को प्राप्त हो जाते हैं इन महत्वपूर्ण सूचनाओं के दम पर पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करना चाहता है।
भारतीय सीक्रेट सर्विस उन सैन्य दस्तावेजों को और मेजर बलवंत को वापस लाने की जिम्मेदारी जासूस विजय को सौंपती है।
पूर्वी पाकिस्तान के एक छोटे से गांव में अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी उपस्थित है।
- सैन्य दस्तावेज़ और मेजर बलवंत पाकिस्तान सेना के कब्जे में कैसे आये?
- हीरे का क्या रहस्य था?
- विजय और उसकी टीम ने क्या कारनामे दिखाये?
- अलफांसे पाकिस्तान में क्यों उपस्थित था?
आखिर क्या परिणाम निकला इस कथानक का?
इन प्रश्नों के उत्तर तो उपन्यास पढने पर ही मिलेंगे।
अब उपन्यास के अन्य बिंदुओं पर चर्चा।
उपन्यास में विजय के अतिरिक्त अशरफ और आशा का किरदार भी रखा है और दोनों ही भारतीय सीक्रेट सर्विस के जासूस हैं। उपन्यास में दोनों का एक-एक घटनाक्रम में ही नजर आते हैं इसके अलावा कहीं उनका कोई काम नहीं है।
उपन्यास में कोई विशेष स्मरणीय संवाद नहीं है, अगर है तो सिर्फ एक्शन है।
उपन्यास का शीर्षक चाहे 'हीरों का बादशाह' है लेकिन उपन्यास में मात्र एक ही हीरा है और उसका बादशाह किसे कहें? यह सोच से परे है। क्योंकि बादशाह वाली कोई स्थिति नहीं है।
मेजर बलवंत का फेसमास्क लगा कर हर कोई कहीं भी घूम रहा है और किसी को पता भी नहीं चलता की ये मेजर बलवंत है या कोई और। यह असंभव सा प्रतीत होता है।
उपन्यास में तार्किक स्तर पर बहुत सी गलतियाँ है। कहीं-कहीं तो अचानक से आये घटनाक्रम अनावश्यक से प्रतीत होते हैं। कहीं-कही तो घटनाएं इतनी जल्दी में आरम्भ और खत्म होती ह कुछ समझ में ही नहीं आता और जब कुछ समझमें आने लगता है तो उपन्यास खत्म हो जाता है।
अगर आप कहानी के स्तर य उपन्यास पढना चाहते हैं तो आपको निराशा हाथ लगेगी। अगर वेदप्रकाश शर्मा जी के नाम से और एक्शन के कारण पढना चाहते हैं तो यह लघु उपन्यास आपका ज्यादा समय नहीं लेगा आप पढ सकते हैं। क्योंकि उपन्यास में एक्शन है लेकिन कहीं बोर करने वाले दृश्य नहीं है।
उपन्यास- हीरों का बादशाह.
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
हीरों का बादशाह- वेदप्रकाश शर्मा,
वेद जी का 21वांं उपन्यास
विजय- अलफांसे का कारनामा
इस माह वेदप्रकाश शर्मा जी का यह तीसरा उपन्यास पढ रहा हूँ। इससे पूर्व टुम्बकटू सीरीज के दो उपन्यास 'खूनी छलावा' और 'छलावा और शैतान' पढे थे। दोनों उपन्यास आकार में छोटे थे और प्रस्तुत उपन्यास भी कहानी और कलेवर में उसी प्रकार का है।
वेद जी के आरम्भिक उपन्यास एक्शन प्रधान होते थे जिनमें कहानी गौण और पात्रों के करतब मुख्यतः दिखाये जाते थे। इस उपन्यास में भी विजय और अलफांसे के करतब देखने को मिलते हैं।
कहानी कोई बड़ी नहीं है। कुछ परिस्थितियों के चलते भारतीय सेना का मेजर बलवंत और कुछ सैन्य दस्तावेज और एक विशेष हीरा पाकिस्तान को प्राप्त हो जाते हैं इन महत्वपूर्ण सूचनाओं के दम पर पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करना चाहता है।
भारतीय सीक्रेट सर्विस उन सैन्य दस्तावेजों को और मेजर बलवंत को वापस लाने की जिम्मेदारी जासूस विजय को सौंपती है।
पूर्वी पाकिस्तान के एक छोटे से गांव में अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी उपस्थित है।
- सैन्य दस्तावेज़ और मेजर बलवंत पाकिस्तान सेना के कब्जे में कैसे आये?
- हीरे का क्या रहस्य था?
- विजय और उसकी टीम ने क्या कारनामे दिखाये?
- अलफांसे पाकिस्तान में क्यों उपस्थित था?
आखिर क्या परिणाम निकला इस कथानक का?
इन प्रश्नों के उत्तर तो उपन्यास पढने पर ही मिलेंगे।
अब उपन्यास के अन्य बिंदुओं पर चर्चा।
उपन्यास में विजय के अतिरिक्त अशरफ और आशा का किरदार भी रखा है और दोनों ही भारतीय सीक्रेट सर्विस के जासूस हैं। उपन्यास में दोनों का एक-एक घटनाक्रम में ही नजर आते हैं इसके अलावा कहीं उनका कोई काम नहीं है।
उपन्यास में कोई विशेष स्मरणीय संवाद नहीं है, अगर है तो सिर्फ एक्शन है।
उपन्यास का शीर्षक चाहे 'हीरों का बादशाह' है लेकिन उपन्यास में मात्र एक ही हीरा है और उसका बादशाह किसे कहें? यह सोच से परे है। क्योंकि बादशाह वाली कोई स्थिति नहीं है।
मेजर बलवंत का फेसमास्क लगा कर हर कोई कहीं भी घूम रहा है और किसी को पता भी नहीं चलता की ये मेजर बलवंत है या कोई और। यह असंभव सा प्रतीत होता है।
उपन्यास में तार्किक स्तर पर बहुत सी गलतियाँ है। कहीं-कहीं तो अचानक से आये घटनाक्रम अनावश्यक से प्रतीत होते हैं। कहीं-कही तो घटनाएं इतनी जल्दी में आरम्भ और खत्म होती ह कुछ समझ में ही नहीं आता और जब कुछ समझमें आने लगता है तो उपन्यास खत्म हो जाता है।
अगर आप कहानी के स्तर य उपन्यास पढना चाहते हैं तो आपको निराशा हाथ लगेगी। अगर वेदप्रकाश शर्मा जी के नाम से और एक्शन के कारण पढना चाहते हैं तो यह लघु उपन्यास आपका ज्यादा समय नहीं लेगा आप पढ सकते हैं। क्योंकि उपन्यास में एक्शन है लेकिन कहीं बोर करने वाले दृश्य नहीं है।
उपन्यास- हीरों का बादशाह.
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा