साहित्य का देश कथादेश
साहित्यिक पत्रिका कथादेश का दिसंबर-2019 अंक मिला। जयपुर आवागमन के दौरान दिसंबर माह की चार पत्रिकाएं खरीदी थी। कथादेश, हंस, कादम्बिनी और विज्ञान प्रगति। पत्रिकाएं समसामयिक साहित्यिक और समाज से अच्छा परिचय करवा देती हैं। मैं पहले पत्रिकाएं खूब पढता था लेकिन अब समयाभाव के कारण कभी-कभार पढी जाती हैं, कई बार तो पत्रिकाएं/किताबें खरीद के रख ली जाती हैं और कभी पढी भी नहीं जाती। लेकिन मेरा मानना है की पत्रिकाओं को समय पर पढना ज्यादा प्रासंगिक होता है।
अब चर्चा करते हैं कथादेश पत्रिका के दिसंबर 2019 अंक की।
इस अंक में जो कहानियाँ है वे सब अलग-अलग परिवेश को व्यक्त करती हैं। पहली कहानी 'राजा सुनता है!' शीर्षक से है यह एक लंबी कहानी है जो इटली के लेखक 'इटालो काल्विनो की रचना है।
कलाकारों के शोषण को रेखांकित करती पंकज स्वामी की कहानी 'पानी में फड़फड़ता कौआ' वर्तमान भौतिक वादी समाज का आइना दिखाती है। आज स्मार्ट सीटी तो बना रहे हैं लेकिन इन स्मार्ट सीटी के लोग कितने शोषण वाले हैं इस कहानी को पढकर जाना जा सकता है।
एक पंजाबी कहानी का अनुवाद प्रस्तुत है। केसरा राम नामक लेखक की कहानी 'रामकिशन बनाम स्टेट हाजिर हो!' शीर्षक की कहानी का अनुवाद किया है 'भरत ओळा' ने।
इस अंक की यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी। किसान वर्ग का शोषण अधिकारीवर्ग किस तरह सड करता है इस विषय को लेखक ने बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। किसान को मिलने वाले लाभ का (वह भी नाममात्र) अन्य लोग हड़प जाते हैं और गरीब किसान अपनी किस्मत पर रोता रह जाता है।
दो और कहानी है राजगोपाल सिंह वर्मा की 'जिसे बयाँ न किया जा सके....' और प्रकाश कांत की 'रामधुन' दोनों कहानी पत्रिका के पृष्ठों पर फैली स्याही के कारण पढी न जा सकी ऐसा अन्य रचनाओं के साथ भी हुआ है।
ऋचा शर्मा की कहानी 'शोक' और रेणु मिश्रा की कहानी 'दो दूनी पांच' भी अच्छी है। 'दो दूनी पांच' कहानी महिला वर्ग पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी है।
पत्रिका का विशेष आकर्षण है नामवर सिंह जी पर आधारित देवेन्द्र का संस्मरण 'फलक पर नामवर'। नामवर सच में नामवर ही थे। स्वयं में एक संस्था थे। उनकी छत्रछाया में अनेक पौधे पलवित हुए। इस संस्मरण में बहुत सी खट्टी-मिट्टी याद शामिल हैं।
'विजयदेव नारायण शाही का एक पत्र इलाचन्द्र जोशी के नाम' भी साहित्य की अमूल्य धरोहर पठनीय है। इसके अतिरिक्त रश्मि रावत का आलेख 'क्या घर एक यूटोपिया है।' शीर्षक से है जो ममता कालिया के लेखन पात्रों पर आधारित है।
प्रस्तुत अंक में अन्य स्थायी स्तम्भ, कविताएं और भी बहुत सी पठनीय सामग्री है।
पत्रिका- कथादेश
अंक- दिसंबर-2019
पृष्ठ- 98
मूल्य- 40₹
साहित्यिक पत्रिका कथादेश का दिसंबर-2019 अंक मिला। जयपुर आवागमन के दौरान दिसंबर माह की चार पत्रिकाएं खरीदी थी। कथादेश, हंस, कादम्बिनी और विज्ञान प्रगति। पत्रिकाएं समसामयिक साहित्यिक और समाज से अच्छा परिचय करवा देती हैं। मैं पहले पत्रिकाएं खूब पढता था लेकिन अब समयाभाव के कारण कभी-कभार पढी जाती हैं, कई बार तो पत्रिकाएं/किताबें खरीद के रख ली जाती हैं और कभी पढी भी नहीं जाती। लेकिन मेरा मानना है की पत्रिकाओं को समय पर पढना ज्यादा प्रासंगिक होता है।
अब चर्चा करते हैं कथादेश पत्रिका के दिसंबर 2019 अंक की।
इस अंक में जो कहानियाँ है वे सब अलग-अलग परिवेश को व्यक्त करती हैं। पहली कहानी 'राजा सुनता है!' शीर्षक से है यह एक लंबी कहानी है जो इटली के लेखक 'इटालो काल्विनो की रचना है।
कलाकारों के शोषण को रेखांकित करती पंकज स्वामी की कहानी 'पानी में फड़फड़ता कौआ' वर्तमान भौतिक वादी समाज का आइना दिखाती है। आज स्मार्ट सीटी तो बना रहे हैं लेकिन इन स्मार्ट सीटी के लोग कितने शोषण वाले हैं इस कहानी को पढकर जाना जा सकता है।
एक पंजाबी कहानी का अनुवाद प्रस्तुत है। केसरा राम नामक लेखक की कहानी 'रामकिशन बनाम स्टेट हाजिर हो!' शीर्षक की कहानी का अनुवाद किया है 'भरत ओळा' ने।
इस अंक की यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी। किसान वर्ग का शोषण अधिकारीवर्ग किस तरह सड करता है इस विषय को लेखक ने बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। किसान को मिलने वाले लाभ का (वह भी नाममात्र) अन्य लोग हड़प जाते हैं और गरीब किसान अपनी किस्मत पर रोता रह जाता है।
दो और कहानी है राजगोपाल सिंह वर्मा की 'जिसे बयाँ न किया जा सके....' और प्रकाश कांत की 'रामधुन' दोनों कहानी पत्रिका के पृष्ठों पर फैली स्याही के कारण पढी न जा सकी ऐसा अन्य रचनाओं के साथ भी हुआ है।
ऋचा शर्मा की कहानी 'शोक' और रेणु मिश्रा की कहानी 'दो दूनी पांच' भी अच्छी है। 'दो दूनी पांच' कहानी महिला वर्ग पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी है।
पत्रिका का विशेष आकर्षण है नामवर सिंह जी पर आधारित देवेन्द्र का संस्मरण 'फलक पर नामवर'। नामवर सच में नामवर ही थे। स्वयं में एक संस्था थे। उनकी छत्रछाया में अनेक पौधे पलवित हुए। इस संस्मरण में बहुत सी खट्टी-मिट्टी याद शामिल हैं।
'विजयदेव नारायण शाही का एक पत्र इलाचन्द्र जोशी के नाम' भी साहित्य की अमूल्य धरोहर पठनीय है। इसके अतिरिक्त रश्मि रावत का आलेख 'क्या घर एक यूटोपिया है।' शीर्षक से है जो ममता कालिया के लेखन पात्रों पर आधारित है।
प्रस्तुत अंक में अन्य स्थायी स्तम्भ, कविताएं और भी बहुत सी पठनीय सामग्री है।
पत्रिका- कथादेश
अंक- दिसंबर-2019
पृष्ठ- 98
मूल्य- 40₹
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