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Friday, 22 March 2019

180. सम-प्रीत- एम. इकराम फरीदी

समलैंगिकता से उपजी एक मर्डर मिस्ट्री
समप्रीत- एम. इकराम फरीदी, उपन्यास

मनोज ने अंकिता के गले में हाथ डाला और भीतर चलते हुए बोला-"आज मैं बहुत खुश हूँ सखी।"
अंकिता ने गर्दन मोड़कर मनोज को देखा और चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान लाती हुयी बोली -"ऐसा क्या? "
मनोज रहस्यपूर्ण मुस्कान के साथ बोला -"कल मेरे पति आ रहे हैं?
"व्हाट, क्या मजाक है यह?"
"मेरी जान यह मजाक नहीं है, यह मेरी सच्चाई है, जिससे अभी तक तुम वाकिफ नहीं थी लेकिन अब हो जाओगी।" वह फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए बोला "आज मैं बहुत खुश हूँ। तुमसे शादी करके मैं‌ जरा भी खुश नहीं रहा हूँ क्योंकि मुझे तुम्हारी नहीं बल्कि एक पति की जरूरत थी।"

           उक्त कथन एम. इकराम फरीदी जी के उपन्यास 'सम-प्रीत' उपन्यास का है। जहाँ एक पुरुष अपने लिए एक पति की तलाश में है।
              जब एक पत्नी को पता चलता है की उसका पति समलैंगिक है तो उसके मन पर क्या बीतती है। एक पत्नी जो अपने पति के साथ अनेक ख्वाब संजोय बैठी होती है उसके सारे ख्वाब एक झटके से टूट जाते हैं। यही अंकिता के साथ होता है। जब उसे पता चलता है की उसका पति एक समलैंगिक है और हद तो तब हो जाती है जब मनोज अपने तथाकथित पति सन्नी को घर ले आता है और उस पर मनोज चाहता है की वह सन्नी की आवभगत करे। ऐसी परिस्थितियों में अंकिता को याद अपना प्रेमी ऋषभ।

             इस कथानक के मुख्य चार पात्र हैं‌। मनोज, अंकिता, सन्नी और ऋषभ। यह कथानक इन चारों के इर्दगिर्द घूमता है। कभी लगता है मनोज और सन्नी के बीच अंकिता पिस रही है तो कभी लगता है अंकिता और मनोज के कारण ऋषभ परेशान है, कभी मनोज से सन्नी परेशान लगता है तो कभी सन्नी से मनोज परेशान लगता है। कभी मनोज को अंकिता अपनी पत्नी लगती है तो कभी सन्नी उसे अपना पति लगता है और हद तो तब हो जाती है जब उसे ऋषभ उसे पूर्वजन्म का पति लगता है।
               
                 और एक दिन एक मर्डर हो जाता है। यह मर्डर किसका है? यह कहना सरल नहीं है। अक्सर उपन्यासों में यह होता है की एक कत्ल होता है और उसके बाद कातिल की तलाश होती है लेकिन यहाँ लेखक की प्रतिभा है की एक कत्ल होने के बाद भी पाठक तो क्या पुलिस को भी पता नहीं चलता की आखिर यह कत्ल हुआ किसका है।
उपन्यास का आरम्भ जहाँ समलैंगिकता जैसे विषय से होता है वहीं समापन एक मर्डर मिस्ट्री से होता है। मर्डर मिस्ट्री का जहाँ प्रसंग आता है वह काफी रोचक है। लेखक ने वहाँ जबरदस्त समां बाधा है।


          हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में मेरे विचार से 'समलैंगिकता' जैसे विषय पर कोई उपन्यास नहीं लिखा गया। यह एक साहसिक कदम था जो एम.इकराम फरीदी जी ने उठाया। ऐसे साहसिक उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा जी ही लिख सकते थे, 'क्योंकि वे बीवियां‌ बदलते थे' जैसे अमानवीय विषय पर वेद जी की कलम चली थी और अब उनके शिष्य एम. इकराम फरीदी जी ने भी ऐसा एक ज्वलंत विषय पर उपन्यास लिख कर लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में श्रीवृद्धि की है।
 ‌‌‌‌‌‌                   हालांकि उपन्यास 'समलैंगिकता' विषय पर कुछ नहीं बोलता यह तो 'समलैंगिकता' से उपजी त्रासदी का स्टिक चित्रण करता है। उपन्यास 'समप्रीत' समलैंगिकता से उपजी एक मर्डर मिस्ट्री है। जिसके मूल में एक पति-पत्नी है या यूं कह सकते है जिसके मूल में 'समलैंगिकता' है।
उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है लेकिन‌ जैसे जैसे कथानक आगे बढता तो वह अपनी रोचकता खोता चला जाता है। उपन्यास अंत में आते -आते 'मनोहर कहानियाँ' नामक पत्रिका में छपने वाली अपराध कथा की तरह नजर आने लगता है। अंत में अपराधी का सहज कबूलनामा तो बिलकुल तो इस कथा को और कमजोर बना देता है।
उपन्यास के अंत में हत्याप्राण के विषय में एक अजीब सी उलझन उठती है और कोई सार्थक स्पष्टीकरण के बिना उपन्यास समाप्त हो जाता है।
            उपन्यास का कथानक लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में एक नया प्रयोग था लेकिन वह अपना कोई विशेष प्रभाव न छोड़ पाया। उपन्यास में अतिरिक्त मेहनत की जरूरत है।

निष्कर्ष-
‌‌          एम. इकराम फरीदी का उपन्यास 'समप्रीत' समलैंगिक विषय पर लिखा गया लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का प्रथम उपन्यास है।
यह समलैंगिकता से उपजी एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित रोचक कथानक है जो पाठक को 'समलैंगिकता' के विषय में तो हालांकि कुछ नहीं बताते लेकिन इससे लोगों से पैदा हुए हालात का अच्छा चित्रण करता है। बस उपन्यास का समापन कुछ विशेष नहीं।
उपन्यास पढनीय और दिलचस्प है।


उपन्यास- समप्रीत
लेखक- एम. इकराम फरीदी
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 253
मूल्य- 100₹
'नक्की झील-माउंट आबू'

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