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Tuesday, 26 February 2019

173. लम्हें जिंदगी के- अशोक जोरासिया

     कवि अशोक जोरासिया जी का कविता संग्रह पढने को मिला। इस कविता संग्रह में विभिन्न विषयों पर अलग-अलग कविताएँ उपस्थित हैं।
कविता संग्रह 'लम्हें जिंदगी के...' जिंदगी के विभिन्न रंगों से पाठक का परिचय करवाता नजर आता है।


मेरे बचपन के गलियारे में बचपन के बालपन‌ को समेटा गया है।
वहीं गांव की चौपाल में गांव की अनेक विशेषताओं का वर्णन करते हुए लिखते हैं की
मेरे गांव की एक और पहचान
अतिथियों को समझते
अपना भगवान।
(पृष्ठ- 18,19)
       अगर गांव का जिक्र चला है तो 'मजदूर और किसान' का वर्णन भी अवश्य होगा। बिना मजदूर और किसान के गांव भी तो नहीं। मजदूर और किसान वर्ग की पीड़ा का वर्णन भी मिलता है।
बचाना होगा इनका जीवन
बुलंद करना है फिर से
जय जवान, जय किसा‌न
। (पृष्ठ-26)
         मजदूर वर्ग की पीड़ा का वर्णन 'गगनचुंबी इमारत' कविता में भी मिलता है। वह मजदूर जो गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण करता है लेकिन स्वयं उसके पास रहने को घर नहीं है।
यह कविता शोणक- शोषित का प्रभावशाली चित्रण करती नजर आती है। जो मजदूर इमारतों का निर्माण करता है लेकिन स्वयं उसे उन जगहों पर आश्रय नहीं मिलता।
मगर जगह नहीं मिलती
रहने को इन‌ मजदूर श्रमिकों को
इन‌ महानगरों की काॅलोनियों में।
(पृष्ठ-28)

कविता 'जीवन एक अग्निपथ' में कवि हौंसले को बुलंद कर मंजिलों को प्राप्त करने का संदेश देता है।
"पथ है, पथिक हो तुम
मंजिल लंबी, राहें है‌ नई,
उमंग जोश है नया,
सवेरा है नया चलना है तुमको
जीवन अग्निपथ....।
(पृष्ठ-24)
यह कविता बहुत अच्छी और प्रेणादायक कविता है।


क्या कविता लिखना सरल है। नहीं यह एक श्रमसाध्य काम है। इस बात को कवि ने महसूस किया और अपने शब्दों में एक कवि के भाव व्यक्त किये हैं।
यूं ही नहीं लिखी
जाती नज्म
शब्दों को बांधना
पड़ता है दिल में
श्रृंगार की तरह
अलंकृत करनी पड़ती है,
अल्फाजों की देह।
(पृष्ठ-29)
तब जाकर कहीं एक कविता का सृजन होता है।

जीवन को परिभाषित करती एक कविता है 'जिंदगी महफिल है'। यह वास्तविकता है की जिंदगी एक महफिल की तरह है बस उसे जिने का ढंग आना चाहिए। यही ढंग इस कविता में दर्शाया गया है।
         ये भी माना हमने
        आसां‌ नहीं जिंदगी जीना
        जीना भी एक कला है
        कलाकार फिर बन जाया करो।
(पृष्ठ-37)

         एक प्रगतिशील कविता है 'पुनर्जागरण' जो परम्परागत रूढियों को तोडकर आगे बढने की प्रेरणा देती है। तो कविता 'युवावस्था' भी हमें एक संदेश देती है कि 'जीतने के लिए संघर्ष करना ही युवावस्था है...।' (पृष्ठ-50)


        प्रकृति से संबंधित कई कविताएँ इस संग्रह में मिल जायेंगी पर इस संग्रह की अंतिम कविता 'पेड़ की व्यथा' एक यथार्थवादी कविता है। जो हमारे पर्यावरण को रेखांकित करती एक सार्थक रचना है।

झेलता रहा हूँ आंधियों को
तूफानों से निपटने के लिए
जड़ों पर खड़ा होकर
टहनियों से आच्छादित
मैं एक दरख्त हूँ।
(पृष्ठ-94)

प्रस्तुत कविता संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यही है की इसमें विषय की विविधता है। जिन‌ विषयों पर लगता है लिखा नहीं जा सकता, या लिखना मुश्किल है ऐसे विषय पर कवि महोदय ने जो लिखा है वह काबिल ए तारीफ है।

नारी है, युवा है प्रकृति है देश है, रोटी है, सावन है रिश्ता है
'1962' का युद्ध है, 'कुली' है, 'साइबर शहरों‌ की दुनिया' तो कहीं 'बैंडिट क्वीन फूलन देवी' पर भी कविता है। कवि की दृष्टि से कोई विषय अछूता नहीं रहा।

इस कविता संग्रह में जो मुझे कमी महसूस हुयी वह है कविता में लय का न होना, इस वजह से अधिकांश कविताएँ पद्य की बजाय गद्य के ज्यादा नजदीक हो गयी हैं।
एक अच्छे कविता संग्रह के लिए कवि महोदय को धन्यवाद।

कविता संग्रह- लम्हें जिंदगी के
कवि- अशोक जोरासिया
प्रकाशक- प्रभात पोस्ट पब्लिशर्स
पृष्ठ- 94
मूल्य- 150₹
'भीम‌ प्रज्ञा' साप्ताहिक पत्र (08.04.2019) में‌ प्रकाशित समीक्षा


1 comment:

  1. महोदय जी , निसन्देह आपके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा मेरी लेखनी को बल देगी धन्यवाद जी

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