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Friday, 9 November 2018

152. स्वामी विवेकानंद- अपूर्वानंद

स्वामी विवेकानंद-संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
- स्वामी अपूर्वानंद
स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। इनके जन्म दिवस (12 जनवरी) को 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कम उम्र में स्वामी‌ जी ने जो मार्ग/उपदेश विश्व को दिया वह अतुलनीय है।
      प्रस्तुत पुस्तक स्वामी जी सम्पूर्ण जीवन की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत करती है। उनके जीवन का आदि -अंत इस पुस्तक में वर्णित है। स्वामी जी के जीवन को पढना बहुत रोचक और प्रेरणादायक है। उनके जीवन के संघर्ष मनुष्य को बहुत कुछ सिखाते हैं।
       उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने तो वह विवेकानंद जी के बारे में कहा था,-"नरेन्द्र मानो सहस्रकमल है। इतने सारे लोग यहाँ आते हैं, किंतु नरेन्द्र जैसा दूसरा कोई भी नहीं आया।"
          गुरु रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद (नरेंद्र) की दैवीय प्रतिभा को सबसे पहले पहचान‌ लिया था। उन्हीं के ही मार्गदर्शन में स्वामी जी आगे बढे और आगे 'स्वामी विवेकानंद  रामकृष्ण की वाणी के मूर्तरूप थे।(पृष्ठ-03)
          प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी जी के जीवन का काफी रोचक वर्णन मिलता है।  नरेन्द्र के अंतर में जो विराट पुरुष वास करता था, उसी की सक्रिय शक्ति के प्रभाव से उसमें बाल्यावस्था से ही महान तेज दिखायी देता था। (पृष्ठ-7)
             स्वामी विवेकानंद ने भारतवर्ष का भ्रमण भी किया और इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। स्वामी जी भारत की दशा देखकर बहुत परेशान होते थे। वे कहते थे-"मैंने समूचे भारत का भ्रमण किया है।....सर्वत्र ही आम जनता का भयावह दुःख-दैन्य मैंने अपनी आँखों से देखा। वह सब देखकर मैं व्याकुल हो उठता हूँ। "(पृष्ठ-37)
             गुरु रामकृष्ण जी के सोलह शिष्य थे जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया और यही वो शिष्य थे जो बाद में विवेकानंद जी के सहयोगी रहे।
          कुछ सीखने के उद्देश्य से स्वामी जी विदेश यात्रा पर भी गये और यही विदेश यात्रा ने संपूर्ण विश्व के सम्मुख भारत की पहचान बदल दी। विवेकानंद जी के लिए यह यात्रा प्रवास बहुत ही कठिन रहा। श्वेतांग युरोपीय न होने के कारण उन्हे पग-पग पर अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। (पृष्ठ-47)
            11 सितंबर 1883 ई. सोमवार धर्मजगत के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। ...इसी दिन प्राचीन भारत के वेदांत धर्म ने स्वामी विवेकानंद को अपना यंत्र बनाकर महान् धर्मसम्मेलन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।(पृष्ठ-48)
                     उन्होंने अपना संबोधन 'बहनों और भाईयों '  शब्दों से आरम्भ किया। स्वामी जी के संबोधन में विश्व भ्रातृत्व का बीज, विश्व मानवता की झंकार, वैदिक ऋषि की वाणी सभी कुछ निहित था। (पृष्ठ-49)। स्वामी जी के भाषण से आर्यधर्म, आर्यजाति और आर्य भूमि संसार की नजरों में पूजनीय हो गयी। (पृष्ठ-51)
          स्वामी जी की शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन का काम करती है। उनके विचार किसी धर्म, सभ्यता या देश के न होकर सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ हैं।
         
                    हमारे प्रिय प्रेरणा पुरुष भारतीय धर्म संस्कृति के ध्वजावाहक अपने पीछे हम युवा वर्ग पर एक जिम्मेदारी छोड़ कर इस नश्वर संसार से चले गये।
4 जुलाई 1902 ई. को स्वामी विवेकानंद की आत्मा देह-पिंजर से मुक्त होकर असीम में विलीन हो गयी। (पृष्ठ-78)
                        शान्ति:! शान्तिः! शान्तिः!!
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पुस्तक-   स्वामी विवेकानंद, संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
लेखक-   स्वामी अपूर्वानंद
अनुवाद-  स्वामी वागीश्वरानंद, स्वामी विदेहात्मानंद
प्रकाशक- स्वामी ब्रह्मास्थानंद, धंतोली, नागपुर-440012
पृष्ठ-         90
मूल्य-       10₹
प्रथम प्रकाशन- 1984
प्रकाशन-    सत्रहवाँ-07.06.2013
 

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