मुख्य पृष्ठ पर जायें

Friday, 12 October 2018

146. सात रोचक कहानियाँ

सात अधूरी कहानियाँ....


                    राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- माउंट आबू, सिरोही के पुस्तकालय में मुझे एक पुस्तक मिली, जिसमें कहानियाँ काफी रोचक हैं। इस कहानी संग्रह पर लेखक, प्रकाशक और पुस्तक का भी नाम भी नहीं है। पुस्तकालय के रिकाॅर्ड में भी सिर्फ पुस्तक का क्रमांक वर्णित है। इस कहानी संग्रह की कहानियाँ काफी रोचक और दिलचस्प है। 

 
                       संग्रह में कुल सात कहानियाँ है, और सभी कहानियाँ एक अधूरेपन को सूचित करती हैं। इस संग्रह की सभी कहानियाँ हत्या से से संबंधित है और सविधान की दृष्टि में हत्यारा अज्ञात हैं, लेकिन जन दृष्टि में हत्यारे कौन है यह सब को पता है।
                     इसे भारतीय सविधान का लचीलापन कहें या कमजोरी की लोग हत्या जैसा निकृष्ट कृत्य करके भी आजाद हैं और जो इस दुनियां से चला गया उसके साथ कोई इंसाफ नहीं। यह कैसी न्याय प्रणाली, यह कैसा सविधान। मूलतः यह कहानी संग्रह कुुुछ ऐसे अधूरे किस्सों का संग्रह है।


इस संग्रह में कुल सात कहानियाँ है।
1. हत्या बनाम आत्महत्या
2. इनाम कहकहे का
3. पति या प्रेमी
4. ...और वह गायब हो गयी
5. ?
6. किस्सा एक राजा की प्रेमिका का
7. किस्सा एक और राजा की प्रेमिका का।
कहानी संख्या पांच का शीर्षक प्रश्नवाचक चिह्न (?) है।

                 पहली कहानी हत्या बनाम आत्महत्या एक ऐसे प्रेमी जोड़े की कहानी है जिसमें प्रेमी की हत्या हो जाती है और शक प्रेमी पर जाता है। पूर्वी पंजाब की उस सुंदर किंतु विधवा रानी भगवान कौर ने अपने प्रेमी को अमृत के रूप में विष दिया या अभागे प्रेमी काहनचंद ने स्वयं विष पीकर अमर होने की कोशिश की, यह समस्या आज तक नहीं सुलझ सकी।
                    यह एक विधवा रानी की प्रेम कथा है जो काहन चंद नामक व्यक्ति से प्रेम कर बैठती है। लेकिन समय के साथ और लोक लाज के कारण रानी प्रेम राह से कदम पीछे हटा बैठी।
               एक दिन महल में प्रेमी काहन चंद का शव मिलता है और इल्जाम लगता है रानी पर। लेकिन संदेह का लाभ देते हुए रानी को बरी कर दिया गया।
                 माननीय जजों के उस मान्य फैसले के बावजूद जनसाधारण के दिमाग में मुद्दतों एक प्रश्न रह-रहकर उभरता रहा कि आखिर - वह हत्या थी या आत्महत्या?

              दूसरी कहानी 'इनाम कहकहे का' तीस वर्षीय नौजवान नवाब मुहम्मद नवाज खां की कहानी है। नवाब की बगल में उसकी प्रेयसी शमशाद बाई मृत्यु पड़ी थी। उसकी हत्या किसी ने गोली मार कर दी। लेकिन नवाब साहब का कहना वह हत्या उन्होंने नहीं की- "भला मैं शमशाद बाई को कैसे कत्ल कर सकता था? वह मुझे बहुत पसंद थी।"
यह मुकदमा भी किन्हीं कारणों से अधूरा रह गया।


तीसरी कहानी पति या प्रेमी है।  यह कहानी यह कहानी है अंबाला शहर की, 6 फरवरी 1950 ई. की। मैं बाहर बैठी थी कि उन्होंने पूछा, दवा कहां है? मैंने बता दिया कि अलमारी में है- बस, गलती से वे नेगेटिव धोने की दवा पी गये। (पृष्ठ-33) यह बयान है मृतक की पत्नी पलविन्द्र कौर  का।
                     हत्या का इल्जाम लगा पत्नी पलविन्द्र कौर पर और उसके एक भाई कथित प्रेमी पर। कारण- अपनी जांच-पड़ताल द्वारा पुलिस भी इस नतीजे पर पहुंची थी कि अपने ताऊ के लड़के महेन्द्र सिंह के साथ पलविन्द्र कौर के अनुचित संबंध थे।(पृष्ठ-37)
                          इस हत्याकाण्ड के बाद महेन्द्र सिंह फरार हो गया। एक लंबी जांच के पश्चात पलविन्द्र कौर को बरी कर दिया गया, लाश कहीं मिली नहीं। लेकिन प्रेमी महेन्द्र सिंह अब भी लापता था।(पृष्ठ-42)


                       .....और वह गायब हो गयी!  
शीर्षक स्वयं में बहुत रोचक है। ऐसी ही रोचक यह कहानी है। यह कहनी है लखनऊ की बाईस वर्षीय बिसलिया की। लेखक लिखता है- आज से बाईस वर्ष पूर्व 26 मई 1943 की रात को वह ऐसी गायब हुयी की आज तक उसका सुराग नहीं मिल सका।
           बिलसिया गायब कर दी गयी या स्वयं कहीं चली गयी यह रहस्य तो आज भी यथावत है। लेकिन स्थानीय जनता जानती है की असली कहानी क्या है।
          लखनऊ की एक सरकारी अफसरों की बस्ती में अपने इस रंग-रूप तथा यौवन के कारण बिलसिया आफत की परकाला कहलाती थी, और एक आई. सी. एस. अफसर ब्रजभूषण सिंह के यहाँ आया का काम करती थी। (पृष्ठ-43)
           गरीब बिलसिया को प्रेम करने की सजा उसके अफसर ने ऐसी दी की बिलसिया का आज तक पता न चला। क्या प्रेम इतना बङा गुनाह हो गया जिसकी सजा उसे मौत के रूप में‌ मिली।
बिलसिया गायब हो गयी या कर दी गयी अदालत यह तय ना कर पायी और अफसर ब्रजभूणष सिंह को बरी कर दिया गया। और यह भी सिध्द नहीं होता कि बिलसिया वाकई मर चुकी है या गायब हो हुयी है। हालांकि कुछ गवाह, पुलिस और मरने वाली की हड्डियां अदालत में पेश भी की गयी।
               कहते हैं भगवान के घर न्याय अवश्य मिलता है। यही ब्रजभूणष सिंह के परिवार और स्वयं ब्रजभूणष सिंह के साथ हुआ- बरी होने के कुछ माह बाद ही आई. सी. एस. अफसर ब्रजभूषण सिंह अपने रिवॉल्वर से अपने भेजे में गोली मार कर आत्महत्या कर ली। (पृष्ठ-53)
बिलसिया की आत्मा को शांति मिली या न मिली यह तो पता नहीं पर ब्रजभूषण सिंह को अपने कृत्य की सजा आखिर मिल ही गयी।

कहानी ? तो एक ऐसा प्रश्नचिह्न है जो पुलिस से लेकर सी. बी. आई. के लिए एक प्रश्नचिह्न बन कर रह गया।
      यह घटना कानपुर में 4 जुलाई 1955 की रात को एक ऐसी भयकंर दुर्घटना घटित हुयी कि उसका उदाहरण भारतीय अपराधों के इतिहास में मुश्किल से मिलेगा। (पृष्ठ-54)

      एक ही परिवार के दो सदस्यों की हत्या और एक का अपहरण। अगले दिन एक सड़क के किनारे अपहरणकर्ता और अपहर्त लङकी की लाश कार में मिलती है।

         आखिर यह क्या मामला था। 4 जुलाई की रात को हुई ये चार हत्याएं पुलिस और सी. आई. डी. के लिए सिर दर्द बन गयी। (पृष्ठ- 63)

         इस कहानी संग्रह की अंतिम दो कहानियाँ राजवर्ग से संबंधित है। 'किस्सा एक राजा की प्रेमिका का' कहानी पटियाला के राजा भूपेन्द्र सिंह के जीवन से संबंधित है। 

राजा भूपेन्द्र सिंह को अपने एक कार्मिक लाल सिंह की पत्नी दलीप कौर पसंद आ गयी। अब राजा तो राजा ठहरा, अब राजा के सामने किसकी चले, लाल सिंह की भी ना चली और दलीप कौर एक दिन रानी दलीप कौर हो गयी।
दूसरी तरफ  लाल सिंह ने धमनियां देनी शुरु की कि वह दौलते -इंग्लिशिया की सहायता से अपनी पत्नी को वापस लेकर रहेगा।  इस बदमानी से बचने के लिए भूपेन्द्र सिंह ने एक युक्ति सोची  महाराजाओं को युक्तियां भी चुटकी बजाते सूझ जाती है।(पृष्ठ-82)
       इधर चुटकी बजी और उधर लाल सिंह की चुटकी बजनी हमेशा के लिए बंद हो गयी।
                   यह मामला भी उच्च स्तर पर पहुंचा लेकिन सामने भी राजा था, वह भी अंग्रेज सरकार का खास। मामला जब ज्यादा उछला तो स्वयं राजा भूपेन्द्र सिंह की इच्छा अनुसार रियासती एजेण्ट पेट्रिक ने इस मामले की सुनवायी की। निर्णय आया वे बिलकुल निर्दोष हैं।(पृष्ठ-65)
लेकिन इस केस में एक आदमी और भी था वह था सुपरिण्टेण्डेण्ट पुलिस नानक सिंह। जिसने राजा की इच्छा और आज्ञा अनुसार इस कार्य को अंजाम दिया। नानक सिंह जेल में बैठा था, कहीं न कहीं उसे लगा की उसने गलत किया है। नानक सिंह चाहता तो राजा का दोबारा पक्षधर बन कर आजाद हो सकता था लेकिन उसकी आत्मा ने यह स्वीकार नहीं किया।
               

                        राजा तो आखिर राजा ही होता है वह चाहे भूपेन्द्र सिंह हो या इंदौर का तुकाजी राव होल्कर‌। जब प्रेम रंग चढता है तो वह सब कुछ भूल जाता है। किस्सा एक और राजा की प्रेमिका का की यही कथा है। राव होल्कर को अमृतसर की वेश्या बाजार की गुलबदन मुम्ताज पसंद आ गयी। एक दिन मुम्ताज राव होल्कर घर भी आ गयी।
                  बगुलबदन के प्रेम रंग में भीगे राव होल्कर ने गुलबदन का धर्म बदल दिया। वस यहीं से गुलबदन और उसकी माँ का मन बदल गया। या यूं कहें राव होल्कर से मन भर गया।
कुछ समय बाद मुम्ताज और उसकी माँ ने मुंबई में एक नया शिकार ढूंढ लिया, और राजा होल्कर मुम्ताज को ढूंढ रहा था।
एक दिन यह प्रेम प्रकरण इस मोड़ तक आ गया की एक व्यक्ति की जान और राव होल्कर की गद्दी चली गयी।

          इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ रोचक हैं। जहाँ इनमें एक रोचकता है वहीं एक अधूरापन भी है, यही अधूरापन पाठक को अंदर तक सालता है। यही अधूरापन इस संग्रह की विशेषता है।  हमारे सविधान की कमी का वर्णन यहाँ है, जहां चालाक हत्यारा हत्या करके भी सुरक्षित बच जाता है, और एक निर्दोष बेवजह फंस जाता है। 

           इस कहानी संग्रह की कहानियाँ सत्य है या काल्पनिक यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस कहानी संग्रह में जो तथ्य दिये गये हैं वे इन घटनाओं के सत्य होने की पुष्टि अवश्य करते हैं। जैसे पटियाला महाराज भूपेन्द्र सिंह, वकील तेज बहादुर स्प्रु,तुकाजी राव होल्कार आदि।

        इस पुस्तक/ कहानी संग्रह के विषय में (लेखक, प्रकाशक, वर्ष) में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

-----
पुस्तक-
लेखक-
पृष्ठ- 110
प्रकाशक-
इस किताब के विषय में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं। किताबें आदि-अंत के आवरण पृष्ठ गायब है।





1 comment: