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Friday, 27 July 2018

131. वयम रक्षाम- आचार्य चतुरसेन शास्त्री

आर्य और अनार्य जाति के संघर्ष की गाथा।

वयम रक्षाम उपन्यास पढना एक रोचक अनुभव रहा। यह उपन्यास मात्र एक कहानी भर नहीं बल्कि यह आर्य और अनार्य जाति का इतिहास भी है। 


'उन दिनों तक भारत के उत्तराखण्ड में ही आर्यों के सूर्य-मण्डल और चन्द्र मण्डल नामक दो राजसमूह थे। दोनों मण्डलों को मिलाकरआर्यावर्त कहा जाता था। उन दिनों आर्यों में यह नियम प्रचलित था कि सामाजिक श्रंखला भंग करने वालों को समाज-बहिष्कृत कर दिया जाता था। दण्डनीय जनों को जाति-बहिष्कार के अतिरिक्त प्रायश्चित जेल और जुर्माने के दण्ड दिये जाते थे। प्राय: ये ही बहिष्कृत जन दक्षिणारण्य में निष्कासित, कर दिये जाते थे। धीरे-धीरे इन बहिष्कृत जनों की दक्षिण और वहां के द्वीपपुंजों में दस्यु, महिष, कपि, नाग, पौण्ड, द्रविण, काम्बोज, पारद, खस, पल्लव, चीन, किरात, मल्ल, दरद, शक आदि जातियां संगठित हो गयी थीं।'

Tuesday, 24 July 2018

130. वंस एगेन Once Again - गजाला

नौ वर्ष बाद COME BACK
वंस एगेन- गजाला करीम, एक्शन उपन्यास.
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लगभग नौ वर्ष बाद उपन्यास जगत में वापसी करने वाली गजाला करीम का 'Once Again' एक लघु उपन्यास है।
     यह उपन्यास उन लोगों के चेहरे से नकाब उतारता है जो देश के खिलाफ काम करते हैं। जिनका दिखाने का चेहरा अलग है और वास्तविक चेहरा अलग है।  वर्तमान में आतंकवाद एक बड़ी समस्या है और यह उपन्यास आतंकवाद के चेहरे को बेनकाब करता है।
   
    ‌ अगर उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह एक लघु उपन्यास है। जिसमें एक्शन है लेकिन साथ में देश के प्रति जान देने वाली जासूस गजाला का रोचक अंदाज भी है।

Wednesday, 18 July 2018

129. सफेद खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

तिहरे कत्ल का सनसनीखेज उपन्यास
सफेद खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक, जासूसी उपन्यास, मर्डर मिस्ट्री, पठनीय।
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    प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली को एक महिला का फोन आया की आज शाम आठ बजे छतरपुर फार्म हाउस पर उससे मिले।
"आपको छतरपुर आना होगा।"- वह बोली
"छतरपुर ।"- मैं अचकचाकर बोला।
"घबराइए नहीं। यह जगह भी दिल्ली में है।"
"दिल्ली में तो है लेकिन.....।"
"यहाँ हमारा फार्म है।"
              जब शाम को सुधीर कोहली वहाँ पहुंचा तो मिसेज कमला ओबराय अपने मृत्यु पति अमरजीत इबराय के पास उपस्थित थी।

Saturday, 14 July 2018

128. बस्तर पाति- पत्रिका,मई 2018

बस्तर पाति- त्रैमासिक पत्रिका, संयुक्त अंक।
छतीसगढ से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका 'बस्तर पाति' का यह एक संयुक्त अंक है। इसमें अंक संख्या 14,15,16 अर्थात सितंबर 2017 से मई 2018 तक को एक अंक में प्रस्तुत किया गया।
            यह पत्रिका किसी न किसी एक साहित्यकार पर केन्द्रित होती है और इसका प्रस्तुत अंक साहित्यकार हरिहर वैष्णव पर केन्द्रित है। इसके साथ-साथ यह अंक संपादकों की रचनाओं पर केन्द्रित अंक है।

Tuesday, 3 July 2018

127. सड़क के किनारे- सआदत हसन मंटो

मंटो की कहानियाँ.
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              मंटो‌ का साहित्य क्षेत्र में एक विशेष नाम है। इनकी अधिकांश कहानियाँ समाज के वर्जित क्षेत्र का वर्णन करती हैं तो वहीं इनकी स्वतंत्रता संग्राम के समय हुये दंगों, जातिय हिंसा और औरत वर्ग पर बहुत अच्छा लिखा है।
   कहानी संग्रह के संपादक नूरनबी अब्बासी ने लिखा है "जीवन के प्रति मण्टो का कुछ विचित्र सा दृष्टिकोण था। वह इस समाज में रह कर इसकी गंदगी को देखते थे। उसका विरोध करते थे पर साथ ही इस समाज की जड़-जनता -से भी अलगाव पसंद था।"

       प्रस्तुत संग्रह में अधिकांश कहानियाँ स्त्री वर्ग को लेकर लिखी गयी हैं। पन्द्रह कहानियों में से दो-तीन कहानियाँ ही ऐसी हैं जो स्त्री वर्ग पर नहीं लिखी गयी।

सौ कैण्डल पाॅवर का बल्ब कहानी एक ऐसी औरत की कहानी है जो जिस्म का व्यापार तो करती है, चाहे उसकी मजबरी हो लेकिन वह अपना अस्तित्व खत्म करना चाहती।
  खुदफरेब कहानी तीन ऐसे दोस्तों की कथा है जिनके लिए स्त्री एक मन बहलाने की वस्तु है। तो वहीं बर्मी लड़की कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसका कोई घर -ठीकाना नहीं लेकिन वह अपनी आर्थिक स्थिति के लिए एक अजनबी लड़के को अपना दोस्त बना लेती है।

हालांकि इस संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ मेरे सिर के उपर से गुजर गयी क्योंकि मंटो ने कोई कहानी कहने की बजाय मात्र कुछ घटनाओं का वर्णन किया है। अब वे घटनाएं कहानी बने या ना बने इससे लेखक का कोई अभिप्राय नहीं उन्होंने तो जैसा समाज देखा वैसा लिख दिया।  फिर भी कुछ कहानियाँ मन को छू लेती हैं।  ऐसी ही मन को छू लेने वाली कहानी है फ़ोभा बाई
     फ़ोबा बाई एक ऐसी औरत की कहानी है जो नृत्यांगना है लेकिन वह अपने बेटे को एक इज्जतदार जीवन देना चाहती है। इसलिए वह अपने पुत्र को अपने से अलग रखकर पढाती है, इस कहानी का अंत बहुत ही मार्मिक है। ऐसी ही एक और मार्मिक कथा है अल्ला दिता।
     एक मनुष्य वासना की दलदल में कैसे अपने रिश्ते भूल जाता है और कैसे एक औरत दूसरी औरत की दुश्मन हो जाती है इसका यथार्थ वर्णन अल्ला दिता कहानी में मिलता है।
    कहानी सड़क के किनारे एक मजबूर माँ की कथा जिसके लिए अपना बच्चा जान से भी प्यारा है, चाहे वह कुँवारी ही माँ बन जाये। वह कहती है - " मेरा जीवन नष्ट हो जायेगा?...हो...जाने दो......मेरी आत्मा का टुकड़ा मुझसे मत छीनों...तुम नहीं जानते यह कितना मूल्यवान है...यह मोती है जो मुझे उन क्षणों ने प्रदान किया है...।"
       
     संग्रह में कहानियाँ
1. सौ कैण्डल पाॅवर का बल्ब
2. खुदफरेब
3. बर्मी लड़की
4. खुशिया
5. फोभा बाई
6. बादशाहत का खात्मा
7. निक्की
8. शादी
9. महमूदा
10. शांति
11. राम खिलावन
12. औरत जात
13. अल्ला दिता
14. झूठी कहानी
15. सड़क के किनारे
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पुस्तक- सड़क के किनारे (कहानी संग्रह)
लेखक- सआदत हसन‌ मंटो
प्रकाशक- नवयुग प्रकाशन- दिल्ली

126. नफरत की दीवार-अनिल मोहन

नफरत में‌ लिपटी एक मासूम‌‌ जिंदगी।
नफरत की दीवार- अनिल‌ मोहन, थ्रिलर उपन्यास, पठनीय, मध्यम।
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एक ऐसे इंसान की कहानी, जो हर नये दिन के साथ नफरत की मजबूत दीवारों की गिरफ्त में फंसता चला गया।

      अजय को बचपन से ही घर से नफरत मिली और यह नफ़रत दिन प्रति दिन‌ बढती ही गयी

उपन्यास का आरम्भ होता है जब अजय अपनी पत्नी सुनीता के साथ घर में प्रवेश करता है। सुनीता का घर में  प्रथम दिवस, गृह प्रवेश और उसका व्यवहार पाठको को आश्चर्यचकित करता है।
- मैं‌ सिर्फ इज्जतदार लोगों की ही इज्जत करती हूँ, ऐरे-गैरे से तो मुझे बात करना ही पसंद नहीं। (पृष्ठ-11)
- मैं तुम दोनो से भी बड़ी चुडैल हूँ, इस बात को हरदम अपने दिमाग में रखना।(पृष्ठ-11)
      अब पाठक के आश्चर्य का यह कारण है की वह ऐसा क्यों करती है लेकिन अगले पृष्ठ पर यह रहस्य खुल जाता है। जब अजय के भाई विमल- सुरेश और उनकी‌ पत्नियां सुधा और अनिता आपस में चर्चा करते हैं।

   अजय अगर छब्बीस साल की उम्र होने तक शादी कर लेता है तो उसे रामदयाल जी की संपत्ति में से हिस्सा मिलेगा अन्यथा नहीं।
जब अजय अपनी शादी की बार चलाता है तो अजय के भाई सुरेश और विमल अजय को उसकी मंगेतर कल्पना सहित खत्म करने का प्लान बनाते हैं और सफल भी हो जाते हैं।
लेकिन एक दिन अजय घर आ पहुंचता लेकिन कल्पना के साथ नहीं, अपनी पत्नी सुनीता।
- अजय जीवित कैसे बच गया?
- क्या हुआ कल्पना का?
- सुनीता कौन है?
- अजय से उसके परिवार वाले नफरत क्यों करते हैं?
- संपत्ति और वसीयत और शादी का आपस में क्या संबंध है?
- अजय के भाई उसके दुश्मन क्यों है?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर तो अनिल मोहन जी का उपन्यास 'नफरत की दीवार' पढकर ही मिलेगा।

                    उपन्यास का प्रथम चरण है जब अजय सुनीता के साथ शादी करके घर पहुंचता है, तब एक आश्चर्य होता है की अजय को मारने की किसने कोशिश की, अजय कैसा बचा और उसकी प्रेयसी कल्पना कहां है, और अचानक सुनीता से शादी करके घर कैसे पहुंच गया?
द्वितीय चरण वह है जिसमें अजय के बचपन का वर्णन है यह चरण बहुत ही भावुक है।
तृतीय चरण वह है जिसमें अजय अपने दुश्मनों से बदला लेता है।
             

उपन्यास में‌ गलती-

उपन्यास के अंत में रंजन का कत्ल हो जाता है लेकिन कोई स्पष्ट ही नहीं हो पाता की कत्ल किसने किया।
तभी रंजन की चीख गूंजी और वह जुदा होकर दूर जा गिरा। .....रंजन के पेट में मूठ तक चाकू धंसा था।(पृष्ठ-202)

- उपन्यास में 'मंगेतर' शब्द को जगह-जगह पर 'मंगेदर' लिखा गया है।

- राधिका एक जगह अजय को वसीयत की सत्यता बताती है। यह दृश्य उपन्यास में किसी भी दृष्टि से‌ मेल नहीं खाता।
राधिका को क्या जरुरत थी इस सत्य को बताने की?

संवाद-
    उपन्यास संवाद के स्तर पर कोई विशेष नहीं है फिर भी कई जगह कुछ संवाद पठनीय हैं।

- सच्चे प्यार की चाहत न तो कभी कम हो सकती है और न ही समाप्त हो सकती है। (पृष्ठ-192)

निष्कर्ष-
   ‌    ‌  उपन्यास का आरम्भ बहुत रोचक और संस्पेंश से भरा है और मध्यांतर भाग अजय के बचपन से संबंधित बहुत ही भावुक है।
                   उपन्यास के आरम्भ में पाठक जहां पल-पल चौंकता है वहीं मध्यांतर में उसकी आँखों से आँसू बह जाते हैं‌ लेकिन उपन्यास का समापन बदला प्रधान हिंसक फिल्म की तरह है जिसमें कोई ज्यादा आनंद नहीं आता। बस लेखक ने उपन्यास का समापन करना था जैसे-तैसे कर दिया।
      उपन्यास एक बार पढी जा सकती है। अच्छी है।

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उपन्यास- नफरत की दीवार
लेखक - अनिल मोहन
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 236
मूल्य-60₹

125. डकैती मास्टर- अनिल मोहन

इण्डिया बैं‌क की डकैती की कहानी।
डकैती मास्टर- अनिल मोहन, थ्रिलर उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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     जवाहर सिंह कालिया वह शख्स था जिसने देवराज चौहान से डकैती की एक डील की थी ।
"माल रोड़ पर इण्डिया बैंक की ब्रांच है।"- जवाहर सिंह कालिया ने गंभीर स्वर में कहा - " उसमें लाॅकर की सुविधा भी उपलब्ध है। 402 नंबर लाॅकर में पड़ा सारा सामान तिनका-तिनका, बेशक वह रुपया हो या सोना-हीरे हों या फिर कागजात हों, मुझे चाहिए। यह काम है।"(पृष्ठ-07)
     देवराज चौहान और जगमोहन ने वह डील स्वीकार की। और जगमोहन के साथ एक प्लान बनाया।
"तुम....!" देवराज चौहान मुस्काया-"सिर्फ 402 नंबर लाॅकर के बारे में ही नहीं सोच रहे बल्कि वहां मौजूद सब लाॅकरों के बारे में सोच रहे हो। जाहिर है, जब 402 नंबर लाॅकर खाली करने के लिए बैंक में डकैती डालोगे तो बाकी लाॅकरों पर भी हाथ मारोगे।"(पृष्ठ-13)
               देवराज चौहान ने डकैती की। लेकिन यह एक संयोग था की डकैती के दौरान एक शख्स वहां आ पहुंचा।

124. खून की प्यासी- अनिल मोहन

घर में तीन सदस्य एक गायब....और शेष दोनों पर शक।
खून की प्यासी- अनिल मोहन, थ्रिलर उपन्यास।
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"प्रणाम भाभी।" एयरपोर्ट से बाहर आते ही राजेश ने प्रसन्नता भरी मुद्रा में चालीस वर्षीय विमला देवी के पांवों को छूकर कहा-"सब ठीक हैं ना?"
        "सब ठीक है देवर जी।"- विमला देवी ने उसके सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ रखकर हँसते हुए कहा-" अमेरिका से काॅर्स ठीक तरह पूरा करके आये हो ना?"
"बिलकुल भाभी। बिजनेस मैनेजमेंट में टाॅप किया है। अब भैया के साथ सारे बिजनेस को संभालूंगा, ताकि उनके कंधों का बोझ कुछ कम हि सके।"- राजेश ने कहा।(पृष्ठ-07)
             वीरेन्द्र प्रताप सिन्हा का छोटा भाई राजेश जब अमेरिका से अपना काॅर्स पूरा करके घर लोटा तो उस तीन सदस्य घर में खुशी का माहौल था। लेकिन एक छोटी सी फोन काॅल ने सारी खुशियों को ग्रहण लगा दिया।
" जी हां, कौन हैं आप?" वीरेन्द्र प्रताप ने शांत लहजे में कहा।
"आपका शुभचिंतक.........आपका छोटा भाई राकेश आपके खिलाफ बहुत गहरी साजिश रच रहा है। ताकि वह करोङों‌ की दौलत का अकेला मालिक बन सके...और...।" (पृष्ठ-10,11). 
   
            वीरेन्द्र प्रताप सिन्हा की पत्नी विमला देवी का अपहरण हो गया और इल्जाम‌ लगा  वीरेन्द्र सिन्हा के छोटे भाई राजेश पर।  दुसरी तरफ राजेश ने इल्जाम‌ लगया मैनेजर पंकज वर्मा पर।
राजेश के सबूत और गवाह झूठ साबित हुए और दूसरी तरफ पंकज वर्मा गायब था।
      
       तो फिर सत्य क्या था?
-विमला देवी को गायब किसने किया?
- पंकज वर्मा ने या राजेश ने?

              वीरेन्द्र सिन्हा ने भी अपनी पत्नी को ढूंढने की बहुत कोशिश की पर कोई सबूत हाथ न लगा।
  06 माह बाद जब इस केस को‌ पुन: खोला गया तो फिर एक के बाद एक ऐसे रहस्य सामने आनर लगे की सभी दंग रह गये।
       कहानी एक ऐसे मोङ पर जा पहुंची जहाँ तक कोई सोच भी नहीं सकता था। अपराधी वर्ग का बिछाया हुआ एक ऐसा जाल था जिसमें एक- एक कर सभी उलझते चले गये। स्वयं पुलिस विभाग भी हैरान रह गया।
        
         उपन्यास की कहानी मध्यांतर तक बहुत ही रहस्यात्मक ढंग से आगे बढती है और पाठक आश्चर्यचकित सा रह जाता है। जब एक-एक कर रहस्य से पर्दे उठते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। लेकिन उपन्यास मध्यांतर के पश्चात अपनी गति खोती नजर आती है।
  पहले उपन्यास में जहाँ रहस्य था वहीं बाद में उपन्यास बदला प्रधान फिल्म की तरह हो जाती है। अपराधी वर्ग से बदला लिया जाता है।
          अब एक-एक अपराधी मारे जाते हैं। आखिर इनको मार कौन रहा है। किसी को कुछ भी पता नहीं चलता लेकिन जब अंत में कातिल सामने आता है तो एक झटका सा लगता है की यार किस को कातिल ठहरा दिया।

             उपन्यास अच्छा था, उपन्यास का आरम्भ बहुत अच्छा था, मध्यांतर तक उपन्यास शानदार था लेकिन‌ बाद में अपराधियों से बदला ले‌ने के लिए उपन्यास अपने मूल तथ्य से भटक जाता है।

खून की प्यासी- उपन्यास का शीर्षक भी एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है जैसे जादूगर द्वारा पिटारे में से कबूतर निकाल गया हो।

कमियां- मुझे उपन्यास के अंत यह नहीं पता चला की वीरेन्द्र सिन्हा को अपने भाई राजेश के प्रति सजग करने वाला वह शुभचिंतक कौन था?
  और उसने वीरेन्द्र सिन्हा को फोन क्यों किया?

निष्कर्ष-               उपन्यास का आरम्भ और कहानी बहुत जबरदस्त है। उपन्यास में एक के बाद एक रहस्य पाठक को जबरदस्त झटका देने वाले हैं। कहानी बहुत घुमावदार है। पाठक को जब लगता है यह अपराधी होगा तो तब अगले पृष्ठ पर धारणा बदल जाती है। ऐसा कई बार होता है लेकिन यह रहस्य-रोमांच उपन्यास के मध्य भाग से पूर्व तक तो ठीक है लेकिन उपन्यास के मध्य भाग पश्चात उपन्यास अपने साफ इंसाफ नहीं कर पाता और कहानी का अंत/अपराधी जिस व्यक्ति को दिखाया गया है वह भी कोई उचित न लगा।
  उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- खूनी की प्यासी
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स मेरठ
पृष्ठ- 222
मूल्य- 60₹