नफरत में लिपटी एक मासूम जिंदगी।
नफरत की दीवार- अनिल मोहन, थ्रिलर उपन्यास, पठनीय, मध्यम।
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एक ऐसे इंसान की कहानी, जो हर नये दिन के साथ नफरत की मजबूत दीवारों की गिरफ्त में फंसता चला गया।
अजय को बचपन से ही घर से नफरत मिली और यह नफ़रत दिन प्रति दिन बढती ही गयी
उपन्यास का आरम्भ होता है जब अजय अपनी पत्नी सुनीता के साथ घर में प्रवेश करता है। सुनीता का घर में प्रथम दिवस, गृह प्रवेश और उसका व्यवहार पाठको को आश्चर्यचकित करता है।
- मैं सिर्फ इज्जतदार लोगों की ही इज्जत करती हूँ, ऐरे-गैरे से तो मुझे बात करना ही पसंद नहीं। (पृष्ठ-11)
- मैं तुम दोनो से भी बड़ी चुडैल हूँ, इस बात को हरदम अपने दिमाग में रखना।(पृष्ठ-11)
अब पाठक के आश्चर्य का यह कारण है की वह ऐसा क्यों करती है लेकिन अगले पृष्ठ पर यह रहस्य खुल जाता है। जब अजय के भाई विमल- सुरेश और उनकी पत्नियां सुधा और अनिता आपस में चर्चा करते हैं।
अजय अगर छब्बीस साल की उम्र होने तक शादी कर लेता है तो उसे रामदयाल जी की संपत्ति में से हिस्सा मिलेगा अन्यथा नहीं।
जब अजय अपनी शादी की बार चलाता है तो अजय के भाई सुरेश और विमल अजय को उसकी मंगेतर कल्पना सहित खत्म करने का प्लान बनाते हैं और सफल भी हो जाते हैं।
लेकिन एक दिन अजय घर आ पहुंचता लेकिन कल्पना के साथ नहीं, अपनी पत्नी सुनीता।
- अजय जीवित कैसे बच गया?
- क्या हुआ कल्पना का?
- सुनीता कौन है?
- अजय से उसके परिवार वाले नफरत क्यों करते हैं?
- संपत्ति और वसीयत और शादी का आपस में क्या संबंध है?
- अजय के भाई उसके दुश्मन क्यों है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर तो अनिल मोहन जी का उपन्यास 'नफरत की दीवार' पढकर ही मिलेगा।
उपन्यास का प्रथम चरण है जब अजय सुनीता के साथ शादी करके घर पहुंचता है, तब एक आश्चर्य होता है की अजय को मारने की किसने कोशिश की, अजय कैसा बचा और उसकी प्रेयसी कल्पना कहां है, और अचानक सुनीता से शादी करके घर कैसे पहुंच गया?
द्वितीय चरण वह है जिसमें अजय के बचपन का वर्णन है यह चरण बहुत ही भावुक है।
तृतीय चरण वह है जिसमें अजय अपने दुश्मनों से बदला लेता है।
उपन्यास में गलती-
उपन्यास के अंत में रंजन का कत्ल हो जाता है लेकिन कोई स्पष्ट ही नहीं हो पाता की कत्ल किसने किया।
तभी रंजन की चीख गूंजी और वह जुदा होकर दूर जा गिरा। .....रंजन के पेट में मूठ तक चाकू धंसा था।(पृष्ठ-202)
- उपन्यास में 'मंगेतर' शब्द को जगह-जगह पर 'मंगेदर' लिखा गया है।
- राधिका एक जगह अजय को वसीयत की सत्यता बताती है। यह दृश्य उपन्यास में किसी भी दृष्टि से मेल नहीं खाता।
राधिका को क्या जरुरत थी इस सत्य को बताने की?
संवाद-
उपन्यास संवाद के स्तर पर कोई विशेष नहीं है फिर भी कई जगह कुछ संवाद पठनीय हैं।
- सच्चे प्यार की चाहत न तो कभी कम हो सकती है और न ही समाप्त हो सकती है। (पृष्ठ-192)
निष्कर्ष-
उपन्यास का आरम्भ बहुत रोचक और संस्पेंश से भरा है और मध्यांतर भाग अजय के बचपन से संबंधित बहुत ही भावुक है।
उपन्यास के आरम्भ में पाठक जहां पल-पल चौंकता है वहीं मध्यांतर में उसकी आँखों से आँसू बह जाते हैं लेकिन उपन्यास का समापन बदला प्रधान हिंसक फिल्म की तरह है जिसमें कोई ज्यादा आनंद नहीं आता। बस लेखक ने उपन्यास का समापन करना था जैसे-तैसे कर दिया।
उपन्यास एक बार पढी जा सकती है। अच्छी है।
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उपन्यास- नफरत की दीवार
लेखक - अनिल मोहन
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 236
मूल्य-60₹