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Monday, 12 March 2018

102. दस बजकर दस मिनट- अरुण सागर

कत्ल की अनोखी साजिश
दस बजकर दस मिनट- अरुण सागर, जासूसी उपन्यास, मर्डर मिस्ट्री, पठनीय।
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विनोद कपूर राजधानी दिल्ली का नंबर वन गार्डन डिजायनर था। (पृष्ठ-07) और उसकी‌ पत्नी किरण कपूर एक प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार। किरण के पास कोई अज्ञात एस. एस. नामक आदमी प्रेम पत्र भेजता है और कभी उसे जान से मारने की धमकी देता।
          विनोद कपूर इस समस्या का हल  ढूंढने के लिए क्राइम एक्सपर्ट सूरज खन्ना की मदद लेता है। जासूस- क्राइम एक्सपर्ट सूरज खन्ना जब विनोद कपूर की कोठी पहुंचता तब दस बजकर दस मिनट पर किरण कपूर की हत्या हो जाती है।
                                  सूरज खन्ना अभी इस मर्डर मिस्ट्री का हल नहीं ढूंढ पाता उधर सिरफिरा कातिल और भी कत्ल कर देता है।
          यह मर्डर मिस्ट्री बहुत उलझी हुयी है। जासूस सूरज खन्ना के लिए एक चुनौती है की कातिल उसकी उपस्थिति में कत्ल कर गया और उसे पता तक न चला और कत्ल भी इस अंदाज से की‌ पाठक चौंक जाये।
लेखक अपने लेखकिय में लिखता है - अपने प्रथम उपन्यास दस बजकर दस मिनट में मैं‌ मर्डर का एक ऐसा तरीका दिखा रहा हूं जो आपने तो किसी से सुना होगा और कहीं पढा होगा। इस उपन्यास में किरण कपूर का कत्ल तो गोली से, जहर से और किसी अन्य तरीके से हुआ। (लेखकीय पृष्ठ से) और वास्तव में लेखक ने यहाँ एक नया प्रयोग किया है। यह प्रयोग क्या है यह तो बस उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है।
 
    उपन्यास का आरम्भ बहुत ही रोचक ढंग से होता है। उपन्यास के आरम्भिक पृष्ठ ही पाठक को स्वयं में कैद करने में इतने सक्षम हैं की पाठक पूरा उपन्यास पढता चला जाता है।
कुछ रोचकता देखिएगा।
- किरण कपूर अपने विशेष मित्र सुरेश साहनी से अक्सर मिलती है।
- विनोद कपूर को किरण कपूर और सुरेश साहनी पर संदेश है।
- विनोद कपूर अपनी पर्सनल सक्रेटरी ज्योति पाठक को पसंद करता है।
- ज्योति पाठक एक अन्य युवक को पसंद करती है।
- वह अन्य युवक किरण कपूर को इमोशल ब्लैकमेल करता है।
- एक है डबल एस. (एस.एस.) जो किरण कपूर को एक तरफा प्यार करता है।
- एक है स्वीटी जो किरण को बचपन से ही प्यार करता है।
- सुरेश साहनी भी किरण को चाहता है और विनोद कपूर तो सुरेश साहनी से नफरत करता है।
          
 
उपन्यास में ऐसे कई रोचक प्रसंग हैं जो उपन्यास को रोचक बनाने में पूर्णतः सक्षम है।
            उपन्यास में रोचक प्रसंग ही नहीं बल्कि रोचक पात्र भी है। एक पात्र है स्वीटी और दूसरा पात्र है प्राणनाथ कपूर।
                        स्वीटी का उपन्यास में जब भी आगमन होता है वह हर बार एक नया रहस्य पैदा कर जाता है। कभी वह पागल लगता है, कभी प्रेमी, कभी हत्यारा और कभी सनकी। और एक बात और बात भी ये की वो बात भी बहुत करता है।
उपन्यास में प्राणनाथ का नाम खूब चर्चा में रहता है लेकिन वह स्वयं उपन्यास के अंतिम चरण में पाठक के समक्ष आता है। और जब वह सामने आता है तो स्वयं सूरज खन्ना के मुँह से एक ही बात निकलती है-  बाहर आकर उसने पांच मिनट तक गहरी- गहरी साँस ली और फिर बुदबुदा उठा- "क्या कैरेक्टर था यार।" (पृष्ठ209)
      उपन्यास के पात्र दमदार हैं तो कुछ संवाद भी पठनीय है।
" ....फिर भी औरत, औरत होती है और वो हमेशा पूजा के काबिल होती है।"(पृष्ठ-200)
" बुजदिल बार-बार मरते हैं। मौत से डरने वाला भला जिंदगी का आनंद क्या जाने।"(पृष्ठ-222)
गलतियाँ-
              किसी भी रचना में लेखक या मुद्रण के दौरान कुछ गलतियाँ रह जाना स्वाभाविक है। प्रस्तुत उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियाँ है। लेकिन ये गलतियाँ उपन्यास के प्रवाह को बाधित नहीं करती।
- जैसा हर फिल्म में शाहरुख खान का कैरेक्टर दिखाया गया था। (पृष्ठ-39)
   यहाँ हर की जगह डर शब्द आना था।
- "क्या नाम है उसका?"
  "किरण कौल"
  "ओह! तो किरण कपूर आपकी वाइफ है..।"(पृष्ठ-40)
यहाँ पहले किरण कौल लिखा और फिर किरण कपूर जबकि सही नाम किरण कपूर ही है‌।
- "विनोद भैया के डैडी। प्राणनाथ ....." कौल।..."(पृष्ठ-123)
यहाँ प्राणनाथ कपूर नाम आना था।
     उपन्यास के कुछ पृष्ठ इतने धुंधले हैं की पढने में भी परेशानी का सामना करना पङा।
   निष्कर्ष-     
                अरुण सागर का प्रस्तुत उपन्यास 'दस बजकर दस मिनट' एक जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री है। जो की आरम्भ से अंत तक पाठक का भरपूर मनोरंजन करेगी, कातिल भी पाठक की आँखों के सामने होगा पर पाठक वहाँ तक पहुंच नहीं पायेगा और जब क्राइम एक्सपर्ट कातिल तक पहुंचता है तो पाठक भी चौंके बिना नहीं रह पाता।
        दस बजकर दस मिनट एक पठनीय उपन्यास है जो पाठक को किसी भी स्तर पर निराश नहीं करेगा।
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उपन्यास - दस बजकर दस मिनट
लेखक -   अरुण सागर
प्रकाशक-  शिवा पॉकेट बुक्स- मेरठ
वर्ष-       -
पृष्ठ        - 239
मूल्य      -
लेखक का पता-
   - अरुण आनंद
      540, G.H.-13
       पश्चिम विहार, नई दिल्ली- 110087
         

Tuesday, 6 March 2018

101. चालीसा का रहस्य- डाॅ. रुनझुन सक्सेना

हनुमान चालीसा और मर्डर मिस्ट्री का अनोखा संयोग।
चालीसा का रहस्य- रुनझुन सक्सेना, जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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  लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में जहां परम्परागत आधार पर उपन्यास लेखन की अंधानुकरण परम्परा रही है, वहीं कुछ लेखकों ने नये प्रयोग भी किये हैं। हालांकि ऐसे प्रयोग बहुत कम देखने को मिलते हैं । ऐसा ही एक प्रयोग किया है डाॅ. रुनझुन सक्सेना शुभानंद ने अपने प्रथम उपन्यास 'चालीसा का रहस्य' में। 
      उपन्यास में हनुमान चालीसा को आधार बना कर कैसे एक रहस्य को सुलझाया जाता है यह वास्तव में पठनीय है। लेखिका का यह प्रयोग कामयाब भी रहा है। हनुमान चालीसा के छंदों को एक नये रूप में प्रस्तुत करना प्रशंसनीय कार्य है।
               डाॅ. अंजना एक मशहूर शोधकर्ता होने ले साथ -साथ एक सुशिक्षित प्रोफेसर एवं अत्यंत प्रतिभाशाली गाइड भी थी। (पृष्ठ-5) और एक दिन दिल का दौरा पङा और उसके कुछ दिन उनकी मृत्यु हो गयी। सभी को डाॅ. अंजना की मृत्यु संदिग्ध लगी।
      डाॅ. अंजना का एक सुयोग्य शिष्य संजीव जो की डाॅ. अंजना के सानिध्य में P.HD. कर रहा होता है। जब संजीव डाॅ. अंजना की मृत्यु के पश्चात अपने थीसिस के पेपर लेने अंजना के घर जाता है वहाँ से उसे एक रहस्यम बक्सा मिलता है और उस बक्से के साथ एक हनुमान चालीसा की छोटी सी पत्रिका।
       लेकिन न तो वह बक्सा कोई सामान्य था और न वह हनुमान चालीसा। वह कोई साधारण बक्सा न था। वह एक विशेष पद्धति से खुलने वाला एक बक्सा था। 
और जब वह बक्सा खुला तो कई रहस्य सामने आये।

- क्या डाॅ. अंजना की मृत्यु स्वाभाविक थी या अस्वाभाविक?
- क्या था उस बक्से में?
- वह बक्सा कैसे खुला? (उपन्यास का यह एक सस्पेंश भाग है)
- संजीव की थीसिस का क्या हुआ?
- डाॅ. अंजना के कातिल कौन थे?
- डाॅ. अंजना की हत्या क्यों हुयी, कैसे हुयी?
- हत्यारा कैसे पकङा गया?
- क्या रहस्य था हनुमान चालीसा में?
    ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्नों के उत्तर डाॅ. रुनझुन सक्सेना शुभानंद द्वारा लिखे गये उपन्यास 'हनुमान चालीसा' को पढकर ही‌ मिलेंगे।
         
          उपन्यास कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। जहाँ एक तरफ यह उपन्यास मर्डर मिस्ट्री है और उस मर्डर मिस्ट्री को हल करने वाले युवा हैं, वहीं उपन्यास में मेडिकल क्षेत्र की बहुत सी जानकारी भी उपन्यास में उपलब्ध है। इनके साथ-साथ हनुमान चालीसा की व्याख्या भी बहुत सुंदर ढंग से दी गयी।
           अगर बात सिर्फ हनुमान चालीसा की व्याख्या की करें तो यह व्याख्या मात्र धार्मिक दृष्टिकोण से न देकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दी गयी है। इसमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि को प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उदाहरण देखें- "...नायक भगवान राम हैं। वह शरीर है, जो कि तुम हो।.....माँ सीता ' आत्मा' है जो तुम्हारे सुक्ष्म शरीर (Astral body) का प्राण है.........इसी तरह लक्ष्मण तुम्हारी 'चेतना' या यूँ कहो कि 'विवेक' और 'इच्छा शक्ति' का रूप है।..।" (पृष्ठ-45)
          इसी प्रकार हनुमान चालीसा भी एक सामान्य पत्रिका न होकर हमारे मन को जानने का एक रास्ता है।
- हनुमान चालीसा तुम्हे तुम्हारे अंतस को जानने का रास्ता दिखाती है और हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर भी वहीं छिपे होते हैं। बस जरूरत  सिर्फ यह जानने की है कि कैसे कोई अपने अंतस को पहचानकर उसके भीतर गहरे में छिपे गूढ ज्ञान को जानकर सारे उत्तर ढूँढने में सफल हो सकता है।"-(पृष्ठ-42)

गलती-

Friday, 2 March 2018

100. आग का खेल- आरिफ माहरवी

एक छोटी सी मर्डर मिस्ट्री
आग का खेल- आरिफ माहरवी, मर्डर मिस्ट्री, औसत
उपन्यास
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      आरिफ माहरवी अपने समय के चर्चित उपन्यासकार रहे हैं। मैंने इस उप‌न्यास से पहले उ‌नका लिखा गया कोई भी उपन्यास नहीं था।
  आग का खेल उनका लिखा गया एक छोटा सा परंतु रोचक उपन्यास है।
        
  सेठ सोमनाथ जो की शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसायी है। एक रात उनके कमरे में आग लग जाती है और सेठ जी उस आग में जल कर मर जाते हैं।
                   CID के अफसर को यह मामला दिया जाता है और वे अपने विवेक से इस मर्डर मिस्ट्री को हल करते हैं। और अनंतः असली अपराधी को पकङ लेते हैं।
     उपन्यास की यही एक छोटी सी कहानी है और शेष उपन्यास इस पर केन्द्रित है। 
- सेठ सोमनाथ का हत्यारा कौन है?
- सेठ सोमनाथ की हत्या क्यों की गयी?
- हत्यारा कैसे पकङा गया।
                          उपन्यास में बार-बार कई पात्रों पर शक होता है की ये पात्र हत्यारा हो सकता है। और कभी ये अभी लगता है कहीं कोई गहरी साजिश तो नहीं।
          
     किसी भी मर्डर मिस्ट्री में तीन प्रश्न महत्वपूर्ण होते हैं ( मृत्यक और हत्यारा, हत्या का कारण, हत्यारा कैसे पकङा गया) और कहानी इन्हीं पर ही आधारित होती है। आग का खेल उपन्यास में यही तीनों बाते संतुलन बना कर चलती हैं।
  
      हत्या होने के पश्चात पाठक के मन में सर्वप्रथम यही प्रश्न उठता है की हत्यारा कौन है। यहाँ भी सेठ सोमनाथ की हत्या के पश्चात् यही प्रश्न पूरे उपन्यास में घूमता है।
        और CID के होनहार सदस्य इरफान(उपन्यास में इर्फान लिखा है) और कैसर इस रहस्य को सुलझाते हैं।
  
  उपन्यास में दृश्य भी ज्यादा नहीं है। चार-पांच जगह से ज्यादा के दृश्य नहीं है।
सेठ सोमनाथा का घर, सोहना लाल का घर , होटल, CID का आॅफिस इत्यादि।
           उपन्यास के प्रथम दृश्य में लेखक दादर के दृश्य को छोङकर कहीं भी ऐसा नहीं लगता के उपन्यास में कोई अनावश्यक विस्तार हो।  और उपन्यास का यही दृश्य हास्य उत्पन्न करने वाला है।
  "रोमांस तो लेखकों का भाग्य होता है बेगम...वह वास्तविक जीवन में नहीं तो उपन्यास के पन्नों में रोमांस लङाते हैं। बाल सफदे भी हो जायें तो भी ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे उपन्यास के हीरो हम ही हैं।" (पृष्ठ-24)
   
  निष्कर्ष में कह सकते हैं की आरिफ माहरवी का उपन्यास आग का खेल एक औसत स्तर का उपन्यास है। उपन्यास छोटा सा है लेकिन किसी भी स्तर पर पाठक को निराश भी नहीं करता। कहानी एक बार तो पठने योग्य है। 
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उपन्यास- आग का खेल
लेखक - आरिफ माहरवी
प्रकाशक- स्टार पॉकेट बुक्स, 4/5 B, आसफ रोङ, नई दिल्ली-01
वर्ष- नवंबर, 1971
पृष्ठ- 128
मूल्य-