तीनों मित्रों की हाॅस्टल गाथा।
बनारस टाॅकिज- सत्य व्यास, उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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सत्य व्यास का उपन्यास बनारस टाॅकिज कहानी है B.D. की। अच्छा तो आप B.D. का अर्थ नहीं जानते। चलो कोई बात नहीं, अक्सर ऐसा होता है। आप ने B.H.U. का नाम सुना है। अरे! क्या बात करते हो...ये भी नहीं सुना। इसीलिए कहते हैं बाउ साहब कि जरा इधर-उधर भी देखा कीजिएगा। (पृष्ठ-09)
B.H.U. के B.D. में B.D. जीवी रहते हैं। अब आप पूछेंगे कि ये बी. डी. जीवी क्या बला है? रूम नंबर-73 में जाइए और जाकर पूछिए कि भगवान दास कौन थे? जवाब मिलेगा- घण्टा। (पृष्ठ-09)
तो अब तो आप समझ गये होंगे किसकी चर्चा चल रही है। ये भगवान दास है बाउ साहब। 'भगवानदास हाॅस्टल'। समय की मार और अंग्रेजी के भार से, जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय सिमट कर B.H.U. हुआ; ठीक उसी समय 'भगवानदास हाॅस्टल' सिमट कर B.D. होस्टल हो गया। (पृष्ठ-09)
तो यह उपन्यास कहानी कहता है भगवान दास होस्टल में रहने वाले मित्रों की। जो व्यक्ति विद्यार्थी जीवन में हाॅस्टल जिंदगी जी चुका है उसे इस उपन्यास में अपने जीवन की झलक नजर आयेगी। हाॅस्टल की जिंदगी में जो प्यार-मोहब्बत, मित्रों का स्नेह, आपसी झगङे वे सब इस उपन्यास में लेखक ने बुने हैं। लेकिन यह उपन्यास मात्र हाॅस्टल जीवन की कथा ही बयान नहीं करती इसके अलावा भी और बहुत कुछ कहती है, लेकिन वह सब कहा गया है भगवान दास हाॅस्टल के विद्यार्थी वर्ग के माध्यम से।
वह क्या है उसका पता तो उपन्यास के अंत में जाकर ही पता चलता है। तब पाठक भी यही सोचता है की अच्छा कहानी यह थी। लेखक ने उपन्यास ने आरम्भ में स्पष्ट लिखा है। हर घटना के पीछे कोई कारण होता है। संभव है कि यह घटित होते वक्त आपको न दिखे; लेकिन अंततः जब यह सामने आएगा, आप सन्न रह जायेंगे।
वह कौनसी घटना है यह तो उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है, लेकिन यह सत्य है की उस घटना को पढकर पाठक सन्न रह जाता है।
192 पृष्ठ के उपन्यास में 168 पृष्ठ तक पाठक को पता तक नहीं चलता की आखिर लेखक इस उपन्यास में कहना क्या चाहता है, लेकिन पृष्ठ संख्या 168 से उपन्यास का वह भाग आरम्भ होता है जिस पर यह उपन्यास आधारित है।
उपन्यास में विभिन्न रंग पाठको को देखने को मिलेंगे। प्यार, गुस्सा, हास्य, व्यंग्य आदि।
उपन्यास में हास्यरंग भी जगह-जगह बिखरें हैं। ऐसा ही एक उदाहरण देखिए-
दरअसल, परीक्षा में बैठने वाले अधिकतर लोगों को यह भी पता नहीं होता कि सवाल पूछा क्या गया है और जवाब लिखना क्या है? वो तो वही लिखते हैं जो उन्हें आता है। (पृष्ठ-129)
यह तो मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव है की विद्यार्थी वही लिखता है जो उसके दिमाग में है वह चाहे प्रश्न का उत्तर हो या न हो। ऐसा ही इस उपन्यास के पात्र करते हैं।
.....पाण्डे सर ने हमसे कहा और आगे पढने लगे- "दूसरा केस है- Tyre vs.Tube......जी! आपने बिलकुल ठीक सुना। पार्टीज हैं, B. Tyre vs. C. Tube.....अब इस केस के फैक्ट पढ रहा हूँ- फ्लेंटिक अर्थात् वादी, टायर कंपनी में काम करता था। उसका काम टायर में हवा भरने का था। एक दिन अचानक टायर में हवा भरते वक्त ट्यूब फट गया। जिससे सुनने शक्ति चली गयी। वादी ने अपनी टायर कंपनी से compensation मांग की, जो कंपनी ने ठुकरा दी। इस पर वादी ने वाद दायर किया।" (पृष्ठ-131)
उपन्यास को विभिन्न खण्डों में विभक्त किया गया है और प्रत्येक खण्ड का अलग से नाम है, जैसे- हम हैं कमाल के, ओये लकी लकी ओये, लगान, कोहराम, एक दिन अचानक।
भाषाशैली-
उपन्यास की भाषाशैली की बात करें तो यह परम्परागत कथा साहित्य से अलग हटकर है। उपन्यास में हालांकि सामान्य भाषा प्रयुक्त हुयी है लेकिन अंग्रेजी शब्दावली का जिस तरह से इस उपन्यास में प्रयोग हुआ है वह चिंतनीय है। आखिर लेखक इस तरह की भाषा को प्रयुक्त कर रहा है। क्या भारत में एक नयी भाषा शैली विकसित हो रही है। सामान्य बोलचाल के शब्दों तक तो सब ठीक था लेकिन लेखक ने पूरे के पूरे वाक्य ही अंग्रेजी भाषा और लिपि में लिख दिये।
उपन्यास में कुछ जगह कुछ कमियां भी खटकी-
उपन्यास प्रथम पुरुष में है लेकिन पृष्ठ संख्या ...में यह अन्य पुरुष में चला जाता है।
- उपन्यास में अंग्रेजी शब्दावली की भरमार तो है ही है, साथ में रोमन लिपि की की भी।
- अंग्रेजी में एक कहावत है- Birds of same feather flock to gether.(पृष्ठ-15)
- राजीव भी satellite love case का शिकार था। (पृष्ठ-50)
- हम कल रात को नंबर try किये थे। call detail में वही पहला नंबर था। (पृष्ठ-72)
- शिखा! Please don't mind - अगर मैं एक बात कहूँ?"- मैंने शिखा से कहा। (पृष्ठ-192)
अब पता नहीं लेखक ने जगह-जगह इतनी अंग्रेजी शब्दावली/लिपि क्यों प्रयुक्त की है।
शायद ही कोई ऐसा पृष्ठ हो जिसमें अंग्रेजी शब्दावली/लिपि न प्रयुक्त हो।
- उपन्यास में गालियों की संख्या ने स्वाद खराब कर दिया। उपन्यास में गालियों का काफी प्रयोग हुआ है। अगर ये गालिया न भी होता तो भी चलता। पाठक गालियों के लिए नहीं, अच्छी कहानी के लिए पढते हैं।
निष्कर्ष-
सत्य व्यास का उपन्यास बनारस टाॅकिज एक हाॅस्टल में रहने वाले कानून की पढाई करने वाले दोस्तों की कहानी कहता है।
हालांकि उपन्यास में नयापन कुछ भी नहीं है, लेकिन उपन्यास का प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा है और उसी वजह से उपन्यास चर्चित भी रहा है।
उपन्यास पूर्णतः मनोरंजक है पाठक को किसी भी स्तर पर निराश नहीं करेगा।
पठनीय और रोचक उपन्यास है।
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उपन्यास- बनारस टाॅकिज।
ISBN-978-93-81394-99-1
लेखक- सत्य व्यास
प्रकाशक- हिंद युग्म
पृष्ठ- 192
मूल्य-140₹
प्रथम संस्करण- जनवरी 2015
नौवी आवृति- सितंबर 2017
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अगर आपने यह उपन्यास पढा हैऔर आपको कैसा लगा, अपने विचार अवश्य बतायें।
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