ट्रेनिंग स्कूल के परिंदे- उपन्यास समीक्षा
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हाल ही में अतिव्यस्तता के बीच उपन्यास पढा वो है, राजेन्द्र दूबे जी का 'ट्रेनिंग स्कूल के परिंदे''
उपन्यास का कथानक एक ट्रेनिंग स्कूल पर केन्द्रित है, वहां के कर्मचारीवर्ग में पनपी ईर्ष्या, द्वेष,कपट व तुच्छ राजनीति के साथ-साथ एक मासूम सी प्रेमकथा भी चलती है।
कहानी की सबसे बङी विशेषता यह है कि कहानी में कसावट है, पाठक इसे एक बैठक में पढना चाहेगा।
जहां-जहां विभिन्न पात्रों में आपसी टकराव होता है, वहाँ-वहाँ रोचकता बढती जाती है।
हालाकि उपन्यास के मध्य भाग में उपन्यास के खलपात्रों से हटकर कहानी प्रेम मार्ग पर चली जाती है, और उपन्यास की गति धीमी हो जाती है। उपन्यास के अंत में वह रोचकता पुनः लौट आती है।
लेखक का यह प्रथम उपन्यास है, कहानी अच्छी है पर संशोधन की बहुत आवश्यक है, शाब्दिक गलतियाँ भी काफी है।
पृष्ठ संख्या 25 पर देखिएगा।
मिस्टर डे ने कहा- .....
मिस्टर चौहान ने कहा- .....
मिस्टर डे ने कहा- ....
मिस्टर चौहान ने कहा- .....
मिस्टर डे ने कहा- ........
दो व्यक्तियों की वार्तालाप में बार-बार इस प्रकार के शब्दों की पुनरावृति नीरसता पैदा करती है और लेखक ने यह गलती पूरे उपन्यास में की है।
दूसरा उपन्यास के पात्रों के चेहरे के भाव कस कहीं भी चित्रण नहीं।
लेखक ये दोनों गलतियाँ एक साथ सुधार सकता था।
इस प्रकार 'नोन-वेज' शब्द प्रत्येक जगह 'भेज' रूप में छपा है।
हालाँकि स्वयं लेखक ने भी स्वीकारा है कि उपन्यास में संशोधन की जरूरत है।
रेल मंत्रालय, भारत सरकार के 'प्रेमचंद पुरस्कार' से सम्मानित यह उपन्यास कथानक के तौर पर पाठक को निराश नहीं करेगा।
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उपन्यास -ट्रेनिंग स्कूल के परिंदे
लेखक - राजेन्द्र दुबे
पृष्ठ -248
मूल्य-सजिल्द-295, पेपर बैक-120/-रुपये
लेखक संपर्क -9431953410, 9046669043
-rdrajenderadubey@gmail.com
विशेष - लेखक द्वारा सुविधानुसार निशुल्क प्रति भी पाठक को भेजी जा रही है॥
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हाल ही में अतिव्यस्तता के बीच उपन्यास पढा वो है, राजेन्द्र दूबे जी का 'ट्रेनिंग स्कूल के परिंदे''
उपन्यास का कथानक एक ट्रेनिंग स्कूल पर केन्द्रित है, वहां के कर्मचारीवर्ग में पनपी ईर्ष्या, द्वेष,कपट व तुच्छ राजनीति के साथ-साथ एक मासूम सी प्रेमकथा भी चलती है।
कहानी की सबसे बङी विशेषता यह है कि कहानी में कसावट है, पाठक इसे एक बैठक में पढना चाहेगा।
जहां-जहां विभिन्न पात्रों में आपसी टकराव होता है, वहाँ-वहाँ रोचकता बढती जाती है।
हालाकि उपन्यास के मध्य भाग में उपन्यास के खलपात्रों से हटकर कहानी प्रेम मार्ग पर चली जाती है, और उपन्यास की गति धीमी हो जाती है। उपन्यास के अंत में वह रोचकता पुनः लौट आती है।
लेखक का यह प्रथम उपन्यास है, कहानी अच्छी है पर संशोधन की बहुत आवश्यक है, शाब्दिक गलतियाँ भी काफी है।
पृष्ठ संख्या 25 पर देखिएगा।
मिस्टर डे ने कहा- .....
मिस्टर चौहान ने कहा- .....
मिस्टर डे ने कहा- ....
मिस्टर चौहान ने कहा- .....
मिस्टर डे ने कहा- ........
दो व्यक्तियों की वार्तालाप में बार-बार इस प्रकार के शब्दों की पुनरावृति नीरसता पैदा करती है और लेखक ने यह गलती पूरे उपन्यास में की है।
दूसरा उपन्यास के पात्रों के चेहरे के भाव कस कहीं भी चित्रण नहीं।
लेखक ये दोनों गलतियाँ एक साथ सुधार सकता था।
इस प्रकार 'नोन-वेज' शब्द प्रत्येक जगह 'भेज' रूप में छपा है।
हालाँकि स्वयं लेखक ने भी स्वीकारा है कि उपन्यास में संशोधन की जरूरत है।
रेल मंत्रालय, भारत सरकार के 'प्रेमचंद पुरस्कार' से सम्मानित यह उपन्यास कथानक के तौर पर पाठक को निराश नहीं करेगा।
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उपन्यास -ट्रेनिंग स्कूल के परिंदे
लेखक - राजेन्द्र दुबे
पृष्ठ -248
मूल्य-सजिल्द-295, पेपर बैक-120/-रुपये
लेखक संपर्क -9431953410, 9046669043
-rdrajenderadubey@gmail.com
विशेष - लेखक द्वारा सुविधानुसार निशुल्क प्रति भी पाठक को भेजी जा रही है॥
सार्थक और सम्यक् समीक्षा के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद Gurprit जी।
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