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Saturday, 23 March 2024

आश्रिता- संजय

कहानी वही है।
आश्रिता- संजय

श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सूरज की परछाईं पश्चिम आकाश से सागर के गम्भीर सीने में उतरने लगी थी। ढलते सूरज की पीली किरणें लहरों से आँख-मिचौनी खेलती हुई देखने वालों की आँखें चकाचौंध कर रही थीं, मानो सागर में लहरें नहीं सोने के चमकते टुकड़े तैर रहे हों। (उपन्यास अंश)

  लोकसभा चुनाव -2024 में मेरी नियुक्ति विद्यालय से चुनाव शाखा में 'स्वीप कार्यक्रम' अंतर्गत लगायी गयी है। पहला दिन था, कोई विशेष कार्य नहीं था और दूसरा दिन भी वैसा ही रहा। इन दो दिनों में मैंने लेखक 'संजय' का उपन्यास 'आश्रिता' पढा। यह एक परम्परागत चली आ रही कहानी है।
लेखक ने बहुत ही सरल शब्दों में अच्छे प्रस्तुतीकरण के साथ उपन्यास को पठनीय बना दिया है।
        बात करें उपन्यास की कहानी की तो इसमें मुख्य पात्र विक्रांत है। विक्रांत के माँ-बाप का देहांत हो गया है। और कम्पनी का संचालन उसका रिश्ते में चाचा शिवचरण है। जो विक्रांत को छोटी उम्र में ही लंदन पढने भेज देता है। शिवचरण के परिवार में उसकी पत्नी और एक बेटा-बेटी है। बेटा रंजीत आवारा किस्म का है। वहीं सेठ शिववरण भी एकाउंटेंट मिसेज गुलाटी जाल में फंसे रहते हैं।
  जब अपनी शिक्षा पूर्ण कर और बालिग होकर विक्रांत वापस लौटता है तो उसके चाचा शिवचरण को यह पसंद नहीं आता। क्योंकि उसे डर था कम्पनी में किये गये आर्थिक घोटाले की सूचना विक्रांत को मिल सकती है।
सेठ शिवचरण एकाउंटेंट मिसेज गुलाटी से मिलकर गुलाटी की बेटी रतिका के माध्यम से विक्रांत को फंसाना चाहते हैं।
   जब विक्रांत अपनी कम्पनी में पुराने कार्मिकों को नहीं देखता तो उसे आश्चर्य होता है। हालांकि मैनेजर नागवानी और पुराना नौकर भोलाराम उसे सब सत्य बता देते थें।
  अब विक्रांत को तलाश थी पुराने कैशियर देवदत्त के की क्योंकि वह उसकी पुत्री गार्गी से प्रेम करता था।
  तो कहानी अब ऐसे बनती है एक तरफ सेठ शिवचरण, मिसेज गुलाटी और उसकी पुत्री तारिका है और द्वितीय तरफ है विक्रांत। जिसे आस्तीन के सांपों से भी निपटना है और अपनी प्रेयसी गार्गी को भी खोजना है।
  इस कथानक पर बहुत से उपन्यास और फिल्मे बन चुकी हैं। अधिकांश पाठकवर्ग का यह फार्मूला पढा हुआ भी है। यहाँ लेखक संजय ने किसी भी घटना को बिलकुल भी उलझाया नहीं है। मुख्य पात्र विक्रांत बहुत ही सरल स्वभाव का है। वह अपने चाचा की हर गलती को माफ करता है।
वहीं जब तारिका के कारण विक्रांत और गार्गी की सगाई टूटने पर आती है तो लगता है यहाँ वहीं फिल्म मोड़ आयेगा पर गार्गी बहुत ही सादगी से इस रिश्ते को बचा लेती है।
  'आश्रिता' एक सामाजिक उपन्यास है, जिसकी कहानी बहुत ही सरल जो पाठक को अच्छी लग सकती है। कहानी वही है, पुरानी, पर लेखक का अंदाज पाठक को प्रभावित करता है
अगर आप सामाजिक, पारिवारिक उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आप को पसंद आ सकता है। 

उपन्यास- आश्रिता
लेखक-    संजय
प्रकाशक- कुसुम प्रकाशन, इलाहाबाद
पृष्ठ-       126

उपन्यासकार संजय


1 comment:

  1. बहुत दिनों बाद आपका लेख प्रकाशित हुआ। कहानी के विषय में आपने सही कहा कि इस ढर्रे पर कई कहानियां लिखी गई हैं पर अगर कहानी कहने का तरीका रोचक हो तो पाठक को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। कहानी पढ़ने की इच्छा जगाता है लेख।

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