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Tuesday, 12 March 2024

सिकंदर की वापसी- कुमार कश्यप

सिकंदर फिर भारत में
सिकंदर की वापसी- कुमार कश्यप

केन्द्रीय गुप्तचर विभाग नई दिल्ली ।
शशांक चक्रवर्ती का मस्तिष्क ऑफिस में घुसते ही ठनका। मेज पर रखा प्रार्थना-पत्र हाथ बढाकर उठाते हुये दूसरे हाथ से घन्टी बजाई ।
चपरासी ने आकर सलाम बजाया ।
'बटलर को सूचना दो हमने तुरन्त बुलाया है ।'
'लेकिन श्रीमान!'
'क्या अभी तक ऑफिस में नहीं आये।' घड़ी देखते हुये चीफ शशांक चक्रवर्ती ने पूछा और पत्र खोलने लगे ।
'ऐसा नहीं। आये थे बटलर साहब। आपके हाथ में जो अर्जी है मेज पर पटक कर बोले- इस घुड़साल का गन्जा मालिक आ जाये तो बोल देना-महान बटलर युद्ध जीतने के लिये पलायन कर चुके हैं। छुट्टी की एप्लीकेशन में नौकरी छोड़ने का अल्टीमेटम भी रखा है... इस्तीफा । कह देना-दोनों में जो चीज पसन्द आये घसीट मारे । इतना कहा और आँधी तूफान की तरह फूट गये ।'
 यह प्रथम दृश्य है कुमार कश्यप जी द्वारा रचित उपन्यास 'सिकंदर की वापसी' का।


केन्द्रीय गुप्तचर विभाग का जासूस बटलर अपनी शादी के लिए भारत और अपनी नौकरी तक छोड़कर हांगकांग चला जाता है, जहां राजकुमारी  डिलेला हिग्ज अपने स्वयंवर हेतु विश्व के मूर्खों को आमंत्रित करती है।
  अंतरराष्ट्रीय ठग अमरजीत की मुलाकात चीन में ठग गुरु जगत से होती । जगत चीन के क्रांतिकारी सदस्य सफाई की मदद के लिए चीन में आता है। लेकिन चीन के सत्ता दल के जासूसों के कारण वह कुछ कर नहीं पाता ऐसी स्थिति में अमरजीत का का उसे सहयोग मिलता है।
   अब एक बार कहानी को पुनः भारत में ले चलते हैं। जब गुप्तचर संस्था का चीफ शंशाक चक्रवर्ती अपने कार्यालय पहुंचा तो उसे बटलर का कारनामा सुनने और पढने को मिला। इसी समय जासूस विक्रांत भी वहाँ पहुंच जाता है और शंशाक चक्रवर्ती महोदय विक्रांत को बताते हैं की उसके नाम(विक्रांत) से सरहद से सटे गांवों में कोई व्यक्ति आतंक फैला रहा है और नाम विक्रांत का बदनाम हो रहा है।यह भारतीय गुप्तचर विभाग की प्रतिष्ठा का सवाल है। अब विक्रांत का मिशन था उस कथित आतंकवादी डाकू विक्रांत का रहस्य उजागर करना।
  तो हम देखें तो उपन्यास के आरम्भ में कहानी तीन भागों में चलती है।
- एक बटलर की शादी
- दूसरी जगत और अमरजीत की चीन में
- तीसरी विक्रांत और डाकू की।
  उपन्यास का मुख्य विषय है विक्रांत और डाकू सिकंदर का। जब विक्रांत सरहदी क्षेत्र में विक्की बनकर पहुंचता है तो वहां उसकी मुलाकात मंझीनामक नौजवान और उसके साथी मैना, पतीले और सरपट खां से होती है। जहाँ एकमात्र मंझी वह व्यक्ति है जो सिकंदर का विरोधी। बाकी सरहद के सारे क्षेत्र के लोग सिकंदर से भयभीत रहते हैं, सिकंदर के नाम से ही गांव खाली हो जाते हैं।
यहां एक और पात्र सामने आता है वह है नर्गिस। नर्गिस उपन्यास का महत्वपूर्ण पात्र है और यही जानती है की वास्तव में डाकू सिकंदर कौन है। लेकिन सिकंदर और नर्गिस एक ही पार्टी के होने के पश्चात भी दोनों में मतभेद है।
नर्गिस के लिए डाकू सिकंदर और विक्रांत आपस में संघर्ष करते नजर आते हैं। और यही पात्र कहानी को बदलने में सक्षम भी है।
  हां, उपन्यास के अंत में एक मेले का आयोजन होता है और यहां पर सभी पात्र एकत्र हो जाते हैं। वह पात्र भी जिनका उपन्यास के आरम्भ में कहीं वर्णन तक भी नहीं और वह भी जिनका गलती से कहीं जिक्र हो गया है। क्योंकि यह उपन्यास का क्लाइमैक्स है तो सभी का एकत्र होना जरूरी है क्योंकि खलपात्रों का मरना आवश्यक है ना और कुछ रहस्य भी खुलने आवश्यक है।
उपन्यास का अंत बिलकुल फिल्मी है जहाँ क्लाइमैक्स में बाजी बार-बार पलटती है और अंत में खल पात्र बाजी हार जाते हैं और उपन्यास के रहस्य खुल जाते हैं और उपन्यास कथा का अंत हो जाता है।
  उपन्यास में पात्रों की भरमार है और वह भी नायक पात्रों की। विक्रांत, बटलर, अमरजीत, जगत, जयंत (छोटा सी भूमिका), चक्रांट।
लेखक महोदय ज्यादा पात्र एकत्र करने के चक्कर में कुछ पात्रों को अच्छी तरह से नहीं लिख पाये।
उपन्यास में कहानी कम और विस्तार ज्यादा नजर आता है। आरम्भ में तो बेपैरसिर की बातों से पृष्ठ भरे गये हैं। अगर पाठकों ने 'बटलर' को पढा है तो उन्हें पता होगा की बटलर बात -बात पर 'शुद्ध हिंदी में कहते हैं' वाक्य का बहुत प्रयोग करता है।
अब दृश्य देख लीजिए जब सिकंदर और विक्रांत का सामना होता है।
विक्रांत ने कहा- 'यह मौत की कहानी आज से नहीं महीनों से चल रही है। तुम सबने मिलकर भारत के गांव लूटे हैं गांव वालों को खत्म किया है । अदालत में मैं यह मुकदमा लेकर गया तो वर्षों लग जायेंगे । उसके बाद भी तुम बेदाग छूट जाओगे क्योंकि हमारे देश में बिकने वाले जयचन्द और मीर जाफरों की कमी नहीं ।
इसलिये मैं यानि कि विक्रांत अपने हिसाब से, अपने उसूलों के हिसाब से तुम सबको सजाये मौत देता हूं।'
और इस बेरहम ने उन पर पागलों की तरह दांत पर दांत जमाकर गोलियों की बौछार कर दी ।

एक सिकंदर वह था जिसने कभी भारत को लूटने की कोशिश की थी और एक अब यहाँ डाकू सिकंदर है।
  इस उपन्यास का कुछ संबंध पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'ज्वालामुखी' से भी है। हालांकि 'ज्वालामुखी' उपन्यास मैंने नहीं पढा।
उपन्यास कथा स्तर पर बिलकुल ही सामान्य है। अनावश्यक वार्तालाप, अर्थहीन डायलॉग और असंगत कथा को विस्तार देकर पृष्ठ वृद्धि की गयी है। उपन्यास में अगर कहीं रोचकता है तो वह है काली कफनी वाले फकीर का रहस्य । हालांकि उस फकीर की भूमिका बहुत कम है।
अगर आप जासूस वर्ग के कारनामे पढना चाहते हैं या फिर कुमार कश्यप के प्रशंसक हैं तो आप उपन्यास ओढ सकते हैं।

उपन्यास- सिकंदर की वापसी
लेखक-    कुमार कश्यप
पृष्ठ-        248
प्रकाशक- पूजा पॉकेट बुक्स, मेरठ
मूल्य -    10₹ (तात्कालिक समय)

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