रीमा भारती, डकैती और आतंकवाद
साढे सात करोड़- रीमा भारती
रीमा भारती हिंदी उपन्यास साहित्य में एक चर्चित नाम रहा है। दिनेश ठाकुर की कलम निकली रीमा भारती को आधार बना कर बहुत से लेखकों ने लिखा। रीमा भारती नाम से एक लेखिका भी मैदान में आयी। जानकारी अनुसार लेखिका रीमा भारती के उपन्यासों पर जो लेखिका की तस्वीर थी वह दिनेश ठाकुर की पत्नी है।
लेखिका रीमा भारती द्वारा रचित रीमा भारती सीरीज का उपन्यास 'साढे सात करोड़' पढा। यह एक रोचक उपन्यास है।
उपन्यास प्रथम पुरुष में लिखा गया है सूत्रधार है रीमा भारती।
मै...!
आपकी चिर-परिचित दोस्त रीमा ... रीमा भारती । आपकी चहेती जासुसी संस्था आई.एस. सी. की नम्बर वन एजेन्ट । दुश्मनों और गद्दारों के लिये साक्षात मौत और आपके सपनों की रानी । मां भारती की शरारती, अल्हड़, किन्तु लाड़ली बेटी।
रीमा के पास सेठ त्रिभुवन दास आता है अपनी एक फरियाद लेकर।
"नमस्ते!"- एकाएक वह भारी भरकम स्वर में बोल उठा। "कहिये!” - मैंने उसके अभिवादन का जवाब देने के बाद उससे पूछा।
"मेरा नाम त्रिभुवनदास पारिख है। मैं इसी महानगर का रहने वाला हूँ। चेम्बूर में मेरा अपना निवास है।" वह अपना परिचय देने के बाद बोला-“कुछ अपराधी किस्म के लोगों ने मेरे बेटे को हत्या के जुर्म में फँसा दिया है। जबकि उस बेचारे का उस शख्स की हत्या से कोई वास्ता नहीं था।” वह बोला- “उस पर हत्या का मुकदमा चला और तमाम सबूत उसके खिलाफ थे। कानून ने उसे फांसी की सजा सुना दी। इस महीने की तीस तारीख को मेरे बेटे को फांसी होने वाली है। भगवान के लिये मेरे बेटे को फांसी की से बचा लीजिये, वरना मैं तबाह हो जाऊंगा। जीते जी मर जाऊंगा। प्लीज भगवाने के लिये मेरे मदद कीजिये।”
कुछ विशेष परिस्थितियों और ISC के चीफ खुराना के कहने पर रीमा भारती त्रिभुवन दास के पुत्र को अपराधियों के जाल से मुक्त करवाने के लिए तैयार हो जाती है।
और वह पहुंच जाती है पंजाब के शहर जलंधर में। जहाँ जागीरा और बलदेव नामक दो बदमाश छुपे हुये थे जिन्होंने त्रिभुवन दास के पुत्र को फंसाया था। जागीरा और बलदेव दोनों खुमान सिंह नामक एक खतरनाक गैंगस्टर के आदमी हैं।
खुमान सिंह !
पैंतीस साल के आसपास पहुंचा गोरे रंग वाला निहायत खूबसूरत शख्स था ।
साढ़े छः फुट के आसपास लंबा कद । तन्दुरुस्त जिस्म ! चेहरे पर स्याह रंग की दाढ़ी, जो करीने से तराशी नजर आ रही थी। चौड़ा माथा, जिस पर अजीब-सी चमक थी । और सर्पीली आंखें ।
जागीरा और बलदेव दोनों अपने बाॅस खुमान सिंह से अलग 'साढे सात करोड़' से भरी एक बैंक वैन लूटने की योजना बनाते हैं। जिसमें शामिल हो जाती रीमा भारती। ध्यान रहे यहाँ रीमा भारती सीमा नाम से और मेकअप में काम करती है।
आप सोच रहे होंगे सेठ त्रिभुवन दास पारिख के कथित पुत्र की तलाश में आयी रीमा भारती बैंक वैन लूट में कहां शामिल हो रही है। अगर आपने रीमा भारती के उपन्यास पढे हैं तो आपको पता ही होगा की रीमा भारती के उपन्यासों का मूल विषय आतंकवाद ही होता है तो फिर यह उपन्यास आतंकवाद से कैसे वंचित रह जाता।
बैंक वैन लूट ली गयी, कुछ हत्याएं (?) भी हुयी और सारा माल न चाहते हुये भी रीमा, जागीरा और बलदेव जे हाथ न लगा। हाँ, रीमा भारती खुमान सिंह के हाथ लग गयी जो एक बैंक लूट की योजना बना रहा था।
खुमान सिंह का संबंध आतंकवाद से है और रीमा आतंकवाद की दुश्मन है। तो पाठक मित्रो, फिर घमासान मचना ही था। और जब घमासान मचा रीमा आयी एक्शन में और दुश्मनों को किया खत्म।
ठहरो, कहानी अभी बाकी है।
सेठ त्रिभुवन दास के पुत्र का क्या हुआ? यह आप उपन्यास पढकर जाने तो ज्यादा अच्छा होगा।
उपन्यास में रीमा का मुख्य काम सेठ त्रिभुवन दास के पुत्र को हत्या के आरोप से बरी करवाने हेतु सबूत तलाश करने होते हैं। पर उपन्यास में रीमा कहीं और ही भटकती नजर आती है। मूल कथा आरम्भ और अंत में ही है। रीमा डकैती में शामिल होना अतार्किक घटनाक्रम है।
रीमा भारती का एक डायलॉग-
- मैं जीती-जागती मौत हूँ, जिसके बेरहम हाथों से आज तक कोई नहीं बच सका।
उपन्यास थ्रिलर है। जहाँ कहानी का पहले ही पता होता है और समापन का भी। बस प्रस्तुतीकरण महत्व रखता है। प्रस्तुत उपन्यास में, कहानी में काफी अपरिपक्वता है लेकिन तेज रफ्तार और रोमांच पाठक को प्रभावित करता है। लेखिका महोदया अगर कहानी पर और परिश्रम करती तो उपन्यास ज्यादा अच्छा बनता। फिर भी उपन्यास एक बार पढा जा सकता है। हल्की- फुल्की कहानी, कोई उलझाव नहीं, तेज रफ्तार आदि शामिल हैं।
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