एक खतरनाक जीव की कहानी
किंबो- अनिल मोहन
दृश्य- 01
कंगूरा आइलैण्ड
'फच्चाक...।' अगले ही पल आदिवासी शिकारी की नाभी में बड़ा सा सुराख हुआ और चीख गूंजती चली गई-"आह..."
'कड़ाक...'- तभी नाभी के रास्ते गुजरता किंबो नामक जीव पीछे पीठ की हड्डी तोड़ता बाहर जा उछला।
दृश्य-02
'कड़ाक।' पहले आदिवासी के पृष्ठ भाग की खोपड़ी टूटी। उसमें चार इंच चौड़ी हड्डी टूटकर नीचे गिरी और उसके बाद किंबो बाहर की तरफ हवा में लहराता चला गया।
दृश्य-03
"किंबो मानव शरीर में कहीं से भी घुस सकता है। फिर भी जिस शरीर को इसने अपना घर बनाना होता है यह उस शरीर में मुँह से प्रवेश करता है या नीचे गुप्तांग से। (पृष्ठ-17)
उक्त दहशत भरे दृश्य हैं रवि पॉकेट बुक्स से प्रकाशित लोकप्रिय साहित्य के सितारे अनिल मोहन जी द्वारा लिखित उपन्यास 'किंबो-एक अजूबा' नामक के।
मैं जब यह उपन्यास पढ रहा था तो दो बातें मेरे दिमाग में आई। एक तो किसी जीव को आधार बना कर लोकप्रिय साहित्य में कोई उपन्यास नहीं लिखा गया।
द्वितीय इस उपन्यास की चर्चा क्यों नहीं होती?
इस पर चर्चा आगे करते हैं।
यह कहानी है श्रीलंका से आगे स्थापित एक छोटे से टापू कंगूरा आइलैंड की। भौतिकता की चकाचौंध से दूर इस टापू पर कुछ जंगली आदिवासी रहते हैं। लेकिन एक दिन टापू पूरे विश्व में चर्चित हो गया और वह भी एक खतरे के साथ। वह खतरा था एक नौ इंच का एक खतरनाक जानवर-किंबो।
उस छोटे से टापू पर किंबो ने दहशत का का वो दौर आरम्भ किया जिसके बारे में सुनते ही लगभग लोग खौफ से डर जाते थे। ऐसा खौफ था किंबो का।
किंबो! किंबो! किंबो!
इस टीवी. डाक्यूमेंट्री के जरिये किंबो की दहशत घर-घर में छा गई। दर-दर पर छा गई।
पूरी दुनिया में बस इसी एक ही जीव को लेकर कोहराम मच गया।
देश-विदेश आपस में किंबो को लेकर चर्चा करने लगे। अटकलें लगाने लगे। अंदेशे जताने लगे।
किंबो कब से कंगूरा आईलैण्ड पर राज कर रहा है?
किंबो की दहशत कब तक कंगूरा आईलैण्ड पर जारी रहेगी?
वो आईलैण्ड के बाद दूसरे देशों में भी पहुंच सकता है?
क्या स्त्री शरीर किंबो का एकमात्र निवास स्थान है?
क्या किंबो अमर है? उसे किसी तरह से मारा नहीं जा सकता?
जितने मुँह उतनी बातें।
हर जगह एक ही सवाल। एक ही जंजाल।
किंबो! किंबो! किंबो!
जहाँ एक तरफ पूरे विश्व में किंबो की दहशत हावी होती जा रही थी वहीं कुछ सरफिरे ऐसे भी थे जो किंबो के माध्यम से संपूर्ण विश्व पर अपना राज स्थापित करना चाहते थे। जिसमें एक था डाॅक्टर कांगो और था तथाकथित स्वामी सेवानंद।
दोनों ही किसी न किसी तरीके से किंबो को प्राप्त करना चाहते थे।
दिल्ली में अर्जुन भारद्वाज अपने मित्र इंस्पेक्टर जय सिंह राजपूत के से किंबो की चर्चा करता है। और प्रण लेता है कि वह किंबो की दहशत खत्म कर देगा।
अनिल मोहन जी ने अर्जुन भारद्वाज शृंखला के कुछ उपन्यास लिखे हैं। हालांकि प्रस्तुत उपन्यास में अर्जुन का कोई विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता की वह कौन है लेकिन इतना पता चलता है कि वह अपराधियों को अवैधानिक तरीके से सजा देता है। वह अपराधियों का खात्मा करता है। क्यों?, कारण कहीं स्पष्ट नहीं है।
वहीं दिल्ली में एक मर्डर किंग भी है जोहै। वह लोगों के मदद के लिए हत्या तक कर देता है।
उपन्यास का कथानक यहीं आकर अपने मूल कथानक से भटक जाता है।
यहाँ कहानी चलने लगती है स्वामी सेवानंद और मर्डर किंग की। और बीच में आ टपकता है अर्जुन भारद्वाज और पीछे छूट जाता है किंबो।
उपन्यास का मध्य भाग स्वामी सेवानंद पर आधारित है जो उपन्यास की गति धीमी करता है। और इस पात्र के बिना भी उपन्यास लिखा जा सकता था।
अगर उपन्यास का कथानक किंबो था तो पूरा ध्यान उसी पर ही रखना था। डॉक्टर कांगो के खतरनाक प्रयोग दिखाये जा सकते थे लेकिन लेखक महोदय यहाँ कहानी को कहीं ओर ही ले चले। यहीं कारण है कि किंबो जैसे अच्छे उपन्यास की चर्चा नहीं होती।
हालांकि उपन्यास के आरम्भिक लगभग पचास पृष्ठ तो इतने रोचक और दहशत पैदा करने वाले हैं कि पाठक उपन्यास से दूर नहीं जाना चाहेगा इसके अतिरिक्त कंगूरा आईलैंड के दृश्य और डॉक्टर कांगो के चार आदमियों का कंगूरा टापू पर किंबो को ढूढने का वर्णन घटनाएं भी रोचक हैं।
एक जानवर को आधार बना कर लिखा गया यह उपन्यास रोमांच से परिपूर्ण है। यह उपन्यास साहित्य में एक अच्छा प्रयोग है जो पाठकों की उम्मीदों पर खरा उतर सकता है।
अगर आपने यह उपन्यास पढा है तो अपनी राय अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।
रायसिंहनगर रेल्वे प्लेटफॉर्म, RSNR |
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 255
#अर्जुन भारद्वाज सीरीज
वाह!! यह तो एक अनूठा प्रयोग सा लगता है। अगर मौका मिलेगा तो इसे पढ़ना चाहूँगा....
ReplyDeleteजबरदस्त लग रहा है सर जी लगता है पढ़ना पड़ेगा
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