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Thursday, 26 March 2020

282. हीरोइन की हत्या- आनन्द कुमार सिंह

एक यादगार उपन्यास
हीरोइन की हत्या- आनन्द के. सिंह

- उसकी आँख खुली तो वह अस्पताल में था।
- उस पर एक हीरोइन की हत्या का आरोप था।
- वह अपनी याददाश्त खो चुका था।

वाह ! क्या रोचक दृश्य है। कि एक आदमी की आँख खुलती है और उसे पता चलता है की उस पर एक कत्ल का आरोप है और लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं, यहाँ तक की वह अपना नाम तक भूल जाता है। और मजे की बात तो यह है की वह खुद इन्वेस्टिगेटर (जासूस) है और मृतक उसकी क्लाइंट।
         'हीरोइन की हत्या' पत्रकार-लेखक आनन्द सिंह का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। आनंद सिंह पेशे से पत्रकार -लेखक हैं। प्रस्तुत उपन्यास का online संस्करण किंडल पर ही प्रकाशित हुआ है लेकिन इसके कथानक ने हर पाठक को प्रभावित किया है।
कहानी है प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर यश खांडेकर की। जिस पर आरोप है प्रसिद्ध फिल्म हीरोइन झंकार मिर्जा की हत्या का। जो की उसकी क्लाइंट भी हैै।
    इंस्पेक्टर ने अपनी बात आगे बढ़ायी “ आज से चार दिन पहले यानी एक अगस्त को तुमने फिल्म स्टार झंकार मिर्जा के फ्लैट में घुसकर उसका कत्ल किया। उसने बचने की काफी कोशिश की थी। लेकिन मर्द अधिक ताकतवर होता है। तुमने झंकार को काबू किया। चाकू उसके पेट में भोंका। घर से भागे लेकिन सीढ़ियों से भागते वक्त तुम फिसले। कॉन्क्रीट की सीढ़ियों से तुम टकराये और बेहोश हुए। और फिर यहाँ पहुंचे। मतलब अस्पताल। ये कहानी हमें पता है। इसके पहले की कहानी बताओ। कत्ल क्यों किया भाई?”
यश खाण्डेकर क्या उत्तर देता वह तो खुद को भी भूल चुका था। “म्म्मुझे....कुछ याद नहीं.. सर सच बताऊं तो मुझे अपना नाम तक याद नहीं आ रह।”
     लेकिन पुलिस कहां मानने वाली थी। उसे तो अपराधी मिल चुका था। वह अतिरिक्त मेहनत से बच रही थी। लेकिन यश खाण्डेकर को तो स्वयं पर लगे आरोप को निराधार साबित करना था।
उसे खुद ही अपने को निर्दोष साबित करना होगा।
लेकिन कैसे?
क्या वो भाग जाये? 
फिर खुद असली खूनी को ढूंढे?
असली खूनी?

लेकिन उसे तो कुछ याद नहीं.. क्या वो खुद खूनी नहीं हो सकता?
उसके दिल ने गवाही न दी।
नहीं.... बिल्कुल नहीं...।

       तो यह है कहानी का नायक यश खाण्डेकर और मृतका है  हीरोइन झंकार‌ मिर्जा और आरोपी है यश खाण्डेकर। अब यश खाण्डेकर के समक्ष बड़ी चुनौती है स्वयं को निरपराध साबित करना वह भी उस स्थिति में जब की वह स्वयं सब कुछ विस्मृत कर चुका है। और पुलिस कस्टडी में रहते हुए यह इतना आसान भी नहीं और गजब तो तब हो जाता है जब कुछ अज्ञात लोग यश खाण्डेकर की जान के पीछे पड़ जाते हैं। जहां तो उसे एक तरफ स्वयं को निर्दोष साबित करना है वहीं स्वयं की जान भी बचानी है।
- क्या यश खाण्डेकर यह कर पायेगा?
- क्या यह हत्या यश खाण्डेकर ने की है या किसी और ने?
- क्या यश खाण्डेकर की स्मृति लौट पायी?

       ऐसे अनेक प्रश्न उठते हैं और उनका समाधान तो खैर उपन्यास पढने पर ही मिलेगा। हां यश खाण्डेकर के लिए इतना अवश्य कह सकते हैं- न जाने कैसा किस्मत का मारा है..अच्छा खासा प्राइवेट इनवेस्टिगेटर का कैरियर था और आज एक खूनी का लेबल उसके सिर पर चिपका हुआ है, और आज पुलिस के अलावा प्रोफेशनल किलर भी उसके पीछे लगा है।
        लेखक ने एक नया प्रयोग यह किया है की नायक एक ऐसा व्यक्ति चुना है जो स्वयं की स्मृति भूल चुका है। और इस परिस्थिति में उसका अपराधी को खोजना बहुत रोचक लगता है।‌ ऐसे समय में उसे यह भी पता नहीं चलता की सामने वाले से वह पहले से परिचित है या नहीं लेकिन नायक यश खाण्डेकर जिस तरह से परिस्थितियों से सामना करता है वह उसकी बौद्धिक क्षमता का अच्छा उदाहरण है लेकिन कहीं कहीं उसे मुख की भी खानी पड़ती है।
             उपन्यास का घटनाक्रम इतना तेज और संधा हुआ है की कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती। ऐसे उपन्यास बहुत कम देखने को मिलते हैं जो पृष्ठ दर पृष्ठ रोचकता बनाये रखते हों। हालांकि यह कथानक है तो मर्डर मिस्ट्री, और बहुत से लेखकों ने भी मर्डर मिस्ट्री लिखी है लेकिन आनन्द कुमार सिंह जी का प्रस्तुतीकरण इसे विशेष बनाता है।

        अब चर्चा करते हैं उपन्यास के कुछ पात्रों की। उन पात्रों की जिनके विषय में उपन्यास में थोड़ा बहुत वर्णित है।
उपन्यास में अधिकांश पात्र अपराधिक पृष्ठ भूमि के ही हैं हालांकि कुछ पात्रों का वर्णन या किरदार उपन्यास में बहुत कम है।
इंस्पेक्टर बलदेव-
                उपन्यास में इंस्पेक्टर बलदेव नारंग का किरदार बहुत मजबूती से उभरा है। कहीं-कहीं तो इंस्पेक्टर का किरदार नायक (यश खाण्डेकर) से भी दो कदम आगे नजर आता है। लेखक ने जिस हिसाब से इंस्पेक्टर का किरदार लिखा है उम्मीद है आगे भी यह किरदार पढने को मिलेगा। एक इंस्पेक्टर जिसका अंदाज चाहे खलनायक जैसा हो लेकिन काम एक नायक जैसा ही है।- पुलिस की वर्दी में न होने पर भी कोई अंधा भी बलदेव को देखकर पुलिसवाला बता सकता था। भारी चेहरा, सख्त  और चौड़ी हथेलियां, चेहरे पर नाराजगी का स्थायी भाव।...........बलदेव की ताकत पूरे पुलिस महकमे में मशहूर थी। एकबार तो उसके केवल एक घूंसे से एक कुख्यात अपराधी की मौत हो गयी थी।
- भले ही बलदेव कभी भी फील्ड में अपनी वर्दी में नहीं होता था लेकिन घाघ लोग न जाने क्यों उससे सतर्क हो जाते थे। मानों उन्हें लगता था कि कोई खतरा चला आ रहा है।


मिकी
        एक पेशेवर हत्यारा । जिसे यश खाण्डेकर को मारना का काम मिला है।
मिकी बेहद शांत था। वह एक पतला दुबला, लंबे बालों वाला निरीह सा दिखने वाला आदमी था। भीड़ में खो जाने लायक।

मिकी की नजर में इससे आसान कोई कॉन्ट्रैक्ट उसे कभी नहीं मिला था। अस्पताल में पड़े, हथकड़ियों से बंधे एक आदमी को मारना ही तो था।


बदरुद्दीन बारूद
             जिसे बलदेव केवल बारूद पुकारता था, एक शातिर दिमाग अपराधी था। पतला-दुबला, चूहे की शक्ल वाला बारूद उसका भरोसेमंद मुखबिर था। अपराध की दुनिया में बदरुद्दीन उर्फ बदबू बारूद की पहचान एक फ्रीलांसर के तौर पर थी। यानी कहीं किसी छोटी-मोटी चोरी को अंजाम देना हो, जिसमें ज्यादा लोगों की जरूरत पड़े तो बारूद को याद किया जाता था, या फिर किसी टारगेट की नजरदारी का काम हो, बारुद उसे अपराध की दुनिया का वह चलता-फिरता इंसाइक्लोपीडिया माना जाता था।

जीशान हैदर-
             जीशान हैदर, बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा हो गया था। शुरुआत उसने फिल्म के टिकटों के ब्लैक से की थी। फिर चोरी और फिर सशस्त्र डकैती में वह ग्रेजुएट हुआ।
दयानंद शिरके- 
              दयानंद शिरके नाम का एक पुराना दागी मवाली है। वो आमतौर पर सायन के इलाके में ऑपरेट करता है। ज्यादातर फ्रीलांसर के तौर पर काम करता है।

दिनेश मेहता- 
             यूं तो दिनेश मेहता कहने को एक एंटीक डीलर था। लेकिन मूल रूप से वह चोरी का माल खरीदने वाला जरायमपेशा था और साथ ही बलदेव का वह खबरी भी था।
लेखक ने अपराधी वर्ग का अच्छा चरित्र उभारा है लेकिन वहीं अन्य वर्ग को इससे उपेक्षित रखा है। उसके साथ-साथ अन्य वर्ग का ऐसा चरित्र चित्रण होना चाहिए था।
यश खाण्डेकर- नायक, प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर
झंकार मिर्जा- मृतका, हीरोइन
निवेदिता- झंकात की बहन
पाटिल- झंकार का पति
जोया शर्मा- नर्स
जागृति पाण्डे- यश खाण्डेकर की सेक्रेटरी
मिकी- एक पेशवर अपराधी
जसवंत चपलगांवकर- फिल्म निर्माता
महक- जसवंत की पत्नी
पुलिस कमिश्नर राजेंद्र शेखावत
जीशान हैदर- एक अपराधी
जुबैन जादरान - फिल्म निर्माता
साइमन ब्रिगेंजा - एक दुकानदार
नताशा शेरगिल - एक गौण पात्र
रतन- चपरासी अस्पताल, गौण पात्र
माथुर- वकील, गौण पात्र।

पूरे उपन्यास में मुझे गलती कही नजर आयी तो वह है मिकी द्वारा यश का बार-बार पता लगाना। अब यह पता कैसे लगाता है कहीं स्पष्ट नहीं।
         अगर उपन्यास में कुछ यादगार कथन होते तो औए भी अच्छा था।
मर्डर मिस्ट्री आधारित तेज रफ्तार उपन्यास मुझे बहुत रुचिकर लगा। पाठक अंत तक असली अपराधी का पता नहीं लगा सकता जब तक की जासूस नहीं बताता। एक अच्छे उपयोग की यह भी पहचान होती है की वह सस्पेंश अंत तक बनाकर रखे और इस दृष्टि से यह उपन्यास खरा उतराता है। अभी तक उपन्यास का ebook संस्करण आया है उम्मीद करते हैं इसका Hardcopy संस्करण भी आये।


यह तेज रफ्तार उपन्यास वास्तव में दिलचस्प और रोचक है। एक यादगार उपन्यास लेखन के लिए लेखक महोदय को हार्दिक धन्यवाद।
अगर आपने यह उपन्यास पढा है तो अपनी विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।

उपन्यास- हीरोइन की हत्या
लेखक- आनंद के. सिंह
प्रकाशन ebook (किंडल वर्जन)
अमेजन/ किंडल लिंक-  हीरोइन की हत्या- आनंद कुमार सिंह

2 comments:

  1. यह वकाई रोचक उपन्यास है। किताब के प्रति रुचि जगाती टिप्पणी।

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  2. बेहतरीन थ्रिलर एक ही बैठक नें पठनीय

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