जब हुयी विश्वास की हत्या
थ्रिलर उपन्यास, लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
वे तीन दोस्त थे, वक्त की मार से तीनो ही बेरोजगार थे। एक दिन उन्होंने एक निर्णय लिया, एक लूट का। यह स्वयं से वादा भी किया की यह लूट उनकी जिंदगी की पहली और आखिर लूट होगी।
यह अपराध भी सब के सामने आ गया। लेकिन यह काम किया किसने। तभी तो सभी एक दूसरे से पूछते हैं। “तुमने कोई ऐसी हरकत तो नहीं की जिसे विश्वास की हत्या का दर्जा दिया जा सकता हो?”
जगदीप कभी अमेरिकन अम्बेसी में ड्राइवर हुआ करता था, वर्तमान में बेरोजगार है। सूरज एक असफल पहलवान था। गुलशन घर से फिल्मी हीरो बनने निकल लेकिन असफल होकर वापस लौट आया। संयोग से तीनों बेरोजगार हैं, आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं।
तीनों एक ऐसे अपराध में फंस जाते हैं, जहां उन्हें लगता की वे कभी पकड़े नहीं जायेंगे। पर अपराध छिपा नहीं रहता। लेकिन अपराधी कानून से दूर भागने की कोशिश करता है। यही कोशिश इस उपन्यास के तीनों पात्र करते हैं, लेकिन होता वहीं है जो 'राम रचि राखा'।
उपन्यास में एक तरफ इन तीनों के पीछे पुलिस है तो दूसरी तरफ कुछ खतरनाक गुण्डे भी इनके पीछे लगे हैं। क्या तीनों दोस्त अपनी जान बचाने में सफल हो पाते हैं? यह पढना दिलचस्प होगा।
यह पाठक जी का एक थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की कहानी की बात करें तो इसका आरम्भ चाहे एक घटना से होता है लेकिन आगे कहानी पूर्ण विस्तार ले लेती है। हम यूं कह सकते हैं एक रास्ता है और उस रास्ते से छोटे-छोटे अनेक रास्ते निकलते हैं। यही इस कहानी में होता है। उपन्यास का आरम्भ एक घटना से होता है और फिर छोटी-छोटी कई घटनाएं मिलकर एक बड़ी कहानी का रूप ले लेती हैं।
प्रत्येक पात्र की स्वयं की एक अलग अलग कहानी है और प्रत्येक कहानी में कोई न कोई 'विश्वास की हत्या' करता नजर आता है।
इस उपन्यास की जो मुझे विशेषता अच्छी लगी वह है उसके पात्रों का स्वतंत्र होना। सभी पात्र स्वतंत्र है, कहीं से भी नहीं लगता की लेखक इन पात्रों को अपने अनुसार चला रहा है।
उपन्यास में मुझे एक दो जगह कुछ कमियां खटकी।
“रिपोर्ट कहती है”—फिर उसने अपने साथियों को बताया—“कि मोहिनी के नाखूनों के नीचे से बरामद खून के सूखे कण तथा दारा का खून एक ही ब्लड ग्रुप का है।”
यह पता नहीं उपन्यास में कैसे संभव हो गया।
उपन्यास का एक और पात्र है जो अपने सीने पर खरोच के निशान बनाता है और किसी के चेहरे पर खरोच के निशान करता है ताकी वह किसी को फंसा सके, पर यह संभव नहीं है।
ऐसी बड़ी-बड़ी गलतियाँ पता नहीं कैसे रह गयी उपन्यास में।
इन कमियों के अलावा उपन्यास में सब कुछ रोचक है।
निष्कर्ष-
यह एक रोचक मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर है। यह मात्र मर्डर मिस्ट्री ही नहीं है, इसमें जो रोमांच है वह गजब है। कहानी कहां कब कैसे करवट लेती है यह पढना दिलचस्प है। आदि से अंत तक एक रोचक उपन्यास है।
उपन्यास- विश्वास की हत्या
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक-
थ्रिलर उपन्यास, लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
वे तीन दोस्त थे, वक्त की मार से तीनो ही बेरोजगार थे। एक दिन उन्होंने एक निर्णय लिया, एक लूट का। यह स्वयं से वादा भी किया की यह लूट उनकी जिंदगी की पहली और आखिर लूट होगी।
यह अपराध भी सब के सामने आ गया। लेकिन यह काम किया किसने। तभी तो सभी एक दूसरे से पूछते हैं। “तुमने कोई ऐसी हरकत तो नहीं की जिसे विश्वास की हत्या का दर्जा दिया जा सकता हो?”
जगदीप कभी अमेरिकन अम्बेसी में ड्राइवर हुआ करता था, वर्तमान में बेरोजगार है। सूरज एक असफल पहलवान था। गुलशन घर से फिल्मी हीरो बनने निकल लेकिन असफल होकर वापस लौट आया। संयोग से तीनों बेरोजगार हैं, आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं।
तीनों एक ऐसे अपराध में फंस जाते हैं, जहां उन्हें लगता की वे कभी पकड़े नहीं जायेंगे। पर अपराध छिपा नहीं रहता। लेकिन अपराधी कानून से दूर भागने की कोशिश करता है। यही कोशिश इस उपन्यास के तीनों पात्र करते हैं, लेकिन होता वहीं है जो 'राम रचि राखा'।
उपन्यास में एक तरफ इन तीनों के पीछे पुलिस है तो दूसरी तरफ कुछ खतरनाक गुण्डे भी इनके पीछे लगे हैं। क्या तीनों दोस्त अपनी जान बचाने में सफल हो पाते हैं? यह पढना दिलचस्प होगा।
यह पाठक जी का एक थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की कहानी की बात करें तो इसका आरम्भ चाहे एक घटना से होता है लेकिन आगे कहानी पूर्ण विस्तार ले लेती है। हम यूं कह सकते हैं एक रास्ता है और उस रास्ते से छोटे-छोटे अनेक रास्ते निकलते हैं। यही इस कहानी में होता है। उपन्यास का आरम्भ एक घटना से होता है और फिर छोटी-छोटी कई घटनाएं मिलकर एक बड़ी कहानी का रूप ले लेती हैं।
प्रत्येक पात्र की स्वयं की एक अलग अलग कहानी है और प्रत्येक कहानी में कोई न कोई 'विश्वास की हत्या' करता नजर आता है।
इस उपन्यास की जो मुझे विशेषता अच्छी लगी वह है उसके पात्रों का स्वतंत्र होना। सभी पात्र स्वतंत्र है, कहीं से भी नहीं लगता की लेखक इन पात्रों को अपने अनुसार चला रहा है।
उपन्यास में मुझे एक दो जगह कुछ कमियां खटकी।
“रिपोर्ट कहती है”—फिर उसने अपने साथियों को बताया—“कि मोहिनी के नाखूनों के नीचे से बरामद खून के सूखे कण तथा दारा का खून एक ही ब्लड ग्रुप का है।”
यह पता नहीं उपन्यास में कैसे संभव हो गया।
उपन्यास का एक और पात्र है जो अपने सीने पर खरोच के निशान बनाता है और किसी के चेहरे पर खरोच के निशान करता है ताकी वह किसी को फंसा सके, पर यह संभव नहीं है।
ऐसी बड़ी-बड़ी गलतियाँ पता नहीं कैसे रह गयी उपन्यास में।
इन कमियों के अलावा उपन्यास में सब कुछ रोचक है।
निष्कर्ष-
यह एक रोचक मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर है। यह मात्र मर्डर मिस्ट्री ही नहीं है, इसमें जो रोमांच है वह गजब है। कहानी कहां कब कैसे करवट लेती है यह पढना दिलचस्प है। आदि से अंत तक एक रोचक उपन्यास है।
उपन्यास- विश्वास की हत्या
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक-
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