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Sunday, 14 July 2024

विनाशदूत विकास- वेदप्रकाश शर्मा

 विश्व के लिए खतरा बना विकास
विनाशदूत विकास- वेदप्रकाश शर्मा , तृतीय भाग
अमेरिका के जलील हुक्मरानो, कान खोलकर सुनो, मुझे मंगल-सम्राट कहो या विनाशदूत, मैं तुमसे मुखातिब हूं और कहना ये चाहता हूं कि तुम लोगों ने अपने देश के शहरों में होता हुआ विनाश तो देख ही लिया होगा। मेरे पास इतनी शक्ति है कि दस मिनट के अंदर पूरे अमेरिका को तबाह कर सकता हूं, लेकिन मेरा सिद्धांत तुम्हारे सिद्धांत की तरह नीच नहीं है। विश्व के पर्दे से किसी भी देश का नामो-निशान मिटाना मैं उचित नहीं समझता। विकास अब भी तुम्हें मौका देता है कुत्तों, मेरे देश से यह भयानक जाल हटा लो। मेरी तरफ से इसके लिए पैंतालीस दिन निश्चित हैं। याद रखना, अगर पैंतालीस दिन के अंदर मेरे देश से सी.आई.ए. का जाल नहीं हटवाया तो अमेरिका का एक भी बच्चा छियालिसवें दिन का सूरज नहीं देख सकेगा।
  वेदप्रकाश शर्मा 'विजय-विकास' सीरीज के अंतर्गत महत्वपूर्ण खण्ड में से हमारे पास है चार उपन्यासों में फैली एक विस्तृत कहानी । जिसके दो भाग 'अपराधी विकास' और 'मंगल सम्राट विकास' पर हम चर्चा कर चुके हैं। अब बात करते हैं इस कहानी के तृतीय भाग 'विनाशदूत विकास' की।
  रियाब्लो यान के एक भाग को अलग कर विकास अपने साथी टुम्बकटू और धनुषटंकार के साथ जा पहुंचता है मंगल ग्रह पर और वह सिंगही की जगह स्वयं को सम्राट स्थापित कर लेता है। 
विकास मंगल-सम्राट के रूप में हीरे जड़ित सिंहासन पर विराजमान था। धनुषटंकार उसकी गोद में बैठा दनादन शराब पी रहा था और टुम्बकटू सिंहासन के दाईं ओर लहरा रहा था। वह अपनी विचित्र सिगरेट का आनंद ले रहा था। विकास के सुंदर जिस्म पर हीरे-जवाहरातों से जड़ा हुआ चमचमाता लिबास था। गोरे मस्तक पर एक मुकुट था ।
 यहाँ विकास की मुलाकात मंगलग्रह के वास्तविक लोगों से होती है। इन लोगों से ही सिंगही से मंगल की सत्ता छीनी थी। मंगलग्रह के पूर्व सम्राट के भाई जाम्बू की मदद से विकास अपना कार्य आगे बढाता है।
वहीं सिंगही के हैडक्वार्टर पर उसकी मुलाकात तुंगलामा से होती है। (विजय-विकास और अंतरराष्ट्रीय जासूस 'मैकाबर सीरीज' में तुंगलामा को पराजित कर चुके हैं।)
तुंगलामा एक महानी वैज्ञानिक है और उसके सहयोग से विकास अमेरिका पर आतंक फैलाना आरम्भ करता है।
संपूर्ण अमेरिका चौंक पड़ा।
न केवल चौंक पड़ा बल्कि कांप उठा। घटना ही ऐसी थी। न्यूयार्क! अमेरिका की भूतपूर्व राजधानी। घटना वहां की है। अमेरिका की सर्वोत्तम जासूसी संस्था सी.आई.ए.। इसी संस्था के चीफ का नाम था-फ्रिदतोफ नार्वे । सर्वविदित, सर्वविख्यात । सभी जानते थे कि फ्रिदतोफ नार्वे सी.आई.ए. का चीफ था, लेकिन इस व्यक्ति के साथ बड़ी अजीब-सी घटना पेश आई। ऐसी अजीब कि सरकारी मशीनरी हिलकर रह गई। फ्रिदतोफ नार्वे को देखते ही प्रत्येक व्यक्ति पहले कहकहा लगाता, फिर भयभीत होता और फिर आतंकित हो उठाता।
सी.आई.ए. के चीफ के साथ यह घटना हुई और सी.आई. ए. कुछ कर भी न सकी।
   दर असल तुंगलामा के विशेष प्रयोग की‌मदद से एक ऐसा इंजेक्शन तैयार करता है, जिसके‌लगाने से व्यक्ति स्वयं को बिल्ली महसूस करता है और बिल्ली जैसी ही हरकते करता है।
  अमेरिका में हर रोज बिल्ली बनने वालों की संख्या बढती जाती है। 
दूसरी तरफ यान का द्वितीय भाग भी मंगलग्रह की ओर बढ रहा था, जिसमें विजय, अलफांसे, प्रिंसेज जैक्शन, पूजा,वैज्ञानिक सुभ्रांत और उसने सहयोगी थे। इनका एक जी मकसद था किसी भी तरह विकास को अपराधी बनने से रोका जाये। पर विकास कहां रुकने वाला था। वह तो विनाशदूत बनकर अमेरिका को तबाह करने पर तुला था। 
 बादल पुनः गरजे, बिजली फिर चमकी ! इस बार ज्यूरेज के निवासियों के इंसानी जिस्म वृक्ष के सूखे पत्ते की भांति कांप उठे। उठे। रीढ़ की हड्डियों में एक ठंडी लहर दौड़ गई। जिसने आकाश पर गरजती हुई बिजली देखी, उसके मुंह से कांपती हुई आवाज निकली।
-“वि...ना...श...दू...त...वि...का...स!"
तुंगलामा के एक महत्वपूर्ण प्रयोग के द्वारा विकास अमेरिका के शहरों पर काला धुंआ और बिजली की चमक पैदा करता और फिर उस शहर को तबाह।
विकास ने अमेरिका को पैंतालीस दिन दिये थे कि वह पैंतालीस दिनों में भारत से सी. आई. ए. का जाल हटा ले या फिर स्वयं को बर्बाद होने के लिये तैयार कर लें।
लेकिन यह भी अमेरिका था इतनी आसान से हार नहीं मानने वाला था।
तुरंत सारे विश्व के प्रमुख देशों की सीक्रेट सर्विस से संबंध स्थापित किए गए।
परिणामातुर न्यूयार्क। एक गुप्त स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय जासूसों की एक मीटिंग हो रही थी। मीटिंग में प्रमुख जासूस थे।
अमेरिका से माइक, इंग्लैंड से ग्रीफित, रूस से बागारोफ, पाकिस्तान से चंगेज खां, काहिरा से अख्तर, जर्मन से हैम्बलर, चीन से फांगसान, बांग्लादेश से रहमान, फ्रांस से निवजलिंग, आस्ट्रेलिया से क्लार्क रॉबर्ट और भारत से पहुंचा था सीक्रेट सर्विस का चीफ पवन यानी ब्लैक ब्वॉय। यूं कोई जानता नहीं था कि ब्लैक ब्वॉय भारतीय सीक्रेट सर्विस का चीफ है। वह सीक्रेट सर्विस के एक एजेंट के रूप में ही गृह मंत्रालय से विशेष परमिशन के बाद आया था।
 और फिर सभी जासूस एकमत होकर चल पड़े मंगलग्रह पर विनाशदूत विकास को रोकने।
यानी जैकी आर्मस्ट्रांग। विकास का चौथा गुरु। विजय का भी गुरु। उसे जासूसों का देवता कहा जाता था। जैकी एक अखबार का क्राइम रिपोर्टर था। वह भी बुरी तरह बौखलाया हुआ था। वह क्या जानता था कि जिस लड़के को उसने स्वयं जासूसी के अनेक पैतरे सिखाए हैं, वही एक दिन अमेरिका के लिए काल बन जाएगा। वह जानता था कि विकास अपरिमित शक्ति और विलक्षण बुद्धि का मालिक है। उसे आज भी वे दिन याद हैं जब विकास उसके पास ट्रेनिंग ले रहा था और अचानक वह माफिया के विरुद्ध भड़क गया था। तब उसके मना करने पर भी यह लड़का माफिया से टकरा गया था। (पृष्ठ62)
जैकी और मारिया का पुत्र हैरी, जो की विकास का अच्छा दोस्त है और दोनों 'प्रलयंकारी विकास' केस में अमेरिकन माफिया को पराजित कर चुके हैं।
और एक दिन हैरी अपने घर, अपने कमरे में बिल्ली बना पाया गया।
   दोस्तो, यह था 'विनाशदूत विकास' उपन्यास का संक्षिप्त सार। हालांकि उपन्यास की कहानी इसके चतुर्थ भाग 'विकास की वापसी' में खत्म होगी।
  जहाँ एक तरफ विकास अपराधी बन चुका है। वह अमेरिका के शहरों को तबाह कर रहा है। विजय-अलफांसे के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय जासूस भी विकास को रोकने हेतु मंगलग्रह की ओर रवाना हो चुके हैं।
अब सफलता किसे मिलेगी और क्या विकास की वापसी इतनी आसानी से हो जायेगी।
वैसे वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों में विजय-विकास नारी से दूर ही रहते हैं लेकिन यहाँ तो विकास पूजा को मंगलग्रह तक साथ ले आया और पूजा विकास से अथाह प्रेम करती है।
क्या परिणाम निकला इस प्रेम कहानी का?
 यह सब बाते तो उपन्यास को पढकर जाने तो ज्यादा सही रहेगा।
  उपन्यास रोचक है और जासूस वर्ग के कारनामे पसंद करने वाले पाठकों के लिए अच्छा मनोरंजन भी, क्योंकि यहाँ रूस का प्रसिद्ध जासूस बागारोफ भी है। 
  वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा रचित 'विनाशदूत विकास' इस शृंखला का तृतीय उपन्यास है। जो मंगलग्रह की धरा से संबंधित है।
एक्शन और रोमांच से भरपूर कथानक है।
उपन्यास-    विनाशदूत विकास
लेखक-        वेदप्रकाश शर्मा
इस शृंखला के अन्य उपन्यास - लिंक
अपराधी विकास-       प्रथम भाग
मंगल सम्राट विकास- द्वितीय भाग
विनाशदूत विकास-    तृतीय भाग
विकास की वापसी  -  चतुर्थ भाग

मंगल सम्राट विकास - वेदप्रकाश शर्मा

क्या बन सका विकास मंगल सम्राट?
मंगल सम्राट विकास- वेदप्रकाश शर्मा (द्वितीय भाग)

नमस्ते पाठक मित्रो,
हमने वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित 'अपराधी विकास' में पढा की अमेरिका से बदला लेने के लिए विकास अपराधी बन जाता है और विश्व के अपराधियों से मदद की गुहार लगाता है।
   विकास की मदद के लिए मर्डरलैण्ड से प्रिंसेज जैक्सन, अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे और चन्द्रमा का भगोड़ा अपराधी टुम्बकटू पहुंचते हैं।
यहां विकास, पूजा और धनुषटंकार से मिलकर चर्चा करते हैं।
यहां एक विषय यह भी उठता है कि ब्रह्माण्ड का अपराधी सिंहंगी क्यों नहीं पहुंचा।
यहाँ सभी विकास को समझाते हैं पर जिद्दी विकास किसी की भी बात नहीं सुनता। उसका एक ही उद्देश्य था अपराधी बनकर अमेरिका को खत्म करना।
एक तो अमेरिका को खत्म करना आसान काम नहीं था, दूसरा स्वयं प्रिंसेज जैक्शन भी अमेरिकन थी। वह भी अमेरिका की तबाही नहीं देखना चाहती थी।
इसलिए प्रिसेंज जैक्सन ने बात को घूमाकर सिंगही‌ की तरफ कर दिया ।
प्रिसेंज का कहना था अगर सिंगही हमारी मदद करे तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी।
पर सिंगही है कहां?
"क्योंकि आदरणीय सिंगही धरती पर नहीं हैं।"
"इसका मतलब उसकी छुट्टी हो गई ?" -
"नहीं...।" प्रिंसेज जैक्सन ने जवाब दिया - "बल्कि
असलियत यह है कि आजकल सिंगही महोदय मंगल ग्रह पर हैं, मंगल ग्रह पर उन्हें एक ऐसा स्थान मिल गया है जहां आबादी है और मंगल ग्रह के विषय में यहां अधिक कहना व्यर्थ होगा, लेकिन मैं सिर्फ इतना कह रही हूं कि आजकल आदरणीय सिंगही मंगलग्रह के सम्राट हैं।...।"
   तो यह काफिला भारत से जा पहुंचता है मर्डरलैण्ड और वहां से एक विशेष यान द्वारा चन्द्रमा की तरफ रवाने होते हैं।
  वहीं जब विजय को यह खबर मिलती है तो वह भी चन्द्रमा पर जाने की तैयाई करता है।
भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सुभ्रांत ने एक विशेष यान बनाया था जो चन्द्रमा तक जा सकता है। इस यान में विजय, सहयोगी अशरफ, वैज्ञानिक सुभ्रांत और उसके तीन सहयोगी चन्द्रमा की तरफ रवाना होते हैं।
   लेकिन चन्द्रमा तक पहुंचना इतना आसान नहीं था। दोनों टीमें ही रास्ते से वापस पलट जाती हैं और अपने यान का एक हिस्से भी उन्हें खत्म कर‌ना पड़ता है।
चलते -चलते यह भी बता दें भारतीय वैज्ञानिक सुभ्रांत (पूर्ण उपन्यास नाम) द्वारा निर्मित यान की ही नकल प्रिंसेज जैक्सन ने की थी पर बस फर्क इतना था कि प्रिंसजे मैक्स के यान की रफ्तार सुभ्रांत के यान से दोगुनी थी। जहाँ विजय -सुभ्रांत आदि को चन्द्रमा पर पहुंचने में दो महिने लगने थे वहीं विकास - प्रिंसेज जैक्शन आदि को मात्र एक महिना।
  जब दोनों यान रास्ते से वापसी पलट आते हैं तो दोनों की आपस में मुलाकात होती है और दोनों यान मिलकर एक बन जाते हैं।
लेकिन यहाँ विकास चालाकी खेल जाता है वह टुम्बकटू और धनुषटंकार के साथ यान के एक हिस्से को अलग कर चन्द्रमा की यात्रा आरम्भ कर देता है।
चन्द्रमा की दुनिया में बनी अजीब है।‌ यहाँ के मूल निवासी ऊपर पैर और नीचे सिर कर के चलते हैं। (लेखक ने कल्पना ही अजीब की है।) उनके सिर पर बाल नहीं होते और मात्र एक आंख होती है।
  मित्रों यह आलेख पढकर आपको उपन्यास की कहानी का अंदाज हो गया होगा और आप सोच रहे होंगे‌ की सारी कहानी तो यह लिख दी, अब उपन्यास में क्या रह गया।
सोचो जरा, उपन्यास का नाम है 'मंगल सम्राट विकास' और वर्तमान में मंगल के वास्तविक राजा को खत्म कर वहां का क्रू्र शासक है बना है 'सम्राट सिंगही'।
- क्या सिंगही आसानी से विकास को सम्राट बनने दे देगा?
- क्या वह विकास का अमेरिका अभियान में सहायक बनेगा?
आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर उपन्यास पढने‌ पर ही‌ मिलेंगे। इसलिए आप निश्चिंत होकर इस आलेख का आनंद लीजिये।
यहां विकास , टुम्बकटू और धनुषटंकार तीनों ही मंगल ग्रह पर अज्ञात और उल्टे लोगों की कैद में फंस जाते हैं।
  अब मंगलग्रह की कुछ और बातें कर लेते हैं।
सिंगही स्वयं एक खतरनाक अपराधी है जो मूलतः चीन का है। लेकिन सिंगही का एक ही उद्देश्य है विश्व सम्राट बनना और इसके लिए वह निरंतर प्रयासरत रहता है। यहाँ भी एक खतरनाक वैज्ञानिक तुंगलामा (मैकाबर सीरीज का मुख्य अपराधी) की सहायता से नये प्रयोग करता है।
  मंगलग्रह पर एक और विशेष पात्र है जाम्बू।
जाम्बू मंगलग्रह के सम्राट का भाई है, जो सिंगही को सम्राट पद से हटाकर पुनः स्थानीय जनता का शासन चाहता है। इसका दल क्रांतिकारी कहलाता है। हालांकि बहुत से मंगलवासी सिंगही के अधीन कार्य करते हैं।
देखा जाये तो उपन्यास के अंत में कई तरह की परिस्थितियाँ बनती हैं।
- सिंगही का विकास को सम्राट बनाना या न बनाना।
- विकास -जैक्शन समूह का संघर्ष ।
- जाम्बू और साथियों का सिंगही से संघर्ष ।
वेदप्रकाश शर्मा जी की एक विशेषता रही है वह अपने उपन्यासों में पौराणिक पात्रों के उदहारण विशेष रूप अए देते हैं।
जैसे की प्रस्तुत उपन्यास में 'हेम्बारा' को हनुमान जी के प्रसंग से स्पष्टता किया है।
बहुत से उपन्यासों में जानवरों का रोचक वर्णन पढने को मिलता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी 'हेम्बारा' नामक एक मंगलग्रह के जानवर का वर्णन है, जो काफी रोचक है।
"जी हां। यहां उस जानवर को 'हेम्बोरा' कहते हैं। उसका शरीर तो आपने देखा ही है कि कितना बड़ा है। यहां का वह जानवर बेहद खतरनाक है। वह अपने मुंह से आग उगलता है। वह चार-चार, पांच-पांच वर्ष तक एक ही स्थान पर पड़ा रहता है। किंतु जब खड़ा होता है तो समझ लो कयामत आती है। अपने आसपास के इलाके में वह प्रलय मचा देता है। इतना शक्तिशाली है कि तुम्हारा यान उसके जिस्म पर उतर गया और वह हिला तक नहीं। इसके विषय में जब यहां के लोगों से पहली बार सुना तो अपने प्राचीन ग्रंथ महाभारत की वह घटना याद आई थी जिसमें भीम एक पुष्प लेने आता है और बीच में हनुमानजी इस प्रकार की एक चट्टान के रूप में मिलते हैं। वास्तव में हेम्बोरा भी हनुमानजी की ही भांति शक्तिशाली
है। तुमने देखा होगा कि उन चट्टानों में से पानी रिस रहा था।

दरअसल वह पानी नहीं बल्कि हेम्बोरा का पसीना था। उसके जिस्म में क्योंकि बहुत गर्मी है इसलिए बेहद पसीना निकलता है। तुम्हारी जानकारी हेतु बता दूं कि वह पसीना जहरीला है। उसे पीते ही आदमी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। चट्टानों के रूप में उसकी हड्डियां थीं। जहां तुम उतरे थे, वह हेम्बोरा के पेट वाला स्थान था, जिधर तुम जा रहे थे, उधर हेम्बोरा का मुख था। अगर तुम बीच में ही हीरे पर न उतर जाते और मुंह की तरफ जाते तो वह भंयकर
आग से तुम्हें भस्म कर देता। खैर, छोड़ो, उसके विषय में तुम्हें बाद में विस्तृत जानकारी दूंगा - इस समय हमारे लिए सबसे बड़ा मसला है सिंगही।"

वेदप्रकाश शर्मा जी की भाषा की बात करें तो उनके लेखन में अक्सर ग्रामीण शब्द झलकते हैं। कुछ बातें हम खड़ी बोली हिंदी में स्पष्ट नहीं कर पाते, वहाँ हमें स्पष्टीकरण हेतु आंचलिक/ ग्रामीण शब्दावली का प्रयोग करना पड़ता है।
जैसे वेदप्रकाश जी के उपन्यास में दरवाजे हुते शब्द प्रयुक्त होता है- दरवाजा उढका हुआ था।
यहां भी 'चिंगल', काबले आदि शब्द हमें पढने को मिलते हैं।
उदाहरण- "आप लोग नाइंटी डिग्री के कोण पर घूमिए, उसके बाद एक सौ अस्सी डिग्री का कोण बनाते हुए सर्जिबेण्टा के सुराखों में अपने काबले डालिए।"
अगर आप विजय-विकास के एक्शन -रोमांच उपन्यास पसंद करते हैं तो यह आपको अवश्य पसंद आयेगा।
उपन्यास चार भागों में विभक्त है।
उपन्यास-   मंगल सम्राट विकास (द्वितीय भाग)
लेखक-     वेदप्रकाश शर्मा
प्रथम भाग- अपराधी विकास
तृतीय भाग- विनाशदूत विकास


अपराधी विकास- वेदप्रकाश शर्मा

किस राह चला विकास...
अपराधी विकास- वेदप्रकाश शर्मा, प्रथम भाग

"आप ये भी जानते हैं, वो भी जानते हैं! क्या है जो आप नहीं जानते? अगर यह सच है गुरु, तो धिक्कार है तुम पर ! तुम्हारा खून सफेद हो गया है अंकल, तुम्हें गुरु कहते हुए मुझे शर्म आती है। तुम मेरे गुरु नहीं हो सकते। सुना था अंकल, तुम भारत के लिए एक हीरो हो, लेकिन आज पता लगा कि तुम तो कायर हो, बुजदिल हो। जिसका दिल मेरे देश को इतने भयानक जाल में देखते हुए भी क्रांति न कर दे, वह मेरा गुरु नहीं हो सकता अंकल ! आप खुदगर्ज, कायर और बुजदिल हैं..." विकास ने चीखते हुए कहा, "और कान खोलकर सुन लो, अपने देश को बचाने के लिए मैं अपराधी भी बन सकता हूं। सिर्फ अपराधी बनकर ही अमेरिका से मैं बदला ले सकता हूं। मैं अब अपराधी बनूंगा, गुरु, सिंगही दादा से भी खतरनाक अपराधी..."
वेदप्रकाश शर्मा जी ने अपने लेखन के आरम्भिक काल में 'विजय-विकास' शृंखला के एक्शन-जासूसी उपन्यास लिखे थे, जो पाठकों को अत्यंत पसंद भी थे।  इनमें से ज्यादातर उपन्यास अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम पर आधारित होते थे और उनमें जासूस वर्ग के एक्शन कारनामों को दिखाया जाता था। हालांकि तार्किक स्तर पर पाठकों को उपन्यास का कथानक कमजोर प्रतीत हो सकता है लेकिन  रोमांच के मामले में नहीं ।
  प्रस्तुत उपन्यास चार भागों में विभाजित है। प्रथम भाग 'अपराधी विकास', द्वितीय भाग 'मंगल सम्राट विकास', तृतीय भाग 'विनासदूत विकास', चतुर्थ और अंतिम भाग है 'विकास की वापसी'। इन चार उपन्यासों की इस रोचक शृंखला में हम बात करते हैं प्रथम उपन्यास 'अपराधी विकास' की।
  जैसा की ऊपर आपने पढा, विकास कह रहा है-"..मैं अब अपराधी बनूंगा, गुरु, सिंगही दादा से भी खतरनाक अपराधी..."
आखिर क्या कारण था, विकास जैसा देशभक्त युवा अपराधी बनना चाहता है और वह भी अंतरराष्ट्रीय और ब्रह्माण्ड के अपराधियों जैसा।
वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यास 'अपराधी विकास' इसी घटनाक्रम पर आधारित है।
  अब बात करते हैं 'अपराधी विकास' उपन्यास के कथानक की। इस उपन्यास का आरम्भ B.I.D. College की एक पिकनिक पार्टी से होता है। पार्टी में अधिकांश विद्यार्थी नशे का सेवन करते हैं।
चरस, गांजे, अफीम, हशीश, भंग, शराब इत्यादि मादक पदार्थों की गंध ने वहां के वातावरण को रंगीन बना दिया था। हिप्पी बनने का भयानक रोग उन्हें लग चुका था। एल.एस.डी. पर तो ऐसे झपटते, जैसे चूहे पर बिल्ली। इन्हीं मादक पदार्थों में वे दिल की शांति खोज रहे थे। इन्हीं खोजों में जैसे राम और कृष्ण घुसकर बैठ गए थे। सब कुछ इन्हीं में था।
वाह री भारतीय सभ्यता और संस्कृति !
(पृष्ठ-06)
  इसी पार्टी के नशे से दो ही व्यक्ति बचे रहते हैं। एक काॅलेज छात्रसंघ का अध्यक्ष बिशन मल्होत्रा और दूसरा विकास।
लंबा-तगड़ा, गोरा-चिट्टा अठारह वर्षीय विकास अपनी पर्सनैलिटी के कारण बाईस-तेईस की आयु से किसी भी प्रकार कम नहीं लगता था। अब किसी का भी दिल उसे किशोर कहने के लिए नहीं ठुकता था। वह युवक हो चुका था लेकिन उसके गोरे-चिट्टे, गोल और लाल मुखड़े पर अब भी किशोरों जैसी मासूमियत थी। भोला-सा विकास बड़ा प्यारा लगता। अर्द्ध-घुंघराले बाल उसके चेहरे पर खूब फबते थे।
रघुनाथ और रैना का वह लड़का भारत के लिए एक हीरा था।

   विकास भी काॅलेज की तरफ से पार्टी में अवश्य था पर वह नशे से दूर था।
यहाँ विकास को यह पता चलता है की विद्यार्थी वर्ग को नशे में झोंकने वाला छात्रसंघ अध्यक्ष बिशन मल्होत्रा है। यही नहीं उसे यह भी पता चलता है इस सब के पीछे अमेरिका का हाथ है और अमेरिका की खूफिया सीक्रेट सर्विस के सदस्य भारत के हर डिपार्टमेंट में घुस चुके हैं और वह भारत को हर संभव क्षति पहुंचाना चाहते हैं।
विकास शीघ्र ही इस विषय पर विजय से मिलता है। भारतीय सीक्रेट सर्विस के वीर एजेंट विजय।
विजय विकास को समझता है की यह सब उसे पता है और इस से निपटना इतना आसान नहीं है। लेकिन विकास तो ठहरा जिद्दी लड़का। और वह विजय को कहता है वह अमरीका का बर्बाद कर देगा। विजय के बहुत समझाने पर भी विकास अपनी जिद्द से नहीं टलता।
विकास विजय को स्पष्ट कहता है- 
"...और कान खोलकर सुन लो, अपने देश को बचाने के लिए मैं अपराधी भी बन सकता हूं। सिर्फ अपराधी बनकर ही अमेरिका से मैं बदला ले सकता हूं। मैं अब अपराधी बनूंगा, गुरु, सिंगही दादा से भी खतरनाक अपराधी..."
  अपने उद्देश्य को सफल बनाने के लिए विकास घर से निकल पड़ता है और भारत में मौजूद दुश्मनों को मारना आरम्भ कर देता है। विकास जनता के सामने अब एक अपराधी बन चुका था और जनता नहीं चाहती थी कि ऐसा अपराधी खुला घूमे...
-"भाइयो, क्या ये सरासर गुंडागर्दी नहीं है? वो कुत्ता विकास सुपर रघुनाथ का लड़का है तो क्या हमारी मां-बहनों पर हाथ डालेगा? क्या हमारी मां-बहनें इस गुंडागर्दी के शासन में सुरक्षित रह सकती है? अगर यही बदमाशी चलती रही तो कभी नहीं रख सकतीं! पूजा हमारे एक साथी की बहन थी। हमारे साथी की बहन हमारी बहन होती है। पूजा मेरी बहन थी। पूजा हम सबकी बहन थी। हम सब इस अपमान का बदला लेकर ही रहेंगे। हमारी सबसे पहली मांग यही है कि पुलिस जल्द-से-जल्द उस कुत्ते विकास को पकड़कर हमारे हवाले कर दे। दूसरी मांग यह है कि हमारी पूजा को उसी तरह पवित्र हमारे सामने लाया जाए जैसी कि वो है। जब तक उस कुत्ते विकास को हमारे हवाले नहीं किया जाएगा और पुलिस हमारी बहन पूजा को न खोज निकालेगी तो हम इस सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे। दोस्तो! वह सुपर रघुनाथ का लड़का है। अगर वो सुपर है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका लड़का हमारी मां-बहन की अस्मत पर हाथ डालेगा या हमारे साथियों की हत्या करेगा। हमारी तीसरी मांग यह है कि सुपर रघुनाथ को उनके पद से वंचित कर दिया जाए।"
  इधर यह सब चलता रहता और उधर विकास धनुष्टकार और पूजा को साथ लेकर अंतरराष्ट्रीय अपराधियों से जा मिलता है। जिसमें अलफांसे, प्रिंसेज जैक्शन और टुम्बकटू शामिल थे।
विकास उनके सामने भी अमेरिका से बदला लेने और स्वयं के अपराधी बनने की बात रखता है। विकास के इस निर्णय से सब चकित रह जाते हैं।
  दूसरी तरफ अमेरिका भी खामोश रहने वाला नहीं था। वह भी विकास की हत्या के लिए अपने श्रेष्ठ जासूस माइक स्पेलन को भारत भेजता है। हालांकि पूर्व में 'प्रयंकारी विकास' और 'मैकाबर सीरीज' में साथ-साथ काम करने के कारण विकास और माइक दोस्त बन चुके थे। पर यहाँ परिस्थिति एक दूसरे के विरुद्ध थी। दोनों के किए अपना देश प्रिय था, अपना कर्तव्य प्रथम था।
अब एक तरफ विकास निकला है अमेरिका को तबाह करने और दूसरी तरफ है माइक, जो विकास की हत्या करना चाहता है।
एक तरफ है विकास जो अपराधी बनना चाहता है और दूसरी तरफ है विजय, जो उसे रोकना चाहता है।
इस संघर्ष में कौन सफल होगा, यह उपन्यास पढने पर ही पता चलेगा।
   विकास का जो चरित्र है उसमें लड़कियों की भूमिका नगण्य है। यहाँ एक पात्र है पूजा, जिसे विकास अपने साथ रखता है।
 
  पृष्ठों के हिसाब से उपन्यास लगभग 122 पृष्ठ का है। यह वेदप्रकाश शर्मा का आरम्भिक दौर का उपन्यास है, तब उपन्यास पृष्ठ इतने ही होते थे। इसलिए प्रस्तुत उपन्यास को चार भागों में विभाजित करना पड़ा।
  कथा की दृष्टि से अभी तक उपन्यास सामान्य ही है। हालांकि अभी इसके तीन भाग पढने बाकी हैं।
इस उपन्यास के आरम्भ में‌ बी.आई.डी. काॅलेज का जिक्र है। वहाँ से एक अनुमान लगता है कि विकास इसी काॅलेज का विद्यार्थी है, हालांकि पूर्णतः स्पष्ट कहीं नहीं है।
  वेदप्रकाश शर्मा जी के कुछ और उपन्यास भी हैं जिसमें उन्होंने अमेरिकी संस्था CIA का वर्णन किया है। जैसे सी.आई.ए. का आतंक।
वेदप्रकाश शर्मा द्वारा लिखित 'अपराधी विकास' एक एक्शन प्रधान उपन्यास है। जिसमें विकास अमेरिका को तबाह करने के लिए अपराधी बनना चाहता है। 
उपन्यास-  अपराधी विकास
लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक-  राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-         122

द्वितीय भाग- मंगल सम्राट विकास
वेदप्रकाश शर्मा जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
दहकते शहर ।। आग के बेटे ।। केशव पण्डित ।। नसीब मेरा दुश्मन  ।। मैकाबर सीरीज ।। खूनी छलावा