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Tuesday, 30 March 2021

428. दस घण्टे की मौत- मनहर चौहान

विमान अपहरण की कथा...
दस घण्टे की मौत- मनहर चौहान

हिंदी साहित्य में मनहर चौहान का नाम साहित्यिक श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन उन्होंने प्रयोग के तौर पर कुछ जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं।
   यह अच्छा प्रयास है जब कोई साहित्यिक लेखक इस तरह के उपन्यास लिखता है तो। यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र जी ने एक साक्षात्कार में कहा था,- लोकप्रिय साहित्य की भाषा जहाँ खत्म होती है, गंभीर साहित्य की भाषा वहा से आरम्भ होती है।
   इस खत्म और आरम्भ के बीच की खाई को भरने का काम कुछ साहित्यिक लेखकों ने किया जैसे श्रीलाल शुक्ल जी ने 'आदमी का जहर' लिख कर, मनु भण्डारी ने 'महाभोज' लिख कर और मनहर चौहान ने 'दस घण्टे की मौत' लिख कर।
  इन उपन्यासों की कथा चाहे लोकप्रिय साहित्य श्रेणी की मर्डर मिस्ट्री हो या थ्रिलर पर इनकी भाषा उच्च कोटी की है।
     मनहर चौहान जी ने अपने लेखकीय में लिखा है- 'दस घण्टे की मौत' का मूल स्वर रोमांच है। रोमांचक साहित्यिक उपन्यास हिंदी में प्राय नहीं लिखे जाते। मेरी लेखन नीति शुरू से ही स्पष्ट रही है कि जो हिंदी में प्रायः नहीं लिखा जाता, वही मैं‌ लिखूं।(लेखकीय अंश)
  इस दृष्टि से देखें तो यह उपन्यास एक प्रयोग की तरह है। मेरी दृष्टि में विमान अपहरण को लेकर बहुत कम उपन्यास लिखे गये हैं। और जो लिखे गये हैं उनका कथानक इस उपन्यास से अलग ही रहा है। इस उपन्यास का कथानक विमान अपहरणकर्ताओं पर आधारित है।
उनके पास दो रिवाल्वर थे। वे भी खुद दो थे-पिता और पुत्र। (पृष्ठ-07) 

Monday, 29 March 2021

427. दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा

दूसरे व्यक्तित्व की कहानी, मर्डर से थ्रिलर तक।
दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
  
लोकप्रिय जासूसी साहित्य में वर्तमान समय नयी ऊर्जा का समय है। क्योंकि इस समय जो कहानियाँ आ रही हैं वे व्यस्थित और कसावट लिये तो हैं ही, साथ-साथ में अजिंक्य शर्मा जैसे प्रतिशाली लेखक हैं जो मर्डर मिस्ट्री जैसे परम्परा कथानक में जो प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं वे साहित्य में अमिट हैं।
   'दूसरा चेहरा' अजिंक्य शर्मा जी का चतुर्थ उपन्यास है। जिसमें में तीन मर्डर मिस्ट्री है और एक हाॅरर उपन्यास है। प्रस्तुत उपन्यास भी मर्डर मिस्ट्री कम थ्रिलर है। 
    उपन्यास का कथानक राजस्थान की राजधानी जयपुर के डाॅन राज प्रताप शाडिण्य के भाई पवन शालिण्य के मर्डर पर आधारित है।
      पवन शांडिल्य एक होटल के कमरे में मृत पाया गया और उसके कत्ल का आरोप उसकी मित्र रिमझिम गरेवाल पर आया। जो वहीं एक कमरे में बेहोश पायी गयी।
     रिमझिम‌के हितैशी वकील अंकल का मानना है कि वह निर्दोष है। उसे निर्दोष साबित करने के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव अविनाश भारद्वाज को बुलाया। - उसका नाम अविनाश भारद्वाज था, वो दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध प्राइवेट डिटेक्टिव्स में से एक था, मयूर विहार में 'क्राइम इन्वैस्टिगेशंस’ के नाम से उसका ऑफिस था और कम समय में ही अपने पेशे में उसने अपनी खूब धाक जमा ली थी।(उपन्यास अंश)
      जयपुर पहुंचने पर अविनाश को जो कहानी सुनने को मिली वह यूं थी- पुलिस का मानना है कि शांडिल्य रिमझिम के साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश कर रहा था। उसी दौरान रिमझिम के हाथ में चाकू आ गया, जिससे उसने शांडिल्य पर वार कर दिया, घायल शांडिल्य मदद की उम्मीद में किसी तरह बाहर के कमरे तक पहुंचा लेकिन वहां से आगे नहीं जा पाया और वहीं उसकी मौत हो गयी। 

Tuesday, 23 March 2021

426. उपसंहार - काशीनाथ सिंह

उत्तर महाभारत की कृष्णकथा
उपसंहार - काशीनाथ सिंह

कुरुक्षेत्र के मैदान में 'सत्य की असत्य पर विजय' के उदघोष के साथ महाभारत का युद्ध खत्म हो गया। और खत्म हो गये असख्य लोग। उस युद्ध के पश्चात क्या हुआ? यही उपसंहार है।
      हिंदी साहित्य में काशीनाथ सिंह का नाम एक सशक्त साहित्यकार के रूप में उपस्थित है। 'काशी का अस्सी' जैसी चर्चित रचना उनके नाम दर्ज है। लेकिन प्रस्तुत रचना एक अलग ही विषय पर आधारित है। 

      हालांकि मेरे द्वारा काशीनाथ सिंह जी को पढने का यह प्रथम अवसर है, और वह भी एक उत्कृष्ट रचना के साथ‌। मैं इस रचना को पढने के पश्चात स्तब्ध सा रह गया था, मन शून्य सा हो गया था।
  प्रस्तुत रचना 'उपसंहार' महाभारत के छत्तीस वर्ष बीत जाने के पश्चात की कथा है। जहां पाण्डवों की अपनी समस्याएं हैं, यादवों- द्वारका की अपनी समस्याएं हैं और श्री कृष्ण एक सामान्य मनुष्य की तरह पूर्णतः विवश नजर आते हैं। 

Sunday, 21 March 2021

425. चीते की आँख- वेदप्रकाश कांबोज

अलफांसे की जीवनी
चीते की आँख- वेदप्रकाश काम्बोज

लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में कुछ पात्रों ने अपनी विशेष पहचान स्थापित की है। और उन पर बहुसंख्यक लेखकों ने कलम चलाई है और उन्हें अपने-अपने अंदाज में प्रस्तुत कर नया रूप भी प्रदान किया है।
जैसे भूतनाथ, जेम्स बाॅण्ड, विनोद-हमीद, विजय-रघुनाथ, रीमा भारती इत्यादि।
   आज हम एक ऐसे पात्र की चर्चा करने जा रहे हैं जिसका नाम है- अलफांसे। 
चीते की आँख- वेदप्रकाश कांबोज

चीते की आँख- वेदप्रकाश कांबोज

वैसे तो अलफांसे को लेकर बहुत से लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है लेकिन यहाँ हम बात कर रहे हैं आदरणीय वेदप्रकाश काम्बोज द्वारा लिखित उपन्यास 'चीते की आँख' की, जो वेदप्रकाश काम्बोज जी द्वारा अलफांसे सीरीज का प्रथम उपन्यास है।
   अलफांसे मूलतः इब्ने सफी जी द्वारा निर्मित पात्र है। इब्ने सफी जी ने अलफांसे को लेकर चार उपन्यास लिखे थे। बाद में कांबोज जी ने अपने हिसाब से इस पात्र को एक अलग रूप प्रदान किया।
     मेरी जिज्ञासा थी अलफांसे का इतिहास जानने की जो की मुझे 'चीते की आँख' नामक उपन्यास से मिला। 

Thursday, 18 March 2021

424. किंबो- अनिल मोहन

एक खतरनाक जीव की कहानी
किंबो- अनिल मोहन

दृश्य- 01
कंगूरा आइलैण्ड
'फच्चाक...।' अगले ही पल आदिवासी शिकारी की नाभी में बड़ा सा सुराख हुआ और चीख गूंजती चली गई-"आह..."
'कड़ाक...'- तभी नाभी के रास्ते गुजरता किंबो नामक जीव पीछे पीठ की हड्डी तोड़ता बाहर जा उछला।


 दृश्य-02
'कड़ाक।' पहले आदिवासी के पृष्ठ भाग की खोपड़ी टूटी। उसमें चार इंच चौड़ी हड्डी टूटकर नीचे गिरी और उसके बाद किंबो बाहर की तरफ हवा में लहराता चला गया।
दृश्य-03
"किंबो मानव शरीर में कहीं से भी घुस सकता है। फिर भी जिस शरीर को इसने  अपना घर बनाना होता है यह उस शरीर में मुँह से प्रवेश करता है या नीचे गुप्तांग से। (पृष्ठ-17)



उक्त दहशत भरे दृश्य हैं रवि पॉकेट बुक्स से प्रकाशित लोकप्रिय साहित्य के सितारे अनिल मोहन जी द्वारा लिखित उपन्यास 'किंबो-एक अजूबा' नामक के। 

किंबो- अनिल मोहन
   लोकप्रिय साहित्य में यूं तो एक से बढकर एक उपन्यास लिखे गये हैं। पर किसी जानवर को आधार बना लिखा गया यह प्रथम उपन्यास है,मेरी दृष्टि में तो। हिंदी हाॅरर उपन्यास साहित्य में ऐसे प्रयोग अन्यत्र नहीं है। 

Saturday, 13 March 2021

423. शरीफ हत्यारा- श्री नारद जी

शरीफ हत्यारा- श्री नारद जी
लोकप्रिय उपन्यास आरम्भ इलाहाबाद से होता है। और इस के आरम्भिक दौर में उपन्यास पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। ऐसे ही अपने समय की एक पत्रिका थी-जासूसी डायरी। जिसमें तात्कालिक लोकप्रिय साहित्य के लेखकों के रोचक और जासूसी उपन्यास प्रकाशित होते थे। 
NH911
 जासूसी डायरी के एक अंक में श्री नारद जी का उपन्यास 'शरीफ हत्यारा' प्रकाशित हुआ था।
   पहले प्रकाशक का कथन देख लें।
एक रक्षक ही जब भक्षक बन जाये तो फिर जनता का क्या होगा?
  मोमियों के नीच एव देशद्रोही एक उच्च अधिकारी की दास्तां जिसने रहस्यमय ढंग से गद्दारी की।
आज 'श्रीनारद जी' सर्वप्रिय उपन्यास लेखक हैं। क्योंकि संसार में अपराधियों का एक जाल सा बिछ गया है। जो एक देश से दूसरे देश में जाकर वहाँ षड्यंत्र द्वारा विज्ञान के नये-नये अनुसंधानों का सहारा लेकर ऐसी वारदातें करते हैं कि दांतों तले उंगली दबाना पड़ता है।
ऐसे ही एक रहस्यमय षड्यंत्र जिसका संचालन विदेशी कर रहे हैं, की रोचक, कहकहे से पूर्ण कहानी इस पुस्तक में लिखी ग ई है। पढकर आप आनंद विभोर हो उठेंगे।
                                         प्रकाशक
                              जासूसी डायरी, इलाहाबाद


    उपन्यास की कहानी बर्मा (वर्तमान म्यानमार) देश पर आधारित है। सन् 1935 से पूर्व बर्मा भारत का ही एक अंग था जो कि अंग्रेजी सत्ता के चलते एक अलग देश के रुप में स्थापित हुआ।
   बर्मा में तस्करी का काम बहुत ज्यादा होता था। और वहाँ की सरकार इसे रोकने में असमर्थ थी।
उन दिनों जापान धीरे-धीरे रंगून में उपद्रव की आग भड़का रहा था। कुछ ऐसे एजेंट थे जो भारतवर्ष से सोना खरीद कर जापान भेजते रहते थे। ऐसे एजेंट अधिकतर बर्मा के मोमियो निवासी थे। बर्मा का गुप्तचर विभाग जब उन एजेंटों को पकड़ने में सफल न हो सका तो विवश होकर सरकार ने मिस्टर हरीश को आदेश दिया।(उपन्यास अंश)
    मिस्टर हरीश सी. आई. डी. में कार्यरत हैं और वे अपने अधीनस्थ डेविड और विनोद के साथ बर्मा जाते हैं। लेकिन तस्करों का नेटवर्क भी बहुत मजबूत है।- यहाँ से जो भी जासूस उन बदमाशों का पता लगाने के लिए भेजा जाता था वह या तो रास्ते में ही खत्म कर दिया जाता था या दो-चार दिन बाद रंगून या मोमियो की किसी सड़क पर उसकी लाश मिलती थी। (उपन्यास अंश)
    लेकिन मिस्टर हरीश इन सब परिस्थितियों को जानते और समझते हुये भी उन तस्करों का पता लगाने के लिए बर्मा जाते हैं।
     शेष कहानी बर्मा में उन तस्करों को खोजने और पकड़ने का विवरण है।
    कैसे भारतीय सी. आई. डी. के अधिकारी अपने कार्य को अंजाम देते हैं और कौन लोग हैं जो उन तस्करों का साथ देते हैं‌? यह उपन्यास पढकर जाना जा सकता है।
   उपन्यास का कथानक रोचक है लेकिन प्रस्तुतिकरण कोई विशेष नहीं है। उपन्यास का अंत एकदम से हो जाता है और वह भी पूर्णतः नाटकीय तरीके से जो पाठक में खीझ सी पैदा कर जाता है।
     उपन्यास को इसलिए पढा जा सकता है कि यह लोकप्रिय साहित्य में पत्रिकाओं के समय की रचना है। 
उपन्यास- शरीफ हत्यारा
लेखक-   श्री नारद जी
प्रकाशक- जासूसी डायरी, इलाहाबाद

Tuesday, 9 March 2021

422. भगवान महावीर

मन पर विजय प्राप्त करने का मार्ग
भगवान महावीर- सर श्री

जैन समाज के चौबीसवें तीर्थंकर को लेकर सर श्री ने 'भगवान महावीर' नामक पुस्तक की रचना की है।
इस में भगवान रचना को कई खण्डों में विभक्त किया गया है और उनमें भगवान महावीर जी के जीवन का वर्णन है।
  एक तरफ जहाँ भगवान महावीर के जीवन का वर्णन है वहीं वर्तमान समय के साथ भी इस रचना को सबद्ध किया गया है।
     हमारा वर्तमान जीवन भौतिकता के चलते बहुत सी परेशानियां से घिरा रहता है उन समस्यों से हम जैसे मुक्ति पा सकते हैं यह विभिन्न उदाहरणों और भगवान जी के जीवन से हम समझ सकते हैं।
   इस रचना में बहुत से रोचक उदाहरण और भगवान महावीर के जीवन के कुछ प्रसंग दिये गये हैं।
   अगर हम संक्षिप्त रूप से भगवान महावीर को समझना चाहते हैं तो यह रचना काफि उपयोगी साबित हो सकती है।
   यह पुस्तक मुझे मेरे गांव के पुस्तकालय 'डॉक्टर भीमराब अम्बेडकर-बगीचा' से उपलब्ध हुयी थी।

रचना- भगवान महावीर- मन पर विजय प्राप्त करने का मार्ग
लेखक- सर श्री
प्रकाशक- मंजुल पब्लिकेशन हाउस



Saturday, 6 March 2021

421. धब्बा- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

एक मामूली बेऔकात 'धब्बा' जो कत्ल के हल की बुनियाद बना।
धब्बा- सुरेन्द्र मोहन पाठक, मर्डर मिस्ट्री
सुनील सीरीज -119
पाठक जी -    275

श्रीप्रकाश सिकंद नाम के एक स्वर्गवासी व्यक्ति की वसीयत का केस बड़ा दिलचस्प हो गया है। बीस करोड़ के विरसे का मामला है ...।(पृष्ठ-137)
       मैं जब भी कहीं सफर में होता हूँ तो मेरे थैले में दो-चार उपन्यास अवश्य होते हैं। जहाँ एक तरफ सफर में उपन्यास पढ लिये जाते हैं, वहीं लोगों तक यह संदेश भी जाता है कि उपन्यास संस्कृति अभी जिंदा है।
    इस बार विद्यालय से अवकाश लेकर घर (माउंट आबू से बगीचा-श्री गंगानगर) आया तो कोचीवैली-श्रीगंगानगर एक्सप्रेस ट्रेन में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का उपन्यास 'धब्बा' पढा। 

धब्बा- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
धब्बा- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
प्रकाश खेमका 'सरकता आँचल' नाम से एक पत्रिका चलाता था। पत्रिका क्या थी वह पत्रिका की ओट में, पत्रिका के माध्यम से फ्रेण्डशिप क्लब चलाता था।
"वो आम मैगजीन नहीं है। सच पूछो तो मैगजीन‌ की शक्ल में फ्रेण्डशिप क्लब है। अनजान, एडवेंचरस लोगों में कम्यूनिकेशन का जरिया है। हर वर्ग के हर उम्र के लोगबाग कम्पैनियनशिप के लिए, दोस्ती के लिए...मैगजीन में विज्ञापन छपवाते हैं।(पृष्ठ-33)
     लेकिन एक बार एक विज्ञापन उसके गले की फांस बन गया और उसी फांस को निकलवाने के लिए वह रमाकांत के माध्यम से यूथ क्लब में 'ब्लास्ट' के पत्रकार सुनील से मिला।