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Tuesday, 31 March 2020

284. शिविरा- पत्रिका

राजस्थान शिक्षा विभाग की पत्रिका
शिविरा- मार्च-2020


राजस्थान शिक्षा विभाग (शिविरा) की एक मासिक पत्रिका शिविरा शीर्षक से प्रकाशित होती है। जिसमें शिक्षा विभाग के कार्मिकों की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। हालांकि इसमें अशिकांश शिक्षकों की रचनाएँ ही हैं और वह भी आलेख हैं।
Mount Abu in Room
        गाँधी जी की 150 वी जयंती पर मेघाराम चौधरी का आलेख है -'महात्मा गाँधी:- एक महान प्रेरक व्यक्तित्व'। जिसमें गाँधी जी के जीवन की कुछ रोचक और प्रेरणादायक घटनाएं प्रस्तुत हैं। ।
      गाँधी जी से सम्बद्ध रखता डाॅक्टर संतोष कुमार जाखड़ जी का एक आर्टिकल 'Gandhian Values and their importance in Education:- An Observation' है।
डाॅक्टर कमला शर्मा भी गाँधी जी के वर्तमान में प्रासंगिकता बताते हैं। 

        पत्रिका शिक्षा जगत की है तो शिक्षा से संबंधित आलेख तो होंगे ही। वर्तमान सरकार ने विद्यालय में प्रत्येक शनिवार 'बैग फ्री दिवस' मनाने की मनाने की घोषणा की है। इस को आधार बना कर संदीप जोशी ने 'शिक्षा में नयी चेतना की ओर एक कदम' एक सार्थक आलेख प्रस्तुत किया है। यह सरकार का सराहनीय कदम है। 
        संदीप जोशी लिखते हैं- शिक्षा बालक का सर्वागींण विकास का आधार है। आगे इन्होंने शनिवार के दिन विद्यालय विभाजन भी दर्शाया है कि इस दिन आठ पीरियड लगे और प्रत्येक कालांश में सह शैक्षणिक गतिविधियां संचालित हो।
       पर मेरा मत है की इस दिन समय को आठ कालांश में बांटना उचित नहीं है। बच्चा कालांश के चक्कर में बंधन ही महसूस करेगा। एक 45 मिनट में वह क्या खेल खेलेगा और क्या सीख पायेगा। इस दिन विद्यालय को अपने स्तर पर कार्य की अनुमति हो। 
       पर्यावरण संरक्षण पर आधारित राजेन्द्र कुमार का आलेख 'पर्यावरण में पंचवटी का महत्व' मुझे बहुत पसंद आया। 
पंचवटी में पांच वृक्ष शामिल होते हैं-पीपल, वट, बेल, अशोल और आंवला। 
        पर्यावरण संरक्षण पर आलेख है 'वैश्विक पर्यावरण समस्या एवं भारतीय संस्कृति' जिसके लेखक हैं रामचंद्र स्वामी। 
       मेरी पसंद का एक और आलेख है वह है 'जीवन की ज्योति हैं‌ पुस्तकें'। पूनम‌ जी लिखते हैं 'यदि शिक्षा देश प्रेम की प्रेरणा नहीं देती है तो उसको राष्ट्रीय शिक्षा नहीं कहा जा सकता।'
"मैं‌ नर्क में भी अच्छी पुस्तकों‌ का स्वागत करूंगा क्योंकि उएं वह शक्ति है कि जहाँ वे होंगी वहीं स्वर्ग बन जायेगा।'- बाल गंगाधर तिलक
   भय और भय मुक्ति का मंत्र भी देख लीजिएगा।
           अनिष्ट की आशंका से जीव के भीतर जो घबराहट होती है उसका नाम भय है और भय से सर्वथा अभाव का नाम ही अभय है। 
        'भय मुक्ति में सदगुणों की भूमिका' में सतीश चन्द्र माली लिखते है की भय से मुक्ति सदगुणों से ही संभव है। यह काफी अच्छा आलेख है।
       परीक्षा की तैयारी पर भी महत्वपूर्ण जानकारी विभिन्न आलेखों के माध्यम से यहाँ दी गयी है। जो विद्यार्थी वर्ग के बहुत महत्वपूर्ण है। इस विषय पर पत्रिका में तीन आलेख हैं।
लोकेश कुमार शर्मा जी 'सरस शिक्षण' आलेख में बताते है की गद्य और पद्म को अगर उचित तरीके से पढया जाये तो बच्चों के लिए शिक्षण बहुत उपयोगी होगा।
      चिंतन में रामधन मीणा जी 'निराशा और आशा' की बात करते हैं। 
डाॅक्टर महेन्द्र चौधरी 'हमारा जीवन सफलता की ओर' में सफलता के तीन सूत्र बताते हैं।
1. सपने
2. सपने प्राप्ति का लक्ष्य
3. ये मुझे कब प्राप्त होंगे।
बारिश की बूंदे भले ही छोटी हों, लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है। वैसे ही हमारे छोटे-छोटे लगातार प्रयास भी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।

         समय के महत्व को रेखांकित करती एक रचना है 'समय का सदुपयोग'। इसमें रेणु सिकरवार लिखते हैं 'समय के सदुपयोग से प्रमुख आशय है जीवन के प्रत्येक पल का रचनात्मक उपयोग एवं उचित अवसर का उपयोग। हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि आलस्य इसका सबसे प्रबल बाधक तत्व है और तत्परता सबसे प्रबल साधक तत्व।
इस अंक की अन्य रचनाएँ भी पठनीय और सराहनीय है। 

         शिविरा में विशेष यह लगा की इसमें अब एक पृष्ठ 'बाल शिविरा' नाम‌ से भी आता है जिसमें बच्चों की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। बच्चों में साहित्यिक रूचि जगाने की दृष्टि से यह अच्छा प्रयास है। बच्चों की कविताएँ बहुत अच्छी लगी।
        पत्रिका में मुझे कथा साहित्य की कमी महसूस होती है। प्रकाशक वर्ग को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए।
शिविरा शिक्षा जगत की एक महत्वपूर्ण पत्रिका है। सभी वर्ग के लिए पठनीय है

पत्रिका- शिविरा
अंक- मार्च-2020
प्रकाशक- राजस्थान शिक्षा विभाग,
पृष्ठ- 50+04
मूल्य- 20₹

283. Philosopher Stone - प्रेम एस. गुर्जर

नियति की तलाश में एक युवा....
Philosophers stone- प्रेम एस. गुर्जर, उपन्यास
फिलॉसॉफर्स स्टोन- प्रेम एस. गुर्जर

जब Philosophers stone उपन्यास देखा तो इसका शीर्षक मुझे बहुत आकर्षित लगा। इस उपन्यास को पढने का एक कारण तो इसका शीर्षक था और द्वितीय कारण लेखक का राजस्थान निवासी होना। इन्हीं दो कारणों से यह उपन्यास पढ लिया गया।

यह कहानी है एक ऐसे लड़के की जो अपने सपने को पूर्ण करने के लिए घर से निकला और वह संघर्षों को पार करता हुआ अपनी नियति के सहारे अपने स्वप्न को पूरा करता है।

वह खुश था कि एक चरवाहे का जीवन छोड़कर अपनी नियति की खोज में चल पड़ा।
-क्या थी उस लड़के की नियति?
- क्या उस लड़के का सपना?
- क्या वह अपने अपने को पूर्ण कर पाया?

इन सब जिज्ञासाओं का समाधान तो इस उपन्यास से ही होगा। 


Thursday, 26 March 2020

282. हीरोइन की हत्या- आनन्द कुमार सिंह

एक यादगार उपन्यास
हीरोइन की हत्या- आनन्द के. सिंह

- उसकी आँख खुली तो वह अस्पताल में था।
- उस पर एक हीरोइन की हत्या का आरोप था।
- वह अपनी याददाश्त खो चुका था।

वाह ! क्या रोचक दृश्य है। कि एक आदमी की आँख खुलती है और उसे पता चलता है की उस पर एक कत्ल का आरोप है और लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं, यहाँ तक की वह अपना नाम तक भूल जाता है। और मजे की बात तो यह है की वह खुद इन्वेस्टिगेटर (जासूस) है और मृतक उसकी क्लाइंट।
         'हीरोइन की हत्या' पत्रकार-लेखक आनन्द सिंह का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। आनंद सिंह पेशे से पत्रकार -लेखक हैं। प्रस्तुत उपन्यास का online संस्करण किंडल पर ही प्रकाशित हुआ है लेकिन इसके कथानक ने हर पाठक को प्रभावित किया है।
कहानी है प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर यश खांडेकर की। जिस पर आरोप है प्रसिद्ध फिल्म हीरोइन झंकार मिर्जा की हत्या का। जो की उसकी क्लाइंट भी हैै।
    इंस्पेक्टर ने अपनी बात आगे बढ़ायी “ आज से चार दिन पहले यानी एक अगस्त को तुमने फिल्म स्टार झंकार मिर्जा के फ्लैट में घुसकर उसका कत्ल किया। उसने बचने की काफी कोशिश की थी। लेकिन मर्द अधिक ताकतवर होता है। तुमने झंकार को काबू किया। चाकू उसके पेट में भोंका। घर से भागे लेकिन सीढ़ियों से भागते वक्त तुम फिसले। कॉन्क्रीट की सीढ़ियों से तुम टकराये और बेहोश हुए। और फिर यहाँ पहुंचे। मतलब अस्पताल। ये कहानी हमें पता है। इसके पहले की कहानी बताओ। कत्ल क्यों किया भाई?”
यश खाण्डेकर क्या उत्तर देता वह तो खुद को भी भूल चुका था। “म्म्मुझे....कुछ याद नहीं.. सर सच बताऊं तो मुझे अपना नाम तक याद नहीं आ रह।”
     लेकिन पुलिस कहां मानने वाली थी। उसे तो अपराधी मिल चुका था। वह अतिरिक्त मेहनत से बच रही थी। लेकिन यश खाण्डेकर को तो स्वयं पर लगे आरोप को निराधार साबित करना था।
उसे खुद ही अपने को निर्दोष साबित करना होगा।
लेकिन कैसे?
क्या वो भाग जाये? 
फिर खुद असली खूनी को ढूंढे?
असली खूनी?

लेकिन उसे तो कुछ याद नहीं.. क्या वो खुद खूनी नहीं हो सकता?
उसके दिल ने गवाही न दी।
नहीं.... बिल्कुल नहीं...।

       तो यह है कहानी का नायक यश खाण्डेकर और मृतका है  हीरोइन झंकार‌ मिर्जा और आरोपी है यश खाण्डेकर। अब यश खाण्डेकर के समक्ष बड़ी चुनौती है स्वयं को निरपराध साबित करना वह भी उस स्थिति में जब की वह स्वयं सब कुछ विस्मृत कर चुका है। और पुलिस कस्टडी में रहते हुए यह इतना आसान भी नहीं और गजब तो तब हो जाता है जब कुछ अज्ञात लोग यश खाण्डेकर की जान के पीछे पड़ जाते हैं। जहां तो उसे एक तरफ स्वयं को निर्दोष साबित करना है वहीं स्वयं की जान भी बचानी है।
- क्या यश खाण्डेकर यह कर पायेगा?
- क्या यह हत्या यश खाण्डेकर ने की है या किसी और ने?
- क्या यश खाण्डेकर की स्मृति लौट पायी?

       ऐसे अनेक प्रश्न उठते हैं और उनका समाधान तो खैर उपन्यास पढने पर ही मिलेगा। हां यश खाण्डेकर के लिए इतना अवश्य कह सकते हैं- न जाने कैसा किस्मत का मारा है..अच्छा खासा प्राइवेट इनवेस्टिगेटर का कैरियर था और आज एक खूनी का लेबल उसके सिर पर चिपका हुआ है, और आज पुलिस के अलावा प्रोफेशनल किलर भी उसके पीछे लगा है।
        लेखक ने एक नया प्रयोग यह किया है की नायक एक ऐसा व्यक्ति चुना है जो स्वयं की स्मृति भूल चुका है। और इस परिस्थिति में उसका अपराधी को खोजना बहुत रोचक लगता है।‌ ऐसे समय में उसे यह भी पता नहीं चलता की सामने वाले से वह पहले से परिचित है या नहीं लेकिन नायक यश खाण्डेकर जिस तरह से परिस्थितियों से सामना करता है वह उसकी बौद्धिक क्षमता का अच्छा उदाहरण है लेकिन कहीं कहीं उसे मुख की भी खानी पड़ती है।
             उपन्यास का घटनाक्रम इतना तेज और संधा हुआ है की कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती। ऐसे उपन्यास बहुत कम देखने को मिलते हैं जो पृष्ठ दर पृष्ठ रोचकता बनाये रखते हों। हालांकि यह कथानक है तो मर्डर मिस्ट्री, और बहुत से लेखकों ने भी मर्डर मिस्ट्री लिखी है लेकिन आनन्द कुमार सिंह जी का प्रस्तुतीकरण इसे विशेष बनाता है।

        अब चर्चा करते हैं उपन्यास के कुछ पात्रों की। उन पात्रों की जिनके विषय में उपन्यास में थोड़ा बहुत वर्णित है।
उपन्यास में अधिकांश पात्र अपराधिक पृष्ठ भूमि के ही हैं हालांकि कुछ पात्रों का वर्णन या किरदार उपन्यास में बहुत कम है।
इंस्पेक्टर बलदेव-
                उपन्यास में इंस्पेक्टर बलदेव नारंग का किरदार बहुत मजबूती से उभरा है। कहीं-कहीं तो इंस्पेक्टर का किरदार नायक (यश खाण्डेकर) से भी दो कदम आगे नजर आता है। लेखक ने जिस हिसाब से इंस्पेक्टर का किरदार लिखा है उम्मीद है आगे भी यह किरदार पढने को मिलेगा। एक इंस्पेक्टर जिसका अंदाज चाहे खलनायक जैसा हो लेकिन काम एक नायक जैसा ही है।- पुलिस की वर्दी में न होने पर भी कोई अंधा भी बलदेव को देखकर पुलिसवाला बता सकता था। भारी चेहरा, सख्त  और चौड़ी हथेलियां, चेहरे पर नाराजगी का स्थायी भाव।...........बलदेव की ताकत पूरे पुलिस महकमे में मशहूर थी। एकबार तो उसके केवल एक घूंसे से एक कुख्यात अपराधी की मौत हो गयी थी।
- भले ही बलदेव कभी भी फील्ड में अपनी वर्दी में नहीं होता था लेकिन घाघ लोग न जाने क्यों उससे सतर्क हो जाते थे। मानों उन्हें लगता था कि कोई खतरा चला आ रहा है।


मिकी
        एक पेशेवर हत्यारा । जिसे यश खाण्डेकर को मारना का काम मिला है।
मिकी बेहद शांत था। वह एक पतला दुबला, लंबे बालों वाला निरीह सा दिखने वाला आदमी था। भीड़ में खो जाने लायक।

मिकी की नजर में इससे आसान कोई कॉन्ट्रैक्ट उसे कभी नहीं मिला था। अस्पताल में पड़े, हथकड़ियों से बंधे एक आदमी को मारना ही तो था।


बदरुद्दीन बारूद
             जिसे बलदेव केवल बारूद पुकारता था, एक शातिर दिमाग अपराधी था। पतला-दुबला, चूहे की शक्ल वाला बारूद उसका भरोसेमंद मुखबिर था। अपराध की दुनिया में बदरुद्दीन उर्फ बदबू बारूद की पहचान एक फ्रीलांसर के तौर पर थी। यानी कहीं किसी छोटी-मोटी चोरी को अंजाम देना हो, जिसमें ज्यादा लोगों की जरूरत पड़े तो बारूद को याद किया जाता था, या फिर किसी टारगेट की नजरदारी का काम हो, बारुद उसे अपराध की दुनिया का वह चलता-फिरता इंसाइक्लोपीडिया माना जाता था।

जीशान हैदर-
             जीशान हैदर, बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा हो गया था। शुरुआत उसने फिल्म के टिकटों के ब्लैक से की थी। फिर चोरी और फिर सशस्त्र डकैती में वह ग्रेजुएट हुआ।
दयानंद शिरके- 
              दयानंद शिरके नाम का एक पुराना दागी मवाली है। वो आमतौर पर सायन के इलाके में ऑपरेट करता है। ज्यादातर फ्रीलांसर के तौर पर काम करता है।

दिनेश मेहता- 
             यूं तो दिनेश मेहता कहने को एक एंटीक डीलर था। लेकिन मूल रूप से वह चोरी का माल खरीदने वाला जरायमपेशा था और साथ ही बलदेव का वह खबरी भी था।
लेखक ने अपराधी वर्ग का अच्छा चरित्र उभारा है लेकिन वहीं अन्य वर्ग को इससे उपेक्षित रखा है। उसके साथ-साथ अन्य वर्ग का ऐसा चरित्र चित्रण होना चाहिए था।
यश खाण्डेकर- नायक, प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर
झंकार मिर्जा- मृतका, हीरोइन
निवेदिता- झंकात की बहन
पाटिल- झंकार का पति
जोया शर्मा- नर्स
जागृति पाण्डे- यश खाण्डेकर की सेक्रेटरी
मिकी- एक पेशवर अपराधी
जसवंत चपलगांवकर- फिल्म निर्माता
महक- जसवंत की पत्नी
पुलिस कमिश्नर राजेंद्र शेखावत
जीशान हैदर- एक अपराधी
जुबैन जादरान - फिल्म निर्माता
साइमन ब्रिगेंजा - एक दुकानदार
नताशा शेरगिल - एक गौण पात्र
रतन- चपरासी अस्पताल, गौण पात्र
माथुर- वकील, गौण पात्र।

पूरे उपन्यास में मुझे गलती कही नजर आयी तो वह है मिकी द्वारा यश का बार-बार पता लगाना। अब यह पता कैसे लगाता है कहीं स्पष्ट नहीं।
         अगर उपन्यास में कुछ यादगार कथन होते तो औए भी अच्छा था।
मर्डर मिस्ट्री आधारित तेज रफ्तार उपन्यास मुझे बहुत रुचिकर लगा। पाठक अंत तक असली अपराधी का पता नहीं लगा सकता जब तक की जासूस नहीं बताता। एक अच्छे उपयोग की यह भी पहचान होती है की वह सस्पेंश अंत तक बनाकर रखे और इस दृष्टि से यह उपन्यास खरा उतराता है। अभी तक उपन्यास का ebook संस्करण आया है उम्मीद करते हैं इसका Hardcopy संस्करण भी आये।


यह तेज रफ्तार उपन्यास वास्तव में दिलचस्प और रोचक है। एक यादगार उपन्यास लेखन के लिए लेखक महोदय को हार्दिक धन्यवाद।
अगर आपने यह उपन्यास पढा है तो अपनी विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।

उपन्यास- हीरोइन की हत्या
लेखक- आनंद के. सिंह
प्रकाशन ebook (किंडल वर्जन)
अमेजन/ किंडल लिंक-  हीरोइन की हत्या- आनंद कुमार सिंह

Tuesday, 24 March 2020

281. चित्रलेखा- भगवतीचरण वर्मा

समीक्षा पाप और पुण्य की
चित्रलेखा- भगवतीचरण वर्मा, उपन्यास
 


श्वेतांक ने पूछा—“और पाप !”
महाप्रभु रत्नाम्बर मानो एक गहरी निद्रा से चौंक उठे। उन्होंने श्वेतांक की ओर एक बार बड़े ध्यान से देखा—“पाप ? बड़ा कठिन प्रश्न है वत्स ! पर साथ ही बड़ा स्वाभाविक ! तुम पूछते हो पाप क्या है !" इसके बाद रत्नाम्बर ने कुछ देर तक कोलाहल से भरे पाटलिपुत्र की ओर, जिसके गगनचुम्बन करने का दम भरनेवाले ऊँचे-ऊँचे प्रासाद अरुणिमा के धुँधले प्रकाश में अब भी दिखलाई दे रहे थे, देखा—“हाँ, पाप की परिभाषा करने की मैंने भी कई बार चेष्टा की है, पर सदा असफल रहा हूँ। पाप क्या है, और उसका निवास कहाँ है; यह एक बड़ी कठिन समस्या है, जिसको आज तक नहीं सुलझा सका हूँ। अविकल परिश्रम करने के बाद, अनुभव के सागर सें उतराने के बाद भी जिस समस्या को नहीं हल कर सका हँ, उसे किस प्रकार तुमको समझा दूँ ?”

भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखा गया उपन्यास 'चित्रलेखा' मुख्यतः पाप-पुण्य को रेखांकित है। आखिर पाप क्या है और पुण्य क्या ह? यह स्वाभाविक सा प्रश्न है और इसे आधार लिखा गया यह उपन्यास पठनीय और विचारणीय भी है।
महाप्रभु रत्नाकर के दो शिष्य शिक्षा पूर्ण करने पर अपने गुरु से प्रश्न पूछते है कि पाप और पुण्य क्या है?
     श्वेतांक और विशाल को इसी बात को पता लगाने के लिए महाप्रभु दोनों को दो अलग-अलग प्रवृति के दो लोगों के पास भेजते हैं।
एक योगी है और दूसरा भोगी। योगी का नाम है कुमारगिरि और भोगी का नाम है बीजगुप्त।


Monday, 23 March 2020

280. हिडिम्बा- नरेन्द्र कोहली

भीम और हिडिम्बा की प्रेम कथा
हिडिम्बा- नरेन्द्र कोहली, उपन्यास

     नरेन्द्र कोहली का हिन्दी साहित्य जगह में एक विशेष स्थान है। इन्होंने पौराणिक पात्रों को जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह प्रशंसनीय है। वर्तमान में अधिकांश लेखक पौराणिक पात्रों को मनचाहा और कहीं कहीं तो उनके मूल स्वरूप से अलग रूप प्रदान कर उन पात्रों की आत्मा तक खत्म कर रहे हैं। ऐसे समय में नरेन्द्र कोहली जी उन्हीं पात्रों को और भी ससख्त रूप से प्रस्तुत कर उनकी महिमा में श्रीवृद्धि कर रहे हैं।
        नरेन्द्र कोहली जी का एक उपन्यास 'हिडिम्बा' पढा यह महाभारत कालिन एक विशेष पात्र भीम की पत्नी हिडिम्बा पर आधारित है।
        हिडिम्बा एक राक्षसी प्रवृत्ति की थी और भीम एक मनुष्य तब दोनों का संयोग कैसे हुआ की वे दाम्पत्य सूत्र में बंध गये। यह प्रश्न सहज ही मन में आता है। इसी प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैंने यह लघु उपन्यास पढा।
      कथा आरम्भ हिडिम्ब वन से होता है जहाँ का शासक राक्षस हिडिम्ब अपनी बहन हिडिम्बा के साथ रहता है। संयोग से पाण्डव परिवार भी उसी वन में आता है।
"छह मनुष्य"- हिडिम्ब उल्लसित स्वर में बोला, " एक स्त्री है और पांच पुरुष, हष्ट- पुष्ट हैं। शरीर पर भरपूर मांस है। जी भर कर खाना है और तान कर सोना है।"- हिडिम्ब ने कहा।
लेकिन भीम को देखकर हिडिम्बा के मन में विचार अलग आते हैं। उसका राक्षस मन भीम का सामिप्य चाहता है।

Saturday, 21 March 2020

279. खजाने की खोज- राॅबर्ट लुईस स्टीवेन्शन

जिम की साहसिक कथा......
खजाने की खोज- राॅबर्ट लुईस स्टीवेन्शन
Treasure island का हिन्दी अनुवाद

बाल साहित्य की शृंखला में एक और कड़ी जुड़ गयी और वह कड़ी है राॅबर्ट लुईस स्टीवेन्शन के उपन्यास खजाने की खोज की खोज की। यह बाल उपन्यास विद्यालय ले पुस्तकालय में है, अक्सर बच्चे इसे पढने के लिए ले जाते रहे हैं, बस एक मैं ही पुस्तकालय प्रभारी होकर इस उपन्यास को न पढ पाया था। कोरोना वायरस के चलते विद्यालय में बच्चों का अवकाश था तो यह उपन्यास उठा लिया। जब पढने बैठा तो इस रोचक कथानक में बहता चला गया।
एक छोटे से बच्चे की रोचक और साहस भरी दिलचस्प कहानी है। 

बहुत दिन पहले की बात है, मेरे पिता की एक सराय थी। अक्सर उसमें दूर-दूर के मुसाफिर आकर ठहरा करते थे। सराय का नाम था 'एडमिरल बेनवो'। एक दिन मुसफिर वहाँ आया। देखने से वह कोई जहाजी मालूम होता था।
इस बाल उपन्यास की कहानी यहीं से आरम्भ होती है। यह कहानी है जिम नामक एक साहसी युवक की और विल नामक जहाजी की। विल एक जहाजी और वह मुसीबतों के चलते एक सराय में आश्रय लेता है लेकिन मुसीबतें यहाँ भी उसका पीछा नहीं छोड़ती।
...आवाज सुनकर विल चौंक पड़ा, और उसे देखते ही उछलकर खड़ा हो गया और बोला, "कौन, ब्लैक डाॅग?"
"हां, मैं ब्लैक डाॅग ही हूँ। भला यहाँ तुमसे मिलने और कौन आ सकता है...."
(पृष्ठ-)
     इन खतरनाक लोगों के मध्य सराय के मालिक के पुत्र जिम के हाथ एक नक्शा लगता है। वह नक्शा है एक खजाने का। लेकिन जिम इतना सक्षम न था की वह इस खाजने को खोज ले।
      कप्तान स्लोमेट, जाॅन सिलवर, ट्रिनोली और डॉक्टर लिवेसे के संग जिम एक जहाज द्वारा खजाने की खोज में निकलता है। यहाँ से एक रोमांचक भरी और साहसी यात्रा आरम्भ होती है। "चलो, सीधे जहाज की ओर चलो। अब हमें यात्रा शुरू कर देनी चाहिए।" (पृष्ठ-30)
      यह यात्रा और उसके पश्चात एक टापू पर घटने वाली घटनाएं, खजाने की तलाश और खजाने के लिए जारी संघर्ष इस कथा को रोचक बना देता है।
नन्हें जिम के कारनामे उपन्यास की कथा में श्रीवृद्धि करते हैं। जिम और विल का चरित्र उपन्यास को बहुत रोचक बनाता है।
80 पृष्ठीय उपन्यास को लगभग सौ पृष्ठ तक बढाकर और भी रोचक बनाया जा सकता था, हालांकि उपन्यास अब भी रोचक है।
यह उपन्यास मुझे रोचक लगा। घटनाक्रम तीव्र है और घटनाएँ प्रभावशाली वह चाहे सराय की हो या टापू की। उपन्यास बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के लिए भी पठनीय है।

उपन्यास- खजाने की खोज
मूल उपन्यास- Treasure island
लेखक- राॅबर्ट लुईस स्टीवेन्शन
अनुवादक-
प्रकाशक- उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर
संस्करण-प्रथम, 2013
मूल्य- 110₹

Friday, 20 March 2020

278. वीणा- यज्ञदत्त शर्मा

वीणा और विनोद की प्रेम कथा   

वीणा- यज्ञदत्त शर्मा, उपन्यास


      वीणा मधुर-मधुर बजती चल 
     नूतन संस्कृति का हो प्रसार,
     जिसका नूतन मानव उदार
     बन, कर जीवन के मुक्त द्वार
     भर ले उर में सबका दुलार
     वीणा सुधर-सुधर चलती चल
     वीणा मधुर-मधुर बजती चल।।


यह गीत गाती है गायिका वीणा। शहर की प्रसिद्ध गायिका वीणा के मधुर कंठ की ख्याति दिल्ली के संगीत-प्रेमियों में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी थी। उसके स्वर का चमत्कार पुष्प की सुगन्धित के समान संगीत-प्रेमियों के हृदयों में भर गया था। (पृष्ठ-5)
        शहर के प्रतिष्ठित वणिक का पुत्र विनोद इसी वीणा से प्रेम करता है। लेकिन विनोद के पिता इस प्रेम से खुश नहीं है वे विनोद को कहते हैं- " तू अच्छी तरह से समझ ले कि वह वेश्या की लड़की वीणा मेरी पुत्र-वधू बनकर इस घर में प्रवेश नहीं कर सकती।"(पृष्ठ-23)
लेकिन विनोद सब बंधन तोड़ कर वीणा के पास ही आना चाहता है- "मैं समझ नहीं पाया कि मैं कोठी की पक्की दीवार से टकरा कर लौट आया या तुम्हारे अंदर ही कोई आकर्षण शक्ति है जिसने मुझे खींच लिया।" (पृष्ठ-25)
        यही डर वीणा के मन में भी है- "विनोद, तुम मेरे जीवन में विनोद बनकर आये हो। कहीं किसी दिन थक कर रुदन का कारण न बन जाना।" (पृष्ठ-27)
        विनोद और वीणा एक नये समाज का निर्माण करना चाहते हैं- नये समाज की नींव डालना सरल कार्य नहीं है। इसे खोदने का प्रयास करने पर हमारी कुदालों के नीचे अनेकों पाषाण आयेंगे, अनेकों चट्टानें आयेंगी, जिनसे टकरा-टकरा कर कभी-कभी हमारी कुदालें चलती-चलती बंद हो जायेंगी।" (पृष्ठ-26)
- क्या विनोद- वीणा मिल पाये?
- क्या विनोद- वीणा अपने नये समाज का निर्माण कर पाये?
- क्या हश्र हुआ इस प्रेम कहानी का?
यह तो यज्ञदत्त शर्मा का उपन्यास 'वीणा' पढकर ही जाना जा सकता है।

Wednesday, 18 March 2020

277. सुकुल की बीवी- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

हिन्दी साहित्य के इतिहास में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का नाम वास्तव में सूर्य की तरह दैदीप्यमान है। छायावाद के चार स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं‌ निराला जी। साहित्य के अंदर कुछ प्रयोग इनके नाम भी दर्ज हैं। मूलतः कवि निराला जी पद्य में भी हाथ आजमाया है।
विद्यालय के पुस्तकालय में इनका एक कहानी संग्रह 'सुकुल की बीवी' उपलब्ध था, समय का सदुपयोग करते हुए वह संग्रह पढा। इस संग्रह में कुल चार कहानियाँ है चारो अलग-अलग रंग की हैं।

सुकुल की बीवी-
                     यह कहानी समाज सदभाव और निराला के विचारों की वाहक है। हिन्दु- मुस्लिम समाज में एकता स्थापित करने में सहायक कहानी है।
एक ऐसी महिला की कहानी जिसने हिन्दु- मुस्लिम दोनों समाजों के रंग देखे हैं और वह कैसे निराला की सहायता से अपना जीवन व्यवस्थित करती है।

श्रीमति गजानंद शास्त्रिणी-
                          यह कहानी आरम्भ में जहाँ अनमेल विवाह जैसे विषय को रेखांकित करती नजर आती है वहीं अंत में यह कहानी छायावाद का विरोध करती एक नारी की कहानी है जो विरोध से, या अवसर का फायदा उठाकर लोकप्रियता अर्जित जरती है।

कला की रूप रेखा-
                      यह कहानी यह स्पष्ट करती है की कला समाज/ जीवन से अलग नहीं है।

क्या देखा-
                 यह कहानी हीरा नामक महिला की है। उसके जीवन की कथा व्यथा है।

हालांकि चारों कहानियों विविध परिवेश की हैं पर मुझे कोई भी कहानी रुचिकर नहीं लगी। इस छोटे से संग्रह की कोई भी कहानी मेरी दृष्टि से प्रभावशाली नहीं या फिर मेरी समझ से बाहर की कहानियाँ है। क्योंकि अधिकांश कहानियाँ कला को व्यक्त करती हैं, कुछ उलझे में से चलती हैं।

कहानी संग्रह- सुकुल की बीवी
लेखक- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
प्रकाशक- भारती भण्डार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद
पृष्ठ- 96

Tuesday, 17 March 2020

276. फोमांचू चिंगारियों‌ के देश में- आबिद रिजवी

मूर्ति का रहस्य...
फोमांचू चिंगारयों के देश में - आबिद रिजवी

आदरणीय आबिद रिजवी साहब का उपन्यास 'फोमांचू चिंगारियों के देश में' पढा। यह उनका सन् 1975 में लिखा गया एक थ्रिलर उपन्यास है। यह उस दौर का उपन्यास है जब लेखक अपनी एक अलग दुनिया बनाता था जिसमें उसके पात्र आश्चर्यजनक कारनामें दिखाते थे। तब मनोरंजन के साधनों का अभाव था, उपन्यास मनोरंजन एक अच्छा माध्यम थे। तब एक नयी दुनिया में नये पात्रों के साथ पाठक जो आनंद उठाता था। 
   आबिद रिजवी साहब ने समय के साथ उपन्यास लेखक की जगह जर्नल बुक्स लेखक में हाथ आजमाना आरम्भ किया और वे इस सफर में कामयाब भी रहे। लेकिन उपन्यास प्रेमियों की मांग पर पुराने उपन्यास कहीं न कहीं से खोज कर पाठकों के लिए उपलब्ध करवा ही देते हैं, वह भी PDF वर्जन में नि:शुल्क।
वर्तमान समय में जब अधिकांश लेखक इस क्षेत्र से दूर हो गये लेकिन वे अपने उपन्यास भी खो बैठे। इस समय में आबिद रिजवी साहब ने जो PDF का मार्ग अपनाया है वह चाहे उन्हें आर्थिक लाभ न दे, पर अपने पाठकों से निरंतर जुड़ने का मौका उपलब्ध करवाता है। अन्य लेखकों को भी PDF या online अन्य प्लेटफार्म मे माध्यम से अपने उपन्यास पाठकों को उपलब्ध करवाने चाहिए।  

Wednesday, 11 March 2020

275. जय सोमनाथ- कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी

सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी के आक्रमण की कथा।
जय सोमनाथ- कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी, उपन्यास

'जय सोमनाथ' साहित्य जगत की एक चर्चित रचना है। इसका जिक्र अक्सर पाठकवर्ग में होता रहता है। जब विद्यालय के पुस्तकालय में यह उपन्यास दृष्टि में आया तो सहज ही उठा लिया और जब पढने बैठा तो इस उपन्यास की कहानी में डूबता चला गया। उपन्यास का कथानक इतना सुसंगठित है की मैं एक बहाव की तरह बहता चला गया।
         उपन्यास की कहानी महमूद गजनवी के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण को आधार बना कर लिखी गयी है। लेखक महोदय लिखते हैं- लेकिन इस कथा में मेरा उद्देश्य सुल्तान महमूद के आक्रमण का चित्रण करना नहीं है, वरण गुजरात द्वारा किये गये प्रतिरोध का वर्णन करना है।
        हां वास्तव में यह उपन्यास तात्कालिक राजाओं के युद्ध कौशल, वीरता, संगठन और भीषण परिस्थितियों से जूझते हुए वीरों की शौर्यगाथा है। एक ऐसी गाथा जो कहीं मन को द्रवित करती है तो कहीं हृदय में जोश पैदा करती है। कहीं तात्कालिक समाज की परिस्थितियाँ सोचने को विवश करती है तो कहीं धर्म -अधर्म पर विचारने का अवसर प्रदान करती है।

उपन्यास का आरम्भ सोमनाथ मंदिर से होता है। जहां पाटण के राजा भीमदेव अपनें मत्री विमल के साथ उपस्थित हैं।
संवत् 1082 की कार्तिक सुदी एकादशी थी। जैसे लोहा चुम्बक से खिंचता चला आता है वैसे ही यात्री सोमनाथ के परम पूज्य शिवालय की ओर आकर्षित होकर खिंचे चले आ रहे थे। (पृष्ठ-प्रथम)
- वे चले आ रहे थे, हजारों की संख्या में। वे एक ही परम कर्तव्य को सामने रखकर आ रहे थे- देव का दर्शन। और उनके कानों में एक ही पूण्यनाद गूँज रहा था- 'जय सोमनाथ'
गंग सर्वज्ञ, भीमदेव और विमल को सूचना मिलती है की महमदू गजनवी सोमनाथ के लिंग को ध्वस्त करने आ रहा हैैै।

"गजनी का अमीर चढा चला आ रहा है।"
"क्या कहा?"- सर्वज्ञ और भीमदेव दोनों बोल उठे।
" हां, उसने थानेश्वर को लूट लिया है और कन्नौज को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। क्या आपको पता है कि वह अब भगवान सोमनाथ के थाम को नष्ट करने के लिए आ रहा है? एक क्षण भी खोने का समय नहीं है। जाओ, मेरे बापू और गूर्जर भूमि को संभालो।"(
पृष्ठ-41)


Tuesday, 10 March 2020

274. रुद्रगाथा- साहित्य सागर पाण्डेय


 एक प्रतिशोध कथा
रुद्रगाथा- साहित्य सागर पाण्डेय, उपन्यास

हिन्दी साहित्य का आदिकाल अपनी वीरगाथाओं के लिए जाना जाता है, इसलिए तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने आदिकाल का नामकरण 'वीरगाथा काल' किया था।
इंटरनेट पर मुझे एक किताब नजर आयी 'रुद्रगाथा'। गाथा शब्द ने मुझे आकृष्ट किया, मेरे दिमाग में तुरंत आदिकाल की वीरगाथाएं चकराने लगी। इसी चक्कर में 'रुद्रगाथा' नामक उपन्यास पढा गया।
       रुद्रगाथा शीर्षक उपन्यास के लेखक है 'साहित्य सागर पाण्डेय', लेखक का नाम भी स्वयं में आकर्षण का केन्द्र है। साहित्य का सागर जब रुद्र गाथा जैसी रचना रचेगा तो यकीनन पाठक शीर्षक से प्रभावित होगा, जैसा की मैं हुआ।
      अब बात करते हैं उपन्यास कथा की। - बात तब की है, जब भारतवर्ष कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था। पूरब- पश्चिम, उत्तर- दक्षिण, चारों दिशाओं में कई छोटे-छोटे राज्य बँटे हुए थे। उनमें से कई राज्यों में क्षत्रिय राजा ही शासन करते थे; केवल दक्षिण के कुछ राज्य अपवाद थे। भारत के सभी राज्यों में सबसे विशाल राज्य था वीरभूमि; और वीरभूमि में ही रहते थे एक ब्राह्मण, जिनका नाम था भद्र। अन्य ब्राह्मणों की तरह भद्र भी पूजा-पाठ करके अपना जीवन यापन करते थे। शास्त्रों के प्रकांड ज्ञाता थे भद्र। भद्र के परिवार में उनके अतिरिक्त केवल उनकी पत्नी रुक्मिणी ही थी। भद्र के लिये उनका कर्म ही उनकी पूजा थी। माँगलिक उत्सवों में पूजा-पाठ करके भद्र अपनी जीविका चला रहे थे।


Sunday, 1 March 2020

273. नसीब मेरा दुश्मन- वेदप्रकाश शर्मा

नसीब और कर्म की टक्कर
नसीब मेरा दुश्मन- वेदप्रकाश शर्मा, उपन्यास

वह  A की हत्या के जुर्म में पकड़ा गया था।
और B के मर्डर की सफाई देने जा रहा था
और उसे C का कातिल साबित कर दिया।

क्या यह संभव है?


एक अविस्मरणीय कथानक।
क्या किसी शख्स नसीब इतना बुरा हो सकता है की वह हर जगह मात खा जाये, हर जगह उसे हार मिले, हर काम‌ में उसे असफलता मिले।
क्या वास्तव में किसी आदमी का नसीब बुरा हो सकता है। लेकिन वेदप्रकाश शर्मा जी का उपन्यास 'नसीब मेरा दुश्मन' पढा तो पता चला की ऐसा भी कुछ हो सकता है।
     'नसीब मेरा दुश्मन' कहानी है एक चोर-उच्चके मुकेश उर्फ मिक्की की। मिक्की का मानना है की उसका नसीब उसे हर बार धोखा देता है।- "यह साला बचपन से मुझे धोखा देता चला आ रहा है—सोने की खान में हाथ डालता हूं तो राख के ढेर में तब्दील हो जाती है, हाथ पर हीरा रखकर मुट्ठी बंद करूं तो खोलने तक कोयले में बदल चुका होता है।"