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Wednesday, 21 August 2019

220. एन्ट्रैप्ड- कंवल शर्मा

कैजाद पैलोंजी का दूसरा कारनामा।
एन्ट्रैप्ड-कंवल शर्मा
      रवि पॉकेट बुक्स से कंवल शर्मा का 25 जुलाई 2019 को प्रकाशित उपन्यास Entrappedped एक थ्रिलर उपन्यास है। यह कंवल जी द्वारा लिखित पांचवां उपन्यास है।
         कंवल शर्मा का द्वितीय उपन्यास था 'सेकण्ड चांस' जिसका मुख्य पात्र है, कैजाद पैलोंजी। प्रस्तुत उपन्यास कैजांद पैलोंजी का लेकर लिखा गया एक बेहतरीन उपन्यास है।
        सेकण्ड चांस में कैजाद पैलोंजी एक पत्रकार था तो वहीं इस उपन्यास में वह एक N.G.O. संचालक है। जिसका काम लोगों को कानूनी सलाह देना है। लेकिन किस्मत यहाँ भी कैजाद की अच्छी नहीं है। एक दिन बैठे-बैठाये, बिन बुलाये एक मुसीबत गले आ लगी। और मुसीबत भी ऐसी की खुद कैजाद की समझ में भी नहीं आया की आखिर यह हो क्या गया।

        कहानी की बात करें तो यह गोवा से लेकर पाॅडिचेरी तक फैली हुयी एक अदभुत कथा है। कहानी का आरम्भ कैजाद पैलोंजी से होता है जिसके गले एक लाश पड़ती है। इंस्पेक्टर कामत कैजाद से सवाल करता है।
"क्या ये लड़की तुम्हारी क्लाइंट थी?"
"नहीं।"-मैंने कहा।
" क्या तुम इसे पहले से जानते थे?"
"नहीं।"
"तो जरूर ये यहाँ केवल मरने आई थी।"
"मुझे नहीं मालूम।"-मैंने मासूम स्वर में जवाब दिया।
(पृष्ठ-47)
       गोवा की एक नामी हस्ती फोरेंस जस्टिन। जो की एक मशहूर बिल्डर फाइनेंसर था और उसका पुत्र, एक दम नकारा पुत्र है विल्बर जस्टिन। अयाश किस्म का, बाप के कहने से बाहर का और धोखेबाज। बाप को छोडकर बेटा पाॅडिचेरी चला जाता है।
बेटा पहले बाप को धोखा देता था, फिर बाप की सेक्रेटरी को धोखा देता था और अब अपनी बीवी को भी धोखा देने में लगा था। (पृष्ठ-93)
       लड़की के रहस्यपूर्ण कत्ल की वारदात कैजाद पैलोंजी को पाॅडिचेरी ले जाती। और वहीं से कहानी में नये-नये मोड़ आने आरम्भ होते हैं। उपर से साधारण सी नजर आने वाली वारदात अपने अंदर बहुत रहस्य समेटे बैठी है।
इन रहस्यों से पर्दा हटाते वक्त कैजाद पलौंजी की जान भी मुसीबत में फंस जाती है।
      कैजाद के साथ घटती घटनाएं और बढते रहस्य कथानक को रोचक बनाने में सहयोग करते हैं। इंस्पेक्टर कामत हो या रेडिय्यार दोनों का किरदार अच्छा और पुलिस विभाग के अनुरूप है। वहीं जुबैर का किरदार नाममात्र ही आता है अगर उसको कुछ और बढाया जाता तो सार्थक लगता। बाकी पात्र उपन्यास में संतुलित हैं।

संवाद और भाषा शैली।
       कंवल शर्मा जी के उपन्यासों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, वह है उनके नीतिगथ कथन।‌ संवाद या कथन किसी भी कहानी को आगे बढाने के साथ-साथ जहाँ पात्र की विशेषताओं के वर्णन में सक्षम है वहीं कहानी का वातावरण भी तैयार होता है।
प्रस्तुत उपन्यास के कुछ रोचक कथन देखें।
- हम नंगे सिर घूमने वाली लड़की को शर्मिंदगी का वायस समझते हैं लेकिन उस लड़की को देखने बल्कि घूरने वाले लड़के को कभी कुछ नहीं कहते। (पृष्ठ-78)
- जिंदगी खूबसूरत रिश्तों से है और रिश्ते तभी कायम रहते हैं जब हम माफ करना और गलतियों को दरगुजर करना सीख जाते हैं। (पृष्ठ-79)
- जिसी को धोखा देना आसान है लेकिन फिर धोखे में बड़ी जान होती है क्यूंकी ये कभी नहीं मरता। ये घूमफिर कर वापिस खुद पर, धोखा देने वाले पर आ जाता है। (पृष्ठ-93)
- औरत अगर खूब भड़की हुई हो तो मर्दों के लिए अक्सर बर्दाश्त के बाहर होती है। (पृष्ठ-135)
- एक मरा हुआ इंसान अपने लिए इंसाफ मांगने खुद नहीं आ सकता....इसलिए जिंदा लोगों का फर्ज है कि मरने वाले को इंसाफ मिले।" (पृष्ठ-192)
- कुत्ता चाहे कैसी भी नस्ल का हो, कैसे भि ट्रेन्ड क्यूं न हो जाए, उसकी गर्दन से जंजीर नहीं निकालनी चाहिए।
(पृष्ठ-244)

      अगर उपन्यास के भाषा शैली की बात करें तो इसमें उर्दू के शब्दों की भरमार है। पता नहीं क्यों ऐसे शब्दों को महत्व दिया गया है जो प्रचलन में भी नहीं है। वहीं गोवा और पाॅडिचेरी के लोग ऐसी भारी भर‌कम उर्दू बोलते हैं। लगता तो नहीं।
एन्ट्रैप्ड एक ऐसा जाल है जिसमें नायक कैजाद पैलोंजी उलझ कर रह जाता है। जिस घटना से उसका कोई वास्ता नहीं, कोई संबंध नहीं उसमें वह ऐसा उलझता है की उसे कोई रास्ता नहीं मिलता। मौत से जूझते कैजाद पैलोंजी का यह कारनामा आदि से अंत तक रोचकता से भरपूर है। उपन्यास पठनीय और रोचक है। भरपूर मनोरंजन करने में पूर्णतः सक्षम।

और अंत में उपन्यास से काव्य पंक्तियाँ
          तू छोड़ दे कोशिशें इंसानों को पहचानने की।
          यहाँ जरूरत के हिसाब से सब नकाब बदलते हैं।


उपन्यास- एन्ट्रैप्ड  लेखक- कंवल शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 254
मूल्य- 100₹
प्रकाशन तिथि- 25.07.2019

पोलो ग्राउंड- माउंट आबू

219. पानी के धमाके - अनीस मिर्जा

वह जो पानी में आग लगा देता था।
पानी के धमाके -अनीस मिर्जा

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में एक समय था जब उपन्यास मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। ऐसे उपन्यास लगभग 100 से 150-70 पृष्ठ के होते थे। इन पत्रिकाओं का मुख्य उद्देश्य मात्र उपन्यास प्रकाशित करना ही होता था लेकिन ये थी तो पत्रिका ही, इसलिए इनमें एक दो पृष्ठों पर समाचार भी प्रकाशित कर दिये जाते थे और अंतिम पृष्ठों पर उपन्यास विज्ञापन।
        ऐसी ही एक मासिक पत्रिका थी- इंस्पेक्टर जासूस। इस पत्रिका में जासूसी उपन्यास प्रकाशित होते थे और इनके स्थायी लेखक थे अनीस मिर्जा। सन् 1965 में अनीस मिर्जा का एक उपन्यास प्रकाशित हुआ 'पानी के धमाके'। यह उपन्यास आकार में चाहे छोटा है लेकिन है मनोरंजक।
       शहर के डी.आई.जी. (पुलिस) का फोन प्रसिद्ध गुप्तचर तनवीर सुलेमानी और आदिल के पास आता है।
डी.आई. जी. उन्हे बताते हैं- कल शाम को प्रोफेसर जगदीश की बेटी बेला तफरीह के लिए पिंग पोंग क्लब गई थी। सुबह तक वापस नहीं लौटी। प्रोफेसर जगदीश बहुत परेशान है। वह उनकी इकलौती बेटी है। (पृष्ठ-17)
       दोनों जासूस एक-एक सूत्र को पकड़ते हुए अपराधी की खोज में निकलते हैं। उन्हें पता चलता है की बेला को अंतिम बार- एक बूढे के साथ नाचते हुए देखा था। (पृष्ठ-17)
लेकिन इस खोज के दौरान जो भी व्यक्ति उनके हाथ लगता है वह जिंदा नहीं बचता। - "...क्या अपराधी इतना भयानक है कि लोग उसका नाम बताते हुए डरते हैं, यहाँ तक कि अपनी जान दे देते हैं।" (पृष्ठ-85)
         मुख्य अपराधी के बारे में तो अपराधी के साथी भी तनवीर को यही कहते हैं।- " वह...जो सबसे बड़ा है। और जो सब कुछ जानता है। जो तुम्हें कुत्ते की तरह भौंकने पर विवश कर सकता है। वह जो महान है। हर एक के मन को जानता है।"(पृष्ठ-82)
          यह कहानी एक खतरनाक अपराधी की है जो एक बहुत बड़ा खेल खेलता है और उसका प्रथम मोहरा है प्रोफेसर की बेटी बेला। और इसी बेला की तलाश में निकले दो जासूस तनवीर सुलेमानी और आदिल। इन दोनों का अपराधी को खोजना और उसे पकड़ना वास्तव में रोचक और पठनीय है।

उपन्यास में अपराधी को अजीब और बहुत खतरनाक दिखाया गया है। वहीं जासूस तनवीर को तीव्र बुद्धि का और आदिल को हास्य प्रवृत्ति का दिखाया गया है। आदिल का एक उदाहरण देखें।-
"आ...अच्छा... चलो प्यारे...खूब पियो...तहखाने में पियो या आसमान में उड़न खटोले पर पियो, लेकिन पियो जरूर, क्योंकि यही मेरी जिंदगी है यही मेरी बंदगी है।"-आदिल ने झूमते हुए कहा।

          अपराध कथा पर लिखा गया अनीस मिर्जा का यह लघु आकार का उपन्यास पठनीय है। हालांकि कहानी में लघु रखने के चक्कर में कुछ बातें और घटनाएं छूट गयी सी प्रतीत होती हैं। वहीं एक अन्य अपहरण की घटनाएं का आरम्भ में वर्णन है लेकिन अंत में कोई हल या वर्णन नहीं मिलता।
उपन्यास एक बार मनोरंजन के लिए पढा जा सकता और इसे चाहे तो विस्तार देकर और मनोरंजक बनाया जा सकता है। कम पृष्ठ और रोचक कहानी। अच्छा उपन्यास।

उपन्यास- पानी के धमाके
लेखक-   अनीस मिर्जा
पत्रिका- इंस्पेक्टर जासूस
प्रकाशक- जी.के. पब्लिकेशन, लाजपत नगर, नई दिल्ली
पृष्ठ- ‌‌‌ 103

218. पृथ्वी के छोर पर- शरदिंदु मुकर्जी

एक वैज्ञानिक की अंटार्कटिका यात्रा
पृथ्वी के छोर पर- डाॅ. शरदिन्दु मुकर्जी

कभी-कभी अलग प्रकार ही नहीं बहुत अलग प्रकार की किताबें पढने को मिल जाती हैं। ऐसी किताबें जो स्मृति पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। जब कुछ ऐसा पढने को मिल जाये जो अपनी उम्मीदों से परे हो, अपनी कल्पना शक्ति से आगे हो और रुचिकर हो तो उसकी चर्चा आवश्यक हो जाती है। ऐसी ही एक रचना 'पृथ्वी के छोर पर' पढने को मिली।
पृथ्वी के छोर पर' भूवैज्ञानिक शरदिंदु मुकर्जी जी के अंटार्कटिका यात्रा का रोमांचक वर्णन है। भारत का वैज्ञानिक दल अंटार्कटिका में शोध हेतु जाता रहता है। वहाँ पर भारत के दो शोध केन्द्र भी हैं दक्षिण गंगोत्री और मैत्री।
अंटार्कटिका के अपने तीन दशकों से भी अधिक समय के सम्पर्क से और वहाँ के विभिन्न अभियानों में भाग लेने के कारण उनके पास इस अद्भुत हिमप्रदेश के अनेक रहस्यमय संस्मरणों का एक विशाल भण्डार मौजूद है. एक सशक्त लेखक, प्रकृति प्रेमी कवि तथा कुशल वैज्ञानिक होने के कारण जिस सहजता से बखूबी उन्होंने अपनी आँखों देखी बातों का विवरण ‘पृथ्वी के छोर पर' में लिखा है, उसने इस पुस्तक को रोमांचकारी रूप प्रदान कर दिया है.

217. कहानी तेरी मेरी- खुशी शैफी

खुशी की रंग बिरंगी दुनिया
कहानी तेरी मेरी- खुशी सैफी

खुशी सैफी द्वारा लिखित एक छोटा सा कहानी संग्रह पढा। इस संग्रह में कुल पांच कहानियाँ और पांचों कहानियाँ विविध रंग की है। कहानियों में कहीं कोई गम्भीर नहीं ये हल्की सी कहानियाँ सामान्य उस पाठक के लिए है जो मनोरंजन के साथ-साथ कुछ अच्छा भी पढना चाहता है। ये कहानियाँ हास्य के साथ-साथ वर्तमान समाज की कुछ विसंगतियों का भी चित्रण करती है।
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     इस संग्रह की पहली कहानी है- '498A के शिकारी'। यह सलोनी नामक एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके लिए शादी एक व्यापार है। लेकिन कभी-कभी सलोनी जैसे चालाक व्यापारी भी मात खा जाते हैं। ऐसा ही इस कहानी में दर्शाया गया है।
'498A के शिकारी' में जो चित्रित है ऐसी घटनाएं कई बार समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल जाती है।
कहानी की एक पंक्ति मुझे अच्छी लगी।
बेटी का बाप कन्या दान करता है, ऊपर से दहेज़ का एक और बोझ डाल देना कहाँ का इंसाफ है” मिस्टर जोशी ने कहा।

216. महाभारत के बाद- भुवनेश्वर उपाध्याय

महाभारत के पात्रों का चिंतन
महाभारत के बाद- भुवनेश्वर उपाध्याय
  
महाभारत के बाद भुवनेश्वर उपाध्याय की एक वैचारिक रचना है। यह मंथन है महाभारत के बाद जीवित बचे पात्रों का। उनका दृष्टिकोण है जो हुआ (महाभारत युद्ध) क्या वह उचित है, क्या वह आवश्यक था, क्या उसे टाला नहीं जा सकता था?
भारतवर्ष के इतिहास में सबसे बड़ा नरसंहार 'कौरव- पाण्डव युद्ध' रहा है।
        क्या यह युद्ध उचित था, क्या यह मात्र अपनी विजयार्थ लड़ा गया एक संग्राम मात्र था या इसके कोई और कारण भी रहे हैं। यह कोई सामान्य युद्ध न था यह तो महायुद्ध था यह तो धर्मयुद्ध था। जैसा की लेखक महोदय लिखते हैं- धर्मयुद्ध, धन-सम्पत्ति और सत्तात्मक अधिकारों‌ के‌ लिए नहीं होते, बल्कि दो मानसिकताओं के मध्य होते हैं; मानवीय मूल्यों और महत्वाकाक्षाओं के मध्य होते हैं।
वास्तव में यह दो मानिकताओं दो मूल्यों का द्वंद्व था। 


215. खेल खिलाड़ी का- विनय प्रभाकर

मेजर नाना पाटेकर का एक और कारनामा
खेल खिलाड़ी का- विनय प्रभाकर
नाना पाटेकर सीरीज

विनय प्रभाकर कृत नाना पाटेकर सीरिज का एक उपन्यास 'मौत आयेगी सात तालों में' पढा था वहीं से मैं नाना पाटेकर का प्रशंंसक हो गया था। नाना पाटेकर उपन्यास साहित्य का एक दबंग पात्र है। जो देशप्रेमी है और अपराधी भी।
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         लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में डकैती करने वाले कुछ प्रसिद्ध पात्र रहे हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक कृत विमल, अनिल मोहन जी का 'देवराज', अनिल सलूजा का 'बलराज गोगिया' और विनय प्रभाकर का 'नाना पाटेकर'। मुझे इनमें से नाना पाटेकर सबसे अलग लगता है। क्योंकि वह दबंग है,देशप्रेमी है, आर्मी का जवान रह चुका है, किसी से दबता नहीं और धुन का पक्का है।
अब बात करते है उपन्यास 'खेल खिलाड़ी का' के कथानक की।
पिछले घटनाक्रम में नब्बे करोड़ के सोने से नाम मात्र सोना लेकर मेजर फरार हो गया था।
नब्बे करोड़ के सोने में से सिर्फ दस-दस ग्राम के पांच बिस्कुट लेकर और जार्ज लुइस के सहयोग का आभार मानते हुए मेजर ने नदी में छलांग लगा दी। (पृष्ठ-10)
'खेल खिलाड़ी का' उपन्यास का कथानक इस घटना के बाद आरम्भ होता है। इस उपन्यास का पूर्व उपन्यास या कहानी अए किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है उक्त घटना का नाम मात्र चित्रण है।

      वहाँ से मेजर सोनीपत पहुंचा। सोनीपत स्टेशन पर ट्रेन रूकते ही मेजर यह सोचकर वहाँ उतर गया कि दिल्ली जाने की जगह यह छोटा शहर उसके ठहरने के लिए ज्यादा ठीक रहेगा।
(पृष्ठ-13)
          मेजर ने सोनीपत को एक सुरक्षा स्थान मान कर यहीं ठहरने का विचार किया लेकिन क्या पता था यहाँ भी मुसीबत उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली। और अंततः मेजर एक चक्रव्यूह में फंस ही गया।