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Saturday, 22 December 2018

160. दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक खतरनाक दहशत का खेल...
दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुरेन्द्र मोहन पाठक जासूसी उपन्यास साहित्य में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उपन्यास पर लिखा उ‌नका नाम ही पाठक के लिए बहुत होता है।
        ‌पाठक जी मूलतः 'मर्डर मिस्ट्री ‌लेखक' हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'दहशतगर्दी' उनका मर्डर मिस्ट्री न होकर एक थ्रिलर उपन्यास है।
            यह उपन्यास मुख्यतः आतंकवादियों को आधार बनाकर लिखा गया है। 
"अपनी ताकत दिखाने का हमारे पास एक ही कार आमद तरीका है।"- खान गर्जा " और वो है दहशतगर्दी।" 
दहशतगर्दों का एक  टारगेट है भारत से सिंगापुर को चलने वाली लग्जरी  कन्टीनैंटल एक्सप्रेस ट्रेन को निशाना बनाना। दूसरी तरफ भारत, बांग्लादेश, फ्रांस और स्विटजरलैंड की पुलिस/जासूस/अधिकारी  है जो इन दहशतगर्दों/ आतंकवादियों के विरोध में, उनके मिशन को असफल करने में और असली अपराधी को पकड़ने के लिए सक्रिय हैं। 
    रूसी सर्कस के अंदर पी. सेनगुप्ता को मारने के लिए जो हत्यारा भेजा जाता है वह बिलकुल फिल्मी तरीका अपनाता है।  हत्यारा 'काॅमेडियन' का वेश धारण करके स्टेज पर काॅमेडी करता नजर आता है।
    एक लंबा, बहुत लंबा दृश्य/ संवाद भी देख लीजिएगा। दोपहर का वक्त था जब कलकता के ग्रैड होटल के एक डीलक्स सुइट में चार व्यक्तियों की एक मीटिंग का आयोजन था। (पृष्ठ-57) चार आदमियों का यह आयोजन पृष्ठ संख्या 57 से आरम्भ होकर पृष्ठ संख्या 74 पर जाकर खत्म होता है। इस दृश्य का अनावश्यक रूप से विस्तार दिया गया है।
            दहशतगर्दी एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास की कहानी एक ट्रेन को बम विस्फोट से उठाने की है। उपन्यास का भारी कथानक, अनावश्यक विस्तार और बोझिलपन कहानी को नीरस बना देता है।
            पहली बार पाठक जी के किसी उपन्यास को पढकर ऐसा लगा की ये उपन्यास शायद ही पाठक जी ने लिखा हो।
                उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- दहशतगर्दी
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक-  मनोज पब्लिकेशन
पृष्ठ-     261
मूल्य- 25₹
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      एक ऐसा षड्यंत्र जिसकी नींव पेरिस, जनेवा और सिंगापुर में रखी गयी।  जिसकी चपेट में भारत को लाने के लिए एक खतरनाक टैरेरिस्ट, एक इंटरनेशनल आर्म्स डीलर, एक प्रोफेशन किलर,  एक गद्दार इन्डस्ट्रिलिस्ट और एक वतन फरोश कर्नल एक ही थैली के चट्टे- बट्टे बने हुए थे। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
क्या वो अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो सके?
       सुरेन्द्र मोहन पाठक मूलतः एक 'मर्डर मिस्ट्री लेखक' हैं, लेकिन यह उपन्यास उनके जेनर से अलग तरह का है। इसका कथानक भी ऐसा है जिसे पाठक जी ने कभी नहीं लिखा। लेखकीय में लिखा है उपन्यास मैंने लिख तो लिया है लेकिन बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि भविष्य में दोबारा शायद  कभी मैं न करुं। (पृष्ठ-05, लेखकिय)
'दहशतगर्दी' उपन्यास की कहानी कश्मीरी दहशतगर्दों पर आधारित है जो कश्मीर को भारत से अलग करने की घटिया कोशिश में असफल होने पर भारत के विभिन्न जगहों पर अपनी दहशतगर्दी फैलाना चाहते हैं।
          उपन्यास का आरम्भ ही इतना नीरस लगता है की 10-15 पृष्ठ के पश्चात ही बोरियत महसूस होने लगती है। उपन्यास बहुत ज्यादा 'भारी' सा महसूस होता है, कथानक है ही इतना भारी की पाठक को समझना ही मुश्किल हो जाता है की लेखक लिख क्या रहा है।
    कुछ दृश्य और संवाद अनावश्यक रूप से विस्तार पाकर उपन्यास को नीरस बनाने में सहायक बने हैं।
निष्कर्ष-
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Friday, 21 December 2018

159. आखरी मौका- प्रकाश भारती

लूटेरों को मिला घर वापसी का आखिरी मौका
आखरी मौका- प्रकाश भारती, थ्रिलर उपन्यास।
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प्रकाश भारती अपने समय के एक बेहतरीन उपन्यासकार रहे हैं। इनके लिखे उपन्यासों की कहानियाँ बहुत ही जबरदस्त और अलग प्रकार की होती थी। 
          प्रचलित जासूसी उपन्यासों से अलग हटकर लेखन इनकी विशेषता रही है। 'आठवां अजूबा' और 'काली डायरी' जैसे शानदार उपन्यास प्रकाश भारती जी की कलम की विशेष रचनाएँ हैं।
              प्रकाश भारती जी का उपन्यास 'आखरी मौका' एक डकैती पर आधारित उपन्यास है। बैंक डकैती तो उपन्यास के नेपथ्य में ही है वास्तव में यह उपन्यास डकैती के बाद के घटनाक्रम पर आधारित है। 
आखरी मौका- प्रकाश भारती
टीकम गढ।
      हरिपुर, नारायण गंज और निजारा नदी के उपर शान से सर उठाये खड़े पहाड़ का सबसे ज्यादा ऊँचाई वाला शहर था।
      भारी बख्तरबंद वैन नारायणगंज से अपने अगले पड़ाव टीकमगढ के लिए रवाना हुयी और प्रभावदार चढाई चढने लगी। (पृष्ठ-07)
          इस वैन को कुछ अज्ञात लूटेरे लूट लेते हैं।  पुलिस लाख कोशिश करने के बाद भी लूटेरों का पता न लगा पायी। पुलिस को लाख सिर पटकने के बाद भी नाकामियों का मुँह सेखना पड़ा। तब हकबकाये बैंक अधिकारियों ने 'क्राइम रिपोर्टर अजय' से एक समझौता किया और अजय कूट पड़ा कातिलों और लूटरों से भरी अपराध की उस दलदल में....फिर शुरु हुआ क्राइम रिपोर्टर अजय और अपराधियों के बीच एक रोमांचक व सनसनीखेज जंग.....। 

Sunday, 16 December 2018

158. डार्क नाइट- संदीप नैयर

कुण्ठा के शिकार युवक की अश्लील कथा।

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           कुछ रचनाएँ अपनी चंद पंक्तियों से ही प्रभावित कर लेती हैं। एक ललक पैदा कर देती हैं, पढने की इच्छा जगा देती हैं। जो प्रभाव शब्दों में होता है वैसा प्रभाव और किसी में नहीं होता। ऐसे ही प्रभावशाली शब्द थे संदीप नैयर जी के उपन्यास 'डार्क नाइट' के।
      ‌‌ ‌ इस उपन्यास के सूत्रधार  'काम' के शब्दों में -
      -'आखिर सौन्दर्य है क्या? क्या सौन्दर्य सिर्फ मूर्त में है? सिर्फ रंगों और आकृतियों में‌ बसा है? क्या वह सिर्फ रूप और श्रृंगार में समाया है? क्या वह दृश्य में है? या दृश्य से परे दर्शक की दृष्टि में है? या दृश्य और दृष्टि के पारस्परिक नृत्य से पैदा हुए दर्शन में है? मगर जो भी है, सौन्दर्य में एक पवित्र स्पंदन है।  सौन्दर्य हमारी आध्यात्मिक प्रेरणा होता है। हमारे मिथकों में, पुराण में, साहित्य में, सौन्दर्य किसी गाइड की तरह प्रकट होता है, जो अँधेरी राहों को जगमगाता है, पेचिदा पहेलियों को सुलझाता है, भ्राँतियों की धुंध को चीरता है, और पथिक को कठिनाइयों के कई पड़ाव पार कराता हुआ सत्य की ओर ले जाता है।'
      - इन प्रभावशाली शब्दों को पढ कर मैं सौन्दर्य के सत्य को जानने का इच्छुक हुआ।  आखिर वह सत्य क्या है? इस सौन्दर्य से परे वह कौनसा सौन्दर्य है जिसे हम समझ नहीं पाये।
      - साहित्यकार समाज का निर्माता होता है, उसकी दृष्टि आप पाठक से अलग हटकर होती है। वह पाठक को एक नया दृष्टिकोण देता है।   मैं‌ लेखक से इसलिए प्रभावित हुआ की इस उपन्यास में मात्र पढने को ही नहीं कुछ नया समझने/ सीखने को भी मिलेगा।

            यह कहानी एक एक भारतीय युवक कबीर की जो लगभग पन्द्रह वर्ष की उम्र में ब्रिटेन का निवासी हो गया। भारतीय समाज के संस्कारों में पोषित कबीर लंदन के उन्मुक्त समाज में स्वयं को सहज नहीं बना पाता और कुण्ठा का शिकार हो जाता है।
               मूलतः लेखक इस कहानी के माध्यम से एक ऐसे युवक की कहानी दर्शाना चाहता है जो एक स्वच्छंद वातावरण में आकर कैसी घुटन महसूस करता है। वह स्वयं को एक अजीब सी स्थिति में पाता है।

        हम नारी की देह, उसके रूप, और उसके श्रृंगार में ही सौन्दर्य देखते हैं, पुरुष ही नहीं, नारी भी यही करती है। मगर नारी का सौन्दर्य, उसकी देह, रुप और शृंगार से परे भी बसा होता है।
उसके सौम्य स्वभाव में, उसकी ममता में, उसकी करुणा में उसके नारीत्व की दिव्य प्रकृति में।

          ‌ इस सौन्दर्य तक कोई पहुंच भी नहीं पाता। न तो कबीर इस सौन्दर्य को समझ पाता है और न ही प्रिया, माया, हिकमा और टीना। समझ तो इस सौन्दर्य को योग गुरु 'काम' भी नहीं पाता।
         क्योंकि कबीर का जो प्रेम है वह मात्रा शारिरिक है। उसके लिए बाहरी आकर्षण महत्व रखता है। जब वह शारीरिक सौन्दर्य की पूर्ति नहीं कर पाता तो वह मानसिक कुंठा का शिकार हो जाता है। लेखक के शब्दों में कहें तो वह 'डार्क नाइट' में चला जाता है।
             आखिर डार्क नाइट है क्या? आप भी देख लीजिएगा-
'द डार्क नाइट एक मानसिक या आध्यात्मिक संकट होता है, जिसमें मनुष्य के मन में जीवन और अस्तित्व पर प्रश्न उठते हैं, जीवन जैसा है, उसके उसे मायने नहीं दिखते, जीवन को उसने जो भी अर्थ दिये होते हैं वे टूटकर बिखर जाते हैं, जीवन उसे निरर्थक लगने लगता है।"(पृष्ठ128
            लेकिन यहाँ कबीर का कोई आध्यात्मिक संकट उत्पन्न नहीं होता, उसके एक ही संकट उत्पन्न होता है वह है शारीरिक वासना की पूर्ति न होना। क्योंकि उसका प्रेम.....कबीर का प्रेम भी देख लीजिएगा‌। वह प्यार नहीं मात्र मानसिक विकृति है, जिसे अच्छे मनोचिकित्सक की जरुरत है। 'नेहा की हील्स से उठती ताजे लेदर की गंध, उसे और उत्तेजित कर गयी।(पृष्ठ-97)
        क्या किसी चमड़े से उठती बदबू (गंध) से संबंधित लड़की से प्यार होना, कहां का प्यार है। 'हील्स से उठती मादक गंध, उसे एक बार फिर मदहोश कर गई'(पृष्ठ-98)

     योग गुरु की मदद से कबीर इस डार्क नाइट से बाहर भी निकल आता है। आखिर उसने योग गुरु से क्या सीखा, आप भी पढ लीजिएगा।   वो पूरे आत्मविश्वास से किसी लड़की पर अपना प्रेम जाहिर कर सकता है, उसे आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर अपने बिस्तर तक ला सकता है। (पृष्ठ-)186
         तो यह है डार्क नाइट या कबीर का सच। उसका प्रेम 'बिस्तर' से आगे का नहीं है। लेखक जिसे आध्यात्मिक संकट बता रहा है वह आध्यात्मिक नहीं मात्र वासना पूर्ति का संकट है।
         वह हर लड़की से यही चाहता है।     
"कबीर, क्या तुम प्रिया को बिलकुल भूल जाना चाहते हो?"- माया ने धीमी आवाज में पूछा।
" माया, मैं तुम्हें चाहता हूँ, और तुम्हारे लिए मैं सब कुछ भूलने को तैयार हूँ।"- कबीर ने भावुक स्वर में कहा। (पृष्ठ-166,67)

    कबीर ही नहीं प्रिया भी इसी प्रकार की पात्र है। "हाँ, कबीर मुझे माया से जलन हो रही है। माया में ऐसा क्या है, क्या वो मुझसे ज्यादा हाॅट है? मुझसे ज्यादा सेक्सी है? मुझसे ज्यादा सुंदर है?"(पृष्ठ-176)
               

     एक तो यह पता नहीं चलता की लेखक आखिर साबित क्या करना चाहता है। लेखक उपन्यास का आरम्भ/ लेखकीय में‌ बहुत उच्च कोटि की दार्शनिकता दिखाता है लेकिन उपन्यास की कहानी उससे जरा भी नजदीक नहीं है।  लेखक जहां देह से परे के सौन्दर्य की बात करता है लेकिन पूरा का पूरा उपन्यास मूर्त सौन्दर्य तो क्या स्त्री की नाभि से भी उपर नहीं उठ पाता।
          उपन्यास का नायक हो सकता है किसी कुण्ठा का शिकार रहा हो, उसकी दमित इच्छाएँ हो, लेकिन क्या यह लेखक का भी अनुभव है....?
          उपन्यास का नायक अपने योग गुरु से मिलता है। जी हां, योग गुरु से। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से योग आपकी कलुषित विचारधारा को भी शुद्ध कर देता है। लेकिन उपन्यास पढकर लगता है जैसे लेखक ने योग का नाम ही सुना है वह भी योगा रूप में। जहां 'भोग से समाधि की ओर' की चर्चा चलती वहीं यह उपन्यास योग से भोग की ओर संकेत करता नजर आता है।
         
             भक्तिकाल के भक्त कवि कबीर ने कहा है-
जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध ।
अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत ।।

                                  ‌   अज्ञानी गुरु का शिष्य भी अज्ञानी ही होगा। ऐसी स्थिति में दोनों ही नष्ट होंगे।  यहाँ नायक कबीर और उसके गुरु काम, दोनों का स्वभाव एक जैसा ही है। लेखक चाहता तो कम से कम योग गुरु को तो सही दिखा सकता था लेकिन उपन्यास के अंत तक पहुंचते पहुंचते योग गुरु भी कामवासना से आगे नहीं बढ पाता।
            साहब, आप सिर्फ 'ओम' का उच्चारण ही शुद्ध रुप से करते रहो, तो भी आपका आत्मा पवित्र हो जायेगी। यहाँ तो आपने लिख दिया योग गुरु लेकिन उस गुरु को भी योग की समझ नहीं है।

उपन्यास के कुछ संवाद बहुत अच्छे और रोचक हैं। अगर उपन्यास की कोई विशेषता है तो सिर्फ संवाद हैं।

प्रेम में समर्पण का अर्थ है....अपने प्रेमी का संबल और सम्मान बनना...।(पृष्ठ-213)
-  एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है....थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास। (पृष्ठ-120)

लेखक ने एक तरफ तो ब्रिटेन का स्वच्छंद वातावरण चित्रित किया है। वहीं माया और कबीर के संबंध पर लिखता है।
          आॅफिस में भी यह फुसफसाहट होने लगी थी, कि कबीर और माया के बीच कुछ गड़बड़ है। (पृष्ठ163)
          इतने स्वच्छंद वातावरण में यह फुसफुसाहट क्यों?

  उपन्यास का सच तो यह है की लेखक ने उपन्यास के लेखकीय में जो बहुत उच्च कोटि का दर्शन दर्शाया है वहाँ तक स्वयं भी पहुंच नहीं पाया।  उपन्यास नायक कबीर के शब्दों में - "कबीर ने नशे में बात कुछ गहरी ही कह दी थी, मगर उसे खुद अपनी बात का मकसद समझ में नहीं आया था।" (पृष्ठ-180)
      यह बात इस उपन्यास के लेखकीय पर सत्य साबित होती है।

   उपन्यास में अश्लील चित्रण ज्यादा है, हद से ज्यादा है। लेखक शायद अश्लीलता बेचना चाह रहा है। लेखक वह होता है जो विकृत को भी सुंदर ढंग से प्रस्तुत करे। लेकिन यहाँ तो सुंदर को विकृत ढंग से प्रस्तुत किया गया है।   किसी बुरी चीजों को एक अंग्रेजी नाम देने से उसकी सुंदरता नहीं बढती। उपन्यास को मात्र 'इरोटिक' कह देने मात्र से उसकी अश्लीलता खत्म नहीं हो जाती। यह मात्र हल्की लोकप्रियता प्राप्त करने जैसा है।

निष्कर्ष-
            यह उपन्यास एक अच्छी थीम से आरम्भ अवश्य होता है लेकिन उस पर स्थिर नहीं रह पाता। लेखक ने 'इरोटिक' शब्द देकर स्वयं को 'साहित्य का दिनेश ठाकुर' बनाने की कोशिश की है।
             यह उपन्यास अश्लीलता से आगे बढ ही नहीं पाया। बात चाहे नारी के श्रृंगार से परे की सौन्दर्य की हो लेकिन वह लेखक की नजर में सौन्दर्य नाभि से नीचे ही रहा है।
              मैं इस उपन्यास को न पढने की राय देता हूँ।
             
            हालांकि किसी एक रचना से किसी लेखन को नकारा नहीं जा सकता। संदीप नैयर जी की 'समरसिद्धा' भी एक रोचक उपन्यास बतायी जाती है। वह एक काल खण्ड की कथा है, इस तरह के उपन्यास मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। अब 'समरसिद्धा' पठन की कतार में है।

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उपन्यास- डार्क नाइट
लेखक-     संदीप नैयर
ISBN- 978-93-87390-03-4
प्रकाशक- redgrab
www.redgrabbooks.com
पृष्ठ-
मूल्य- 175₹, $8
लेखक संपर्क- info@sandeepnayyar.com

Tuesday, 11 December 2018

157. रूठी रानी- मुंशी प्रेमचंद

मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।

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मुंशी प्रेमचन्द उपन्यास साहित्य में 'उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास इतने सरल और रोचक होते हैं की सहज ही आकर्षित कर लेते हैं।
               सामान्य परिवेश की कहानी और रोचक भाषा शैली होने के कारण मन को छूने की क्षमता रखते हैं।
               'रूठी रानी' मुंशी प्रेमचंद जी का एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो पहले उर्दू में लिखा गया और फिर हिंदी में। इसका प्रकाशन वर्ष 1907 है।
                   यह कहानी है जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की। उमादे का विवाह मारवाड़ के शक्तिशाली राव मालदेव के साथ होता है।  मालदेव एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा है, लेकिन उसके पराक्रम पर उसके ऐब हावी हैं। इसी ऐब के चलते, नशे की हालत में वे शादी के शुभ अवसर पर एक ऐसा कुकृत्य कर बैठते हैं जो एक राजा को शोभा नहीं देता।
                         प्रथम दिवस पर ही ऐसे कुकृत्य की खबर जब रानी उमादे को पता चलती है तो वह राव मालदेव से रूठ जाती है। स्वाभिमानिनी रानी उमादे एक बार ऐसी रूठी की वह ताउम्र राजा से नाराज ही रही। इसी रूठने के कारण वह इतिहास में 'रूठी रानी' के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
                         मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।
                         दोमी हाथी बाँधिये एकड़ खतमो ठान।
                        
                         यह कहानी मात्र 'रूठी रानी' की नहीं है, यह राजस्थान के उस गौरवशाली अतीत का चित्रण करती है जहां योद्धा गरदन कटने के बाद भी युद्ध करते रहे।
                         एक तरफ शक्तिशाली राव मालदेव है और दूसरी तरफ विदेशी आक्रांता हुमायूँ और शेरशाह सूरी जैसे लोग हैं।   एक पराक्रमी राजा जिसके पास शेरशाह सुरी से भी ज्यादा सेना थी, लगभग सत्तर हजार सेना आखिर वह कहां मात खा गया।
          
            कम रूठी रानी भी नहीं थी। वह चाहे अपने पति से रूठी हुयी थी लेकिन मुगलों को हमेशा टक्कर देने के लिए तैयार थी। उससे शेरशाह सूरी के सेनापति को जवाब दिया-"मैं लड़ने को तैयार हूँ, तेरा जब जी चाहे, आ जा। मैं औरत हूँ तो क्या, मगर राजपूत की बेटी हूँ।"(पृष्ठ-45)      
       
                        
                        राजस्थान के राजपूत योद्धा, छलकपट न जानते थे। वे तो बस लड़ना और शत्रु को मारना जानते थे। -"हम तो शेरशाह से यहीं जमकर लड़ेंगे। वह भी तो देख कि राजपूत जमीन के लिए कैसी बेदर्दी से लड़कर जान देते हैं।"(पृष्ठ-43)
                         जब शेरशाह सूरी का इनसे सामना हुआ था सूरी को भी कहना पड़ा -"...मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की सल्तनत हाथ से गयी थी।"(पृष्ठ-43)
                         यह उपन्यास एक तरफ रूठी रानी की कथा प्रस्तुत करता है, तो दूसरी तरफ राजमहल में पनपने वाले षड्यंत्रों का भी चित्रण करता है, तीसरी तरफ यह विदेशी आक्रमणकारी और भारतीय राजाओं की आपसी द्वेष को भी प्रस्तुत करता है।
                         उपन्यास की भाषा शैली सामान्य और सहज है। कहीं कोई क्लिष्ट शब्दावली प्रयुक्त नहीं हुयी, हां, उसमें उर्दू के शब्द काफी मात्र में मिल सकते हैं।
                         अगर आपको राव मालदेव, रूठी रानी, शेरशाह सूरी को समझना है तो यह उपन्यास कुछ हद तक आपको इतिहास के उस रोचक पृष्ठ की जानकारी देगी।
                         उपन्यास अच्छा और पठनीय है। अगर ऐतिहासिक उपन्यास कोई पढना चाहता है तो यह निराश नहीं करेगा, क्योंकि उपन्यास लघु कलेवर और तेज प्रवाह का है।
                         ---
उपन्यास- रूठी रानी
लेखक- मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशन- साहित्यागार, जयपुर
संस्करण-1989
पृष्ठ-54
मूल्य-55₹

Sunday, 9 December 2018

156. यमराज का नोटिस- विमल मित्र

तीन रोचक कहानियाँ


         विमल मित्र जी का एक छोटा सा कहानी संग्रह यमराज का नोटिस मेरे विद्यालय के पुस्तकालय में उपलब्ध था।‌ खाली समय था,  जिसका सदुपयोग पढने में किया।
    इस कहानी संग्रह में विमल मित्र जी की तीन बांगला भाषा की कहानियों का हिंदी अनुवाद है। तीनों कहानियाँ रोचक, बहुत रोचक हैं। कहानियाँ का आकार मध्यम है इसलिए पढने में ज्यादा समय नहीं लगा।
        ‌
        इस संग्रह में शामिल कहानियाँ है।
       1.  यमराज का नोटिस (यमराजेर नोटिस)
       2. चुहिया सुंदरी           (ईदुरेर स्त्रीर कथा)
       3. सबसे ताकतवर कौन (सब थेके शक्तिमान के?)

प्रथम कहानी यमराज का नोटिस एक अच्छी और भावुक कहानी कही जा सकती है। भावुकता के साथ साथ इसमें हास्य का पुट है। यह हास्य कहानी में भावुकता को हावी नहीं होने देता।

       लेखन ने लेखन शैली में भी रोचकता कायम रखी है। बड़े बाजार से भवानी पुर। भवानी पुर से बालीगंज। बालीगंज से बेहला। इस बेहला के भूमिपति बाबू के मकान पर आते ही केष्ठो बाबू बिलकुल आटे की तरह अटक गये। (पृष्ठ-3)
      यह कहानी भी केष्ठो और भूमिपति बाबू पर आधारित है।  जब यमराज का नोटिस आता है तो मनुष्य की स्थिति क्या होती है। भूमिपति बाबू के लिए यह नोटिस भी उनका नौकर केष्ठो लेकर आया था।
        क्या मालिक एक नौकर का आदेश मानेगा या नहीं?

       नौकर यमराज का नोटिस कैसे लाया?   

       
         द्वितीय कहानी चुहिया सुंदरी बचपन में पढी हुयी कहानी है। आज इस कहानी के लेखक का भी पता चल गया की यह रचना विमल मित्र जी की है।  शायद यह कहानी लगभग पाठकों ने पढी होगी।
      यह कहानी एक ऐसे चूहे की है जो एक साधु के आशीर्वाद से चूहे से बिलाव और बिलाब कुत्ता.... क्रमश: शरीर बदलता रहा लेकिन वह कभी संतुष्ट न हो सका।
      इस कहानी का अंत बहुत रोचक और अलग है। कहानी पूर्णतः हास्य पर आधारित है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भी देती है कि ज्यादा उच्चाकांक्षा अच्छी चीज नहीं है, उसमें खतरा है।(पृष्ठ-33)

          इस संग्रह की अंतिम कहानी सबसे ताकतवर कौन है भी एक अच्छी व पठनीय कहानी है। जो बचपन में लगभग बाल पुस्तकों में पढने को मिलती थी। लेखक भी लिखता है यह कहानी बचपन में पिताजी से सुनी थी।
     यह कहानी एक साधु और कुत्ते की है। कुत्ते की इच्छा होती है सबसे ताकतवर के साथ रहने की। इसलिए वह इधर-उधर भटकता रहता है और एक दिन साधु के पास पहुंच जाता है।
     सबसे ताकतवर तो मनुष्य भी नहीं है।
     साधु बाबा ने कहा,"तुमने भूल की है। मुझसे ताकतवर जीव भी संसार में है।"
     "कौन है वह?"

    उस ताकतवर की तलाश है यह कहानी ।

इस संग्रह की तीनों कहानियाँ रोचक और पठनीय है। बच्चों के लिए अच्छा संग्रह है। अगर इस संग्रह में कुछ और कहानियाँ होती तो बहुत अच्छा था। मात्र तीन कहानियों का संग्रह बहुत छोटा होता है। वह भी जब शब्दों का आकार बढाकर इसे 64 पृष्ठ में किया गया है।
        फिर भी कहानियाँ पठनीय है।
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कहानी संग्रह- यमराज का नोटिस
लेखक- विमल मित्र
प्रकाशक- सुरुचि साहित्य, शाहदरा, दिल्ली
संस्करण- 1997
मूल्य-50₹
पृष्ठ-64

      

Saturday, 1 December 2018

155. एक खून और- सुरेन्द्र मोहन पाठक

खून और खून और खून।
एक खून और - सुरेन्द्र मोहन पाठक, रोचक मर्डर मिस्ट्री, पठनीय।
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      कुछ कहानियाँ इतनी रोचक होती हैं की वे प्रथम पृष्ठ से ही पाठक को प्रभावित कर लेती हैं। यह रोचकता जब आदि से अंत तक बनी रहे तो पाठक एक बैठक में ही पुस्तक को पढ जाना चाहता है।
        प्रस्तुत उपन्यास 'एक खून और' भी इतनी ही रोचक और दिलचस्प उपन्यास है।

            माला और सरिता अपने करोड़पति अंकल की संपत्ति की वारिस थी। अंकल की मौत के बाद दोनों के हिस्से में तीन-तीन करोड़ संपत्ति आती।
      करोड़पति माला जायसवाल से स्थानीय समाचार पत्र का खोजी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती इंटरव्यू लेने पहुंचा।
      "....मैं तो यहाँ अपने अखबार के लिए आपका इंटरव्यू लेने आया था।"
      "अखबार! इंटरव्यू! तुम क्या चीज हो।"
      .......
      और सुनील ने अपना  विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसकी और बढाया।"
      माया जायसवाल ने कार्ड लिया, उस पर एक सरसरी निगाह डाली और कार्ड को मेज पर उछाल दिया।
      .....
      "अभी मुझे वक्त नहीं है।  फिर आना।"
      "फिर कब?"
      "आधी रात को ।"
      "जी"
              यह थी करोड़पति बहन सरिता जायसवाल की करोड़पति बहन माला जायसवाल। सरिता शादी शुदा थी और माला अभी शादी के लिए लड़का तलाश कर रही थी। वह भी एक अजीब तरीके से।
              "और तुम्हें मेरे साथ जिंदगी भर बंधे रहने की भी जरूरत नहीं। तुम्हें सिर्फ दो तीन महिने मेरा पति बन कर रहना होगा...।"
              ........
              "दो तीन महि‌ने बाद मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी और साथ में पच्चीस हजार रुपये बोनस दूंगी"
              तो यह थी माला जायसवाल। अजीब फितरत की मालकिन। कम सुनील चक्रवर्ती भी नहीं था। वह भी पट्ठा रात को, आधी रात को माला जायसवाल का इंटरव्यू लेने जा पहुंचा। लेकिन वहाँ तो स्थिति ही कुछ और थी।
              "ड्राइंगरूम के बीचो-बीच औंधे मुँह माला जायसवाल पड़ी थी। उसके सिर का पिछला भाग तरबूज की तरह फट गया था और उसमें से खून बह-बह कर उसकी गरदन और कंधों के आस पास जमा हो रहा था।"

              यही थी माला जायसवाल की जिंदगी, करोड़पति माला जायसवाल एक रात को अपने घर में मृत्यु पायी गयी। जिसका न कोई दुश्मन ना न कोई बैरी,न कोई बैगाना। आखिर ऐसा क्या हुआ की माला जायसवाल को कोई मौत के घटा उतार गया।

             सुरेन्द्र मोहन पाठक वर्तमान उपन्यास जगत में टाॅप मर्डर मिस्ट्री राइटर माने जाते हैं। उनके सुनील सीरिज और सुधीर सीरिज उपन्यास मर्डर मिस्ट्री होते हैं, लेकिन दोनों सीरिज का फ्लेवर अलग-अलग है। जहाँ स्वयं पाठक जी को सुनील ज्यादा पसंद हैं वहीँ मेरे जैसे ज्यादा पाठक सुधीर को पसंद करते हैं।
                 प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है जो मुझे बहुत पसंद आयी‌। कुछ दिन पूर्व पाठक जी का सुनील सीरिज 'सिंगला मर्डर केस' उपन्यास पढा था, एक दम बकवास लगा। लेकिन यह उपन्यास उसके विपरीत है। वह चाहे कहानी के स्तर पर हो या पृष्ठ संख्या के स्तर पर।

                      बात करे इस उपन्यास 'एक खून और' की तो यह काफी दिलचस्प उपन्यास है। पहला कैरेक्टर उभर कर आता है माला जायसवाल का। वह भी एक अजीब तरीके से। माला शादी तो करवाना चाहती है लेकिन दो या तीन महिनों के लिए। आखिर इसके पीछे क्या कारण था?
                      माला इसी दौरान अपने घर में मृत्यु पायी जाती है और उस समय सुनील चक्रवर्ती भी वहाँ उपस्थित होता है।  
    पत्रकार सुनील इस केस को हल करता है, लेकिन यह कातिल को सहन नहीं होता। वह तो सुनील को भी धमकी दे देता है।
    सुनील को एक लिफाफा मिलता है। जिसमें लिखा था।

खुल गया।                      खुल गया।              खुल गया।
    फ्री शशान घाट
    अब आपको मरने के बाद इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं की आपका क्रिया कर्म कैसे होगा?
    हमारे श्मशान घाट की अनोखी आॅफर।
    फ्री लकड़ियाँ।
    फ्री कफन।
    फ्री आहुति।
    हमारी सेवाओं से आज ही लाभ उठाईये। और जल्दी से जल्दी जिंदगी से किनारा कीजिए।
    काजी दुबला बाहर के अंदेशे जैसी नियत वाले अखबार के रिपोर्टरों के लिए एडवांस बुकिंग विशेष सुविधा है।
     सुनील को ऐसी क्लासिक धमकी आज तक नहीं मिली थी।

    सुनील जैसे -जैसे सत्य के नजदीक पहुंचता जाता है वैसे -वैसे उपन्यास में रोचकता बढती जाती है, एक तरफ जहाँ उपन्यास रोचक होता है, वही सुनील के लिए और इंस्पेक्टर प्रभुदयाल के लिए परेशानियां बढती जाती हैं।
        इन परेशानियों ‌में सुनील प्रभुदयाल को फोन करता है।
  "मैं सुनील बोल रहा हूँ।"
  "अब क्या हो गया।"
  "एक खून और" सुनील बोला।

         एक खून और फिर एक खून......यह सिलसिला खतरनाक हो उठता है।
         आखिर कातिल कौन था?
         वह कत्ल क्यों कर रहा था?

   उपन्यास की मिस्ट्री अजब है। पाठक के लिए प्रथम पृष्ठ से ही रहस्य बनता जाता है। एक ऐसा रहस्य जो धीरे धीरे उलझता ही जाता है।   
   उपन्यास में पात्र भी सीमित हैं लेकिन असली कातिल को पहचानना बहुत मुश्किल है। शक सभी पर हो कसता है लेकिन सत्य की पहचान कठिन है।
        उपन्यास में सुनील के साथ यूथ क्लब के मालिक रमाकांत का किरदार भी बहुत अच्छा है, हालांकि उसको उपन्यास में ज्यादा स्पेश नहीं, स्पेश तो ज्यादा प्रभुदयाल को भी नहीं मिला। यही वजह है की उपन्यास में कसावट है। अक्सर लेखक पात्रों का अनावश्यक विस्तार देकर कहानी को धीमी कर देते हैं।
               इस उपन्यास में सीमित पात्र, दमदार कथानक, तेज रफ्तार और जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री पाठक को प्रभावित करने में सक्षम है।
                अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढने की इच्छा रखते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें। इसमें वह सभी मनोरंजन सामग्री उपलब्ध है जो किसी पाठक को प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष-   अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा। उपन्यास एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है जिसे हल करते-करते एक के बाद एक और खून होते चले जाते हैं।
            पाठक को तेज प्रवाह में बहा लेने जाने में सक्षम और एक ही बैठक पठनीय उपन्यास कहानी के अतिरिक्त कुछ सोचने का अवसर भी नहीं देता।
              उपन्यास रोचक, दिलचस्प और पठनीय है।
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उपन्यास - एक खून और
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
पृष्ठ-100