नन्हीं बहन प्रीती |
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Saturday, 30 December 2017
89. एक कैदी की करामात- अलेक्जेंडर ड्यूमा
Thursday, 28 December 2017
88. तूफान के बेटे- कुमार कश्यप
जासूस मित्रों के अपहरण की कहानी ।
तूफान के बेटे- कुमार कश्यप, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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कुमार कश्यप के उपन्यास जासूसी और क्राइम पर आधारित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कथानक और भारतीय जासूस मंडली द्वारा आने वाली मुसीबतों का निस्तारण करना है।
एक समय था जब कुमार कश्यप के उपन्यासों की बहुत मांग थी, अपने समय में कुमार कश्यप बहुत चर्चित और लोकप्रिय उपन्यासकार रहें हैं।
हालांकि प्रस्तुत उपन्यास 'तूफान के बेटे' कोई विशेष उपन्यास नहीं है और यह कोई आवश्यक भी नहीं की किसी भी लेखक का प्रत्येक उपन्यास महान हो।
'तूफान के बेटे' उपन्यास का आरम्भ जितना जबरदस्त होता है लेकिन उपन्यास उसके बाद उतना जबरदस्त रह नहीं पाता और यह भी बाद में पता चलता है की उपन्यास का आरम्भ भी एक पात्र की भूमिका तैयार करने में ही उपयोगी रहा है। लेकिन जैसे ही उपन्यास में असंख्य जासूस प्रवेश करते हैं वैसे ही उपन्यास अपनी महत्ता खो देता है।
वाशिंगटन।
अमेरिका की राजधानी।
विश्व के ऐसे शक्तिशाली राष्ट्र की राजधानी जिसे दुनिया का चौधरी कहा जाता है। जो दुनिया के अधिकतर राष्ट्रों का सरपंच है। (उपन्यास का प्रथम पृष्ठ, पृष्ठ संख्या-05)
न्यूयॉर्क में अमेरिका के प्रसिद्ध जासूस हेरल्ड की शादी में विश्व के जासूस एकत्र होते हैं और उस दौरान उनका अपहरण हो जाता है। हालांकि अपहरणकर्ता विक्रांत का अपहरण करना चाहता है लेकिन विक्रांत का अपहरण करने में असफल रहता है।
जब विक्रांत को इस अपने जासूस मित्रों के अपहरण का पता चलता है तो वह अपने कुछ साथियों के साथ एक टापू से कैद अपने मित्रों को बचा लेता है।
उपन्यास में अनावश्यक वर्णन बहुत ज्यादा है। पाठक को पता भी नहीं चल पाता की कौनसा अंश उपन्यास से वास्तव में संबंध रखता है। आरम्भ लगभग पचास पृष्ठ तो एक पात्र की भूमिका से भरे गये हैं। इसके अलावा भी उपन्यास में अनावश्यक पृष्ठ उपन्यास का स्वाद खराब करते हैं।
उपन्यास किसी भी दृष्टि से पठनीय नहीं है बस समय की बर्बादी है।
कुमार कश्यप अपने समय के चर्चित जासूसी उपन्यासकार रहें हैं लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'तूफान के बेटे' उनकी लेखनी का अच्छा परिचय न दे सका।
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उपन्यास - तूफान के बेटे
लेखक- कुमार कश्यप
87. खामोश, मौत आती है!- कर्नल रंजीत
. मौत का अनोखा खेल
खामोश, मौत आती है- कर्नल रंजीत, थ्रिलर, रोमांच।
मेजर बलवंत का कारनामा।
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दिल्ली शहर में एक के बाद एक खूबसूरत लङकियों का अपहरण होता है। बहुत कोशिश के पश्चात भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाती। तब दिल्ली शहर में आये मेजर बलवंत की मुलाकात पुलिस इंस्पेक्टर रंजीत से होती है। इस तरह मेजर बलवंत इस अपहरण के केस से जुङ जाता है। इसी दौरान एक फोटो स्टुडियो पर काम करने वाले मथुरा दास का कत्ल हो जाता है। इस कत्ल के पश्चात मेजर बलवंत और उसकी टीम एक -एक कङी जोङती जाती है और जा पहुंचती है असली अपराधी तक।
जासूसी उपन्यास लेखन के सरताज कर्नल रंजीत की अनोखी कलम से हैरतअंगेज कारनामों से भरा एक और अनोखा कारनामा- खामोश, मौत आती है।
- कैसी थी वह मौत, जो बिना किसी आहट के चुपचाप चली आती थी? क्या सचमुच मौत थी वह या मौत से भी बढकर कुछ और?
- राजधानी में खूबसूरत लङकियों का एक के बाद एक अपहरण होने लगता है और फिर उनके मंगेतर या प्रेमी भी गायब होने लगते हैं, क्या तालमेल था दोनों तरह के अपहरण में?
- खूबसूरत जवानियों को तबाह करने का घिनौना और भयानक खेल। कौन था वह सफेदपोश भेङिया, जो मासूम युवक-युवतियों को जीते जी मौत भेंट देता था।
- भावनाओं की ब्लैकमेलिंग का अजीबोगरीब तरीका जिसे शातिर बदमाश की बुद्धि ही खोज सकती थी।
- सनसनी और रहस्य-रोमांच का जबरदस्त तूफान जो मन -मस्तिष्क को हिलाकर रख देता है।
भारत की सर्वप्रथम पाॅकेट बुक्स हिंद पॉकेट बुक्स की प्रस्तुति कर्नल रंजीत का उपन्यास - खामोश, मौत आती है।
86. आखिरी दांव- जेम्स हेडली चेइस
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जेम्स हेडली चेइज जासूसी उपन्यास जगत के वह सितारे थे जिनकी चमक दूर दूर तक थी। यही कारण है की इनके उपन्यास जितने लोकप्रिय अंग्रेजी में थे, स्वयं के देश में थे, तात्कालिक समय में थे, उतने ही लोकप्रिय आज हैं, विभिन्न देशों में भी और विभिन्न भाषाओं में हैं।
प्रस्तुत उपन्यास आखिरी दांव मूलत: अंग्रेजी उपन्यास One Bright Summer Morning का हिंदी अनुवाद है और यह अनुवाद किया है प्रसिद्ध अनुवादक सब्बा खान जी ने।
उपन्यास जितना रोचक है अनुवाद उतना ही शानदार है।
एक दिन किस्मत ने क्रेमर को ऐसी स्थिति में ला पटका की वह अर्श से फर्श पर आ गया। अपनी शाही जिंदगी को बनाये रखने के लिए अब उसके लिए जरूरी था की वह कुछ ऐसा करता जिससे उसके पास पुन: दौलत एकत्र हो जाये।
क्रेमर ने अपने एक पुराने अपराधी मित्र मो जेगेटी, चिटा क्रेन एव रिफ क्रेन नामक भाई-बहन के साथ मिलकर एक ऐसा प्लान अपराधी जाल बुना जिसके बल पर उन्होंने विश्वास था की वो चार करोड़ डालर्स की रकम एकत्र कर लेंगे।
लेकिन पुलिस अधिकारी डेनिसन जो लंबे समय से क्रेमर का इंतजार कर रहा था। क्रेमर को थामने के लिए मैंने इक्कीस सालों तक इंतजार किया है।वह बड़ी मछली है, जो उस वक्त जाल से फिसल गयी थी और अब अगर वह वापस जुर्म की दुनियां में कदम रख रही है तो यह मेरी खुशकिस्मती है। (पृष्ठ-45)
क्रेमर ने एक अभेद्य जाल बनाया और उस जाल में फंसा वान वाइलाई। वान वाइलाई शहर का एक प्रतिष्ठित अमीर आदमी था। वान वाइलाई की बेटी का अपहरण कर उससे चार करोड़ डॉलर की फिरौती मांगी गयी। लेकिन वान वाइलाई इतनी आसानी से रुपये देने वाला नहीं था। "अगर यह हरामखोर समझते हैं कि मेरे चार करोङ डॉलर लेकर हवा हो जायेंगे, तो ये ख्वाबों में जी रहे हैं।" (पृष्ठ-122,23)
- क्या क्रेमर को चार करोड़ डॉलर मिल पाये?
- आखिर क्रेमर और साथियों का प्लान क्या था?
- डेनिसन अपने उददेशे में सफल हो पाया?
- वान वाइलाई ने क्या धनराशि दे दी?
- बहन- भाई की जोड़ी ने आखिर क्या गुल खिलाया?
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क्रेमर का अपराध जगत में पुनः प्रवेश उसकी एक मजबूरी है लेकिन वह आज भी स्वयं को उतना ही सशक्त मानता है जितना पहले था लेकिन मो जगेटी स्वयं को परिस्थितियों पर छोड़ देता है।
अगर देखा जाये तो मो जगेटी का किरदार एक अपराधी का होते हुए भी एक कोमल ह्रदय व्यक्ति का है। वह अपनी माँ के सानिध्य से दूर नहीं जा सकता, वह विक्टर डरमोट की पता पर अत्याचार नहीं देख सकता और डरमोट के छोटे बच्चे से भी स्नेह रखता है।
वहीं चिटा और रिट दोनों भाई बहन निकृष्ट मानसिकता के व्यक्ति हैं। वे किसी को भी मारते हुए नहीं हिचकते। उपन्यास में मो जगेटी से अनायास ही एक भावुकता का बंधन बन जाता है।
- मिस वाइलाई का अपहरण कर्ता रिफ क्रेन से प्यार हो जाना उपन्यास में एक रोचक प्रसंग है।
उपन्यास का समापन पृष्ठ दर पृष्ठ रोचक और घुमावदार है। कहानी अंत में जाते-जाते काफी बदलती रहती है जिससे उपन्यास में रोचकता सहज और स्वाभाविक बनी रहती है।
प्रस्तुत उपन्यास का अनुवाद चर्चित अनुवादक सब्बा खान जी ने किया है। इनका उपन्यास उपन्यास को सहज और सरल बना देता है। यह इनकी व्यक्तिगत विशेषता है।
उपन्यास मात्र शब्दानुवाद ही नहीं है यह भावानुवाद भी है। कहीं कोई क्लिष्ट शब्द प्रयुक्त नहीं हैं। उपन्यास पढते वक्त कहीं भी यह महसूस नहीं होता है की हम एक अनुवाद पढ रहे हैं।
भाषा शैली की कोमलता, सजीवता और धार प्रवाह उपन्यास को पठनीय बनाने में विशेष योगदान रखते हैं।
अनुवादक सब्बा खान जी धन्यवाद की पात्र हैं।
उपन्यास की कहानी एक जुर्म की दुनियां से किनारा कर चुके अपराधी की पुन: जुर्म की दुनियां में आगमन की कहानी है। कहानी अपने प्रथम पृष्ठ से ही रहस्य समेटे हुये है और ऐसे ही आगे बढती है।
उपन्यास की भाषा शैली सब्बा खान जी के अनुवाद से बहुत अच्छी बनी है।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।
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उपन्यास- आखिरी दांव
मूल नाम- One Bright Summer Morning
लेखक- जेम्स हेडली चेइज
अनुवादक- सब्बा खान
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 219
मूल्य- 150₹
85. साहित्य समर्था- पत्रिका
साहित्य समर्था- एक साहित्यिक पत्रिका
प्रथम अंक, अगस्त-सितंबर-2017
जयपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका साहित्य समर्था का प्रथम अंक प्राप्त हुआ।
प्रस्तुत अंक कथाकार डाॅ. बानो सरताज को समर्पित है। इसलिए इस अंक में अधिकांश रचनाएँ बानो सरताज की ही हैं और आवरण पृष्ठ का चित्र भी बानो सरताज का है। यह एक अच्छा व सराहनीय प्रयास है। इस अंक में बानो सरताज की कहानी, कविता, लेखन यात्रा, व्यंग्य- हास्य, आलेख आदि पाठक को पढने को मिलेंगे।
संपादिका महोदया लिखती हैं। "समर्था का प्रस्तुत अंक वरिष्ठ साहित्य डाॅ. बानो सरताज काजी को समर्पित है। बहुआयामी लेखन की धनी डाॅ. बानो सरताज का समृद्ध लेखन संसार एवं समाजसेवी व्यक्तित्व प्रशंसनीय है।" (पृष्ठ- 03)
इसके अलावा भी अन्य बहुत से रचनाकरों को स्थान दिया गया है।
बानो सरताज की कहानी 'दस्तक' में कई रंग देखने को मिलेंगे। कहानी में रोचकता और रहस्य भी है और अंत पूर्णतः मार्मिक। इनकी अन्य कहानियाँ भी रोचक हैं लेकिन इनके व्यंग्य भी दिये गये हैं वह मुझे न तो व्यंग्य लगे न ही हास्य।
मालती जोशी की कहानी 'मन धुआं-धुआं' पढना भी बहुत अच्छा अनुभव कराती है। मुकुट सक्सेना की 'अस्तित्व-बोध', डाॅ. पूनम गुजराती की 'मेहंदी' , चन्द्रकांता की 'एक लङकी शिल्पी'
लघुकथा में नरेन्द्र कुमार गौङ की लघुकथा 'भ्रष्टाचार' यह दर्शाने में सफल रही है की हम स्वयं भ्रष्ट होकर अपना दोष न देखकर दूसरों को दोष देते हैं।
लघुकथा में किशन लाल शर्मा की 'हक', पूर्णिमा मित्रा की ' आस के दिये' भी अच्छी हैं।
सबसे अलग हटकर प्रस्तुति है जर्मनी की युट्टा आॅस्टिन का साक्षात्कार। यह साक्षात्कार लिया है आभा सिंह ने।
युट्टा आॅस्टिन जर्मन महिला है। विवाह पश्चात अपने पति के देश इंग्लैंड में कोल चैस्टर नामक स्थान पर रहती है। वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय कोल चैस्टर में यूरोपीय भाषाओं की व्याख्याता है, साथ ही साथ हिंदी की विदूषी है और अध्यापन भी करती है। (पृष्ठ -58)
हिंदी भाषा के प्रति प्रेम विषय पर वे कहती है- "हिंदी इतनी सुंदर और बढिया भाषा लगी कि उसे सीखने लगी और भारत के बारे में पढने लगी।" (पृष्ठ- 58)
इस अंक की काव्य रचनाएँ भी बहुत सराहनीय है।
डाॅ. नरेन्द्र शर्मा 'कुसुम' राष्ट्र ध्वज क लिए लिखते हैं।
- तू हमारे देश की पहचान है,
कोटि कंठों से उमङता गान है,
तीन रंगों में फहराता व्योम में
एकता की तू सुरीली तान है। (पृष्ठ-33)
स्त्री वर्ग को लेकर लिखी गयी रचनाएँ भी अच्छी हैं। डाॅ. अंजु दुआ 'जैमिनी' की कविता ' स्त्री, मात्र देह' में स्त्री की स्वतंत्रता का वर्णन करती है।
स्त्री चारदीवारी से निकल
बढी खुली हवा में
कुछ पाना है- सब कुछ पाना है। (पृष्ठ- 37)
डाॅ. पद्मजा शर्मा की रचना 'लङकी' भी स्त्री वर्ग की बात करती है।
जितना सरल है कह देना लङकी
हकीकत में उतना ही कठिन है होना लङकी
जितने पल जीती है उससे कहीं ज्यादा पल मरती है लङकी। (पृष्ठ- 37)
संगीता गुप्ता की कविता 'माँ', मीरा सलभ की 'गम ही फलते रहे', डाॅ अमिता दुबे की 'ऐसा मन करता है', डाॅ संगीता सक्सेना की ' राखी', आदि काव्य रचनाएँ भी पठनीय है। शिवानी शर्मा की 'स्त्री', सत्यदेव संतिवेन्द्र की 'प्रश्न सहेजे चेहरे, सुकीर्ति भटनागर की कविता 'बस एक पल' भी सराहनीय रचनाएँ हैं।
मधु प्रमोद अपनी कविता 'हम सी ना बेटियाँ होती' में कहती हैं- ये हवाएं हैं
एक जगह रह नहीं सकती
ये ऋचाएं हैं
कभी खुलकर नहीं कहती। (पृष्ठ-46)
इनके अतिरिक्त इस अंक में साहित्यिक चर्चा और पुस्तक समीक्षा भी दी गयी है।
साहित्य समर्था का प्रस्तुत अंक वास्तव में बहुत अच्छा है। संपादिका नीलिमा टिक्कू जी धन्यवाद की पात्रा है जिन्होंने इस कठिन कार्य को अंजाम दिया है।
इस पत्रिका की एक और विशेषता है वह है इसका मजबूत संपादन पक्ष तथा उच्च स्तर के कागज पर मुद्रण। यह दोनों विशेषताएँ पत्रिका को और ज्यादा मजबूती प्रदान करती है।
पूर्णतः सफेद पृष्ठों पर अंकित काले -काले अक्षर मन मोह लेते हैं।
पत्रिका का प्रथम अंक पठनीय है।
पुनश्च: उन सभी रचनाकारों और संपादन मण्डल का धन्यवाद जिनके अथक प्रयास से साहित्य समर्था का प्रथम अंक साहित्य जगत में आया।
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पत्रिका- साहित्य समर्था (त्रैमासिक)
संपादिका- नीलिमा टिक्कू
अंक- जुलाई- सितंबर, 2017 ( वर्ष-1, अंक-01)
पृष्ठ-
मूल्य- एक अंक- 50₹, वार्षिक- 200₹
संपर्क-
ई-311, लालकोठी स्कीम, जयपुर- 302015
दूरभाष- 0141-2741803, 2742027
Email- sahityasamartha@gmail.com
- neelima.tikku16@gmail.com
Monday, 25 December 2017
84. कारीगर- वेदप्रकाश शर्मा
कहानी चाहे कितनी भी सहज और सामान्य हो लेकिन वेदप्रकाश शर्मा जी उसमें ऐसे घुमाव पैदा करते हैं की पाठक सोचता रह जाता है आगे क्या होगा।
प्रभावशाली लेखक भी वही है जो पाठक को कहानी से जोङे रखे। और इस विषय में वेदप्रकाश शर्मा जी अपने समकालीन उपन्यासकारों में अग्रणी रहें हैं।
अपनी इसी विशेषता के लिए वेदप्रकाश शर्मा जाने जाते हैं।
Wednesday, 6 December 2017
83. जनकवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
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जनकवि रमाशंकर यादव मेरे प्रिय कवि हैं।
यहाँ क्लिक करें-
Friday, 17 November 2017
82. मेरी जीवन यात्रा- अब्दुल कलाम
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इस पुस्तक में क्या है, -" मेरी अन्य पुस्तकों की तरह ' मेरी जीवन यात्रा' में मुख्य केन्द्र कुछ छोटी तथा अनजान सी घटनाएं थी, जो मेरे जीवन में घटित हुयी। अपने माता- पिता से जुङी अनेक घटनाओं की व्याख्या मैंने इस पुस्तक में की है।"
संपूर्ण किताब को छोटे- छोटे 12 खण्डों में विभक्त किया है, यह किताब की रोचकता भी है। इस आत्मकथा में अधिकतर घटनाएं कलाम जी के बचपन और उनके परिवार का चित्रण करती नजर आती है।
कलाम जी के जीवन में अनेक अवरोधक पैदा हुए लेकिन कलाम जी ने कभी हार नहीं स्वीकार की।
आठ बरस का कमाऊ लङका नामक खण्ड में कलाम साहब के बचपन के संघर्ष का वर्णन है। मात्र आठ वर्ष की उम्र में कलाम साहब सुबह उठकर घर-घर
अखबार पहुंचाते थे और ट्युशन और विद्यालय भी जाते थे।
छोटी सी उम्र में कठिन मेहनत और उस पर भी कभी उनके चेहरे पर कभी निराशा नहीं झलकी।
अपने शहर के प्रेम- साम्प्रदायिक सौहार्दपूर्ण वातावरण का चित्रण संकट मोचक तीन व्यक्ति नामक खण्ड में करते हैं।
शहर के तीन नामी व्यक्ति और वह भी तीनों अलग- अलग धर्म से संबंधित थे पर शहर के अमन-चैन उन तीनों के लिए प्राथमिक था। और सच्चा धर्म भी वही है जो मनुष्य को सच्ची शांति प्रदान करे। इस वातावरण का कलाम के जीवन पर गहरा असर रहा।
" अगर मेरे धर्म की बात की जाये तो निश्चित रूप से मेरे भाग्य ने मुझे विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में पहुंचाया था, उसकी बुनियाद रामेश्वरम् से बनी थी। मैं हमेशा से ही विज्ञान में विश्वास करने वाला था, लेकिन इसके साथ ही मेरा आध्यात्मिक विश्वास था, जो कि युवावस्था में हि स्थापित हो चुका था।........मुझे ज्ञान की प्राप्ति कुरान, गीता तथा बाइबिल से मिली। इनके मिलाप से ही मेरे जीवन व संस्कारों का मिलाप मुझे अपनी जन्मभूमि से मिला था और इस शहर के अनूठे संस्कारों ने मेरा पूर्ण विकास किया। (पृष्ठ 53)
यह पुस्तक जो की कलाम जी के परिवार का मुख्यतः परिचय देती है। इसमें इनके परिवार को जानने- समझने का काफी अच्छा अवसर मिलता है। इसी पुस्तक का एक खण्ड है मेरी माँ और मेरी बहन।
इस खण्ड का आरम्भ इन पक्तियों से होता है
" सागर की लहरें, सुनहरी रेत, यात्रियों की आस्था,
रामेश्वरम् की मस्जिद वाली गली, सब आपस में मिलकर एक हो जाती हैं,
वह है मेरी माँ।"
द्वितीय विश्व युद्ध के उन कठिन दिनों का वर्णन भी मिलता है जब पूरे परिवार को राशन तय कोटे के अनुसार ही मिलता था लेकिन कलाम जी की ममतामयी माँ स्वयं भूखी रहकर अपने बच्चों को भरपेट खाना खिलाती थी।
और वहीं बहन जौहरा का वर्णन भी है जिसने कलाम जी की शिक्षा के लिए अपने आभूषण तक बेच दिये।
कलाम जी का पुस्तक प्रेम तो सर्वविदित है, उन्होने जितना अच्छा पढा है उतना अच्छा लिखा भी है।
" ...पुस्तकों से मेरा घनिष्ठ संबंध रहा है। वे मेरे अच्छे मित्रों की तरह है।"(पृष्ठ -87)
इस खण्ड में कलाम जी ने अपनी प्रिय पुस्तकों का भी जिक्र किया है।
- हमारे अंदर का दृढ विश्वास तथा हमारे अंदर के विचार है, जो हमारे कार्यों को प्रभावित करते हैं।
- मेरा मानना है की एक ही सत्ता (ईश्वर) है जो हर किसी सुनती है।(पृष्ठ 70)
- जो शिक्षक अपने विद्यार्थी की प्रगति का ध्यान रखता है, वही हमारा सर्वश्रेष्ठ मित्र होता है। (पृष्ठ-82)
- निराशा के भाव समाप्त होने के बाद इंसान की सोच में बदलाव आता है और उसके दृष्टिकोण में भी बदलाव आता है। (पृष्ठ 99)
- हम सिर्फ राजनीतिक घटनाओं को ही देश-निर्माण समझते हैं, परंतु बलिदान, परिश्रम तथा निर्भयता ही सही अर्थों में देश बनाती है। (पृष्ठ-106)
- विज्ञान एक आनंद और जुनून है।
डाॅ. अब्दुल कलाम जी ने स्वयं के बारे में बहुत सुंदर शब्दों में बहुत ही अच्छी बात कही है, - कठिन परिश्रम, अध्ययन करना व सीखना, सद्भाव तथा क्षमा कर देना- ये सब मेरी जिंदगी में मील के पत्थर हैं।
पुस्तक में कई जगह करुण प्रसंग भी हैं जो कलाम जी को ताउम्र याद रहे और किसी भी पाठक को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
इस पुस्तक का अधिकांश चित्रण इनके परिवार से ही संबंधित है और कुछ अंश इनके वैज्ञानिक जीवन से भी हैं लेकिन पुस्तक में कलाम जी के राष्ट्रपति कार्यकाल का नाम मात्र वर्णन ही मिलता है।
पुस्तक भी भाषा शैली बहुत ही सरल और सरस है जो किसी भी पाठक को सहज ही समझ में आ जाती है। कहीं भी भारी भरकम या तकनीकी शब्दावली का प्रयोग नहीं किया गया।
हालांकि यह पुस्तक मूलतः अंग्रेजी में थी और यह इसका हिंदी अनुवाद है।
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पुस्तक- मेरी जीवन यात्रा
ISBN -978-93-5048-797-6
लेखक - ए.पी. जे. अब्दुल कलाम आजाद
( 15.10.1931- 27.07.2015)
मूल पुस्तक- My journey
अनुवादक- महेन्द्र यादव
प्रकाशन- प्रभात पेपरबैक्स
www.prabhatbooks.com
संस्करण- 2017
पृष्ठ- 143
मूल्य- 150₹
Wednesday, 15 November 2017
80. नीला स्कार्फ- अनु सिंह चौधरी
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आपको इनकी कहानियों में गांव भी मिलेगा तो शहर भी मिलेगा, आधुनिकता भी है तो प्राचीन संस्कार भी है, लव इन रिलेशनशिप भी है तो परम्परागत रिश्ते भी हैं।
हम समग्र रूप से कह सकते हैं की नीला स्कार्फ विविध रंगों का एक गुलदस्ता है।
इस संग्रह की प्रथम कहानी रूममेंट जहां प्रारंभ में मुझे नीरस सी लगी लेकिन इस कहानी का अंत आंखों में नमी दे गया। और ऐसी ही एक और कहानी है सिगरेट का आखिरी कस।
बिसेसर बो की प्रेमिका एक ग्रामीण परिवेश की वह कहानी है जो पुरुष प्रधान वातावरण को चित्रित करती है। इस के लिए बिसेसर बो का एक कथन ही काफी है, -"मरद जात के गरदन में चाहे जो लटकता रहे, दुनियां को औरत के गले में लटकता हुआ मंगलसूत्तर ही अच्छा लगता है।" (पृष्ठ-44)
फिल्म दुनिया के सुनहरे पर्दे के पीछे छुपे काले सच को बयान करती है कहानी प्लीज डू नाॅट डिस्टर्ब।
इस संग्रह की कुछ अलग हटकर कहानी है वह है कुछ यूँ होना उसका।
शिक्षक जीवन में ऐसे कई प्रसंग देखने को मिलते हैं जैसा की इस कहानी में व्यक्त किया गया है। और यह कहानी भी इस संग्रह की वह कहानी है जो सरल शब्दावली में है। न तो इसमें आंचलिक शब्द हैं और न ही अंग्रेजी के।
इस संग्रह की मुख्य कहानी है नीला स्कार्फ। यह वर्तमान हमारी जीवन शैली पर गहरा व्यंग्य है। हम आधुनिकता की दौङ में अपने परिवार तक को भी भूल गये।
यह एक अच्छी कहानी है लेकिन इस प्रकार की बहुत सी कहानियाँ लघुकथाओं में पढी जा चुकी हैं। कहानी के प्रस्तुतिकरण में कोई नयापन नहीं था। और ऐसी ही कहानी है सहयात्री। जिसे लगभग पाठक पढ चुके होंगे।
हाथ की लकीरें और मर्ज जिंदगी इलाज जिंदगी कहानियाँ कोई विशेष प्रभाव नहीं छोङ पायी।
प्रस्तुत कहानी संग्रह अच्छा कहानी संग्रह है जिसकी कहानियाँ बहुत रोचक व मन को छू लेने वाली है।
- शहर अनजान और अपना नहीं होता। हम उसे अपना या बेगाना बना देते हैं। (पृष्ठ-52)
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पुस्तक- नीला स्कार्फ (कहानी संग्रह)
ISBN: 978-93-81394-85-4
लेखिका- अनु सिंह चौधरी
प्रकाशक- हिंद युग्म
पृष्ठ-160.
मूल्य- 120₹
प्रथम संस्करण- जुलाई 2014
तृतीय संस्करण- सितंबर 2015
लेखिका संपर्क-
www.mainghumantu.blogspot.com
Email- anu2711@gmail.com
79. ब्राउन शुगर- रवि माथुर
भारत से अफ्रीका के कबीले तक फैली हरी मौत का रहस्य ।
ब्राउन शुगर, रोचक उपन्यास, मध्यम स्तर।
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होटल इंटरनेशनल काॅन्टीनेन्टल
31 दिसंबर की रात
नववर्ष के शुभारंभ की पार्टी चल रही थी और जिसमें एक नीग्रो युवती मिस टोटो नृत्य कर रही थी। इस दौरान किसी ने मिस टोटो की स्टेज पर हत्या कर दी।
इसी वक्त वहाँ उपस्थित कैप्टन हमीद ने इस मामले में हस्तक्षेप किया।
कैप्टन हमीन और कर्नल विनोद इस केस की जांच पर आगे बढे तो पता चला की कुछ दिन पूर्व एक नीग्रो युवक की लाश शहर में मिली थी और उसका शरीर हरा था।
मिश्र घूमने गये मिस्टर कोरक और नानसी के सामने वहाँ एक हत्या हो गयी और मृतक का शरीर हरा हो गया।
"कौन थे वे लोग? तुम्हें किसने मारा?"
"हरी मौत।"
भारत की धरती पर ब्रिटेन, मिश्र के लोगों में उपजी एक अनोखी जंग जिसमें भारत के जासूस कर्नल विनोद और हमीद को भी शामिल होना पङा और जिसका अंत अफ्रीका के कांगो बेसिन के एक टापू पर हुआ।
विभिन्न देशों में घूमती हुयी एक खतरनाक कहानी।
उपन्यास के पात्र-
कर्नल विनोद- भारत का प्रसिद्ध जासूस।
कैप्टन हमीद- भारतीय जासूस।
कोरक- भारतीय जासूस। जो इस प्रकरण के दौरान मिश्र में था।
नानसी- कोरक की साथी।
कासिम- उपन्यास का एक हास्य पात्र।
डेविस- एक खतरनाक अपराधी।
रोजर- माटू देवता की आँख चुराने वाला व्यक्ति।
हारूण- मिश्र पुलिस का अधिकारी।
आयशा- रोजर की साथी।
प्रिंस लुआगा- मारोगाटो कबीले के सरदार का पुत्र ।
माटू देवता- कबीले का देवता।
शीर्षक-
जैसा की उपन्यास का शीर्षक ब्राउन शुगर है तो स्वाभाविक है पाठक का ध्यान नशे की तरह ही जायेगा।
उपन्यास के प्रारंभिक पृष्ठ भी कुछ ऐसा ही लिखा है।
" ब्राउन शुगर...एक ऐसा खतरनाक नशा जो युवा पीढी को को मौत के समुद्र में धकेल रहा था।"
हालांकि उपन्यास का उपर्युक्त पंक्तियों या शीर्षक से किसी भी प्रकार का कोई भी सबंध स्थापित नहीं होता।
अब पता नहीं लेखक/ प्रकाशक ने यह नाम कैस रख दिया।
गलतियाँ-
उपन्यास में कई जगह गलतियाँ है।
- होटल काॅन्टिनेटल में मिस टोटो का हत्यारा स्टेज पर टोटो की हत्या पहले करता है और उसके कमरे की तलाशी बाद में लेता है।
जबकी होता इसका विपरीत। अगर हत्यारा कमरे की तलाशी पहले लेता तो उसे मिस टोटो की हत्या करने की जरूरत भी न पङती और हत्या के बाद तलाशी लेने का वक्त कहां से मिल गया।
- पृष्ठ 97-100 में
होटल में कोरक और नानसी के सब्जी के बर्तन में दोनों को मारने के लिए जिंदा सांप डाल दिया जाता है।
कमाल है सब्जी में सांप और वह भी जिंदा।
- कासिम उपन्यास का एक हास्य पात्र है। अफ्रीका के दौरे पर उसे साथ लेकर जाने का कोई औचित्य भी नहीं था।
समापन:-
किसी भी कहानी का क्लाइमैक्स (समापन) उसका चरम बिंदु कहलाता है। पाठक की पूरी उत्सुकता होती है की अंत में क्या हुआ।
इस उपन्यास के अंत तक पाठक भी यही सोचता है की अंत में क्या हुआ, क्या सारा खेल ब्राउन शुगर का है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।
लेखक उपन्यास का समापन इतने अच्छे तरीके से न कर सका जितने की उम्मीद थी।
रवि माथुर का प्रस्तुत उपन्यास एक मध्यम स्तर का उपन्यास है जो कई जगह अपनी कहानी से भटकता है लेकिन अंत में क्लाइमैक्स तक पहुंचता है।
यह एक मध्यम स्तरीय उपन्यास है जिसे पाठक समय बिताने के लिए पढ सकता है।
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उपन्यास- ब्राउन शुगर
लेखक- रवि माथुर।
प्रकाशक- दुर्गा पॉकेट बुक्स, 315, ईश्वर पुरी, मेरठ- 250002
पृष्ठ- 207
मूल्य- 20₹
लेखक संपर्क-.
रवि माथुर
428/ 15 B
ईश्वर पुरी, मेरठ- 250002
Sunday, 5 November 2017
78. दौलत सबकी दुश्मन- अरुण अंबानी
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दौलत सबकी दुश्मन, थ्रिलर उपन्यास, पठनीय।
अरुण अंबानी की कलम से निकला एक जबरदस्त उपन्यास है ' दौलत सबकी दुश्मन'।
शोभराज चार्ल्स की पूर्व प्रेमिका सुनीता वर्मा शहर के बदमाश रंजन दूबे के साथ मिलकर एक ज्वैलर्स शाॅप को लूटने का प्लान बनाती है।
लूट के बाद रंजन दूबे जैसा महाहरामी गद्दारी पर उतर आता है। और सुनीता वर्मा जैसी अंतर्राष्ट्रीय शातिर से चालाकी कर बैठता है।
दूसरी तरफ रंजन दूबे के साथी एक- एक कर मौत को प्राप्त होते हैं वह भी तब जब सुनीता वर्मा पुलिस की गिरफ्त में है।
स्वयं रंजन दूबे भी तब हैरान रह जाता है जब डकैती के दौरान एक मददगार की लाश उसके सामने पङी होती है, वह मददगार जिसके हत्या रंजन दूबे के साथियों ने की थी।
क्या रंजन दूबे अंतर्राष्ट्रीय शातिर सुनीता वर्मा के सामने सफल हो पाया?
- क्या सुनीता वर्मा पुलिस की पकङ से बच पायी?
- रंजन दूबे के साथियों का हत्यारा कौन था?
- मददगार की लाश बाहर कैसे निकल आयी?
ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्नों के उत्तर अरुण अंबानी के उपन्यास ' दौलत सबकी दुश्मन' पढकर ही मिलेंगे।
77. बस्तर पाति- पत्रिका
लोक संस्कृति और आधुनिक साहित्य को समर्पित एक पत्रिका।
बस्तर पाति, त्रैमासिक पत्रिका, दिसंबर-अगस्त-2017
Bछत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से निकालने वाली एक लघु पत्रिका है बस्तर पाति। यह पत्रिका नाम से ही लघु है लेकिन इसका रचना क्षेत्र बहुत विशाल।
प्रस्तुत अंक खुदेजा खान जी पर केन्द्रित है। जिसमें खुदेजा खान जी की कहानियाँ, कविता के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से लेखकों को स्थान दिया गया है।
पत्रिका का संपादकीय बहुत अच्छा है लेकिन अंत में वह लघु पत्रिका के प्रकाशन पर आकर मूल विषय से भटक गया प्रतीत होता है।
वहीं एक काॅलम बहस (पृष्ठ-07) में काल्पनिक और भोगे हुए यथार्थ पर अच्छा लिखा गया है।
एक साक्षात्कार में खुदेजा खान ने कहा है।
" स्त्री अपना भोगा हुआ यथार्थ ही लिखती है, लेकिन उसे पुरुष प्रधान समाज में पुरुष द्वारा बताया गया या निर्धारित किये गये मानदण्डों के अनुरूप मान लिया जाता है। यही तो विडम्बना है।" (पृष्ठ-15)
करमजीत कौर की कहानी सेतु एक भावुक रचना है जि किसी भी पाठक के मन को छू जाती है।
ऐसी ही एक और कहानी है USA की लेखिका डाॅ. सुदर्शन प्रियदर्शिनी की भीड़। हम भीङ में भी कितने अकेले हैं, इसका दर्द वही समझ सकता है जिसने इस यथार्थ को भोगा है।
नरेश कुमार उदास की कहानी माँ सबकी एक समान होती है (पृष्ठ- 27) एक अच्छी रचना है, पर यह कहानी पाठक बहुत बार बहुत से रूप में पढ चुके हैं। कहानी में कोई नयापन नहीं।
हमारी राजनीति और हमारे व्यवहार में आये दोहरेपन को बहुत ही अच्छे तरीके से व्यक्त करती है रीना मिश्रा की कहानी फर्क ।
यह कहानी इस अंक की मेरी दृष्टि में एक अच्छी कहानी है।
इस अंक में काफी लघुकथाए भी हैं जो अच्छी हैं। कम शब्दों में गंभीर बात कहने में लघुकथा सक्षम है।
पत्रिका में काव्य रचना भी बहुत अच्छी हैं। पत्रिका नये लेखकों को भी खूब अवसर दे रही है।
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पत्रिका - बस्तर पाति
अंक- 11,12,13- दिसंबर-अगस्त-2017
(यह संयुक्त अंक है)
प्रकाशक- सनत कुमार जैन
पृष्ठ-70
मूल्य-25₹
Email- paati.bastar@gmail.com
www.paati.bastar.com
Saturday, 4 November 2017
76. चिनगारियों का नाच- परशुराम शर्मा
चिंगारियों का नाच, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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प्रस्तुत उपन्यास में मात्र यही एक छोटी सी कहानी है। इसमें न तो कोई सस्पेंश है और न ही कोई रोमांच। ऐसा लगता है जैसे लेखक ने अपने प्रसिद्ध पात्रों के नाम का फायदा उठाया हो।
एक दो जगह लगता है की उपन्यास में कुछ रोमांच बनेगा लेकिन बन नहीं पाता।
असली- नकली विनोद का किस्सा भी ज्यादा नहीं चला। उपन्यास के अंत में और वह भी बिलकुल अंत में पाठक को चौंकाने के लिए एक छोटा सा प्रयोग उपस्थित है वह अवश्य उपन्यास में कुछ जान डालता है बाकी उपन्यास किसी भी दृष्टि से पठनीय नहीं है।
हालांकि किसी भी महान लेखक की प्रत्येक कृति महान नहीं होती यह भी परशुराम शर्मा की एक ऐसी ही कृति है।
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उपन्यास- चिनगारियों का नाच
लेखक- परशुराम शर्मा
प्रकाशक- किरण प्रकाशन, प्रेम पुरी, मेरठ।
पत्रिका- जासूसी तहलका।
संपादक- विजय कुमार जैन।
पृष्ठ- 97
मूल्य-
Thursday, 26 October 2017
75. गोली तेरे नाम की - नाना पण्डित
लेकिन अफसोसजनक बात यह है की इस पात्र को लेकर अच्छे और सदाबहार उपन्यास किसी भी लेखक ने नहीं लिखे।
केशव पण्डित उपन्यास जगत में वह बहती गंगा थी जिसमें सभी प्रकाशकों ने अपने हाथ धोये।
जुर्म के बाद जुर्म....हत्या के बाद हत्या.....।
आतंक की कोख से सर उठाता नया जुर्म हर बार....खून की स्याही से लिखी जाने वाली एक ऐसी पेचीदा अनसुलझी दास्तान......जिसका न आदि था न अंत.....।
उपर्युक्त पंक्तियाँ उपन्यास के प्रथम कवर पृष्ठ के अंदर दी गयी है। हालांकि यह कोई अनसुलझी दास्तान नहीं है और इसका अंत भी है। बस प्रकाशन ने ऐसा ही लिख दिया।
रायगढ़ रियासत में तीन महिनों में तीस युवकों की हत्या कर दी गयी। सभी नौजवान लगभग बीस साल के हैं। उनकी लाशें नग्न अवस्था में पायी जाती हैं। उनके साथ बेरहमी से अत्याचार किया जाता है और उनका अंग विशेष काट दिया जाता है।
74. मौत का सिलसिला- मेजर बलवंत
मौत का सिलसिला, जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय।
"नहीं, नहीं सरकार, मैं आपको वास्तविकता बता रहा था।"- वह कह उठा, " मैं आपको आतंकित नहीं करना चाहता था।"
"क्या तुम्हें झूठ बोलने में मजा आता है?"- मैं उसकी चकरा देने वाली कहानी से भौचक्का रह गया था।
35 वर्ष पूर्व जिसे फांसी दी गयी वही व्यक्ति जब भूतपूर्व न्यायाधीश के सामने आ बैठा तो भौचक्का रह जाने के सिवा और कोई चारा भी न था।
आप भी मेजर बलवंत के इस जासूसी उपन्यास की अनोखी कहानी को पढकर भौचक्के रह जायेंगे।
रहस्य, रोमांच, हिंसा, हत्या और षड्यंत्रों के जाल से परिपूर्ण रोमांचक कहानी।
"सरकार, यह वास्तविकता है। कि मेरे पिता ने शिंदे का कत्ल किया था और यह भी वास्तविकता है कि मैंने भी शिंदे का कत्ल किया है। लेकिन सरकार यह भी वास्तविकता है, इसमें से कोई भी कातिल नहीं है, न मेरा बाप हत्यारा था, न मैं खूनी हूँ।"
हाई कार्ट के पूर्व जज अमोलक सोलंकी, जो की वर्तमान में जासूसी के धंधे में हैं।
उनके पास एक विचित्र व संयोग (दुर्योग) भरा एक अनोखा केस आता है।
एक हत्या का केस। जिस व्यक्ति पर हत्या करने का आरोप है वही जासूस महोदय अमोलक सोलंकी के पास आता है।
" सरकार, आप मेरा केस ले लें- आपसे ही उम्मीद है।- वह गिङगिङाने लगा।
"मैं ही क्यों लू तुम्हारा केस? तुम्हें मालूम था कि मैंने तुम्हारे पिता को फांसी पर चढाया था।'- अमोलक ने कहा।
" आप जानना चाहते हैं न सरकार, कि मैं अपने पिता के खिलाफ फैसला देने वाले के पास क्यों आया हूँ?"- उसने विचित्र स्वर में कहा।
"हां, मैं जानना चाहता हूँ।"
"सरकार हमारे खानदान का एक रिवाज है। जिस स्थान पर बाप की चिता जलती है उसी स्थान पर बेटे की चिता जलाई जाती है।....मैं इस परम्परा को थोङा आगे बढाना चाहता हूँ। जिस व्यक्ति की नासमझी से मेरे पिता को मृत्यु दण्ड मिला, मैं भी उसी व्यक्ति की ना-समझी का शिकार होना चाहता हूँ।"- वह जोर से हँसा। (पृष्ठ-14,15)
- कौन था ये विचित्र व्यक्ति?
- क्यों मरना चाहता था, वह भी अमोलक के सिर इल्जाम लगाकर?
- अनमोल ने किस निर्दोष व्यक्ति को दण्ड दिया था?
- कौन था शिंदे?
- किसने कत्ल किया शिंदे का?
ऐसे एक नहीं अनेक रोचक प्रश्नों के उत्तर मौत का सिलसिला उपन्यास में ही दर्ज हैं।
मेजर बलवंत द्वारा लिखित उपन्यास मौत का सिलसिला वास्तव में रोमांच और हैरत होने का एक ऐसा सिलसिला है जो कभी खत्म नहीं होता। समापन पृष्ठ तक भरपूर आनंद देने वाला है ये सिलसिला।
क्लाइमैक्स-
उपन्यास का समापन भी काफी रोचक है। लेकिन उपन्यास नायक अमोलक सोलंकी द्वारा जिस चीज को आधार या सबूत बनाकर कातिल की खोज की जाती है वह मुझे उचित नहीं लगी।
कातिल कत्ल करते वक्त एक सबूत छोङ जाता है। अब पता नहीं कातिल ऐसे सबूत को साथ लेकर क्यों घूम रहा था।
फिर भी इससे उपन्यास की रोचकता पर कोई फर्क नहीं पङता।
मेजर बलवंत द्वारा लिखित उपन्यास मौत का सिलसिला एक बहुत ही रोचक व पठनीय उपन्यास है।
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उपन्यास- मौत का सिलसिला (जासूसी उपन्यास)
लेखक- मेजर बलवंत
प्रकाशन वर्ष- 1983
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-
मूल्य- 06₹ (तात्कालिक (