--------------
इस पुस्तक में क्या है, -" मेरी अन्य पुस्तकों की तरह ' मेरी जीवन यात्रा' में मुख्य केन्द्र कुछ छोटी तथा अनजान सी घटनाएं थी, जो मेरे जीवन में घटित हुयी। अपने माता- पिता से जुङी अनेक घटनाओं की व्याख्या मैंने इस पुस्तक में की है।"
संपूर्ण किताब को छोटे- छोटे 12 खण्डों में विभक्त किया है, यह किताब की रोचकता भी है। इस आत्मकथा में अधिकतर घटनाएं कलाम जी के बचपन और उनके परिवार का चित्रण करती नजर आती है।
कलाम जी के जीवन में अनेक अवरोधक पैदा हुए लेकिन कलाम जी ने कभी हार नहीं स्वीकार की।
आठ बरस का कमाऊ लङका नामक खण्ड में कलाम साहब के बचपन के संघर्ष का वर्णन है। मात्र आठ वर्ष की उम्र में कलाम साहब सुबह उठकर घर-घर
अखबार पहुंचाते थे और ट्युशन और विद्यालय भी जाते थे।
छोटी सी उम्र में कठिन मेहनत और उस पर भी कभी उनके चेहरे पर कभी निराशा नहीं झलकी।
अपने शहर के प्रेम- साम्प्रदायिक सौहार्दपूर्ण वातावरण का चित्रण संकट मोचक तीन व्यक्ति नामक खण्ड में करते हैं।
शहर के तीन नामी व्यक्ति और वह भी तीनों अलग- अलग धर्म से संबंधित थे पर शहर के अमन-चैन उन तीनों के लिए प्राथमिक था। और सच्चा धर्म भी वही है जो मनुष्य को सच्ची शांति प्रदान करे। इस वातावरण का कलाम के जीवन पर गहरा असर रहा।
" अगर मेरे धर्म की बात की जाये तो निश्चित रूप से मेरे भाग्य ने मुझे विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में पहुंचाया था, उसकी बुनियाद रामेश्वरम् से बनी थी। मैं हमेशा से ही विज्ञान में विश्वास करने वाला था, लेकिन इसके साथ ही मेरा आध्यात्मिक विश्वास था, जो कि युवावस्था में हि स्थापित हो चुका था।........मुझे ज्ञान की प्राप्ति कुरान, गीता तथा बाइबिल से मिली। इनके मिलाप से ही मेरे जीवन व संस्कारों का मिलाप मुझे अपनी जन्मभूमि से मिला था और इस शहर के अनूठे संस्कारों ने मेरा पूर्ण विकास किया। (पृष्ठ 53)
यह पुस्तक जो की कलाम जी के परिवार का मुख्यतः परिचय देती है। इसमें इनके परिवार को जानने- समझने का काफी अच्छा अवसर मिलता है। इसी पुस्तक का एक खण्ड है मेरी माँ और मेरी बहन।
इस खण्ड का आरम्भ इन पक्तियों से होता है
" सागर की लहरें, सुनहरी रेत, यात्रियों की आस्था,
रामेश्वरम् की मस्जिद वाली गली, सब आपस में मिलकर एक हो जाती हैं,
वह है मेरी माँ।"
द्वितीय विश्व युद्ध के उन कठिन दिनों का वर्णन भी मिलता है जब पूरे परिवार को राशन तय कोटे के अनुसार ही मिलता था लेकिन कलाम जी की ममतामयी माँ स्वयं भूखी रहकर अपने बच्चों को भरपेट खाना खिलाती थी।
और वहीं बहन जौहरा का वर्णन भी है जिसने कलाम जी की शिक्षा के लिए अपने आभूषण तक बेच दिये।
कलाम जी का पुस्तक प्रेम तो सर्वविदित है, उन्होने जितना अच्छा पढा है उतना अच्छा लिखा भी है।
" ...पुस्तकों से मेरा घनिष्ठ संबंध रहा है। वे मेरे अच्छे मित्रों की तरह है।"(पृष्ठ -87)
इस खण्ड में कलाम जी ने अपनी प्रिय पुस्तकों का भी जिक्र किया है।
- हमारे अंदर का दृढ विश्वास तथा हमारे अंदर के विचार है, जो हमारे कार्यों को प्रभावित करते हैं।
- मेरा मानना है की एक ही सत्ता (ईश्वर) है जो हर किसी सुनती है।(पृष्ठ 70)
- जो शिक्षक अपने विद्यार्थी की प्रगति का ध्यान रखता है, वही हमारा सर्वश्रेष्ठ मित्र होता है। (पृष्ठ-82)
- निराशा के भाव समाप्त होने के बाद इंसान की सोच में बदलाव आता है और उसके दृष्टिकोण में भी बदलाव आता है। (पृष्ठ 99)
- हम सिर्फ राजनीतिक घटनाओं को ही देश-निर्माण समझते हैं, परंतु बलिदान, परिश्रम तथा निर्भयता ही सही अर्थों में देश बनाती है। (पृष्ठ-106)
- विज्ञान एक आनंद और जुनून है।
डाॅ. अब्दुल कलाम जी ने स्वयं के बारे में बहुत सुंदर शब्दों में बहुत ही अच्छी बात कही है, - कठिन परिश्रम, अध्ययन करना व सीखना, सद्भाव तथा क्षमा कर देना- ये सब मेरी जिंदगी में मील के पत्थर हैं।
पुस्तक में कई जगह करुण प्रसंग भी हैं जो कलाम जी को ताउम्र याद रहे और किसी भी पाठक को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
इस पुस्तक का अधिकांश चित्रण इनके परिवार से ही संबंधित है और कुछ अंश इनके वैज्ञानिक जीवन से भी हैं लेकिन पुस्तक में कलाम जी के राष्ट्रपति कार्यकाल का नाम मात्र वर्णन ही मिलता है।
पुस्तक भी भाषा शैली बहुत ही सरल और सरस है जो किसी भी पाठक को सहज ही समझ में आ जाती है। कहीं भी भारी भरकम या तकनीकी शब्दावली का प्रयोग नहीं किया गया।
हालांकि यह पुस्तक मूलतः अंग्रेजी में थी और यह इसका हिंदी अनुवाद है।
----------------------------------
पुस्तक- मेरी जीवन यात्रा
ISBN -978-93-5048-797-6
लेखक - ए.पी. जे. अब्दुल कलाम आजाद
( 15.10.1931- 27.07.2015)
मूल पुस्तक- My journey
अनुवादक- महेन्द्र यादव
प्रकाशन- प्रभात पेपरबैक्स
www.prabhatbooks.com
संस्करण- 2017
पृष्ठ- 143
मूल्य- 150₹